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Vrat Tyohar Oct 2023

Vrat Tyohar Oct 2023

2 अक्टूबर 2023,सोमवार : महात्मा गांधी जयंती, संकष्टी चतुर्थी व्रत

4 अक्टूबर 2023, बुधवार : रोहिणी व्रत, छठा श्राद्ध

6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार : श्री महालक्ष्मी व्रत समाप्त, जीवित्पुत्रिका व्रत

9 अक्टूबर 2023, सोमवार : एकादशी श्राद्ध

10 अक्टूबर 2023, मंगलवार : मघा श्राद्ध, इंदिरा एकादशी

11 अक्टूबर 2023, बुधवार : प्रदोष व्रत

12 अक्टूबर 2023, गुरुवार : मासिक शिवरात्रि

14 अक्टूबर 2023,शनिवार : सर्वपितृ अमावस्या, सूर्य ग्रहण

15 अक्टूबर 2023, रविवार : शारदीय नवरात्रि प्रारंभ, महाराजा अग्रसेन जयंती

18 अक्टूबर 2023, बुधवार : तुला संक्रांति, विनायक चतुर्थी

19 अक्टूबर 2023, गुरुवार : उपांग ललिता व्रत

20 अक्टूबर 2023, शुक्रवार : सरस्वती आवाहन, स्कंद षष्ठी

21 अक्टूबर 2023, शनिवार : सरस्वती पूजन

22 अक्टूबर 2023,रविवार : सरस्वती बलिदान, सरस्वती विसर्जन, श्री दुर्गाष्टमी

23 अक्टूबर 2023, सोमवार : महानवमी, शारदीय नवरात्रि का समापन , बंगाल महानवमी

24 अक्टूबर 2023, मंगलवार : नवरात्रि पारणा, दुर्गा विसर्जन, विजयदशमी, बुद्ध जयंती

25 अक्तूबर 2023,बुधवार : पापांकुशा एकादशी

26 अक्टूबर 2023, गुरुवार : प्रदोष व्रत, कोजागर पूजा

28 अक्टूबर 2023, शनिवार : शरद पूर्णिमा व्रत, महर्षि वाल्मिकी जयंती, खण्डग्रास चंद्रग्रहण, कार्तिक स्नान प्रारंभ, मीराबाई जयंती, अश्विन पूर्णिमा

29 अक्टूबर 2023, रविवार : कार्तिक मास आरंभ, चंद्र ग्रहण

गजकेसरी योग

गजकेसरी योग-GajKesari Yog

परिभाषा – यदि चन्द्रमा से केन्द्र में बृहस्पति हो तो गजकेसरी योग बनता है ।

फल – जातक के सम्बन्धी अनेक होंगे, वह नम्र और उदार स्वभाव का होगा । वह गाँव या शहर का निर्माण करेगा या उनके ऊपर शासन करेगा; मृत्यु के बाद भी उसकी प्रसिद्धि बनेगी । किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |

व्याख्या – यहाँ और अन्यत्र फलों की प्राप्ति में काफी अन्तर की व्याख्या कर देनी चाहिये । लेखक कहते हैं कि इस योग में उत्पन्न व्यक्ति गाँव या शहरों का निर्माण करेगा। इन फलों की शाब्दिक व्याख्या से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता ।

उन्हें आधुनिक स्थिति और देश के अनुसार अपनाना चाहिए। इस योग में उत्पन्न व्यक्ति नगर पालिका का सदस्य बन सकता है, इंजीनियर बन सकता है या यदि योग वास्तव में प्रबल है तो मेयर बन सकता है।

किसी योग के निर्धारित फल में योगकारक के बली और निर्बल होने के अनुसार संशोधन करना चाहिये । गाँव से जिला में मजिस्ट्रेट होते हैं और उनके अलग-अलग अधिकार होते हैं । एक छोटे से पुण्य स्मारक के निर्माण और बड़े मन्दिर के निर्माण में काफी अन्तर है।

योग दिया जाता है किन्तु ग्रहों, भावों और नक्षत्रों के बल के अनुसार योग के फलों में अन्तर हो जाता है।

सवाल 1: परिभाषा क्या है – यदि चन्द्रमा से केन्द्र में बृहस्पति हो तो गजकेसरी योग बनता है?

उत्तर: गजकेसरी योग का अर्थ होता है कि जन्मकुंडली में चन्द्रमा के केन्द्र में और बृहस्पति के साथ होने पर यह योग बनता है।

सवाल 2: इस योग का क्या फल होता है?

उत्तर: जब गजकेसरी योग बनता है, तो जातक नम्र और उदार स्वभाव का होता है। वह गाँव या शहर का निर्माण कर सकता है या उनके ऊपर शासन कर सकता है। मृत्यु के बाद भी उसकी प्रसिद्धि बढ़ती

सवाल 3: इस योग के फलों की अभ्युक्तियाँ क्या हैं?

उत्तर: गजकेसरी योग के फलों की अभ्युक्तियाँ किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल हो सकता है। इसके फल उत्पन्न व्यक्ति के आधुनिक स्थिति और उनके देश के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं।

सवाल 4: इस योग में उत्पन्न व्यक्ति क्या बन सकता है?

उत्तर: इस योग में उत्पन्न व्यक्ति नगर पालिका का सदस्य बन सकता है, इंजीनियर बन सकता है या यदि योग वास्तव में प्रबल है तो मेयर बन सकता है। इसका फल उनके कार्य और प्रयासों पर भी निर्भर करता है।

सवाल 5: क्या इस योग के फलों में योगकारक के बल का महत्व होता है?

उत्तर: हाँ, किसी योग के निर्धारित फल में योगकारक के बल के अनुसार संशोधन किया जा सकता है। यह दिखाता है कि गजकेसरी योग के प्रत्येक प्राणी के लिए विशेष फल हो सकते हैं।

सवाल 6: इस योग के फलों में ग्रहों, भावों, और नक्षत्रों का क्या महत्व है?

उत्तर: योग दिया जाता है किन्तु ग्रहों, भावों, और नक्षत्रों के बल के अनुसार योग के फलों में अन्तर हो सकता है। ग्रहों की स्थिति और बल योग के प्रभाव को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होते हैं।

सवाल 7: क्या इस योग के फल व्यक्ति की व्यक्तिगत गुणों पर भी निर्भर हो सकते हैं?

उत्तर: हाँ, गजकेसरी योग के फल व्यक्ति की व्यक्तिगत गुणों पर भी निर्भर हो सकते हैं। यह योग केवल जन्मकुंडली के भिन्न प्रतिभागों के साथ व्यक्ति की पूर्ण प्रोफ़ाइल पर प्रभाव डालता है।

सवाल 8: गजकेसरी योग का योगकारक क्या होता है?

उत्तर: गजकेसरी योग का योगकारक चन्द्रमा होता है, क्योंकि इसमें चन्द्रमा का केन्द्रीय भावों में बल बढ़ जाता है।

सवाल 9: इस योग के फलों के लिए किस तरह की नक्षत्रों का महत्व होता है?

उत्तर: गजकेसरी योग के फलों के लिए व्यक्ति के जन्मकुंडली में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति की स्थिति और नक्षत्र का महत्वपूर्ण होता है। यह योगकारक के बल को प्रभावित करता है।

सवाल 10: क्या इस योग के फलों में साप्ताहिक या मासिक ग्रहों का भी प्रभाव होता है?

उत्तर: हाँ, साप्ताहिक और मासिक ग्रहों का भी प्रभाव इस योग के फलों पर होता है, क्योंकि यह जन्मकुंडली में समय के साथ परिवर्तन कर सकते हैं और योग के प्रभाव को मोड़ सकते हैं।

Match Making Astrology

Match Making Astrology & Rules-कुंडली मिलान ज्योतिष और नियम

“जानिए कुंडली मिलान के महत्व को और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कैसे करें।”

सुन्दर विचार, शिष्टाचारवाली स्त्री धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देनेवाली होती है। ऐसा आचरण जन्म लग्न, नक्षत्र, ग्रह के वश में होता है। इसलिए विवाह-समय में इसका विचार कर लेना आवश्यक है। क्योंकि पुत्र (सन्तान), स्वभाव, आचरण, धर्म ये गृहलक्ष्मी पर निर्भर करता है।

विवाह-योग का प्रश्न विचार -Consideration of Marriage Yoga:

स्वस्थ-चित्त बैठे ज्योतिषी की धनादि से पूजा करके प्रश्न करना चाहिए। प्रश्नकाल में यदि चन्द्रमा 10/11/3/7 या 5 वें स्थान में से किसी एक स्थान में हो और गुरु से देखा जाता हो अथवा प्रश्न- लग्न में वृष, तुला या कर्क लग्न हो और शुभ ग्रह से देखा जाता हो, तो शीघ्र विवाह का योग समझना चाहिए। प्रश्नकाल में चन्द्रमा और शुक्र यदि विषम राशि या विषम राशि के नवांश में बली होकर लग्न को देखता हो तो वर को स्त्री तथा कन्या को पति शीघ्र प्राप्त होगा शुक्र, चन्द्रमा यदि सम राशि नवांश में हो और बली होकर लग्न को देखता हो तो वर को शीघ्र स्त्री-लाभ कराता है।

विवाह भंग योग-Marriage Cancellation Yoga

कृष्ण पक्ष का चन्द्रमा यदि प्रश्न लग्न से समसंख्यक राशि में हो; पाप ग्रह से देखा जाता हो अथवा छठें या आठवें स्थान में हो तो विवाह पक्का नहीं होने देता।

बाल-विधवा योग परिहार-Remedies for Child Widowhood Yoga

जन्म-काल या प्रश्न-काल से विधवा-योग देखकर कन्या को सावित्री या पीपल व्रत कराकर, शुभ लग्न में विष्णु भगवान् की मूर्ति या पीपल वृक्ष, कदली या कुम्भ-विवाह कराकर किसी चिरंजीवि वर के साथ व्याह दें। इसमें पुनर्विवाह का दोष नहीं लगता है। यह धर्मशास्त्र का कथन है। कुम्भादि विवाह गुप्त करना चाहिए।

सन्तान भेद से जन्म-मासादि फल-The Effects of Child Discrimination on Birth Month and Other Factors

जन्म मास, जन्म नक्षत्र, जन्म तिथि में प्रथम सन्तान (पुत्र, अथवा कन्या) का विवाह शुभ नहीं होता है। द्वितीय गर्भ से उत्पन्न सन्तान का विवाह उक्त समय में सन्तति देने वाला होता है। ऐसा विद्वानों का विचार है।

विवाह में विशेष विचार-Special Considerations in Marriage

लड़के के विवाह के बाद छः महीने के भीतर लड़की का विवाह नहीं करना चाहिए। लड़की के विवाह के बाद छः महीने तक अपने कुल में किसी का मुण्डन नहीं कराना चाहिए। दो सहोदरों को, दो सहोदर कन्या नहीं व्याहनी चाहिए। छः माह के भीतर दो सहोदर या दो सहोदर कन्याओं का विवाह शास्त्र वर्जित है।

गणना क्यों देखी जाती है-Why is Astrological Compatibility Checked?

प्राचीन युग के लोग शास्त्र पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते थे। लेकिन आधुनिक युग में मेलापक विषय का वैज्ञानिक रहस्य बतलाना आवश्यक है। तभी इस पर संसार विश्वास कर सकता है। भारत आर्यों का निवास-स्थान और पुण्य-भूमि है। प्राचीनकाल में यहाँ का मानव-समाज ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास इन्हीं चार आश्रमों में विभक्त था। अन्य तीन आश्रम गृहस्थाश्रम पर ही निर्भर रहते थे। गृहस्थाश्रम का प्रथम सोपान विवाह ही है। यह विवाह मंगलदायक हो तो गृहस्थाश्रम सुखपूर्वक व्यतीत हो जाता है। दाम्पत्य-जीवन के सुखपूर्वक निर्वाह होने की जानकारी के लिए ही नक्षत्र और ग्रह मेलापक किया जाता है।

नवग्रह और दसवाँ ग्रह पृथ्वी एक-दूसरे क आकर्षण से शून्य में टिके हुए हैं। मनुष्य पृथ्वी पर है। अतः अन्य नवग्रहों के आकर्षण का प्रभाव मनुष्यों पर भिन्न-भिन्न रूप से पड़ता है। मनुष्य स्वयं कुछ भी नहीं करते हैं, वरन् यह ग्रहों के आकर्षण का प्रभाव ही उन्हें प्रभावित करता है और मनुष्य उसी के अनुसार कार्य भी करते हैं। मनुष्य का शरीर जिससे बना है उन तत्त्वों के साथ ग्रहों का सम्बन्ध है। अतः जो ग्रह बुरा प्रभाव वाला होता है तो मनुष्य भी बुरा काम कर बैठता है और उन तत्त्वों में बड़बड़ी हो जाती है। वर-वधू के नक्षत्र और ग्रहों में कैसा आकर्ष है तथा इसका प्रभाव क्या होता है, इसको जानने के लिए ही नक्षत्र और ग्रह मिलाये जाते हैं।

कुण्डली मिलाने की रीति-The Process of Horoscope Matching

स्त्री-नाशक या पति नाशक जो योग हैं, उन योगों के अनुसार पति के ग्रहों का प्रबल होना आवश्यक है। कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश में पाप ग्रह का होना प्रायः पति- नाशक या पत्नी-नाशक है। इसमें पति को मंगला और स्त्री को मंगली कहते हैं।

इसके लिए पण्डितों का अनुभव है कि, सबसे अधिक दोषकारक मंगल, उससे कम बाकी पाप ग्रह होते हैं। इस योग को चन्द्रमा, शुक्र और सप्तमेश से भी देखना चाहिए। द्वितीय, सप्तम भावों में भी पाप योग होता है। स्त्री की कुण्डली में सप्तम, अष्टम स्थान में शुभ योग होना सौभायवर्द्धक है। सप्तमेश अष्टमेश का योग अथवा अष्टमेश का सप्तमेश में होना भी उसी प्रकार का योग होता है । सन्तान प्रतिबन्धक योग भी प्रायः वैधव्य- सूचक होते हैं। एकादश या पञ्चम में भी विशेष पाप योग वैधव्यसूचक होता है। इन योगों के विचार से यदि ग्रह प्रबल पड़े तो वह विवाह करना योग्य है। इसके बाद आयु, सन्तान और भाग्य योग को देखना युक्तिसंगत है।

प्रश्न- लग्न या जन्म लग्न से स्त्री की कुण्डली में छठें या आठवें चन्द्रमा हों, लग्न में चन्द्रमा और सातवें पाप ग्रह हों, लग्न में चन्द्रमा और सातवें मंगल हो तो भी वैधव्य कारक योग होता है। यदि कन्या का प्रबल वैधव्य योग हो तो अश्वत्थ विवाह, कुम्भ विवाह या विष्णु प्रतिमादि के साथ विवाह करके चिरंजीवि वर के साथ विवाह किया जाय तो पुनर्विवाह का दोष नहीं होता। परन्तु यह काम गुप्त करना चाहिए। सप्तमेश, षष्ठ, सप्तम, नवम, अष्टम, द्वादश में पापयुक्त हो तो भी सौभाग्य के लिए अनिष्टप्रद होता है। सप्तमेश का पञ्चम भाव में होना भी अच्छा नहीं होता। ज्योतिष-फलित शास्त्र में दो ही वस्तुओं की अधिक प्रधानता है-लग्न और चन्द्रमा। लग्न को शरीर और चन्द्रमा को मन कहते हैं। प्रेम मन से होता है, शरीर से नहीं। अतएव जन्म-राशि के वश मेलापक विचार किया जाता है। गणना जन्म नाम से देखी जाती है।

विवाह, यात्रा, उपनयन, चूडाकरण (मुण्डन), गोवर- विचार, मंगल कृत्य इत्यादि कार्यों में जन्म-नाम ही प्रधान है। जन्म-नाम न मिलने पर प्रसिद्ध नाम से गणना देखनी चाहिए। प्रसिद्ध नाम कई हों तो अन्तिम नाम ग्रहण कर गणना देखने का विधान है। किसी का जन्म और प्रसिद्ध दोनों नाम हो और दूसरे का केवल प्रसिद्ध ही नाम हो तो मेलापक प्रसिद्ध नाम से और सूर्य-गुरु- चन्द्रमा के बल जन्म-नाम से देखना उत्तम है। एक का प्रसिद्ध नाम और दूसरे का जन्म-नाम ग्रहण कर मेलापक विचार करने का विधान नहीं है। वर- कन्या यदि एक ही गोत्र के हों तो विवाह नहीं करना चाहिए।

विवाह के मास-The Months Suitable for Marriage

मिथुन, कुम्भ, मकर, वृश्चिक, वृष, मेष इन राशियों के सूर्य में विवाह शुभ होता है। मिथुन का सूर्य आषाढ़ शुक्ल 10 तक शुभ है। वृश्चिक के सूर्य होने पर कार्तिक में, मेष का सूर्य होने से चैत्र में, मकर का सूर्य होने पर पौष में विवाह शुभ होता है।

विवाह मुहूर्त-Marriage Auspicious Time

नक्षत्र – तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, मघा, मूल, अनुराधा, हस्त एवं स्वाती । लग्न – कन्या, तुला, और मिथुन । मास- फाल्गुन, माघ, मार्गशीर्ष, आषाढ़, ज्येष्ठ और वैशाख । दिन- भौम तथा शनि को छोड़कर शेष शुभ दिन। तिथि- रिक्ता तथा अमावस्या को छोड़कर विवाह शुभ है।

नौ ताराओं के नाम-Names of the Nine Planets

जन्म-नक्षत्र से दिन नक्षत्र तक संख्या गिनकर 9 का भाग देने से शेष 1. जन्म, 2. सम्पत्, 3. विपत्, 4. क्षेम, 5. प्रत्यरि, 6. साधक, 7. वध, 8. मैत्र, 9. अतिमैत्र। ये नौ ताराओं के नाम हैं।

दुष्टतारा दान-Malefic Planetary Donation

वध में स्वर्ण तथा तिल, विपत् में गुड़, जन्म में शाक तथा प्रत्यरि में लवण (नमक) दान करना चाहिए।

नोट : प्रत्येक तारा की तीन आवृति होती है। पहली आवृत्ति में विपत् का प्रथम, प्रत्यरि का चतुर्थ, वध का तृतीय चरण शुभ होता है, बाकी सब अशुभ। तीसरी आवृत्ति में सभी ताराएँ शुभ होती है।

रवि-चन्द्र-गुरु शुद्धि-Sun-Moon-Jupiter Conjunction

रवि : जन्म राशि से 3/6/10/11वें रवि शुभ हैं। यदि रवि 13 अंश से अधिक हो तो 2/5/9 राशि में भी शुभ है।

चन्द्र : 1/3/6/7/10/11 वें स्थान में चन्द्रमा शुभ होता है। 2/5/9 शुक्लपक्ष में शुभ होता है। 4/8/12 अशुभ है।

गुरु : 2/5/7/9/11 वें स्थान में शुभ होता है। 10/6/3/1 इनमें शान्ति करने पर शुभ तथा 4/ 8/12 में अशुभ होता है। बालक का यज्ञोपवीत, कन्या तथा वर के विवाह में शुभ-अशुभ विचार करना आवश्यक है। गुरु अपने उच्च राशि, मित्र गृह तथा अपने नवांश में रहे तो अशुभ भी शुभ होता है। नीच राशि या शत्रु गृह में शुभ भी अशुभ होता है। बाकी सब ग्रह रवि, चन्द्र आदि अपने उच्च स्थान पर रहने पर अनिष्ट स्थान में भी शुभ फल देते हैं।

वर्ण-विचार-Caste Consideration

कर्क, मीन, वृश्चिक, ब्राह्मण वर्ण । मेष, सिंह, धनु, क्षत्रिय । कन्या, वृष, मकर वैश्य । मिथुन, तुला, कुम्भ शूद्र वर्ण होते हैं। वर-कन्या का वर्ण एक होवे या वर का वर्ण कन्या के वर्ण से हमेशा श्रेष्ठ होना चाहिए।

गणादि-दोष- परिहार-Remedies for Gana Dosha

राशि स्वामियों में मैत्री हो या अंश-स्वामी में मैत्री हो, तो गणादि दुष्ट रहने पर विवाह पुत्र-पौत्र को बढ़ाने वाला होता है।

राशि-कूटZodiac Sign Compatibility

वर की राशि से कन्या की राशि तक और कन्या की राशि से वर की राशि तक गिनने पर 6/8 में दोनों की मृत्यु, 9/5 में सन्तान हानि और 2/12 में दरिद्रता होती है।

दुष्ट- भकूट- परिहार -Remedies for Malefic Bhakoot Dosha:

वर कन्या की राशि के स्वामी एक ही ग्रह हों अथवा दोनों राशियों मैत्री हो, नाड़ी, नक्षत्र शुद्ध होने पर दुष्ट भकूट ग्रह नहीं होता है।

नाड़ी-विचार-Consideration of Nadis(Pulse) :

वर-कन्या की एक नाड़ी में विवाह वर्जित है। मध्य नाड़ी मृत्यु तथा भिन्न नाड़ी शुभ होता है।

विशेष-Special : ब्राह्मण को नाड़ी-दोष, क्षत्रियों को वर्णदोष, वैश्यों को गण-दोष और शूद्रों को योनि-दोष विचार करना चाहिए।

किसी आचार्य ने नक्षत्र मेलापक के दस, किसी ने बारह और किसी अठारह भेद माने हैं, परन्तु सर्व- प्रसिद्ध निम्नलिखित ये ही आठ भेद हैं- 1. वर्ण, 2. वश्य, 3. तारा नक्षत्र, 4. योनि, 5. ग्रहमैत्री, 6. गण, 7. भकूट या राशिकूट, 8. नाड़ी। इन आठों में शास्त्रकारों ने नाड़ी पर अधिक जोर दिया है। इस तथ्य का पता आगे नाड़ी-विवेचन में लगेगा।

वर्ण-Caste :

सामाजिक वर्णों की तरह इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये ही चार वर्ण होते हैं। उच्च वर्ण में ऊँचे होने का भाव रहता है जैसे, क्षत्रिय वर्ण के मनुष्य पर यदि शूद्र वर्ण का मनुष्य प्रभाव दिखाना चाहे तो वह क्षत्रिय उसका शीघ्र शमन कर देगा। इसी प्रकार यदि ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण की कन्या हो और शूद्र वर्ण का वर हो तो वह कन्या उच्च वर्ण की होने से सदा वर को दबाती रहेगी। इस तरह स्त्री-पुरुष का जीवन गृहस्थाश्रम में सुखपूर्वक व्यतीत नहीं हो सकता। इसी झगड़े से बचने के लिए ‘वर्ण’ का विचार किया जाता है।

वश्य-Vasya :

वश्य से विचार किया जाता है कि, स्त्री पति के अधीन में रहने वाली है या नहीं। वास्तव में स्त्री का पति के अधीन रहना भी आवश्यक है। शास्त्र में लिखा है कि बचपन में देख-रेख पिता, यौवन में पति और वृद्धावस्था में पति के जीवित न रहने पर पुत्र ही करे। क्योंकि स्वतन्त्र स्त्री को अनर्थ से बचने तथा सुखपूर्वक गृहस्थाश्रम व्यतीत करने के लिए ‘वश्य’ का विचार किया जाना आवश्यक है।

तारा-Tara( Star) :

पूर्व वर्णित ग्रहों की तरह तारा का प्रभाव होता है। चन्द्र-ग्रह शास्त्रानुसार मनुष्य का मन है। इसका विचार भकूट या राशि के नाम से होता है। चन्द्र तारा पति कहलाता है। जब चन्द्रमा का विचार होता है तो ताराओं का भी विचार आवश्यक है। कृष्णपक्ष में चन्द्र की क्षीणावस्था का विचार किया जाता है।

योनि-Genitalia(Yoni) :

योनि शब्द का अर्थ तो सरल ही है। इससे स्त्री-पुरुष की प्रीति की जानकारी की जाती है। जैसे-गज और गज योनि में परस्पर प्रेम एवं गज और सिंह योनि में परस्पर वैर होता है। अन्य योनियों में भी इसी तरह प्रीति और वैर होता है। अतः दम्पति में प्रेम रहने की जानकारी के लिए वैर-योनि को छोड़कर प्रीति योनि को ही ग्रहण करना चाहिए।

ग्रह-मैत्री -Planetary Friendship:

ग्रहों में भी परस्पर स्वाभाविक मित्रता, समता और शत्रुता होती है। इसी तरह वर-वधू के राशि स्वामियों में भी मित्रता हो तो दोनों का जीवन मित्रवत् बीत जाता है। यदि समता हुई तो कभी प्रसन्नता और कभी लड़ाई होती है और शत्रुता होने से दोनों में शत्रुता उत्पन्न होती है। अतः मित्रवत् जीवन व्यतीत होने की जानकारी होने के लिए ग्रह-मैत्री देखनी आवश्यक है

गण-Gana (Personality Type):

गण तीन होते हैं-देव, मनुष्य मनुष्य और राक्षस । को यह पता लग जाय कि वर मनुष्य और कन्या राक्षस गण की है, तो वह अनायास ही राक्षस प्रकृति याद कर बोल उठेगा कि तब तो कन्या वर को निगल जायेगी अर्थात् लड़का काल के गाल में चला जायेगा। यदि देव और राक्षस गण हों तो देव और राक्षस की लड़ाई होती रहेगी। मनुष्य को देवता में जिस तरह की प्रीति होती है, वैसी ही प्रीति इन गणों में भी होगी और समान गण हों, तो प्रेम होता ही है। इसलिए राक्षस गण की दृष्टि से बचने और प्रीति के लिए गण का विचार होता है।

भकूट या राशिकूट-Bhakoot or Rashikoot (Aspect Compatibility) :

वर-वधू के जन्म-समय में चन्द्रमा जिन राशियों पर होता है, वे ही उनकी राशियाँ होती हैं। ग्रहों की तरह इन राशियों में भी मित्रता, शत्रुता आदि होती है। इनमें मित्रता होने से दम्पति प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं। शत्रु षडष्टक और विषम सप्तम में मृत्यु, नव-पञ्चम में अनपत्यता, अशुभ द्विर्द्वादश में निर्धनता एवं अशुभ, दशम-चतुर्थ में दौर्भाग्य और दैन्य होता है। राशियों के विचार करने से ही मनुष्य के मन में चन्द्रमा का विचार हो जाता है। इसलिए दोनों की राशियों का विचार कर लेना चाहिए। नाड़ी : ‘नाड़ी’ के नाम से समझना चाहिए कि यह वह नाड़ी है जिसे देखकर वैद्य, हकीम या डॉक्टर रोग का पता लगाते हैं। इसी नाड़ी को अंग्रेजी में ‘पुल्स’ भी कहते हैं। ज्योतिष में तीन नाड़ियाँ मानी गयी हैं-आदि, मध्य, अन्त्य । ये तीन नाड़ियाँ वैद्यक के अनुसार क्रम से वात, पित्त और कफ की नाड़ियाँ हैं। यदि वर-वधू दोनों की आदि (वायु) नाड़ी हो तो दोनों के संयोग से वात का आधिक्य होने से पति की हानि होगी। यदि दोनों के मध्य (पित्त) नाड़ी हो, तो दोनों के संयोग से पित्त का आधिक्य होने से पति की हानि होगी। और यदि दोनों की अन्त्य (कफ) नाड़ी होगी तो कफ का आधिक्य दोनों की मृत्यु करा देगा। शरीर की क्रिया नाड़ी पर अवलम्बित है। इसलिए शास्त्रकारों ने नाड़ी पर अधिक जोर देकर कहा है-

सदा नाशयत्येकनाड़ी समाजो भकूटादिकान् सप्तभेदास्तथा च।’

अर्थ : वर्णादि सातों ठीक हों और नाड़ी एक तो भी विवाह नहीं करना चाहिये। परन्तु साथ-साथ उन्होंने सूक्ष्म विचार करके परिहार भी लिखे हैं।

अब मंगल ग्रह की विशेषता पर विचार किया जाता है। सभी ग्रहों के अंशों के मेल से यह शरीर बनता है। और रक्त संचालन क्रिया पर निर्भर करता है। यह रक्त ज्योतिष का मंगल ग्रह माना गया है। यदि दोनों का मंगल (रक्त) ठीक मिल गया अर्थात् दोनों का रक्त एक-दूसरे के उपयुक्त हुआ तो उनका जीवन आधी-व्याधि से व्यथित नहीं होगा। इसके विपरीत दोनों का मंगल (रक्त) उपयुक्त नहीं है तो जिस तरह दूध में विकार हो जाने से वह फट जाता है और बरबाद हो जाता है। इसी तरह एक-दूसरे के रक्त भी अनुपयोगी हो जाता है और रक्त पर निर्भर करने वाला मनुष्य का शरीर टिक नहीं सकता। इसलिए रक्त की उपयुक्तता जानने के लिए मंगल मिलाना आवश्यक है।

इन सब बातों पर विचार करने से यही पता लगता है नक्षत्र और ग्रह गणना न करने से मनुष्य की, समाज और देश की बड़ी हानि होती है।

सिंहस्थ- गुरु व्यवस्था-Bhakoot or Rashikoot (Aspect Compatibility) :

सामान्य रूप से गुरु की राशि पर सूर्य और सूर्य की राशि में गुरु के आने पर गुर्वादित्य नामक दोष होता है।

गुरुक्षेत्रगते भानौ भानुक्षेत्रगते गुरौ

गुर्वादित्यः विज्ञेयो गर्हितः सर्वकर्मसु

इसी प्रकार सामान्य रूप से लगभग 12 वर्षों के बाद सिंह राशि पर गुरु के आने से गुर्वादित्य दोष, विवाहादि शुभ कार्य में वर्जित है।

‘अस्ते वर्ज्य सिंहनक्रस्थजीवे वर्ज्यं केचिद्वक्रगे चातिचारे।
गुर्वादित्ये विश्वघस्त्रेऽपि पक्षे प्रोचुस्तद्वद्दन्तरत्नादिभूषाम्।। 1 ।।
 सिंहे गुरौ सिंहलवे विवाहो नेष्टोऽथ गोदोत्तरतश्च यावत् ।
भागीरथी- याम्यतटं हि दोषो नान्यत्र देशे तपनेऽपि मेषे ॥ 2 ॥
मघादि-पञ्चपादेषु गुरुः सर्वत्र निन्दितः ।
गंगागोदान्तरं हित्वा शेषांघ्रिषु न दोषकृत् ॥3॥
मेषेऽर्के सन् व्रतोद्वाहो गंगा-गोदान्तरेऽपि च।
सर्वः सिंहे गुरुर्वर्ण्यः कलिंगे गौडगुर्जरे ॥ 4 ॥

                                   (मुहूर्त चिन्तामणि, शु०प्र०)

सिंहराशौ तु सिंहांशे यदा भवति वाक्पतिः। सर्वदेशे स्वयं त्याज्यो दम्पत्योर्निधनप्रदः॥

                                                                                                            (राज० मा०)

श्रीलल्ल के वचनानुसार सिंह राशि के गुरु में गोदावरी के उत्तर तट से भागीरथी के दक्षिण के स्थलों में विवाहादि शुभ कार्य वर्जित हैं।

 यथा-

गोदावर्युत्तरतो यावद् भागीरथीतटं याम्यं, यत्र विवाहो नेष्टः सिंहस्थे देव पतिं पूज्यः

 ‘भागीरथ्युत्तरे कुले गौतम्याः दक्षिणे तथा विवाहो व्रतबन्धो वा सिंहस्थेज्ये दुष्यति ॥ (व.सं.) 4

सबका सारांश अधोलिखित है—

1. सिंह राशि का गुरु कलिंग, गौड़ और गुर्जर। देशों में शुभ कार्य के लिए वर्जित है।

2. सिंह राशि में सिंह नवांश का, गौतमी के दक्षिण तटवासी नगरों में सिंहस्थ गुरु होने पर व्रतबन्ध, होता है। अतः मेष के सूर्य में समस्त देश में विवाहादि शुभ कार्य नहीं किये जा सकेंगे।

Reference : Pt. R.N. Tripathi

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तुरंत करे ये उपाय :

  1. ऊं रां राहवे नम: मंत्र का प्रतिदिन एक माला जाप करें।
  2. पंचधातु या लोहे की अंगुठी में नौ रत्ती का गोमेद जड़वा कर शनिवार को राहु के बीज मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके दांये हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें।
  3. प्रतिदिन दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
  4. प्रतिदिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करें।
  5. तामसिक आहार और मदिरा का सेवन बिलकुल ना करें।
  6. अगर आपने तामसिक आहार और मदिरा का सेवन किया तो ऐसा करने से राहु आपके और भी अधिक प्रतिकूल हो जाएगा।

अचानक धन लाभ के कुछ योग ,

जानते है की कौन से योग होने पर मिलता है अचानक धन

  1. जातक की कुंडली में अगर राज योग हो तभी लाटरी, सट्टा, जुआ और शेयर बाजार से लाभ होता हे। राज योग में धन भाव (दूसरा भाव) या लाभ स्थान एकादश भाव और दसवे घर क स्वामी उच्च राशि के बैठे हों और उन पर सौम्ये ग्रह की दृस्टि हो तो लाटरी निकलने की प्रबल संभावना होती है।
  2. लाटरी खरीदने के वक़्त बुध ग्रह अपने भाव मित्र राशि में उच्च का बैठा और गोचर में वेद ना हो तो लाटरी निकलती है अगर बुध जन्म कुंडली में उच्च का न हो तो लाटरी, सट्टा, जुआ और शेयर बाजार से हानि होती है।
  3. महादशा, अंतर और प्रत्यंतर दशा योगकारक ग्रह या उच्च के ग्रह की हो तो लाटरी निकलने की सभावना होगी।
  4. योगनी दशा में मंगला, सिद्धा चल रही हो तो अचानक धन लाभ होता है।
  5. जिस जातक के लग्न में बुध उच्चराशिगत हो, मकर में मंगल, धनु राशि में गुरु, चन्द्रमा,और शुक्र बैठे हों तो राजयोग होता है ऐसे योग में उत्पन बालक को अचानक धन लाभ होता है।
  6. जातक के जन्म कुंडली में चन्द्रमा सूर्य के नवमांश में हो तो कभी लाटरी, सट्टा, जुआ से लाभ ना होगा।
  7. शेयर बाजार में डेली ट्रेडिंग (Daily Treding) करने वालों की कुण्डली में मंगल ( Mangal) और गुरू अनुकूल होने चाहिए और कमोडिटी बाजार (Commodity Market) में राहु (Rahu) राज करता है, बारिश के सट्टे में चंद्रमा (Moon) की अनुकूलता चाहिए और क्रिकेट के सट्टे (Cricket Satta) में चंद्रमा (Moon) और मंगल ( Mangal) की।
  8. यदि जातक की जन्म कुण्डली में अष्टम भाव बेहद मजबूत हो तो भी सट्टा, लाटरी, शेयर आदि में अच्छा लाभ कमाने का योग बनता है।

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लक्ष्मी के योग (Laxmi Yog) अलग होते हैं। अगर पंचम भाव की प्रतिकूलता (Fifth house adversity) को एकादश भाव (11th House) की अनुकूलता मिले तो ही जातक सट्टे से लाभ (Profit by betting) कमा पाता है।

“सट्टे, जुआ, लॉटरी, और अन्य जुआ-जुआगर क्रियाओं से धन कमाने के योग में अष्टम भाव भी शामिल हो सकता है। हम जानते हैं कि अष्टम भाव अशुभ भी माना जाता है और इसमें दुख, कष्ट, और मृत्यु से भी संबंध हो सकते हैं। साथ ही, सट्टे के कारक ग्रह राहु होता है, जो क्रूर और पाप ग्रह माना जाता है, इसलिए सट्टे और इसके सम्बंधित गतिविधियों से कमाया धन शुभ नहीं माना जाता। इस प्रकार का धन आने पर उसे खूबसूरती से दान करना चाहिए, ताकि इसकी अशुभता को दूर किया जा सके।

यह सत्य है कि हमें कभी-कभी धन कई असमय खो सकता है, लेकिन दान और पुण्य का फल हमारे साथ हमेशा रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है कि धर्म और कर्म व्यक्ति को बुराई से बचा सकते हैं, बड़ी मुश्किलों से भी उबार सकते हैं।”

इसके बाद, आपके दिए गए उदाहरण को बच्चों को शिक्षा देने के लिए उपयोग कर सकते हैं।

चूँकि सट्टे आदि से धन लाभ के योगों में अष्टम भाव भी सम्मिलित है और आप जानते ही होंगे की अष्टम भाव अशुभ भाव भी है, इसका दुःख, कष्ट,मृत्यु से भी सम्बन्ध है । और सट्टे का कारक ग्रह राहु है, जो की क्रूर ग्रह, पाप ग्रह है, इसलिए सट्टे आदि से कमाया हुआ धन शुभ नहीं होता है ।

यह अपने साथ दुःख, कष्ट आदि भी ले आता है, गलत आदतें भी इस धन से पड़ जाती है, यह धन जैसे आता है वैसे चला भी जाता है । इसलिए इस तरह का धन आने पर खूब दान पुण्य करना चाहिए तभी इस धन की अशुभता दूर होती है ।

धन तो पता नहीं कब चला जाये लेकिन दान पुण्य का फल तो आपके साथ ही रहेंगा । और शास्त्र कहता है धर्मकर्म व्यक्ति को बुरे से बुरे, और बड़े से बड़े संकट से भी उबार लेता है ।

धर्मेण हन्तये व्याधि धर्मेण हन्तये ग्रहा: ।

धर्मेण हन्तये शत्रु यतो धर्मस्ततो जयः ।।

अर्थात – धर्म व्याधि का नाश करता है, धर्म ग्रहों के बुरे फलों से बचाता है, धर्म दुश्मनों का नाश करता है , जहाँ जहाँ धर्म है वहां वहां विजय है ।

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयं ।

परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीडनं ।।

अर्थात अट्ठारह पुराणों में व्यासजी के दो ही वचन है दूसरे का उपकार करना पुण्य है और दूसरे को पीड़ा देना पाप है ।

ज्योतिष के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में राहु अनुकूल होता है या जो राहु की महादशा में होते हैं, उन्हें यह धंधे लाभकारी हो सकते हैं। इसके साथ ही, कुण्डली में धन के संकेतक ग्रहों, जैसे कि लग्नेश, चतुर्थेश, पंचमेश, और भाग्येश की स्थिति भी मजबूत होनी चाहिए, तभी व्यक्ति इन व्यापारों से लाभ कर सकता है, चाहे उसे सट्टा, लॉटरी, या शेयर मार्केट की भी जानकारी न हो।

अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु अनुकूल होता है, और वह राहु की महादशा या अंतरदशा में होता है, और उसके अलावा धन देने वाले ग्रहों, लग्नेश, आदि भाग्येश भाव में होते हैं, तो उस व्यक्ति को जितने पैसे से सट्टा खेलना है, उससे कई गुना अधिक धन प्राप्त हो सकता है।

अगर ये ग्रह सही रूप से स्थित नहीं हैं, तो चाहे कितनी भी रुचि क्यों न रखें, सट्टा से दूरी बनाना ही बेहतर है। किसी भी जातक को ध्यान में रखना चाहिए कि वे राहु की महादशा, अंतरदशा, प्रत्यंतर अथवा सूक्ष्म के दौरान सट्टा नहीं खेलें।

यह न केवल सिद्धांत है, बल्कि व्यवहारिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है कि किसी जातक की कुण्डली में लग्न बलशाली हो, तृतीय भाव का अधिपति अनुकूल हो, मंगल प्रबल हो, पंचम भाव खराब हो, और योग की शक्तिशाली स्थिति हो, तो ही वह एक सफल सट्टा खिलाड़ी बन सकता है।

सट्टा, जुआ, लॉटरी, और शेयर मार्केट, ये सभी ज्योतिष में राहु के क्षेत्र में आते हैं। सट्टा, लॉटरी, और शेयर मार्केट, कमोडिटी बाजार, ये सभी राहु के प्रबल क्षेत्र हैं।

शेयर बाजार में रोजाना व्यापार करने वालों की कुण्डली में मंगल और गुरु का सहयोग होना चाहिए और कमोडिटी बाजार में, राहु का प्रभाव होता है, बारिश के सट्टे में चंद्रमा की साथीत्य चाहिए और क्रिकेट सट्टे में चंद्रमा और मंगल की।

यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में अष्टम भाव मजबूत है, तो वह सट्टा, लॉटरी, और शेयर मार्केट में अच्छा लाभ कमाने की संभावना होती है।

लक्ष्मी योग विशेष होते हैं। अगर पंचम भाव की प्रतिकूलता को एकादश भाव की साथीत्य मिलती है, तो ही जातक सट्टा खिलाड़ी बन सकता है।

सट्टा, जुआ, लॉटरी, और शेयर मार्केट, ये सभी ज्योतिष में राहु के क्षेत्र में माने जाते हैं। जन्म कुण्डली के अनुसार, जो व्यक्ति इन व्यवसायों में रुचि रखता है, उसे विशेष ध्यान और सावधानी के साथ काम करना चाहिए।

सिद्धांत के बजाय, व्यक्ति की कुण्डली में लग्नेश, नवमेश, दशमेश, एकादशेश, और चतुर्थेश की दशा-अंतरदशा चल रही हो, और इन ग्रहों की स्थिति मजबूत हो, तभी व्यक्ति सट्टा, जुआ, लॉटरी, और शेयर मार्केट से धन कमा सकता है।

ज्योतिष के आधार पर, पंचम स्थान सट्टे का भाव होता है। इस स्थान में केतु, राहु, चंद्रमा, और मंगल की युति का प्रभाव होता है, और ये स्थान सट्टा में भाग्य की दिशा में खेलते हैं।

केतु का प्रभाव ज्यादा होता है जब वह कमन्यूकेशन के कारक भावों में होता है या तीसरे, सातवें, या ग्यारहवें भाव से युति बनाता है, जिससे व्यक्ति फोन या इंटरनेट के माध्यम से यह काम कर सकता है। अगर केतु सूर्य के साथ युति बनाता है, तो सरकारी लॉटरी या योजनाओं से धन कमा सकता है, और अगर केतु बुध के साथ युति बनाता है, तो व्यक्ति को खेल-कूद वाले सट्टों के प्रति रुझान होता है। राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर व्यक्ति सट्टा, लॉटरी, और शेयर मार्केट से धन कमा सकता है।

पंचम स्थान मन्त्र और जिज्ञासा का स्थान होता है। इस स्थान के स्वामी धन स्थान पर लाभेष के साथ होते हैं, तो व्यक्ति को सट्टे द्वारा धन कमाने का योग मिलता है।

यह जरूरी है कि व्यक्ति जब भी सट्टा खेलता है, तो ग्रहों की स्थिति और गोचर को ध्यान में रखे। कुंडली में योग होने के बावजूद भी, ग्रहों की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है।

ज्योतिष के आधार पर, पंचम भाव तीसरे भाव का तीसरा भाव होता है, और इसमें सट्टे का भाव बनता है। इसमें केतु, राहु, चंद्रमा, और मंगल की युति का प्रभाव होता है, और ये ग्रह खेल के नतीजे पर बहुत प्रभाव डालते हैं।

किस प्रकार जाने कि कौन सा अंक है आपके लिए शुभ :

१. आपके लिए कौन से अंक शुभ है या अशुभ यह जाने बिना सट्टा, लाटरी या किसी प्रकार का ऑनलाइन गेम न खेले.

२. कौन सा शुभ अंक है कौन सा अशुभ यह आप अपनी कुंडली विश्लेषण से जान सकते है .

३.  शुभ अंक, शुभ दिन और शुभ समय और शुभ अक्षर का ज्ञान होने से सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है.

४. अगर आप पैसे लगाते समय दिन- अंक – मुहूर्त आदि का ध्यान रखते है तो आपके जीतने के चांस बढ़ जाते हैं.

५. कुंडली में जो गृह प्रबल है उसके आधार पर ही निर्णय ले और इसके लिए कुंडली अवश्य किसी ज्योतिषी से दिखवाए.

आप इस पेज पर प्रतिदिन

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पर एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से नंबर्स पता कर सकते है जिनके द्वारा आपको आपकी जीत के लिए कुछ टिप्स मिल जायँगे

Declaimer:

महत्वपूर्ण सूचना:

निम्नलिखित पोस्ट में सट्टा-लॉटरी गेमिंग की चर्चा की गई है, जो कि सभी जुरिस्डिक्शन्स में कानूनी नहीं हो सकती है। किसी भी प्रकार के जुआ, सट्टा-लॉटरी सहित, में शामिल होने से पहले अपने क्षेत्र के कानून और विधियों को समझना महत्वपूर्ण है। कृपया इस अस्वीकरण को ध्यान से पढ़ें और आगे बढ़ने से पहले।

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2. आयु प्रतिबंध:

आपको किसी भी जुआ गतिविधि में भाग लेने के लिए अपने क्षेत्र में कानूनी जुआ आयु में होना चाहिए। अपराधानुरोध जुआ कानूनी रूप से प्रतिबंधित और पूरी तरह से वर्जित है।

4. जोखिम चेतावनी:

जुआ में जोखिम होता है, और आपको कभी ऐसा धन लगाना नहीं चाहिए जिसका आपको हानि हो सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि आप जागरूक हों कि लंबे समय में अधिकांश खिलाड़ी हारते हैं ज्यादा धन जीतने की तरह नहीं।

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Food Astrology

खाद्य ज्योतिष क्या है?- Food Astrology

Food Astrology– खाद्य ज्योतिष ज्योतिष के विभागों में से एक है जो लोगों के राशि चिन्ह के अनुसार उनके बारे में कई जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा, भोजन का ज्योतिष भविष्यवाणियों और अशुभता को भी कवर करता है।

राशि चिन्ह के आधार पर भोजन करने से न केवल आपके जीवन में क्या हो सकता है उसे समझने में मदद मिलती है, बल्कि यह आपको और आपके जीवनशैली को स्वस्थ बनाता है। खाद्य ज्योतिष आपके राशि चिन्ह के आधार पर आपकी आहार आदतों के बारे में विवरणात्मक जानकारी प्रदान करता है। इसलिए, सही खाद्य आइटम आपको समृद्धि, स्वास्थ्य सुख, और दीर्घ जीवन के साथ आशीर्वादित करेगा।

तो यदि कोई भी अपने किसी ग्रह को अनुकूल बनाना चाहता है, तो वह उसे कुछ विशेष खाद्य सामग्री का सेवन करके ठीक कर सकता है। ज्योतिषी विश्वास करते हैं कि सोच समझकर और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से खाना, आपको उस ग्रह के पक्षपाती प्रभावों से आशीर्वादित करेगा, और आपको जीवन की समस्याओं के माध्यम से मदद करेगा।

ग्रह: राशि चिन्ह और उनके शासित खाद्य सामग्री

सूर्य ग्रहPlanet Sun

सिंह राशि को सूर्य  ग्रह शासित करता है। अगर आप एक सिंह राशि  गुणों को देखते हैं, तो उनमें वे अपने खाने को लेकर बहुत चुनौतीपूर्ण होते हैं और वे चाहते हैं कि वह शानदार, तीखा और गरम हो।

इसलिए, आपके सूर्य को मजबूत करने के लिए, आपके आहार में अदरक और लाल मिर्च जैसे मसालों को शामिल करने से सहायक होगा। फल और सब्जियां भी इस राशि के लिए मायने रखते हैं, और वे उन्हें ताजा और ठीक से कटा हुआ पसंद करते हैं।

इसके अलावा, यदि आपके पास कमजोर सूर्य है, तो आप अपने आहार में नमक शामिल कर सकते हैं। यह आपके हड्डियों और पेट और दिल संबंधित समस्याओं में मदद करेगा।

सूर्य ग्रह का विशेष रूप से कड़वा प्रकार का स्वाद पसंद है। इसलिए, मिर्च, सरसों के बीज, दालचीनी, आदि जैसे कई मसालों से भरपूर मसालेदार खाद्य का सेवन करने से आपकी कुंडली और जीवन में सूर्य की ऊर्जा में सुधार होगा।

इसके अलावा, आम, अंगूर, आलूबुखारा और संतरे जैसे अकेले फल आपके सूर्य ग्रह को मजबूत बना देंगे। और यदि आपके पास मजबूत सूर्य है, तो आप स्पाइसी स्वाद वाले खाद्य को पसंद करेंगे। अनाज के मामले में, गेहूं सूर्य से जुड़ता है।

खाद्य ज्योतिष के अनुसार, यदि आप गर्व, नाम, प्रसिद्धि और शारीरिक ताकत का इच्छुक हैं, तो आपको अपने आहार में गेहूं शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, खाद्य ज्योतिष के अनुसार, अपने व्यक्तिगत संबंधों को मजबूत करने के लिए गेहूं शामिल करने से मदद मिलेगी।

आप ग्रहों के हिसाब से जूस का उपयोग करके भी उन्हें मजबूत बना सकते हैं। कौन सा जूस पीना है, इसकी जानकारी के लिए यहां पर क्लिक करें।

Sun -सूर्य

Moon -चंद्रमा

Mars -मंगल

Mercury-बुध

Jupiter-बृहस्पति

Venus -शुक्र

Saturn-शनि

Rahu-राहु

Ketu-केतु

ग्रह चंद्रमा- Planet Moon

ग्रह चंद्रमा कर्क राशि का शासक होता है। कर्क राशि वाले बहुत भावनात्मक होते हैं और उन्हें रॉयल्टी और आकर्षक दृष्टिकोण का आलस्य होता है। वे असामान्य घटकों के खाद्य का अपना पसंदीदा होते हैं। खाद्य सामग्री जैसे की ब्रेड, आइसक्रीम, कुकीज आदि, उनके पसंदीदा होते हैं।

तो, यदि आपके पास कमजोर चंद्रमा है, तो आपको ब्रेड और चावल जैसा खाद्य करना चाहिए। यह आपको शांत रहने में मदद करेगा। इसके अलावा, यदि आपकी संकल्पशक्ति कम है और आपके पास भावनात्मक समस्याएँ हैं, तो आप उपर्युक्त आइटम का सेवन कर सकते हैं।

आप अपने चंद्रमा की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन कर सकते हैं। मां की प्रेम को दर्शाने वाली खाद्य सामग्री जैसे की सूप, आरामदायक खाद्य आदि आपके चंद्रमा को मजबूत बनाएगी और आपके जीवन में इसकी ऊर्जा को आने देगी।

यदि आपकी कुंडली में राहु और चंद्रमा का संयोजन है, तो चावल का सेवन करें।

ग्रह मंगल- Planet Mars

मंगल ज्योतिष के अनुसार मेष और वृश्चिक राशि का शासक होता है। और, खाद्य को मसालों के साथ भरपूर स्वादिष्ट और गुणवत्ता वाले होने चाहिए।

लेकिन, इससे भी बड़ी बात, वे चॉकलेट और बहुत गहरे तले हुए खाद्य का सेवन करने का बहुत दीवाना होते हैं।

और विशेष रूप से, उन्हें वह खाद्य सामग्री पसंद है जो लाल रंग में होती है और मजबूत स्वाद वाली होती है। तुरंत मुँह में आने वाले खाद्य को वो आकर्षित होते हैं।

अपने कुंडली में मंगल की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए, आपको लाल रंग के खाद्य को खाना चाहिए। टमाटर और लाल मिर्च भी मंगल को मजबूत करने में मदद करते हैं।

तो, यदि आप उपर्युक्त उल्लिखित किसी आइटम को शामिल करते हैं, तो मंगल मजबूत हो जाएगा और उसके आशीर्वादों को सबसे अच्छे तरीके से दिलाएगा।

ग्रह बुध-Planet Mercury

बुध ज्योतिष में कन्या और मिथुन राशि का शासक होता है। और, इन राशियों के लोग तेज स्वाद को पसंद करते हैं। खाद्य ज्योतिष के अनुसार, कन्या और मिथुन के लोग ठंडे और ताजगी वाले खाद्य को आनंद उठाएंगे।

तो, यदि आप अपने बुध को मजबूत करना चाहते हैं, तो आपके खाने में पत्तियों वाले सब्जियां, गोभी, पत्तियों वाले सलाद, और अजमोद सहित शीतल स्वाद वाली चीजें शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा, केला, अनार, सेब, और क्रैनबेरी जैसे फल आपके जीवन में बुध की स्थिति को सुधार सकते हैं। मिथुन वाले लोग व्यक्तिगत रूप से फास्ट फूड और त्वरित बाइट्स का सेवन करने के लिए पसंद करते हैं। दूसरी ओर, कन्या निवासी स्वस्थ चीजें खाने का अच्छा रुझान रखते हैं। हालांकि, सभी में, दोनों ही ताजगी और मजबूत स्वाद की पसंद करते हैं।

ग्रह बृहस्पति- Planet Jupiter

बृहस्पति Dhanu  और मीन राशि का शासक होता है। यदि आपके पास मजबूत बृहस्पति है, तो आप तेलीय, तीखा और मीठा स्वाद वाले खाद्य को पसंद करेंगे। बृहस्पति एक मजबूत व्यक्तित्व को धारण करता है। वे बोल्ड होने और सभी को सबसे अच्छे तरीके से शासन करने की प्रेफरेंस रखते हैं। दूसरी ओर, मीन वाले व्यक्ति पेपी रहने की पसंद करते हैं और कुछ भी करने के लिए परिवर्तनपूर्णता की पसंद करते हैं।

अगर आप उन्हें दलिया, लौकी की सब्जी या रस, आदि जैसे खाद्य सामग्री दें, तो वे ऐसे खाने में इनकार नहीं करेंगे। हालांकि, अगर आप तला हुआ और कुरकुरे खाद्य सामग्री दें, तो वे उन्हें प्यार से खाएंगे।

तो, यदि आपके पास कमजोर बृहस्पति है, तो आपके आहार में लहसुन, टमाटर और नींबू को शामिल करें। इसके अलावा, आप खाद्य सामग्री में आयरन से भरपूर खाद्य सामग्री भी खा सकते हैं। हालांकि, कमजोर बृहस्पति की ऊर्जा को मजबूत करने के लिए सबसे प्रभावी खाद्य सामग्री बेसन और चना दाल है।

यह आपको बड़ों के समर्थन में आदर्श और ज्ञान प्राप्त करने में मदद करेगा।

ग्रह शुक्र-Planet Venus

शुक्र Tula  और वृष राशि का शासक होता है। इसलिए, Venus -शासित चिन्हों को मीठा खाद्य सामग्री पसंद है। वास्तव में, वे मीठा और तेज़ स्वादों का मिश्रण पसंद करते हैं। खाद्य ज्योतिष के अनुसार, वे अत्यधिक रसों का आनंद लेते हैं।

अगर आपके पास मजबूत Venus  है, तो आप शहद, शकरकंद आदि की तरह की मीठी खाद्य सामग्री को पसंद करेंगे। हालांकि, यदि आपके पास कमजोर Venus है, तो आपको अंजीर, खजूर, आम, आदि जैसे मीठे फलों को शामिल करना चाहिए। घी से तैयार किया गया खाद्य शुक्र की ऊर्जा को बढ़ावा देगा। इसके अलावा, अपने ग्रह को मजबूत करने के लिए दही भी खा सकते हैं। कमजोर वीनस की कमजोरी समस्याओं का सामना कर सकता है। खाद्य ज्योतिष के अनुसार, इन समस्याओं में मदद करने के लिए इन आइटम्स को शामिल करने में मदद मिलेगी।

रोचक बात यह है कि वृष और तुला वाले लोग आमतौर पर रात के खाने और दोपहर के भोजन का समय नहीं बिताते हैं। उन्हें फास्ट फूड और जल्दी से समाप्त होने वाले भोजन पसंद है।

ग्रह शनि- Planet Saturn

शनि कुम्भ और मकर राशि का शासक होता है। इन दोनों राशियों के लोग कड़वे स्वाद वाले खाद्य का आनंद लेते हैं। वे कम और हल्का खाने का आनंद लेते हैं और अक्सर टॉनिक कार्य करने वाले भोजन करते हैं।

फलों में, शनि के शासित राशियों को सेब और अनार पसंद हैं। विशेष रूप से, खाद्य ज्योतिष के अनुसार, मकर लोग स्वास्थ्य और भलाइ के लिए मदद करने वाले भोजन का आनंद लेते हैं। वास्तव में, अगर उन्हें भूना हुआ खाने के आइटम भी दिया जाए, तो वे इसे स्वीकार कर लेंगे।

तो, यदि आपके पास कुंडली में कमजोर शनि है, तो आपको पीली दाल और ठंडे और कड़वे स्वाद वाले खाद्य सामग्री का सेवन करना चाहिए। खाद्य ज्योतिष के अनुसार, इससे आपके दैनिक जीवन में पैरों और पैरों के संबंधित मुद्दों के समाधान हो सकता है।

खाद्य ज्योतिष: आपके आहार पर प्रभाव डालने वाले महत्वपूर्ण घर

खाद्य ज्योतिष के अनुसार, आपके खाद्य सामग्री के चयन पर चार घर हो सकते हैं जो प्रभाव डाल सकते हैं और ये घर हैं पहला घर, दूसरा घर, नौवां घर और बारहवां घर।

पहला घर, ज्योतिष के अनुसार, आपके दिमाग, व्यक्तित्व, और दिल को शासित करता है। दूसरा घर, खाद्य ज्योतिष के अनुसार, आपके खाद्य सामग्री को नियंत्रित करता है और आपके आहार पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। यदि आप नौवां घर की ओर देखते हैं, तो इसका Food Quality  पर सीधा संबंध नहीं होता है। लेकिन, खाद्य की गुणवत्ता में इसका प्रभाव हो सकता है। आखिरकार बारहवां घर आता है। यह आपके जीवन में आप क्या छोड़ने की तैयारी करते हैं, इसे दिखाता है।

खाद्य संबंधित उपाय ज्योतिष के अनुसार

सूर्य को मजबूत बनाने के लिए, आपको अपने भोजन को सूर्य के नीचे खाना चाहिए। इसके अलावा, यदि आपके पास कमजोर सूर्य है, तो आप गेहूं दाना दान कर सकते हैं, खासकर 2 और 8 घर में।

चंद्रमा को मजबूत बनाने के लिए, आपको सूर्यास्त के बाद ठंडा खाना चाहिए। इसके अलावा, आपको पुराना खाद्य नहीं खाना चाहिए, यह भी महत्वपूर्ण है।

मंगल को मजबूत करने के लिए, आप भोजन के बाद गुड़ खा सकते हैं। इसके अलावा, मंगल को मजबूत करने के लिए आप मंगलवार को मसूर दाल दान कर सकते हैं।

बुध  अगर आप अपने बुध को मजबूत करना चाहते हैं, तो आपको पत्तियों वाले सब्जियों, पत्तियों वाले सलाद, खाद्य सामग्री को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, केला, अनार, सेब, और क्रैनबेरी जैसे फल आपके बुध की स्थिति को सुधार सकते हैं।

बृहस्पति को मजबूत करने के लिए, हल्दी सबसे बेहतरीन सामग्री है। आपके खाने में थोड़ा सा हल्दी शामिल करें, और बृहस्पति आपके चार्ट में मजबूत हो जाएगा।

शुक्र को मजबूत करने के लिए, आपको रोजाना मिठे खाद्य का सेवन करना चाहिए।

शनि को मजबूत करने के लिए, आप शनिवार को उड़द दाल दान कर सकते हैं।

राहु और केतु

आपको हर दिन नहाने के बाद दो तुलसी की पत्तियों को खाना चाहिए। खाद्य ज्योतिष के अनुसार, यह आपके चार्ट से इन ग्रहों के अनिष्ट प्रभावों को हटाने में मदद करेगा।

Vaman Jayanti 2023

Vaman Jayanti 2023- वामन जयंती की तिथि और श्रवण नक्षत्र समय- The date and time of Vaman Jayanti:

वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। क्योंकि, वामन श्रीहरि विष्णु के ही पांचवें अवतार है। भगवान वामन की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामना पूरी होती है। यदि आप भगवान विष्णु से मनचाहा आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो भगवान विष्णु की वैदिक रीति से पूजा कर सकते हैं।

वामन जयंती तिथि-Vaman Jayanti Tithi

प्रारम्भ: 26 सितंबर 2023, मंगलवार, प्रातः 05:00 बजे

समाप्त: 27 सितंबर 2023, पूर्वाह्न 01:45 बजे

श्रवण नक्षत्र- Shrawan Nakshtra

प्रारम्भ: 25 सितंबर 2023, सुबह 11:55 बजे

समाप्त: 26 सितंबर 2023, पूर्वाह्न 09:42 बजे

वामन जयंती का महत्व – Vaman Jayanti Ka Mmahttava

वामन जयंती का त्योहार भगवान विष्णु पांचवें अवतार यानी वामन अवतार के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पुराणों में बताया गया है कि श्री हरि विष्णु ने राजा बलि को ब्राह्मांड पर आधिपत्य जमाने से रोकने के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को जन्म लिया था।

भागवत पुराण में बताया गया है कि वामन भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पांचवे अवतार थे, और त्रेता युग में पहले अवतार थे। इससे पहले भगवान विष्णु ने जो चार अवतार लिए थे, सभी पशु के रूप में थे, जो क्रमशः मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नृसिंह अवतार थे। अगर मनुष्य रूप में श्रीहरि विष्णु के अवतार की बात की जाए, तो वामन रूप में उनका पहला अवतार था।

वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त यानि श्रवण नक्षत्र में पैदा हुए थे। उन्होंने कश्यप ऋषि और अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। इस साल वामन जयंती का यह पवित्र त्योहार 26 सितंबर को मनाया जाएगा। वामन जयंती पर परिवर्तिनी एकादशी, पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जलझूलनी एकादशी, पद्मा एकादशी, डोल ग्यारस और जयंती एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है।

वामन जयंती पूजा विधि- Vaman Jayanti Pooja Vidhi

पुराणों इस बात का उल्लेख किया गया है कि इस दिन भगवान विष्णु को उनके वामन रूप में पूजा जाता है। वामन जयंती के दिन उपासक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। नित्यक्रिया के बाद स्नान और भगावन विष्णु का ध्यान कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए। इसके बाद दिन की शुरुआत में आप वामन देव की सोने या फिर मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा करें।

वामन जयंती के दिन उपवास का भी विशेष महत्व बताया गया है, इसलिए भक्त भगवान विष्णु के अवतार वामन देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रखते हैं। इस दिन पूजा करने का सबसे उत्तम समय श्रवण नक्षत्र होता है। श्रवण नक्षत्र में भगवान वामन देव की सोने या फिर मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा के सामने बैठकर वैदिक रीति-रिवाजों से पूजा संपन्न करें। इस दौरान भगवान वामन देव की व्रत कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए।

कथा के समापन के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसादी वितरण करना चाहिए, इसके बाद ही उपवास खोलना लाभकारी होगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल, दही और मिश्री का दान करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। यदि वामन जयन्ती श्रवण नक्षत्र के दिन आती है, तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भक्त वामन देव की पूजा पूरे वैदिक विधि और मंत्रों के साथ करते हैं, तो उनके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है, अर्थात् भगवान वामन अपने उपासकों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

वामन जयंती के अनुष्ठान– Vaman Jayanti Anusthan

वामन जयंती के अवसर पर अगर आप अनुष्ठान करना चाहते हैं, तो सबसे सरल और आदर्श तरीका यह है कि इस दिन आप गरीबों को दही, चावल और भोजन दान करें। इसे वामन जंयती के दिन लाभकारी माना जाता है।

वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से वह आपके सारे दु:ख दर्द हर लेते हैं। इस दिन यदि आप विष्णु सहस्रनाम और अन्य विभिन्न मंत्रों का पाठ करते हैं, तो भगवान विष्णु की आप पर कृपा बरसेगी ।

इस दिन आपको भगवान विष्णु के 108 नामों का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा भगवान विष्णु या वामन देव की मूर्ति या फिर चित्र के सामने अगरबत्ती, दीपक और फूल चढ़ाना चाहिए।

वामन अवतार कथा– Vaman Avtar Katha

प्राचीन काल में एक दैत्य राजा था, उसका नाम बलि था। वह भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने अपने बल और तप की मदद से पूरे ब्रह्मांड पर अपना शासन स्थापित किया था। भगवान विष्णु के परम भक्त और बलशाली बलि ने इंद्र देव को पराजित किया और स्वर्ग को भी जीत लिया था।

तब इंद्र देव भगवान विष्णु के पास आए और उनसे अपने स्वर्ग को वापस पाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने इंद्र को आश्वासन दिया कि वह उनका अधिकार वापस दिला देंगे। फिर भगवान विष्णु ने स्वर्गलोक के लोगों को इंद्र के अधिकार में वापस दिलाने के लिए वामन अवतार धारण किया।

वे ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में जन्म ले लिये। राजा बलि भगवान विष्णु के परम भक्त थे, लेकिन वे एक क्रूर और अभिमानी शासक भी थे। वे हमेशा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते थे, और अपने बल और शक्ति से देवताओं और लोगों को डराते थे। वे अपनी पराक्रम की बजाय तीनों लोकों को जीत लिया था।

एक दिन जब राजा बलि अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, तब भगवान विष्णु वामन अवतार में उनके पास आए। उनके साथ दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी थे। जैसे ही शुक्राचार्य ने वामन को देखा, वह समझ गए कि यहां भगवान विष्णु हैं।

शुक्राचार्य ने राजा बलि को बुलाकर उन्हें कहा कि यहां विष्णु वामन रूप में पहुंच चुके हैं, और वे कुछ मांग सकते हैं। तब वामन देव ने राजा बलि के पास आकर कुछ मांगने की इच्छा जाहिर की। राजा बलि ने इसे स्वीकार किया और उन्होंने दान देने का वचन दिया।

इसके बाद भगवान विष्णु वामन देव ने अपना रूप विशाल किया। वे एक पग में पूरे भू लोक को नाप लिया, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को अपने अधीन कर लिया। जब वामन देव ने तीसरा पग उठाया, तो राजा बलि ने उन्हें पहचान लिया और उनके पास अपना शीश प्रस्तुत किया।

वह भगवान विष्णु के परम भक्त भी थे, इसलिए उन्होंने राजा बलि की उदारता का सम्मान किया और उन्हें पाताल लोक भेजने के बजाय उन्हें वह वरदान दिया कि वे साल में एक बार अपनी प्रजा से मिल सकते हैं।

दक्षिण भारत में मान्यता है कि राजा बलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस दिन को ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अन्य भारतीय राज्यों में इसे बलि-प्रतिपदा के नाम से भी मनाया जाता है।

पार्श्व एकादशी की पूजा कैसे करें – Parshwa Ekadashi ki Pooja Kaise kare ?

एकादशी व्रत दशमी तिथि की रात्रि से शुरू किया जाता है। इस दिन, दशमी तिथि के दिन सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। यदि संभव न हो, तो आप फल और दूध का सेवन कर सकते हैं।

एकादशी की तिथि के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें और किसी पवित्र नदी में स्नान करें।

यदि आपके घर के पास कोई पवित्र नदी नहीं है, तो आप अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिला सकते हैं।

स्नान के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु का ध्यान करें और एकादशी व्रत का संकल्प लें।

अब अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और सामने एक लकड़ी की चौकी रखें।

इस चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर इसे शुद्ध करें।

अब चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें।

भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने धूप और गाय के घी का दीपक जलाएं।

अब भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने कलश स्थापित करें।

अब अपनी क्षमता के अनुसार भगवान विष्णु के लिए फल, फूल, पान, सुपारी, नारियल, लौंग, आदि को अर्पित करें।

संध्याकाल में वामन एकादशी की कथा सुनें और फलाहार करें।

यदि आप पूरे दिन व्रत करने में सक्षम नहीं हैं, तो आप दिन में भी फलाहार कर सकते हैं।

अगले दिन सुबह स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान और दक्षिणा दें, और फिर व्रत का पारण करें।

एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

Parivartini Ekadashi 2023

Parivartini Ekadashi 2023 Date | परिवर्तिनी-एकादशी 2023 तिथि

पौराणिक मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी-एकादशी (Parivartini-Ekadashi 2023) के दिन भगवान विष्णु ने योग निद्रा चातुर्मास में शयन करते हुए पहली करवट ली थी। भगवान विष्णु के शयन मुद्रा बदलने के कारण इसे परिवर्तिनी-एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भक्त श्रद्धापूर्वक व्रत रखते है और भगवान विष्णु के वामन अवतार का विधि विधान से पूजन करते है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के दिन सच्चे मन से व्रत करने से देवी महालक्ष्मी प्रसन्न होती है और उनके घर में कभी अन्न-धन की कमी नहीं आती है।

साल 2023 में सोमवार, 25 सितम्बर 2023 (parivartini ekadashi 2023 date) के दिन परिवर्तिनी-एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

परिवर्तिनी-एकादशी का शुभ समय व पूजन मुहूर्त इस प्रकार से है-

परिवर्तिनी एकादशी कब है?

साल 2023 में सोमवार, 25 सितम्बर 2023 (parivartini ekadashi 2023 date) के दिन परिवर्तिनी-एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

Parivartini Ekadashi 2023 Shuh Muhurat | परिवर्तिनी एकादशी 2023 शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ     25 सितंबर 2023 को सुबह 07:55 बजे

एकादशी तिथि समाप्त   26 सितंबर 2023 को प्रातः 05:00 बजे

परिवर्तिनी एकादशी पारण मुहूर्त              

26 सितंबर 2023, दोपहर 01:25 बजे से दोपहर 03:49 बजे तक

Parivartini Ekadashi Significance | परिवर्तिनी एकादशी महत्व

हिन्दू परंपराओं के अनुसार, जो कोई भी परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पालन करता है, उनपर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। पुराणों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत से व्यक्ति को नाम, यश की प्राप्ति होती है और उसकी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं। इसके अलावा इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा मान्यता है कि जो कोई भी इस व्रत का पालन करता है उसे अपने जीवन के पापों और गलत कार्यों से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा भक्तों को तीनों लोकों में प्रसिद्धि भी मिल सकती है।

Parivartini Ekadashi Pujan Vidhi | परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

परिवर्तिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी स्नान कर, पीले स्वच्छ कपड़े पहनें और सूर्य देव को जल चढ़ाएं।

 फिर पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु और गणेश जी की मूर्ति रखें।

भगवान विष्णु और गणेश जी को प्रसाद, दूर्वा घास, पीले फूल, पंचामृत और तुलसी अर्पित करें।

 पूजन संपन्न होने के बाद भगवान के मंत्रो का जाप करें और परिवार सहित आरती गाएं।

अब सभी में प्रसाद वितरित करे।

 इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े, जूते, छाते आदि दान करना चाहिए।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा की महिमा– Parivartni Ekadashi Vrat Mahima

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो।

यह एकादशी जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।

जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।

भगवान के वचन सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि बलि को बाँधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएँ कीं? चातुर्मास के व्रत की क्या ‍विधि है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप मुझसे विस्तार से बताइए।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी जो साधक अपने पूर्वजन्म से लेकर वर्तमान में जाने-अजाने किये गये पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं और मोक्ष की कामना रखते हैं उनके लिये यह एकादशी मोक्ष देने वाली, समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है।

मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से वाजपेय यज्ञ जितना पुण्य फल उपासक को मिलता है। पद्मा एकादशी को भगवान विष्णु पाताल लोक में अपनी शैय्या पर करवट बदलते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलने के समय प्रसन्नचित्त मुद्रा में रहते हैं, इस अवधि में उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वे अवश्य प्रदान करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में वृद्धि होती है। मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को पालकी में बिठाकर ढोल-नगाड़ों के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है ।

परिवर्तिनी एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व या पूर्वोत्तर की ओर मुख करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर वस्त्र,आभूषण,फूलमाला आदि धारण कराएं। यदि मूर्ति नहीं है तो आप भगवान विष्णु का चित्र भी लगा कर पूजा कर सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार का ध्यान कर पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। पूजा के उपरांत वामन भगवान की कथा का श्रवण या वाचन करें और कपूर एवं शुद्ध घी के दीपक से श्री हरि की आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें। भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें। इसके बाद शाम के समय जल में निवास करने वाले श्री नारायण की पुनः संध्या आरती करके उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन अवश्य करें। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की पूजा करने से इस जीवन में धन और सुख की प्राप्ति तो होती ही है। परलोक में भी इस एकादशी के पुण्य से उत्तम स्थान मिलता है। पद्मा एकादशी के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढककर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए,शुभ फलों की प्राप्ति के लिए साथ में जूते और छाते का भी दान करें । जो लोग किसी कारण वश पद्मा एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें पद्मा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन करना चाहिए।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा– Parivartni Vrat Katha

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें।

त्रेतायुग में बलि नामक एक असुर राजा था, लेकिन वह महादानी एवं भगवान श्री विष्णु का बहुत भक्त था।वैदिक विधियों के साथ वह भगवान् का नित्य पूजन किया करता था,उसके द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। अपने वामनावतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली थी। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था लेकिन उसमें एक गुण यह था कि वह किसी भी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं भेजता था उसे दान अवश्य देता था। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसे भगवान विष्णु की लीला से अवगत भी करवाया लेकिन फिर भी राजा बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। फिर क्या था दो पगों में ही भगवान विष्णु ने समस्त लोकों को नाप दिया तीसरे पग के लिये कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए अपना शीष उनके पग के नीचे कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से बलि रसातल में पाताल लोक में रहने लगा लेकिन साथ ही उसने भगवान विष्णु को भी अपने यहां रहने के लिये वचनबद्ध कर लिया था।वामन अवतार की इस कथा को सुनने और पड़ने वाला व्यक्ति तीनों लोकों में पूजित होता है ।

Radha Asthmi

Radha Asthmi

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाई जाती है। इस वर्ष, यह 23 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी। राधाष्टमी के दिन, श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन रात-दिन बरसाना में बहुत ही धूमधाम रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। धार्मिक गीतों और कीर्तन के साथ उत्सव का आरंभ होता है।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाए जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के ठीक 15 दिन बाद राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। सनातन परंपरा में श्री राधा जी को भगवान श्री कृष्ण की शक्ति माना गया है, जिनके बगैर न सिर्फ वो अधूरे हैं बल्कि उनके भक्तों की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा जी की पूजा करने पर सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जीवन के सभी दुखों को दूर करके सुख-सौभाग्य और सफलता का वरदान देने वाली देवी श्री राधा जी की पूजा इस साल कब और कैसे करनी चाहिए, आइए इसे विस्तार से जानते हैं।

राधा अष्टमी का महत्व – Importance of Radha Ashtami

राधा अष्टमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो भगवान कृष्ण की प्रिय अनुग्रहिणी, राधा जी के जन्म को मनाता है। इस पर्व का महत्व उसकी भक्ति और पूजा में है, और इसे भगवान श्री कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना जाता है। राधा अष्टमी के पावन दिन पर भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से इस पर्व का आचरण करते हैं, जिससे वे दिव्यता के दर परंपरागत करते हैं। यह पर्व भक्तों के लिए सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। राधा जी की पूजा न करने पर उनके भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम में आधूरे होने का खतरा होता है, क्योंकि वे एक दूसरे के बिना अधूरे माने जाते हैं।

राधा अष्टमी: राधा की महिमा का त्योहार

राधा अष्टमी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जो भगवान कृष्ण की प्रिय अनुग्रहिणी, राधा जी के जन्म को मनाता है। यह पर्व भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। राधा अष्टमी के दिन श्रद्धालु भगवान की प्रियतमा, राधा रानी का जन्म उत्सव करते हैं, और उनकी भक्ति और पूजा में मग्न होते हैं।

इस पर्व का महत्व उसकी भक्ति और पूजा में है, और इसे भगवान श्री कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना जाता है। राधा अष्टमी के पावन दिन पर भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से इस पर्व का आचरण करते हैं, जिससे वे दिव्यता के दर परंपरागत करते हैं। यह पर्व भक्तों के लिए सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। राधा जी की पूजा न करने पर उनके भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम में आधूरे होने का खतरा होता है, क्योंकि वे एक दूसरे के बिना अधूरे माने जाते हैं।

राधा अष्टमी के दिन, भक्त शुद्ध मन और भक्ति भाव से व्रत का पालन करते हैं। इस दिन राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और उनका श्रृंगार किया जाता है। राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी मूर्ति को विग्रह में स्थापित किया जाता है। धूप, दीप, आरती आदि के साथ पूजा की जाती है और भोग चढ़ाया जाता है। राधा जी के मंत्रों का जाप भी किया जाता है, और पूजा के बाद आरती दर्शाई जाती है। प्रसाद को भक्तों के बीच बाँटने के बाद स्वयं भी ग्रहण किया जाता है। इस दिन के व्रत को पूरी श्रद्धा और विधान से करने से भक्त सुख, सौभाग्य, और सफलता प्राप्त करते हैं, और उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

राधा अष्टमी ब्रज और बरसाना में भी महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाई जाती है। इन स्थलों में राधा रानी का जन्म उत्सव करने का परंपरागत तरीका होता है। वृन्दावन, बरसाना, रावल, और मांट के राधा रानी मंदिरों में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। वृन्दावन के ‘राधा बल्लभ मंदिर’ में राधा जन्म के खुशी में गोस्वामी समाज के लोग भक्ति के अद्वितीय रंगों में लिपट जाते हैं। इस दिन, हौदियों में हल्दी मिश्रित दही एकत्र किया जाता है और फिर गोस्वामियों पर यह दही फेंका जाता है, जिसके बाद वे नृत्य करने लगते हैं और भगवान की महिमा गाते हैं। राधा जी के भोग के बाद, बधाई गायन का आयोजन किया जाता है, और इस अद्भुत उत्सव का समापन आरती के साथ होता है।

राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त- “Radha Ashtami Auspicious Timings”

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल राधा अष्टमी का पावन पर्व 23 सितंबर 2023 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 सितंबर 2023 को दोपहर 01:35 बजे से प्रारंभ होकर 23 सितंबर 2023 को दोपहर 12:17 बजे तक रहेगी। इस दिन राधा रानी की पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त प्रात:काल 11:01 से लेकर दोपहर 01:26 बजे तक रहेगा।

राधाष्टमी कथा -Radha Ashtami Story

राधाष्टमी कथा, राधा जी के जन्म से संबंधित है। राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी। राधाजी की माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे, तब भूमि कन्या के रूप में इन्हें राधाजी मिली थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया।

इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी। लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। ऎसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता

राधाष्टमी पूजन- Radha Ashtami Worship

राधा अष्टमी के दिन, भक्त शुद्ध मन और भक्ति भाव से व्रत का पालन करते हैं। इस दिन राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और उनका श्रृंगार किया जाता है। राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी मूर्ति को विग्रह में स्थापित किया जाता है। धूप, दीप, आरती आदि के साथ पूजा की जाती है और भोग चढ़ाया जाता है। राधा जी के मंत्रों का जाप भी किया जाता है, और पूजा के बाद आरती दर्शाई जाती है। प्रसाद को भक्तों के बीच बाँटने के बाद स्वयं भी ग्रहण किया जाता है। इस दिन के व्रत को पूरी श्रद्धा और विधान से करने से भक्त सुख, सौभाग्य, और सफलता प्राप्त करते हैं, और उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

राधा अष्टमी ब्रज और बरसाना में – Radha Ashtami in Braj and Barsana

राधा अष्टमी ब्रज और बरसाना में भी महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मनाई जाती है। इन स्थलों में राधा रानी का जन्म उत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल, और मांट के राधा रानी मंदिरों में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। वृन्दावन के ‘राधा बल्लभ मंदिर’ में राधा जन्म के खुशी में गोस्वामी समाज के लोग भक्ति के अद्वितीय रंगों में लिपट जाते हैं। इस दिन, हौदियों में हल्दी मिश्रित दही एकत्र किया जाता है और फिर गोस्वामियों पर यह दही फेंका जाता है, जिसके बाद वे नृत्य करने लगते हैं और भगवान की महिमा गाते हैं। राधा जी के भोग के बाद, बधाई गायन का आयोजन किया जाता है, और इस अद्भुत उत्सव का समापन आरती के साथ होता है।

राधा अष्टमी: प्रश्न और उत्तर

राधा अष्टमी क्या है?

राधा अष्टमी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाई जाने वाली एक हिन्दू पर्व है। इस वर्ष, यह 23 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी।

राधा अष्टमी का महत्व क्या है?

राधा अष्टमी पर्व का महत्व उसकी भक्ति और पूजा में है, और इसे भगवान श्री कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना जाता है। यह पर्व भक्तों के लिए सुख, समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।

राधा अष्टमी के दिन कैसे मनाते हैं?

राधा अष्टमी के दिन भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से व्रत का पालन करते हैं। वे राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं और उनका श्रृंगार करते हैं। धूप, दीप, आरती आदि के साथ पूजा की जाती है और भोग चढ़ाया जाता है।

राधा अष्टमी की कथा क्या है?

राधा अष्टमी कथा राधा जी के जन्म से संबंधित है। राधा जी की माता का नाम कीर्ति था और वे वृषभानु गोप की पुत्री थीं। पद्मपुराण में राधा जी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है।

राधा अष्टमी कैसे मनाई जाती है ब्रज और बरसाना में?

ब्रज और बरसाना में राधा अष्टमी को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना, रावल, और मांट के राधा रानी मंदिरों में इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

राधा अष्टमी के पावन मुहूर्त क्या है?

हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष राधा अष्टमी का पावन पर्व 23 सितंबर 2023 को मनाया जाएगा। प्रात:काल 11:01 से लेकर दोपहर 01:26 बजे तक यह पावन मुहूर्त रहेगा।

Santan Saptmi- Lalita Saptmi

Santan Saptmi- Lalita Saptmi

संतान सप्तमी-ललिता सप्तमी व्रत, 2023 की कथा और पूजा विधि -Santan Saptami -Lalita Saptami Vrat Katha, Vidhi in Hindi

यह व्रत संतान की प्राप्ति और उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता है। माना जाता है कि संतान सप्तमी के व्रत के प्रभाव से संतान के समस्त दुःख और परेशानियों का निवारण होता है।

संतान सप्तमी कब मनाई जाती है (Santan Saptami Vrat Fast Date)

यह व्रत हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है। इसे ललिता सप्तमी भी कहा जाता है। हर वर्ष संतान सप्तमी की तिथि अलग-अलग होती है।

संतान सप्तमी 2023 में कब है (Santan Saptami 2023)

इस वर्ष संतान सप्तमी का त्योहार 22 सितंबर को मनाया जाएगा। इस साल संतान सप्तमी व्रत पूजा के मुहूर्त इस प्रकार हैं:

त्योहार का नाम: संतान सप्तमी

कब मनाई जाती है: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को

2023 में कब है: 22 सितंबर

संतान सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता है (Santan Saptami Mahatva)

यह व्रत महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा के साथ करती हैं। इसका उद्देश्य संतान के समस्त दुःख और परेशानियों के निवारण के लिए होता है। संतान की सुरक्षा के भाव से महिलाएं इस व्रत को पूरी विधि विधान के साथ करती हैं। यह व्रत पुरुष, अर्थात माता-पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते हैं।

  • संतान सप्तमी व्रत महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा के साथ करती हैं।
  • इसका उद्देश्य संतान के समस्त दुःख और परेशानियों के निवारण के लिए होता है।
  • संतान की सुरक्षा के भाव से महिलाएं इस व्रत को पूरी विधि विधान के साथ करती हैं।
  • यह व्रत पुरुष, अर्थात माता-पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते हैं।

संतान सप्तमी व्रत पूजा विधि (Santan Saptami Vrat Puja Vidhi)

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन, प्रातः को जल्दी उठकर स्नान कर, माता-पिता के संतान प्राप्ति या उनके उज्जवल भविष्य के लिए इस व्रत का प्रारंभ करें।

इस व्रत की पूजा दोपहर तक पूरी कर ली जानी चाहिए, तो यह अच्छा माना जाता है।

प्रातः स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।

विष्णु, शिव, और पार्वती की पूजा करें।

दोपहर के समय, एक चौक बनाकर उस पर भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा रखें।

उन प्रतिमाओं का स्नान कराएं और उन पर चंदन का लेप लगाएं।

अक्षत, श्री फल (नारियल), सुपारी को अर्पण करें।

दीप प्रज्वलित करें और भोग लगाएं।

संतान की सुरक्षा का संकल्प लें और भगवान शिव को डोरा बांधें।

इस डोरे को अपनी संतान की कलाई में बांध दें।

इस दिन भोग में खीर और पूरी का प्रसाद चढ़ाएं।

भोग में तुलसी के पत्ते को रखकर उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखें।

परिवार के सभी जनों के साथ मिलकर आरती करें।

भगवान के सामने मस्तक रखकर अपनी मन की मुराद कहें।

फिर उस भोग को प्रसाद के रूप में सभी परिवार जनों और आस-पास के लोगों को वितरित करें।

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

पूजा के बाद, व्रत कथा का सुनना सभी हिन्दू व्रतों में महत्वपूर्ण होता है। संतान सप्तमी व्रत की कथा पति-पत्नी मिलकर सुनें, तो इसका प्रभाव अधिक प्रभावशाली माना जाता है।

इस व्रत का उल्लेख भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के सामने किया था। उन्होंने बताया कि लोमेश ऋषि ने उनके माता-पिता (देवकी और वसुदेव) को इस व्रत के महत्व के बारे में बताया था। माता देवकी के पुत्रों को कंस ने मार दिया था, जिसके कारण माता-पिता के जीवन पर संतान के अभाव का भार था, जिससे उभरने के लिए उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने की सलाह दी गई थी।

लोमेश ऋषि द्वारा संतान सप्तमी की व्रत कथा

अयोध्या का राजा था नहुष, उसकी पत्नी का नाम चन्द्रमुखी था। चन्द्रमुखी की एक सहेली थी, जिसका नाम रूपमती था, वह नगर के ब्राह्मण की पत्नी थी। दोनों ही सखियों में बहुत प्रेम था। एक बार वे दोनों सरयू नदी के तट पर स्नान करने गईं, वहां बहुत सी स्त्रियाँ संतान सप्तमी का व्रत कर रही थीं। उनकी कथा सुनकर इन दोनों सखियों ने भी पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का निश्चय किया, लेकिन घर आकर वे दोनों भूल गईं। कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई और दोनों ने पशु योनि में जन्म लिया।

कई जन्मों के बाद दोनों ने मनुष्य योनि में जन्म लिया, इस जन्म में चन्द्रवती का नाम ईश्वरी और रूपमती का नाम भूषणा था। ईश्वरी राजा की पत्नी और भूषणा ब्राह्मण की पत्नी थीं, इस जन्म में भी दोनों में बहुत प्रेम था। इस जन्म में भूषणा को पुर्व जन्म की कथा याद थी, इसलिए उसने संतान सप्तमी व्रत किया, जिसके प्रतिपालन से उसके आठ पुत्र प्राप्त हुए, लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया, इसलिए उसकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण उसे भूषणा ने इर्षा होने लगी थी। उसने कई प्रकार से भूषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की, लेकिन उनके भूषणा के व्रत के प्रभाव से कोई क्षति नहीं पहुंची। थक हार कर ईश्वरी ने अपनी इर्षा और कृत्य के बारे में भूषणा से कहा और क्षमा भी मांगी। तब भूषणा ने उसे पुर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी व्रत करने की सलाह दी। ईश्वरी ने पूरे विधि-विधान के साथ व्रत किया और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।

इस प्रकार, संतान सप्तमी व्रत के महत्व को जानकर सभी मानव पुत्र प्राप्ति और उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से इस व्रत का पालन करते हैं।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार सातवां दिन को सप्तमी कहा जाता है। सप्तमी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में आती है। सप्तमी, महीने में दो बार आती है। हिंदू धर्म में सप्तमी का अपना विशेष महत्व है। सप्तमी तिथि में पड़ने वाला प्रसिद्ध रथ सप्तमी या सूर्य जयंती, शीतला सप्तमी, गंगा सप्तमी और कामदा सप्तमी हैं। सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है।

2023 में सप्तमी तिथि सूची

सप्तमी तिथि जनवरी में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

13 जनवरी 2023 को शाम 06:17 बजे – 14 जनवरी 2023 को शाम 07:23 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी (रथ सप्तमी)

27 जनवरी 2023 पूर्वाह्न 09:10 बजे – 28 जनवरी 2023 पूर्वाह्न 08:43 बजे

सप्तमी तिथि फरवरी में

कृष्ण पक्ष सप्तमी (माघ भानु सप्तमी)

12 फरवरी 2023 पूर्वाह्न 09:46 बजे – 13 फरवरी 2023 पूर्वाह्न 09:46 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

26 फरवरी 2023 पूर्वाह्न 12:20 – 27 फरवरी 2023 पूर्वाह्न 12:59 बजे

सप्तमी तिथि मार्च में

कृष्ण पक्ष सप्तमी (शीतला सप्तमी)

13 मार्च 2023 को रात 09:27 बजे – 14 मार्च 2023 को रात 08:22 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

27 मार्च 2023 को शाम 05:28 बजे – 28 मार्च 2023 को शाम 07:02 बजे

सप्तमी तिथि अप्रैल में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

12 अप्रैल 2023 पूर्वाह्न 05:40 बजे – 13 अप्रैल 2023 पूर्वाह्न 03:44 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी (गंगा सप्तमी)

26 अप्रैल 2023 पूर्वाह्न 11:28 बजे – 27 अप्रैल 2023 दोपहर 01:39 बजे

सप्तमी तिथि मई में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

11 मई 2023 पूर्वाह्न 11:27 बजे – 12 मई 2023 पूर्वाह्न 09:07 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

26 मई 2023 पूर्वाह्न 05:20 – 27 मई 2023 पूर्वाह्न 07:43 बजे

सप्तमी तिथि जून में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

09 जून 2023 दोपहर 04:21 बजे – 10 जून 2023 दोपहर 02:02 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

24 जून 2023 को रात 10:17 बजे – 26 जून 2023 को दोपहर 12:25 बजे

सप्तमी तिथि जुलाई में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

08 जुलाई 2023 को रात 09:52 बजे – 09 जुलाई 2023 को रात 08:00 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

24 जुलाई 2023 दोपहर 01:43 बजे – 25 जुलाई 2023 दोपहर 03:09 बजे

सप्तमी तिथि अगस्त में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

07 अगस्त 2023 पूर्वाह्न 05:20 – 08 अगस्त 2023 पूर्वाह्न 04:14 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

23 अगस्त 2023 पूर्वाह्न 03:06 – 24 अगस्त 2023 पूर्वाह्न 03:31 बजे

सप्तमी तिथि सितंबर में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

05 सितंबर 2023 अपराह्न 03:46 बजे – 06 सितंबर 2023 अपराह्न 03:38 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

21 सितंबर 2023 दोपहर 02:15 बजे – 22 सितंबर 2023 दोपहर 01:35 बजे

सप्तमी तिथि अक्टूबर में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

05 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 05:41 बजे – 06 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 06:35 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

20 अक्टूबर 2023 को रात 11:25 बजे – 21 अक्टूबर 2023 को रात 09:53 बजे

सप्तमी तिथि नवंबर में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

03 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 11:08 बजे – 05 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 01:00 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

19 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 07:23 – 20 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 05:22 बजे

सप्तमी तिथि दिसंबर में

कृष्ण पक्ष सप्तमी

03 दिसंबर 2023 को शाम 07:27 बजे – 04 दिसंबर 2023 को रात 10:00 बजे

शुक्ल पक्ष सप्तमी

18 दिसंबर 2023 दोपहर 03:14 बजे – 19 दिसंबर 2023 दोपहर 01:07 बजे

FAQ:

Q. संतान सप्तमी कब है?

Ans: 22 सितंबर को

Q: संतान सप्तमी कब मनाई जाती है?

Ans: भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन

Q: संतान सप्तमी के दिन किसकी पूजा की जाती है?

Ans: विष्णु, शिव और पार्वती जी की पूजा की जाती है।

Q: संतान सप्तमी के व्रत के दिन क्या-क्या खाया जाता है?

Ans: इस दिन माताएं पुआ का भोग लगाती हैं और उसी को खाती हैं। इसके अलावा कुछ भी नहीं खाती हैं।

Q: संतान सप्तमी व्रत क्यों रखा जाता है?

Ans: महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए इस दिन व्रत करती हैं।

Anant Chaturdashi-2023

अनंत चतुर्दशी – Anant Chaturdashi-2023

अनंत चतुर्दशी का त्योहार हमारे देश में विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार के मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा और स्तुति का महत्व होता है।

अनंत चतुर्दशी पूजा मुख्य रूप से भगवान श्री विष्णु जी की आराधना और स्तुति का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार का मतलब है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने और पूजा करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। अनंत सूत्र को बांधने से श्री भगवान विष्णु उस मनुष्य की सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करते हैं। यह दिन रोगों और कष्टों से श्री भगवान विष्णु की कृपा से रक्षा होती है और धन धान्य में वृद्धि होती है।

उपवास का महत्व- The Importance of Fasting

इस दिन बहुत से लोग अनंत चतुर्दशी का उपवास भी करते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा और आराधना की जाती है, और इसके साथ ही अनंत चतुर्दशी की कथा भी सुनी जाती है।इसे ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनंत चतुर्दशी का यह दिन हिन्दू धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी काफी पवित्र माना जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर को है, जो कि एक गुरुवार है। इस दिन भुजाओं पर पहने जाने वाले अनंत में 14 गांठें बांधी जाती हैं।

अनंत सूत्र का महत्व- The Significance of the Anant Sutra

लोग इस दिन अपनी बांह पर अनंत सूत्र बाँधते हैं, जिसे काफी पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि अनंत सूत्र बाँधने वाले व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा रहती है और वे सभी संकटों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।

तिथि और मुहूर्त- Date and Auspicious Time

अनंत चतुर्दशी का त्योहार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और गरीबों को दान देने का भी अपना एक महत्व है।

2023 की तिथि – Date in 2023: 

इस साल, यानी 2023 में, अनंत चतुर्दशी की तिथि 28 सितम्बर 2023 को है, जो कि एक गुरुवार है।

पूजा का मुहूर्त- Pooja Muhurat

अनंत चतुर्दशी का मुहूर्त इस प्रकार है:

प्रारंभ समय: 28 सितम्बर 2023, गुरुवार, प्रातः काल – 06:12 am

समाप्त समय: 28 सितम्बर 2023, गुरुवार, सायंकाल – 06:49 pm

प्राचीन परंपराएं- Ancient Traditions

अनंत चतुर्दशी का आयोजन प्राचीन समय से होता आया है और यह त्योहार हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन, लोग अनंत की शापमुक्ति के लिए यज्ञ आयोजित करते हैं और अनंत व्रत का पालन करते हैं।

अनंत चतुर्दशी पूजा का महत्व- The Significance of Anant Chaturdashi Puja

अनंत चतुर्दशी पूजा मुख्य रूप से भगवान श्री विष्णु जी की आराधना और स्तुति का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार का मतलब है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने और पूजा करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। अनंत सूत्र को बांधने से श्री भगवान विष्णु उस मनुष्य की सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करते हैं। यह दिन रोगों और कष्टों से श्री भगवान विष्णु की कृपा से रक्षा होती है और धन धान्य में वृद्धि होती है।

इसलिए, हम सभी को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ अनंत चतुर्दशी की पूजा का आयोजन करना चाहिए।

इसे ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनंत चतुर्दशी का यह दिन हिन्दू धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी काफी पवित्र माना जाता है।

इस साल अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर को है, जो कि एक गुरुवार है। इस दिन भुजाओं पर पहने जाने वाले अनंत में 14 गांठें बांधी जाती हैं। अनंत चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 27 सितंबर को रात 10 बजकर 18 मिनट पर होगी और इसका समापन 28 सितंबर, गुरुवार को शाम 6 बजकर 49 मिनट पर होगा।

अनंत चतुर्दशी पूजा का आयोजन- The Arrangement of Anant Chaturdashi Puja

अनंत चतुर्दशी के दिन, लोग अपने घरों में पूजा आयोजित करते हैं। इसमें भगवान विष्णु की मूर्ति को ध्यान में रखकर मन्त्रों का जाप किया जाता है। इसके बाद, अनंत कड़ा बंधा जाता है, जिसका मतलब होता है कि यह व्रत लंबी आयु और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए है।

कैसे करें अनंत चतुर्दशी की पूजा- How to Perform Anant Chaturdashi Puja

अनंत चतुर्दशी पर श्री हरि के अनंत रूप की पूजा दोपहर के समय की जाती है। लेकिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद पूजा की जगह पर कलश स्थापित करना चाहिए। कलश के ऊपर किसी बर्तन में कुश से बने अनंत रखें। अगर कुश का अनंत नहीं है तो भगवान श्री हरि की प्रतिमा भी रखी जा सकती है। इसके बाद एक पीले रंग के धागे में 14 गांठें लगाकर अनंत सूत्र बनाएं और इसको विष्णु भगवान को अर्पण करें। धूप और दीप के साथ इनकी पूजा करें और अनंत सूत्र को पुरुषों की दायीं बाजू और महिलाओं की बायीं बाजू में बांधें। इसके बाद ब्राह्मणों को खाना खिलाना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी कथा – Anant Chaturdashi Story – 1

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है, सुमंत नामक ब्राह्मण और महर्षि भृगु की पुत्री दीक्षा से एक कन्या का जन्म हुआ। उसका नाम सुशीला रखा गया। उस कन्या की माता दीक्षा का असमय देहावसान हो गया। तब ब्राह्मण सुमंत ने कर्कशा नामक एक लड़की से विवाह किया, जबकि ब्राह्मण सुमंत की पुत्री सुशीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ। कहते हैं कि कर्कशा के क्रोध के कारण और उसके कृत्यों से सुशीला अत्यंत गरीब हो गई। एक बार सुशीला अपने पति के साथ जा रही थी और उसने रास्ते में देखा कि एक नदी पर कुछ महिलाएं व्रत कर रही हैं। सुशीला ने महिलाओं से पूछा कि वे क्या कर रही हैं, और उन्होंने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत और पूजन कर रही हैं बताया। वे महिलाएं अनंत सूत्र की महिमा का गुणगान कर रही थीं। महिलाओं के द्वारा व्रत करने और अनंत सूत्र बांधने को देखकर सुशीला ने भी वही किया। इसके बाद उन्होंने अनंत सुख प्राप्त किया। लेकिन कौण्डिन्य मुनि ने एक दिन गुस्से में आकर अनंत सूत्र को तोड़ दिया। इसके बाद उन्हें फिर से उन्हीं कष्टों से घिर गए। तब सुशीला ने क्षमा-प्रार्थना की, जिसके बाद अनंत देव (भगवान विष्णु) की कृपा पुनः हुई।

अनंत चतुर्दशी कथा – Anant Chaturdashi Story – 2

अनंत चतुर्दशी कथा इस व्रत की कथा का उल्लेख श्रीभविष्य पुराण में इस प्रकार है – एक बार गंगा किनारे धर्मराज युधिष्ठिर ने जरासंध को मारने के लिए राजसूय यज्ञ प्रारंभ किया। इसके लिए रत्नों से सुशोभित यज्ञशाला बनवाई। अनेक मुक्ता लगाने से वह इंद्र के महल जैसी लग रही थी और यज्ञ के लिए अनेक राजाओं को न्योता दिया गया। गांधारी का पुत्र दुर्योधन यज्ञमंडप में घूमते हुए भ्रमवश एक ऐसे सरोवर में गिर पड़ा, जहां उसे लगा कि पानी भरा हुआ है।

इस पर वह वहां अपने कपड़े ऊपर कर चलने लगा। यह नजारा देखकर भीमसेन तथा द्रौपदी के साथ उसकी सखियां हंसने लगीं। द्रौपदी ने परिहास में ही कह दिया कि “अंधों की संतान तो अंधी ही होती है।” द्रौपदी के इस परिहास से दुर्योधन बुरी तरह चिढ़ गया और वह पांडवों से अपने इस अपमान का बदला लेने की तरकीब सोचने लगा। तभी उसके दिमाग में द्यूत-क्रीड़ा अर्थात जुआ खिलाकर उन्हें हराने की युक्ति आई ।

इस कार्य में उसकी मदद की उसके मामा शकुनि ने, जो द्यूत क्रीड़ा में पारंगत था। शकुनि से परामर्श कर दुर्योधन ने एक कुचक्र रचा। उसने पांडवों को जुआ खेलने के लिए बुलाया और उन्हें शकुनि की सहायता से हरा भी दिया। पराजित हुए पांडवों को बारह वर्ष का वनवास भुगतना पड़ा, जहां उन्हें अनेक कष्ट सहकर दिन गुजारने पड़े। दुख से घबराकर युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से इन सारे संकटों को दूर करने का उपाय जानना चाहा, तो उन्होंने उन्हें यह कथा सुनाई- ‘सत्युग में सुमंत नाम का एक वसिष्ठगोत्रीय ब्राह्मण रहता था।

उसने महर्षि भृगु की दीक्षा नामक पुत्री के साथ विवाह किया, जिससे उच्च गुणों वाली सुशीला नाम की लड़की हुई। कुछ काल बाद दीक्षा का देहांत हो गया। सुमंत ने सुशीला का विवाह मुनिराज कौण्डिन्य से कर दिया। जब ऋषि कौण्डिन्य सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे, तो रास्ते में रात हो गई। ऋषि कौण्डिन्य नदी किनारे संध्या-वंदन में व्यस्त हो गए। इसी बीच सुशीला ने देखा कि कुछ स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता का पूजन कर रही थीं।

उनसे बात करने पर उसे ज्ञात हुआ कि यह अनंत व्रत का पूजन किया जा रहा है। उसने इसका विधि-विधान जानकर वहीं अनुष्ठान करके चौदह गांठों वाला अनंत बांह में बंधवा लिया। बांह में डोरा बंधा देखकर ऋषि कौण्डिन्य ने सुशीला से पूरी जानकारी ली। इससे वह क्रोधित हुए और उन्होंने उस बंधे अनंत को तोड़कर आग में फेंक दिया। इस घोर अपमान का दुष्परिणाम यह हुआ कि उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई।

दरिद्रता से परेशान होकर वह दुखी रहने लगे। वह अनंत की तलाश में भटकने लगे। तब भगवान् अनंत ने उनके पश्चात्ताप से प्रभावित होकर तिरस्कार के निवारण के लिए इस अनंत चतुर्दशी का व्रत विधि-विधानानुसार चौदह वर्ष तक निरंतर करने का उपाय बताया। बताए अनुसार ऋषि कौण्डिन्य ने वैसा ही व्रत भक्ति भाव से किया, तो उन्हें सारे कष्टों से मुक्ति मिल गई। इस प्रकार का दृष्टांत सुनकर अपने अनंत दुखों के सागर से छुटकारा पाने के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अनंत चतुर्दशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और उनके सारे दुख, दर्द, विपत्तियां एवं पाप नष्ट हो गए। व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपना खोया हुआ राज-पाट भी पुनः प्राप्त कर लिया।

Rishi Panchami 2023

ऋषि पंचमी 2023 – Rishi Panchami 2023

Rishi Panchami 2023 , हिन्दी पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ऋषि पंचमी (Rishi Panchami 2023) मनाई जाएगी. महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत के रूप में जाना जाता है, इस वर्ष 20 सितंबर 2023 को, जो कि बुधवार को पड़ रहा है. ऋषि पंचमी के दिन, स्त्रियाँ सप्तर्षियों का सम्मान करती हैं और रजस्वला दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उपवास करती हैं और पूजा करती हैं. मान्यता है कि साफ मन से ऋषि पंचमी व्रत (Rishi Panchami Vrat 2023) करने से सभी दुःख-दोष मिट जाते हैं. इसे भारत में कुछ जगहों पर भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।

ऋषि पंचमी ( Hrishi Panchami 2023 ) हिन्दू धर्म में एक शुभ त्योहार माना जाता है. इसे भारतीय ऋषियों के समर्पण के रूप में मनाने का अवसर माना जाता है. ऋषि पंचमी का अवसर मुख्य रूप से सप्तर्षि के रूप में समर्पित सात महान ऋषियों को मनाने के लिए होता है. पंचमी शब्द पांचवें दिन से संबंधित होता है और ऋषियों का प्रतीक माना जाता है. इस तरह से, ‘ऋषि पंचमी’ का पवित्र दिन महान भारतीय ऋषियों की यादों के रूप में मनाया जाता है. यह शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन (पंचमी तिथि) की भद्रपद महीने में मनाया जाता है.

आम तौर पर, यह त्योहार गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है और हरतालिका तीज के दो दिन बाद मनाया जाता है. इस त्योहार का संबंध सप्तर्षि से है, जो सात ऋषियों के रूप में हैं, जिन्होंने पृथ्वी से बुराई को खत्म करने के लिए अपने जीवन का त्याग किया था और मानव जाति के सुधार के लिए काम किया था. ये महान ऋषि सिद्धांतबद्ध और अत्यधिक धार्मिक माने जाते थे और उन्होंने अपने भक्तों को भलाई और मानवता का मार्ग दिखाने का काम किया था. हिन्दू मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार संत द्वारा अपने भक्तों को उनके ज्ञान और बुद्धि से शिक्षित किया करते थे, जिससे कि हर कोई दान, मानवता और ज्ञान के मार्ग का पालन कर सके.

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व-Rishi Panchami 2023 Mahatv

(Rishi Panchami 2023 )इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह व्रत अगर सच्ची आस्था और निष्ठा के साथ किया जाये तो इंसान के जीवन के सारे दुख अवश्य ही समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा अविवाहित युवतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन हल से जोते हुए किसी भी अनाज का सेवन वर्जित माना जाता है। साथ ही ऋषि पंचमी के दिन सच्चे मन से पूजा करने और उपवास रखने पर दोष-बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व है।

ऋषि पंचमी: Rishi Panchami

मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा अनजाने में की गई भूल की क्षमा याचना के लिए हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है. हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है.

इस व्रत में किसी देवी-देवता की पूजा नहीं की जाती, बल्कि इस दिन विशेष रूप से सप्त ऋर्षियों का पूजन किया जाता है. महिलाओं की माहवारी के दौरान अनजाने में हुई धार्मिक गलतियों और उससे मिलने वाले दोषों से रक्षा करने के लिए यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है. समस्त पापों का नाश करने वाला यह व्रत पुण्य फलदायी है.

इस दिन बिना जूती हुई भूमि से उत्पन्न फल आदि का भोजन करना चाहिए. ऋषि पंचमी को भाई पंचमी नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं इस दिन सप्त ऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख, शांति और समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं.

इस दिन सप्त ऋषियों की पांरपरिक पूजा होती है. सात ऋषियों के नाम हैं – ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वमित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदग्नि, और ऋषि वशिष्ठ। केरल के कुछ हिस्सों में इस दिन को विश्वकर्मा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है. इस व्रत में लोग उन प्राचीन ऋषियों के महान कार्यों का सम्मान, कृतज्ञता और स्मरण व्यक्त करते हैं, जिन्होंने समाज के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया था।

ऋषि पंचमी व्रत करने का उद्देश्य- Purpose of Observing Rishi Panchami Vrat

पंचमी केवल सुबह जल्दी उठकर इस व्रत को विधि विधान से पूजा करने से व्यक्ति का कल्याण होता है. इस दिन सप्त ऋषियों की पांरपरिक पूजा करने का विधान होता है. इन सात ऋषियों के नाम – ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वमित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदग्नि, और ऋषि वशिष्ठ हैं। इन् ऋषि यों द्वारा समाज कल्याण के लिए काम किया जाता था। इसलिए उनके सम्मान में यह व्रत और पूजन किया जाता हैं।

ऋषि पंचमी 2023 शुभ मुहूर्त- Rishi Panchami 2023 Shubh Muhurt

ऋषि पंचमी तिथि प्रारंभ: 19 सितंबर 2023, 13:40 बजे पर

ऋषि पंचमी तिथि समाप्त: 20 सितंबर 2023, 14:20 बजे पर

ऋषि पंचमी 2023 पूजन विधि- Rishi Panchami 2023 Poojan Vidhi- Rishi Panchami व्रत विधि

ऋषि पंचमी के अवसर पर, जो भाद्रपद शुक्ल पंचमी को पड़ता है, स्त्री-पुरुष को यह कार्यक्रम अनुसरण करना चाहिए। सबसे पहले, उन्हें गंगा नदी या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

इसके बाद, उन्हें अपने आंगन में एक बेदी तैयार करनी चाहिए, जिस पर रंगोली बनानी चाहिए। इस बेदी पर एक मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करना चाहिए, जिसे वस्त्र से लपेटकर उसके ऊपर एक मिट्टी या तांबे के बर्तन में जौ भरकर रखना चाहिए।

कलश को फिर फूल, गंध, और अक्षत से पूजन करना चाहिए। ऋषि पंचमी के दिन, लोग दही और साठी के चावल खाते हैं, जो बिना नमक के होते हैं। दिन में केवल एक ही बार भोजन किया जाता है।

ऋषि पंचमी के दिन, कलश और पूजन सामग्री को एक ब्राह्मण को दान देना चाहिए। पूजन के बाद, ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही व्रती खुद प्रसाद ले सकते हैं।

इस व्रत का मुख्य उद्देश्य अनजाने में किए गए पापों की शुद्धि करना होता है, इसलिए स्त्री-पुरुष दोनों को इसे मनाना चाहिए। व्रत करने वालों को गंगा नदी या किसी अन्य पवित्र जल में स्नान करना चाहिए और फिर कलश का पूजन करना चाहिए।

इस तरीके से, ऋषि पंचमी का व्रत पूजन विधि के साथ मनाया जा सकता है, और यह व्रत पापों की शुद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है। विशेषज्ञता के साथ धूप दीप प्रज्जवलित करें और सुहागन महिलाएं सिंदूर से टीका लगाएं, मौसमी फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। सप्त ऋषियों की पूजा करते समय हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें

ऋषि पंचमी मंत्र- Rishi Panchami Mantra

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।

जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।

गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।

ऋषि पंचमी 2023 व्रत कथा-Rishi Panchami 2023 Vrat Katha-ऋषि पंचमी की व्रत कथा

सत्ययुग में श्येनजित् नामक एक राजा का राज्य था। उस राजा के राज्य में सुमित्र नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जोकि वेदों का विद्वान था। सुमित्र खेती करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसकी पत्नी का नाम जयश्री सती थी, जो कि साध्वी और पतिव्रता थी। वह खेती के कामों में भी अपने पति का सहयोग किया करती थी।

एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी ने रजस्वला अवस्था में अनजाने में घर का सब काम किया और पति का भी स्पर्श भी कर लिया। दैवयोग से पति-पत्नी का शरीरान्त एक साथ ही हुआ। रजस्वला अवस्था में स्पर्शा का विचार न रखने के कारण स्त्री को कुतिया और पति को बैल की योनि की प्राप्ति हुई। परंतु पहले जन्म में किये गये अनेक धार्मिक कार्य के कारण उनका ज्ञान बना रहा।

संयोग से इस जन्म में भी वह साथ-साथ अपने ही घर में अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ रह रहे थे। ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था। वह भी पिता की की तरह वेदों में विद्वान था। पितृपक्ष में उसने अपने माता-पिता का श्राद्ध करने के उद्देश्य से पत्नी से खीर बनवायी और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया गया।

उधर एक सांप ने आकर खीर को जहरीला कर दिया। कुतिया बनी ब्राह्मणी ने यह सब देख  लिया। उसने सोचा कि यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो जहर के प्रभाव से मर जायेंगे और सुमति को इसका पाप लगेगा। ऐसा सोच कर उसने सुमति की पत्नी के सामने ही जाकर खीर को छू दिया। इस पर सुमति की पत्नी को बहुत गुस्सा आया और उसने चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर उसकी पिटाई कर दी।

उस दिन सुमति की पत्नी ने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया। रात में कुतिया ने बैल को सारी घटना बताई। बैल ने कहा कि आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया गया। जबकि मुझसे दिनभर काम लिया जाता है।  उसने कहा की सुमति ने हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध किया था और हमें ही भूखा रखा हुआ है।

इस तरह हम दोनों के भूखे रह जाने से तो इसका श्राद्ध करना ही व्यर्थ हो जाएगा। सुमति  दरवाजे पर लेटा कुतिया और बैल की बातचीत सुन रहा था। वह पशुओं की बोली अच्छी तरह समझता था। उसे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उसके माता-पिता इन निकृष्ट योनियों में पड़े हैं।

वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के आश्रम में गया उसने उनसे अपने माता-पिता के पशुयोनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने ध्यान और योगबल से सारा हाल जान लिया।

सुमति से कहा कि तुम पति-पत्नी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत करना होगा और उस दिन बैल के जोतने से पैदा हुआ कोई भी अन्न नहीं खाना होगा। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता-पिता की मुक्ति प्राप्त हो जायेगी।

यह सुनकर मातृ-पितृ भक्त सुमति द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत किया गया जिसके प्रभाव से उसके माता-पिता को पशुयोनि से मुक्ति प्राप्त हो गई।

ऋषि पूजन 2023 की आरती-Rishi Panchami 2023 Aarti

जय जय ऋषिराजा, प्रभु जय जय ऋषिराजा । देव समाजाहृत मुनि, कृत सुरगया काजा॥ टेक॥

जय दध्यगाथर्वण, भरद्व गौतम।

जय श्रृंगी, पराशर अगस्त्य मुनि सत्तम॥1॥

वशिष्ठ, विश्वामित्र, गिर, अत्री जय जय कश्यप |

भृगुप्रभृति जय, जय कृप तप संचय ॥2॥

वेद मन्त्र दृष्टावन, सबका भला किया।

सब जनता को तुमने वैदिक ज्ञान दिया ॥3॥

सब ब्राह्मण जनता के मूल पुरुष स्वामी।

ऋषि संतति, हमको ज्ञानी हों सत्पथगामी॥4॥

हम में प्रभु आस्तिकता आप शीघ्र भर दो।

शिक्षित सारे नर हों, यह हमको वर दो॥5॥

ऋषि पंचमी वेद ऋषिजन की आरती जो गावे।

वह नर मुनिजन, कृपया सुख सम्पति पावै॥6॥

ऋषि पंचमी पर किए जाने वाले अनुष्ठानRituals Performed on Rishi Panchami

ऋषि पंचमी के दिन सभी आदतों और आचरणों को नियमित और शुद्ध मन से पालना चाहिए। यह दिन व्यक्ति के शरीर और आत्मा के शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

श्रद्धालु सुबह उठते हैं और उनके पहले ही किसी पवित्र नदी में स्नान का कार्यक्रम होता है। इस दिन, लोग कठोर ऋषि पंचमी व्रत आचरण करते हैं।

इस व्रत का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को पूरी तरह से शुद्ध करना होता है। व्यक्ति को दांतों की सफाई के साथ जड़ी बूटियों का उपयोग करके स्नान करना चाहिए।

इन जड़ी बूटियों का प्रमुख उद्देश्य शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए होता है, और आत्मा की शुद्धि के लिए मक्खन, तुलसी, दूध, और दही का मिश्रण पिया जाता है।

इस दिन, श्रद्धालु सात महान संतों के सप्तर्षि की पूजा करते हैं, जो सभी आचरणों के अंतिम पहलू का प्रतीक होते हैं।

इन सभी सात ऋषियों की उपस्थिति को आमंत्रित करने के लिए प्रार्थनाएँ और विभिन्न पवित्र चीजों जैसे फूल और आहार का उपयोग किया जाता है।

Rishi Panchami Vrat 2022 Date: 

छठे माह भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। इसे गुरु पंचमी भी कहते हैं। यह व्रत हमारे शास्त्रों में सप्तर्षि के रूप में सम्मानित सात महान ऋषियों को समर्पित है। इस साल 2022 में 1 सितंबर, गुरुवार को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाएगा।

Vinayak Chaturthi 2024

विनायक चतुर्थी 2024 ( Vinayak Chaturthi 2024): आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व और विधि

गणेश चतुर्थी 2024: कब है और कैसे मनाएं?

तारीख और मुहूर्त:

  • गणेश चतुर्थी 2024: 7 सितंबर, 2024 (शनिवार) को मनाई जाएगी।
  • स्थापना का शुभ मुहूर्त: 7 सितंबर को दोपहर 11:03 बजे से दोपहर 1:34 बजे तक है।
  • विसर्जन: 17 सितंबर, 2024 (मंगलवार) को अनंत चतुर्दशी को किया जाएगा।

कैसे मनाएं:

  • मूर्ति स्थापना: शुभ मुहूर्त में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है।
  • पूजा: प्रतिदिन गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है।
  • उपवास: कई लोग गणेश चतुर्थी के दिन उपवास रखते हैं।
  • भजन-कीर्तन: गणेश जी के भजन-कीर्तन किए जाते हैं।
  • विसर्जन: अंतिम दिन गणेश जी की विदाई की जाती है और उनकी मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

गणेश उत्सव 2024: शुभ मुहूर्त, भद्रा काल और विसर्जन

  • शुभ मुहूर्त: उपरोक्त बताए अनुसार, स्थापना और विसर्जन के लिए शुभ मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं।
  • भद्रा काल: गणेश चतुर्थी के दिन भद्रा काल भी है, इसलिए मुहूर्त के अनुसार ही कार्य करना चाहिए।
  • विसर्जन: विसर्जन के लिए भी शुभ मुहूर्त देखना आवश्यक है।

गणपति बप्पा मोरया! गणेश चतुर्थी 2024 की पूरी जानकारी

मंत्र: गणेश जी के विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है।

गणेश चतुर्थी का महत्व: गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं।

पूजा विधि: गणेश जी की पूजा विधि बहुत ही सरल है। आप घर पर ही आसानी से पूजा कर सकते हैं।

पूजा सामग्री: पूजा के लिए आप दूर्वा, मोदक, लड्डू, फल आदि का प्रयोग कर सकते हैं।

गणेश चतुर्थी(गणेश चौथ) क्या है? What is Ganesh Chaturthi?

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मदिन को याद करता है। हिन्दू धर्म में इसे उनके द्वारका द्वारका गणराज की पूजा के लिए सबसे शक्तिशाली दिन माना जाता है, जिन्होंने बाधाओं को हटाने की उनकी क्षमता के लिए पूजा किया जाता है। इस दिन, भगवान की खूबसुरत हस्तकृत मूर्तियां घरों में और सार्वजनिक स्थलों में स्थापित की जाती हैं। प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ताकि उपासक देवता की शक्ति को मूर्ति में आमंत्रित कर सकें, इसके बाद “षोडशोपचार पूजा” के रूप में जाने जाने वाले 16 कदमों का अनुसरण किया जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान, मूर्ति को मिठाई, नारियल, और फूलों के साथ विभिन्न आहार दिए जाते हैं। इस अनुष्ठान को भगवान गणेश का जन्म हुआ था माना जाता है, जो कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार, भारत के विभिन्न स्थानों पर निर्भर करता है, लगभग सुबह 11 बजे से लेकर 1.30 बजे तक।

गणेश चतुर्थी (गणेश चौथ) के कुछ समयों पर चांद को न देखें? Not looking at the moon during certain times on Ganesh Chaturthi?

परंपरा के अनुसार महत्वपूर्ण है कि गणेश चतुर्थी के कुछ समयों पर चांद को न देखें। यदि कोई व्यक्ति चांद को देखता है, तो हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार उन्हें चोरी का आरोप लग जाता है और समाज से अपमानित किया जाता है, किसी विशेष मंत्र का जाप न करें। प्रत्यक्ष रूप से यह हुआ कि भगवान कृष्णा को एक मूल्यवान मणि की चोरी का आरोप लग गया था। संगी नारद ने कहा कि कृष्णा ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चांद देखा होगा (जिस दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाती है) और इसके कारण उस पर शाप आया था। इसके बाद से, जो भी लोग चांद देखते हैं, उन्हें इसी तरह का शाप लगता है।

भगवान गणेश की मूर्तियां रोज़ पूजी जाती हैं, शाम को “आरती” के साथ। सबसे बड़ी गणेश मूर्तियां, जो जनता के लिए प्रदर्शित की जाती हैं, उन्हें अनंत चतुर्दशी को पानी में ले जाते हैं, जिसमें पारंपरिक ढोलक बजाने और पटाखों की धार प्रक्रिया के साथ बड़े रोड प्रदर्शनों का हिस्सा होता है। वैसे तो बहुत से लोग जो अपने घरों में मूर्ति रखते हैं, वे इससे कहीं पहले ही विसर्जन कर लेते हैं। हालांकि, ऐसे विसर्जन केवल कुछ दिनों के बाद होते हैं – गणेश चतुर्थी के बाद आधा, तीन, पाँच और सात दिन।

अनंत चतुर्दशी क्या है? What is Anant Chaturdashi?

आपको शायद यह सोचने पर आया होगा कि गणेशी मूर्तियों का विसर्जन इस दिन क्यों समाप्त होता है। इसमें क्या विशेष है?

संस्कृत में, ‘अनंत’ शब्द शाश्वत या अनंत ऊर्जा, या अमरत्व का सूचक होता है। यह दिन वास्तव में भगवान अनंत, भगवान विष्णु के एक अवतार (जीवन को संरक्षक और संभालक माने जाने वाले, जिसे सर्वोच्च अस्तित्व भी कहा जाता है) की पूजा के लिए होता है। ‘चतुर्दशी’ का अर्थ होता है “चौदहवां”। इस मामले में, यह अवसर हिन्दू पंचांग के भाद्रपद मास के चंद्रमा के प्रकाशमान हाफ-Shukla Paksha के 14वें दिन को आता है।

गणेश चतुर्थी 2024 : पूजा विधि कैसे करें गणेश पूजा (Ganesh Chaturthi 2024 Puja vidhi)

पूजा की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं. इस पर श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें. गणेश जी को गंगाजल, सिंदूर, चावल, चंदन, गुलाब, मौली, दूर्वा, जनेऊ, मोदक, फल, माला और फूल चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें और आरती करें|

Ganesh Chatuthi Wishes :

1. वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।

निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा ॥

2. द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं।

राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥

3. नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।

गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

4. गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

5. एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।

विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

6. रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।

भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥

7. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

8. केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।

सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥

9. गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।

अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥

10. आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्दम् ।

विध्नान्तकं विध्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥

मोदक बनाने की रेसिपी (Modak Recipe)

1 कप नारियल, कद्दूकस किया हुआ

1 कप गुड़

एक चुटकी जायफल

एक चुटकी केसर

एक कप चावल का आटा

टी स्पून घी

मोदक बनाने का तरीका– The recipe for making Modak

1. गैस पर कड़ाही या पैन चढ़ाएं.

2. उसमें नारियल डालकर भूनें अब गुड़ भी मिला लें और चलाते रहें.

3. अब इसमें जायफल और केसर भी डालें.

4. अब एक बर्तन में पानी के साथ घी डालकर उबालें, फिर उसमें आटा मिला लें.

5. इसे ढक कर पकाएं.

6. अब इस आटे को गूंथ लें.

7. इससे लोई निकाल कर स्टफिंग भरें और किनारों को दबा कर मोदक का आकार दें.

 

गणेश चतुर्थी व्रत कथा ( Ganesh Chaturthi Vrat Katha)-1 

एक समय की बात है, भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां पार्वती ने शिवजी से समय बिताने के लिए चौपड़ खेलने की बात की। शिवजी चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए। परंतु खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा?

इस प्रश्न पर विचार करते हुए, भोलेनाथ ने कुछ तिनके इकट्ठा करके उसका पुतला बनाया और उस पुतले में प्राण प्रतिष्ठा की। फिर उन्होंने पुतले से कहा कि हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिए तुम बताओ कि हम में से कौन हारा और कौन जीता।

इसके बाद चौपड़ का खेल शुरू हो गया। तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर पुतले से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो पुतले ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर पार्वती जी क्रोधित हो गईं और उन्होंने क्रोध में आकर पुतले को लंगड़ा और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दिया। पुतले ने माता से माफी मांगी और कहा कि मुझसे अज्ञानता के कारण ऐसा हुआ, मैंने किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। पुतले की क्षमा मांगने पर माता ने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहने पर तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर माता पार्वती, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

एक वर्ष के बाद उसी स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि जानने पर पुतले ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने पुतले से मनचाहे फल मांगने के लिए कहा। पुतले ने कहा कि हे विनायक, मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देखकर प्रसन्न हों।

पुतले को यह वरदान दिया गया और श्री गणेश अद्यापि अनुपस्थित हैं। पुतले के बाद कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गईं। देवी की रुष्ठि होने पर भगवान शंकर ने भी पुतले द्वारा बताए गए रूप में श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता की मनोकामना पूरी हुई और उनकी नाराजगी समाप्त हुई।

यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। इसको सुनकर पार्वती जी को भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दूर्वा, पुष्प, और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से मिलने आएंगे। इस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामनाएं पूरी करने वाला व्रत माना जाता है।

गणेश चतुर्थी कथा (Ganesh Chaurthi Katha ) -2 

शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपनी मैल से एक बालक को जन्म दिया और उसे अपने द्वारपाल के रूप में स्थापित किया। जब शिवजी वहां प्रवेश करना चाहे, तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगण ने बालक के साथ भयंकर युद्ध किया, लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। तत्पश्चात्, भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माता पार्वती रुष्ट हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने का निश्चय लिया। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी ने उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर लाए। मृत्युंजय रुद्र ने उस गज के सिर को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने आनंद से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाधिकारी घोषित करके उसे पूज्य बनाया। भगवान शंकर ने बालक से कहा, “गिरिजानंदन! विघ्नों का नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सभी का पूज्य बनकर मेरे सभी गणों का अध्यक्ष बन जा। गणेश्वर! तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदय के समय उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्न नाश हो जाएंगे और उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के बाद व्रती चंद्रमा को अर्घ्य दें और ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाएं। उसके बाद स्वयं भी मीठा भोजन करें। वर्षभर तक श्री गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा ( Ganesh Chaurthi Vrat Katha ) -3

कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा?

इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाया, उस पुतले की प्राणप्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिए तुम बताओ कि हम में से कौन हारा और कौन जीता।

यह कहने के बाद चौपड़ का खेल शुरू हो गया। खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफी मांगी और कहा कि मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैंने किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहने अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर माता भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक से मनोकामना पूरी करने के लिए कहा। बालक ने कहा कि हाँ विनायक, मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देखकर प्रसन्न हों।

बालक को यह वरदान दिया गया और श्री गणेश अंतर्धान हो गए। बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और अपनी कथा भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गईं। देवी की रुष्ठि होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताए अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिन तक किया। इसके प्रभाव से माता की मन से भगवान भोलेनाथ के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हुई।

यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। इसे सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दूर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी की पूजा की। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से मिलने आएं। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है।

कौन-कौन से राज्य गणेश चतुर्थी मनाते हैं? Which states celebrate Ganesh Chaturthi?

गणेश चतुर्थी/चविथी को महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और कर्नाटक में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का जश्न मनाने वाले राज्यों में अंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, उड़ीसा, दिल्ली और पंजाब भी शामिल हैं।

विनायका चतुर्थी के लिए कौन-कौन से रितुअल्स मनाए जाते हैं? What rituals are observed for Vinayaka Chaturthi?

यह त्योहार भारत भर में एक जैसा है, लेकिन हर क्षेत्र में रितुअल्स और परंपराओं में थोड़ी सी भिन्नता होती है। यह जश्न विभिन्न स्थानों पर 7 से 10 दिनों तक मनाया जाता है। कुछ सामान्य दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

गणपति मूर्ति का स्थापना: गणेश चतुर्थी के पहले दिन, भगवान गणेश की मूर्ति को घर या किसी सार्वजनिक स्थान पर पूजा के साथ स्थापित किया जाता है।

चांद की पूजा नहीं करना: त्योहार के पहले दिन, लोग चांद की ओर नहीं देखते हैं क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।

पूजा: मूर्ति को धोना: मंत्रों के जप के साथ पूजा करना और फूल और मिठाई की ओफरिंग करना; और आरती करना, अर्थात् मूर्ति को एक प्लेट में जले हुए मिट्टी/लोहे की दीपक, कुमकुम और फूलों के साथ घुमाना। गणेश मंदिरों और सार्वजनिक स्थापनाओं में प्रार्थना सभी दिन शाम को और कुछ स्थानों पर सुबह को भी की जाती है।

विशेष प्रदर्शन: कुछ सार्वजनिक स्थापनाओं में भगवान गणेश के साथ नृत्य, संगीत और स्किट्स के साथ प्रदर्शन भी हो सकता है।

मोदक बनाना और खाना: मोदक को भगवान गणेश की पसंद कहा जाता है। इसलिए, इन मिठासें बनाई और त्योहार के दौरान प्रसाद के रूप में बाँटी जाती हैं। इस समय अन्य खाद्य आइटम जैसे कि लड्डू, बर्फी, पेढ़ा और सुंदल भी बाँटे जाते हैं।

विसर्जन-Visarjan : यह मूर्ति को जल सरोवर में डूबाने का कार्यक्रम होता है और त्योहार के आखिरी दिन – सातवें से ग्यारहवें दिन के बीच – किया जाता है। इसके साथ ही भगवान के साथ एक प्रक्रिया के साथ लोग भजन और मंत्रों का पाठ करते हैं और मांगते हैं कि वह अब तक की गलतियों के लिए क्षमा करें और उन्हें सही मार्ग पर रहने में मदद करें। गणेश को घर/स्थान की सैर के लिए धन्यवाद दिया जाता है, लोगों के मार्ग से रुकावट हटाने के लिए, और वह शुभता प्रदान करने के लिए।

विदाई प्रक्रिया

विदाई प्रक्रिया, या गणेश विसर्जन, त्योहार का ग्रैंड समापन होता है। इसमें भगवान की स्थापित मूर्तियाँ पानी में डूबाई जाती हैं। डूबाने का काम सबसे निकट सरोवर, झील, नदी, या समुंदर में किया जा सकता है। जिन लोगों के पास बड़े पानी का स्रोत नहीं होता है, वे अपने घर में मूर्ति को एक छोटे बर्तन या पानी की बैरल में डूबाने का प्रतीक मूर्ति में कर सकते हैं।

मूर्ति स्थापना स्थल से लेकर – घर या सार्वजनिक पंडाल – मूर्ति को बड़े जुलूस के साथ पानी के बड़े स्रोत में ले जाया जाता है, जिसमें भक्त भजन या गीत गाते हैं। मूर्ति के आकार के आधार पर, इसे परिवार के मुखिया या क्षेत्र के प्रतीकात्मक मुखिया की कंधों पर लिया जा सकता है, या एक लकड़ी के कैरियर पर, या एक वाहन में।

इन सभी प्रक्रियाओं के साथ, गणेश बापा मोरिया, भजनों, नृत्य और प्रसाद और फूलों के बाँटने के ध्वनियों के साथ साथ होते हैं।

त्योहार के आखिरी दिन पर मूर्तियों को पानी में डूबाने का क्रियाकलाप क्यों किया जाता है?

गणेश विसर्जन का संकेत त्योहार के समापन को और यह भी दिखाता है कि पृथ्वी पर सब कुछ आखिरकार प्राकृतिक तत्वों में एक से या एक से अधिक के साथ मिल जाता है। इसका यह भी संकेत है कि भगवान विनायक का जन्म चक्र – वह मिट्टी से पैदा हुआ था और उसी रूप में प्राकृतिक तत्वों में लौट जाता है। शाब्दिक शब्दों में, वह अपने भव्य आवास की ओर जा रहे हैं, उनके भक्तों के साथ 7 से 10 दिनों के लिए रहकर।

2024 में गणेश चतुर्थी छुट्टियों का बिताने के लिए स्थान

निम्नलिखित हैं 2024 में गणेश चतुर्थी के छुट्टियों के दौरान देश के पांच प्रमुख गंगा किनारे स्थल:

मुंबई: मुंबई, महाराष्ट्र की राजधानी, भगवान विनायक चतुर्थी का जश्न बड़े उत्साह और उत्साह के साथ मनाता है। हर साल 6000 से अधिक मूर्तियाँ आयोजित की जाती हैं। यह त्योहार राष्ट्रीय रूप से मनाया जाता है, लेकिन सबसे अधिक भव्यता मुंबई शहर में देखी जाती है। पॉपुलर गणेश पंडाल्स में लालबौगचा राजा और खेतवड़ी गणराज शामिल हैं।

पुणे: पुणे, महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी, देश में विनायक चतुर्थी मनाने का सबसे बड़ा जश्न होता है। यह त्योहार पुणे के सामाजिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन में सबसे आनंदमय और रंगीन घटना होती है। पुणे के पांच प्रमुख मूर्तियाँ कस्बा गणपति, तुलसी बाग, केसरीवाड़ा गणपति, गुरुजी तालिम और जोगेश्वरी गणपति से बनती हैं।

हैदराबाद: पुणे और मुंबई की तरह, आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद गणेश चतुर्थी के शाही जश्न को देखने के लिए पॉपुलर स्थलों में से एक है। खरीताबाद में राष्ट्र में सबसे बड़ी गणेश मूर्ति होती है। खरीताबाद के गणेश उत्सव समिति ने सबसे बड़ी गणेश मूर्ति स्थापित करेगी।

गोवा: गणेश के त्योहार का गोवा राज्य के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान है, भारत के सबसे छोटे राज्य में। यह मस्ती और मजाक का आयोजन है। इसके अलावा, यह परिवारों और दोस्तों के बीच पुनर्मिलन का भी अवसर प्रदान करता है। विभिन्न व्यापार संघ गणपति की मूर्तियाँ राज्य भर में स्थापित करते हैं।

गणपतिपुले: गणपतिपुले, एक छोटा शहर, समुंदर की कुछ आकर्षक दृश्यों की पेशकश करने वाले कुछ दृष्टिकोण और समुंदर के पर्याप्त दृष्टिकोणों के साथ आता है। गणपतिपुले का स्वयंभू गणपति मंदिर अपनी विशेष गणपति की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर ने त्योहार का केंद्र हमेशा बनाया है।

गणेश चतुर्थी का महत्व और महत्वपूर्ण स्थलों पर उसका उत्सव आपके पास हो सकता है, लेकिन यहाँ दिए गए प्रमुख स्थल हैं जो इसे विशेष रूप से मनाते हैं।

Vinayak Ganesh Chaturthi 2023

इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 18 सितंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 9 मिनट पर हो रही है। इसका समापन 19 सितंबर 2023 को दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर होगा। उदया तिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को मनाई जाएगी।

2023 में, गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर को है।

2024 में, गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को है। अनंत चतुर्दशी 16 सितंबर को है।

2025 में, गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को है। अनंत चतुर्दशी 6 सितंबर को है।

शुक्ल पक्ष विनायक चतुर्थी-शनिवार, 29 अक्टूबर 2022

गणेश चतुर्थी (गणेश चौथ) 2023 की तिथि कब है? When is Ganesh Chaturthi in 2023?

2023 में, गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर को है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 सितंबर, सोमवार की दोपहर 12:39 से 19 सितंबर, मंगलवार की दोपहर 01:43 तक रहेगी। चूंकि चतुर्थी तिथि 2 दिन रहेगी, इसलिए गणेश चतुर्थी पर्व को लेकर असमंजस की स्थिति बन रही है। कुछ विद्वानों का मानना है कि चतुर्थी तिथि को चंद्रोदय 18 सितंबर को होगा, इसलिए इस दिन गणेश उत्सव की शुरूआत होगी, वहीं कुछ का मानना है कि गणेश उत्सव की शुरूआत 19 सितंबर से होगी।

गणेश चतुर्थी (गणेश चौथ) 2023 शुभ योग-Ganesh Chaturthi 2023 Auspicious Yogas

पंचांग के अनुसार, 19 सितंबर, मंगलवार को स्वाति नक्षत्र दोपहर 01:48 तक रहेगा, इसके बाद विशाखा नक्षत्र रात अंत तक रहेगा। मंगलवार को पहले स्वाति नक्षत्र होने से ध्वजा और इसके बाद विशाखा नक्षत्र होने से श्रीवत्स नाम के 2 शुभ योग बनेंगे। इसके अलावा इस दिन वैधृति योग भी रहेगा, जो स्थिर कामों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन ग्रहों की स्थिति भी शुभ फल देने वाली रहेगी।

2023 में गणेश चतुर्थी कब है?

2023 में गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को शुरू होगी और 10 दिन तक चलेगी।

उत्तर भारत में गणेश विसर्जन नही करना चाहिए ?

उत्तर भारत में गणेश विसर्जन नही करना चाहिए क्योंकि गणेश जी केवल एक सप्ताह के लिए उत्तर से दक्षिण भारत, अपने भाई कार्तिकेय जी से मिलने गए थे।
इसीलिए दक्षिण भारत में ये पर्व मनाया जाता है तथा उन्हें फिर अगले साल आने का निमंत्रण दिया जाता है।
उत्तर भारत में गणेश जी सदा विराजमान रहते है।
जरा सोचिए, अगर आप गणेश जी विसर्जित करके कहेंगे की अगले बरस तू जल्दी आ, तो फिर दीपावली पर किसका पूजन करेंगे। कुछ त्योहारों का भौगोलिक महत्व होता है अतः अंधविश्वास की भेड़ चाल न अपनाएं

क्या गणेश चतुर्थी एक राष्ट्रीय अवकाश है?

नहीं, गणेश चतुर्थी एक राष्ट्रीय या सार्वजनिक अवकाश नहीं है। यह एक क्षेत्रीय अवकाश है क्योंकि यह त्योहार देश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है, जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और गुजरात।

क्या गणेश चतुर्थी बैंक अवकाश है?

हां, गणेश चतुर्थी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार सात राज्यों में एक बैंक अवकाश है, और वो राज्य हैं: कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, तेलंगाना, उड़ीसा, और तमिलनाडु।

क्या गणेश चतुर्थी 10 दिनों या 11 दिनों तक मनाया जाता है?

गणेश चतुर्थी या गणेश उत्सव, गणेश विसर्जन सहित, 10 दिनों के लिए मनाया जाता है।

2023 में गणेश विसर्जन कब है?

2023 में गणेश विसर्जन 28 सितंबर (बृहस्पतिवार) को है।

गणेश चतुर्थी किसने शुरू की थी?

छत्रपति शिवाजी महाराज ने संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए गणेश चतुर्थी का आयोजन किया था, जैसे कि ऐतिहासिक सबूत है।

गणेश चतुर्थी का वास्तविक कारण क्या है?

भगवान गणेश की पूजा या गणेश चतुर्थी का जश्न जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक होता है। मूर्ति को पानी में डुबोकर, घर की सभी बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं, ऐसा माना जाता है।

गणेश चतुर्थी के उद्देश्य क्या हैं?

गणेश चतुर्थी को मनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य है हमारी प्रार्थनाओं के लिए भगवान गणेश की कृतज्ञता व्यक्त करना और हमारे जीवन के लिए उनका आशीर्वाद मांगना है, ताकि हम समृद्धि के साथ आगे बढ़ सकें।

गणेश के पसंदीदा फूल क्या हैं?

भगवान गणेश के पसंदीदा फूल हैं एक, लाल फूलों वाला हिबिस्कस (Hibiscus Rosa-Sinensis) और इसे गणेश चतुर्थी के सभी दिनों के लिए इस फूल का उपयोग करने की सिफारिश की जाती है।

भगवान गणेश के पसंदीदा खाना क्या है?

भगवान गणेश का पसंदीदा खाना है मोदक, जिसमें चावल या गेहूं का आटा होता है और इसमें नारियल और गुड़ का मिश्रण भरकर बनाई जाती है।

Vishwakarma Pooja -2023

विश्वकर्मा पूजा 2023 ( Vishwakarma Pooja -2023)

भगवान विश्वकर्मा को प्राचीन काल का प्रथम इंजीनियर माना जाता है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े उपकरण, औजारों की पूजा करने से काम में कुशलता आती है, और शिल्पकला का विकास होता है। कारोबार में वृद्धि होती है, साथ ही धन-धान्य और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व (Vishwakarma Puja Significance): विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है?

विश्वकर्मा पूजा प्रथम वास्तुकार, शिल्पकार, और इंजीनियर को समर्पित है। इस दिन लोग अपने कारखानों में लगे उपकरणों और मशीनों की पूजा करते हैं, और इस दिन वाहनों को भी पूजा का अधिकार होता है। मान्यता है कि जो लोग विश्वकर्मा पूजा को विधिवत तरीके से मनाते हैं, उनके वाहन और मशीनें कभी खराब नहीं होतीं।

भगवान विश्वकर्मा कौन हैं? (Who is Lord Vishwakarma?):

हिंदू धर्म में विश्वकर्मा पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। पूरे देश में भगवान विश्वकर्मा की जयंती को धूमधाम से मनाया जाता है, और इस अवसर पर घरों में मांगलिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र विश्वकर्मा भगवान के जन्मदिन के दिन इस जयंती को मनाई जाती है।

विश्वकर्मा पुराण के अनुसार नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी को और फिर विश्वकर्मा जी को रचा। ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन पर ही विश्वकर्मा जी ने पुष्पक विमान, इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारिका और कलयुग में जगन्नाथ पुरी का निर्माण किया। इसके साथ ही प्राचीन शास्त्रों में वास्तु शास्त्र, यंत्र निर्माण विद्या, विमान विद्या, आदि के बारे में भगवान विश्वकर्मा ने ज्ञान प्रदान किया।

विश्वकर्मा पूजा 2023 का मुहूर्त (Vishwakarma Jayanti 2023 Muhurat): विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है?

विश्वकर्मा पूजा के दिन, 17 सितंबर 2023 को, सुबह 07:50 मिनट से लेकर दोपहर 12:26 मिनट तक शुभ मुहूर्त है। दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से दोपहर 03 बजकर 30 मिनट तक भी विश्वकर्मा पूजा की जा सकती है।

विश्वकर्मा पूजा 2023 तिथि व शुभ मुहूर्त VISHWAKARMA PUJA SHUBH MUHURAT 2023, विश्वकर्मा पूजा कब है?

  1. साल 2023 में विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर रविवार को की जायेगी।
  2. कन्या संक्रांति का क्षण होगा – 17 सितम्बर दोपहर 01:43 मिनट पर |
  3. कन्या संक्रांति का पुण्य काल होगा – 17 सितम्बर दोपहर 01:43 से सायंकाल 06:24 मिनट पर|| 4. कन्या संक्रांति महापुण्य काल समय होगा – 17 सितम्बर दोपहर 01:43 से सायंकाल 03:46 मिनट तक।
  4. पूजा का शुभ मुहूर्त – 17 सितंबर प्रातःकाल 07:50 मिनट से दोपहर 12:26 मिनट तक

विश्वकर्मा पूजा विधि (Vishwakarma Puja Ritual):

सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।

फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें।

पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप, और रक्षासूत्र शामिल करें।

पूजा में घर में रखे लोहे के सामान और मशीनों को भी शामिल करें।

पूजा करने की चीजों पर हल्दी और चावल लगाएं।

इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगाकर रक्षासूत्र बांधें।

फिर पूजा शुरू करें और मंत्रों का उच्चारण करते रहें।

पूजा के बाद प्रसाद को लोगों में बांटें।

विश्वकर्मा पूजा 2023 मंत्र (Vishwakarma Puja 2023 Mantras):

‘ॐ आधार शक्तपे नमः’ और ‘ॐ कूमयि नमः’

‘ॐ अनन्तम नमः’

‘पृथिव्यै नमः’

रुद्राक्ष की माला से जप करना अच्छा होता है।

विश्वकर्मा पूजा 2023 आरती (Vishwakarma Puja 2023 Aarti) 

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।

शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुम्हारी टेर की।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥

Hartalika Teej 2023

हरतालिका तीज 2023: Hartalika Teej 2023

हरतालिका तीज 2023: हरतालिका तीज के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं. माना जाता है कि कुंवारी कन्याएं मन में सुयोग्य वर पाने की कामना करते हुए इस दिन शिवजी को पूजती हैं.

हरतालिका तीज 2023: Hartalika Teej 2023

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2023) का व्रत रखा जाता है. हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा भी कहते हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं. माना जाता है कि कुंवारी कन्याएं मन में सुयोग्य वर पाने की कामना करते हुए इस दिन शिवजी को पूजती हैं. आइए जानते हैं हरतालिका तीज का महत्व, तिथि, पूजन विधि और खास भोग.

हरतालिका तीज की तिथि और पूजा विधिः (Hartalika Teej 2023 Tithi and Puja Vidhi) :

भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत, 17 सितंबर को हो रही है, इस दिन सुबह 11 बजकर 08 मिनट से तीज की तिथि की शुरुआत हो रही है. वहीं 18 सितंबर की दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक तीज की तिथि रहेगी. उदया तिथि की वजह से हरतालिका तीज का व्रत 18 सितंबर 2023, सोमवार को रखा जाएगा.| सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और स्वच्छ कपड़े पहन लें. हरतालिका तीज के दिन शुभ मुहूर्त में हाथ में जल लेकर व्रत करने का संकल्प लें. व्रत का संकल्प लेने के बाद माता पार्वती, भगवान शिव और गौरी पुत्र गणेश जी की पूजा करें. पूजा के लिए चौकी लगाकर भगवान की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करें. मां पार्वती को अक्षत, चुनरी, फूल, फल, धूप और भगवान शिव को सफेद चंदन, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा आदि चीजें अर्पित करें.

हरतालिका तीज का महत्व और भोगः (Hartalika Teej Importance and Bhog):

हरतालिका तीज के दिन महिलाएं पूजा के पहले सोलह श्रृंगार करती हैं और लाल रंग के वस्त्र पहती हैं. इसके बाद चौकी बिछा कर मंडप तैयार कर मां पार्वती, शिवजी और गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमा बना कर. धूप, दीप, सिंदूर, फल, फूल, नारियल और श्रृंगार का सामान चढ़ा कर विधि विधान से पूजा कर कथा सुनें और फिर आरती करें. हरतालिका तीज व्रत 2023 शुभ मुहूर्त (Hartalika Teej 2023 Shubh Muhurat) हरतालिका तीज पर पूजा के तीन शुभ मुहूर्त हैं. इस दिन पहला पूजा मुहूर्त सुबह 6ः07 से 8ः34 तक है. दूसरा मुहूर्त सुबह 9ः11 से 10ः43 तक रहेगा. पूजा का तीसका मुहूर्त दोपहर को 3ः19 से शाम को 7ः51 तक हैं. आप इन तीनों में से किसी भी मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं.

हरतालिका तीज व्रत का महत्व (Hartalika Teej Significance) :

हरतालिका तीज के व्रत का महत्व माता पार्वती से जुड़ा हुआ है. हरतालिका शब्द हरत और आलिका से बना है. जिसमें हरत का अर्थ हरण और आलिका का अर्थ सहेली से हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन पार्वती जी की सहेली उनका हरण कर जंगल में ले गई थी ताकि उनके पिता पार्वती की इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से विवाह न कर दें. माता पार्वती ने जंगल में ही निर्जला उपवास किया था. उन्होंने शिव की भक्ति में लीन होकर उन्हें पति के रूप में मांगा. तभी मात पार्वती को शिव जी पति के रूप में प्राप्त हुए.

व्रत कथा – Vrat Katha

एक कथा के अनुसार माँ पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर ही काटे और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा ही ग्रहण कर जीवन व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुःखी थे। इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर माँ पार्वती के पिता के पास पहुँचे जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब बेटी पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वे बहुत दु:खी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।

फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करतीं हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बनाए रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है।

Pradosh Vrat

प्रदोष व्रत 2023 हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है इस बार सितंबर में प्रदोष व्रत 11 सितंबर को है।

Pradosh Vrat : प्रदोष व्रत 2023 हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसका उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना है। इस व्रत का सम्पूर्ण दिन देवों के देव भगवान शंकर को ही समर्पित किया जाता है। चलिए जानते हैं कि प्रदोष व्रत 2023 में प्रत्येक माह में प्रदोष व्रत की शुभ तिथियाँ क्या हैं और इस व्रत के नियमों के बारे में भी विस्तार से जानते हैं।

प्रदोष व्रत क्या है? What is Pradosh Vrat ?

हिन्दू धर्म के अनुसार, एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है, और प्रदोष व्रत की तिथि भगवान शिव को समर्पित की जाती है। इसका महत्व इस पीछे की एक कथा से जुड़ा है। एक समय की बात है जब चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था, जिसके कारण उसका कष्ट और पीड़ा बढ़ गई थी। भगवान शिव ने त्रयोदशी के दिन इस दोष को दूर करने के लिए कदम उठाया, और इसी कारण प्रत्येक माह की त्रयोदशी को प्रदोष तिथि कहा जाता है। इस तरीके से प्रत्येक माह में दो बार प्रदोष व्रत मनाने का आदर्श तय किया गया है।

प्रदोष व्रत 2023 एक हिन्दू व्रत है जिसका उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना है। प्रदोष व्रत का सम्पूर्ण दिन भगवान शंकर को समर्पित किया जाता है। इस व्रत को प्रत्येक माह में दो बार मनाया जाता है, और इसकी शुभ तिथियाँ व उपयुक्त मुहूर्त 2023 में निम्नलिखित हैं:

जनवरी में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in January

 03 जनवरी 2023, रात 10:02 बजे

फरवरी में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in February

02 फरवरी 2023, शाम 04:26 बजे (गुरु प्रदोष व्रत)

17 फरवरी 2023, रात 11:36 बजे (शनि प्रदोष व्रत)

मार्च में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in March

04 मार्च 2023, पूर्वाह्न 11:43 बजे

19 मार्च 2023, पूर्वाह्न 08:07 बजे (रवि प्रदोष व्रत)

अप्रैल में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in April

03 अप्रैल 2023, पूर्वाह्न 06:24 बजे

17 अप्रैल 2023, दोपहर 03:46 बजे

मई में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in May

02 मई 2023, रात 11:18 बजे

17 मई 2023, रात 10:28 बजे

जून में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in June

01 जून 2023, दोपहर 01:39 बजे

15 जून 2023, पूर्वाह्न 08:32 बजे

जुलाई में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in July

01 जुलाई 2023, पूर्वाह्न 01:17 बजे

14 जुलाई 2023, शाम 07:17 बजे

30 जुलाई 2023, पूर्वाह्न 10:34 बजे (रवि प्रदोष व्रत)

अगस्त में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in August

13 अगस्त 2023, सुबह 08:20 बजे

28 अगस्त 2023, दोपहर 06:23 बजे

सितंबर में प्रदोष व्रत:Pradosh in September

11 सितंबर 2023, पूर्वाह्न 11:52 बजे

27 सितंबर 2023, पूर्वाह्न 01:46 बजे

अक्टूबर में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in Ocotober

11 अक्टूबर 2023, शाम 5:37 बजे

26 अक्टूबर 2023, पूर्वाह्न 09:44 बजे (गुरु प्रदोष व्रत)

नवम्बर में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat November

10 नवंबर 2023, दोपहर 12:36 बजे

25 नवंबर 2023, शाम 05:22 बजे

दिसंबर में प्रदोष व्रत: Pradosh Vrat in December

10 दिसंबर 2023, पूर्वाह्न 7:13 बजे

24 दिसंबर 2023, पूर्वाह्न 06:24 बजे (रवि प्रदोष व्रत)

प्रदोष व्रत 2023: नियम और पूजा विधि Rules and Procedure :

हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों के अलग-अलग नियम होते हैं, और इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इसी तरह, प्रदोष व्रत को मनाने के लिए भी कुछ नियम और पूजा विधि का पालन करना आवश्यक है। नीचे दिए गए नियमों और पूजा विधि का पालन करके भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है:

स्नान: प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

मंदिर जाना: भगवान शिव की पूजा करने के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, और गंगाजल को साथ लेकर मंदिर जाएं।

पूजा का आयोजन: मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव की पूजा करें। इसके दौरान ध्यानपूर्वक मंत्र जप करें और भगवान को अपनी मनोकामनाओं का पूरा होने का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।

उपवास: प्रदोष व्रत के दिन किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करें। व्रत के दिन शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पहले पुनः स्नान करें और सफेद रंग के कपड़े पहनें।

घर की शुद्धि: अपने घर और मंदिर के चारों ओर गंगाजल का छीड़काव करें, जिससे आपके घर का वातावरण शुद्ध हो।

रंगोली: उपवासी मंडप को गाय के गोबर से सजाएं और उस पर 5 अलग-अलग रंगों से रंगोली बनाएं।

ध्यान और पूजा: उत्तर-पूर्व दिशा में मुख करके एक आसन पर बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें। इसके साथ ही भगवान शिव के मूल मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करें और शिवलिंग पर भी जल चढ़ाएं।

संकल्प: आपकी मनोकामना को पूरा करने के लिए भगवान शिव से संकल्प करें कि आप प्रदोष व्रत करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

व्रत का पूरा करना: प्रदोष व्रत करने के पश्चात व्यक्ति को 11 या 26 बार प्रदोष व्रत करना आवश्यक है। इसके बाद इनका उद्दीपन करना भी जरूरी है।

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि प्रदोष व्रत का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में चल रही सभी परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं।

  • यदि कोई भी व्यक्ति प्रदोष का व्रत करता है| तो उसे इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना होगा| स्नान करने के बाद आपको साफ़ – सुथरे वस्त्र भी धारण करने होंगे| 
  • इसके बाद में भगवान शिव की पूजा करने के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप और गंगाजल को लेकर मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए| 
  • पूजा करने के बाद इस प्रदोष के व्रत का संकल्प लीजिये और आपकी जो भी मनोकामना है वो भगवान शिव को कहिये तथा उसे पूर्ण करने के लिए उनसे प्रार्थना कीजिये| 
  • प्रदोष व्रत करने के पश्चात व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भोजन ग्रहण नही करना चाहिए| व्रत करने वाले व्यक्ति को सूर्यास्त से कुछ समय पहले पुनः स्नान करके सफ़ेद रंग के कपडे धारण करने चाहिए| 
  • अपने घर व घर में उपस्थित मंदिर के चारों ओर गंगाजल का छिडकाव करना चाहिए| इससे आपके घर का वातावरण काफी शुद्ध होता है| इसके बाद आपको गाय के गोबर की सहायता से मंडप तैयार कीजिये| और इस पर 5 अलग – अलग रंगों से रंगोली बनाइए|
  • यह सब कार्य करने के बाद में आपको भगवान शिव का ध्यान करना होगा| जिसके लिए आपको उत्तर – पूर्व दिशा में मुख करके एक आसन पर बैठकर भगवान शिव के मूल मंत्र  “ॐ नमः शिवाय” का जप करना चाहिए| 
  • मंत्र का जप करते हुए साथ ही शिवलिंग पर भी जल चढ़ाए| जिससे भगवान शिव आपसे प्रसन्न होंगे और आपको उनका आशीर्वाद भी मिलता है| 
  • भगवान शिव से अपनी किसी मनोकामना पूर्ण करवाने के लिए व्यक्ति को 11 या 26 बार प्रदोष का व्रत करना बहुत ही आवश्यक है| इन व्रतों का संकल्प पूर्ण कर लेने बाद में इनका उद्दीपन करना भी जरूरी है| हिन्दू धर्म में मान्यता है कि आप प्रदोष व्रत करके अपने जीवन में चल रही सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति पा सकते है| 

प्रदोष व्रत के लाभ ( Benifits of Pradosh Vrat )

प्रदोष व्रत करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है| इस व्रत को करने के मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होती है और तनाव से भी मुक्ति मिलती है| इसके अलावा धन – धान्य से सम्बंधित सभी तकलीफ दूर हो जाती है|

इस व्रत को अधिकांश तौर पर वे महिलाएं करती है| जिनके लंबे समय से कोई संतान ना हुई हो| हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जिन भी लोगों के संतान नहीं है| उन्हें यह व्रत करके भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहिए| जिससे की उन्हें जल्द से जल्द संतान की प्राप्ति हो सके|

शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी यह व्रत काफी ज्यादा कारगर माना गया है| यदि आपको आपके शत्रुओं का भय हो या आपके शत्रु किसी प्रकार से आपको डरा रहे हो तो आपको प्रदोष का व्रत रखकर भगवान शिव से प्रार्थना करनी चाहिए| जिससे आपके सभी शत्रु परास्त हो जाए|

इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में किसी भी प्रकार का दोष हो तो वह प्रदोष व्रत करने और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन दोषों से राहत मिलती है|

वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ ( Day Wise Benefits of Pradosh Vrat )

रविवार प्रदोष व्रत: ( Sunday Pradosh Vrat )

प्रदोष का व्रत रविवार के दिन करने से मनुष्य का शरीर सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहता है| अर्थात उसका शरीर निरोगी हो जाता है|  सोमवार प्रदोष व्रत – इस दिन प्रदोष का व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है| तथा मनुष्य को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है|  मंगलवार प्रदोष व्रत – मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित किया गया है| जो शिवजी के ही अवतार है| इस दिन प्रदोष व्रत करने से सभी रोगियों को उनके रोगों से मुक्ति मिलती है| और जिस व्यक्ति पर कोई कर्ज है तो उससे भी मुक्ति मिलती है| 

बुधवार प्रदोष व्रत: ( Wednesday Pradosh Vrat )

 इस दिन प्रदोष व्रत करने से महादेव जातक की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है| प्रदोष व्रत 2023 बृहस्पतिवार प्रदोष व्रत – इसे गुरूवार के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन प्रदोष व्रत को करने व्यक्ति को अपने जीवन में शत्रुओं से सम्बंधित सभी से राहत मिलती है| तथा शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है| शुक्रवार प्रदोष व्रत  प्रदोष का व्रत जो शुक्रवार के दिन होता है तो इसे ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख व समृद्धि बनी रहती है|  शनिवार प्रदोष व्रत – इस दिन आने वाले व्रत को “शनि प्रदोष व्रत” भी कहा जाता है| शनिवार के दिन व्रत करने वाली महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है|

सोमवार प्रदोष व्रत – इस दिन प्रदोष का व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है| तथा मनुष्य को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है| 

मंगलवार प्रदोष व्रत – मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित किया गया है| जो शिवजी के ही अवतार है| इस दिन प्रदोष व्रत करने से सभी रोगियों को उनके रोगों से मुक्ति मिलती है| और जिस व्यक्ति पर कोई कर्ज है तो उससे भी मुक्ति मिलती है| 

बृहस्पतिवार प्रदोष व्रत – इसे गुरूवार के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन प्रदोष व्रत को करने व्यक्ति को अपने जीवन में शत्रुओं से सम्बंधित सभी से राहत मिलती है| तथा शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है|

शुक्रवार प्रदोष व्रत –  प्रदोष का व्रत जो शुक्रवार के दिन होता है तो इसे ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख व समृद्धि बनी रहती है| 

शनिवार प्रदोष व्रत – इस दिन आने वाले व्रत को “शनि प्रदोष व्रत” भी कहा जाता है| शनिवार के दिन व्रत करने वाली महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है| 

प्रदोष व्रत को करने वाले ध्यान रखे कुछ मुख्य बातें ( Some Important Points of Pradosh Vrat )

जो भी व्यक्ति इस व्रत को करने का संकल्प लेता है| उसे पुरे दिन में कुछ भी नहीं खाना चाहिए|

एक बात का जरूर ध्यान रखें कि इस दिन भूलकर कर भी आपको नमक का सेवन नहीं करना चाहिए|

व्रत वाले दिन पूर्ण तन और मन से भगवान का ध्यान करना चाहिए और अपने मन से सभी प्रकार क्रूर भावनाओं को त्याग देना चाहिए|

इस दिन सही तरीके से ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत ही आवश्यक है|

प्रदोष का व्रत करने वाले खासतौर पर इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन आपको किसी भी स्थिति में मांसाहारी या ऐसा भोजन जो मनुष्य के शरीर को आलसी बनाता हो, उसका सेवन नहीं करना चाहिए|

व्रत के दिन नशीले पदार्थों का भी सेवन नहीं करना चाहिए|

प्रदोष व्रत क्या है? What is Pradosh Vrat?

प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसका उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना है। इस व्रत का सम्पूर्ण दिन देवों के देव भगवान शंकर को ही समर्पित किया जाता है। यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और भगवान शिव के आशीर्वाद का आशा किया जाता है।

प्रदोष व्रत का इतिहास क्या है? What is the history of Pradosh Vrat?

प्रदोष व्रत का महत्व एक प्राचीन कथा से जुड़ा हुआ है। एक समय की बात है, जब चंद्रमा को क्षय रोग हो गया था, जिससे उसका कष्ट और पीड़ा बढ़ गई थी। भगवान शिव ने इस समस्या को दूर करने के लिए त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का आयोजन किया और चंद्रमा को उसके कष्ट से मुक्ति दिलाई। इसलिए प्रत्येक माह की त्रयोदशी को प्रदोष तिथि कहा जाता है और इसे भगवान शिव के प्रसाद का प्रतीक माना जाता है।

प्रदोष व्रत की नियमित धारणा क्यों महत्वपूर्ण है? Why is observing Pradosh Vrat regularly important?

प्रदोष व्रत की नियमित धारणा से भक्त भगवान शिव के प्रति अपना भक्ति और समर्पण प्रकट करते हैं। यह व्रत भगवान शिव के आशीर्वाद का आशा करने और अपने जीवन में सुख और समृद्धि पाने का एक माध्यम होता है। इसके अलावा, प्रदोष व्रत का पालन करके व्यक्ति अपने आत्मा को शुद्धि देने का प्रयास करता है और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में कदम रखता है।

प्रदोष व्रत के क्या नियम हैं? What are the rules for observing Pradosh Vrat?

प्रदोष व्रत को पालन करते समय कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना चाहिए:

व्रत की त्रयोदशी तिथि को ध्यान से मनाना चाहिए, जो सूर्यास्त से पूर्व होती है।

भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। इसके लिए शिवलिंग को जल और दूध से स्नान करके उसे देवता की तरह पूजन करना चाहिए।

व्रत के दिन व्रती को एक ही बार भोजन करना चाहिए और व्रत के दिन उसे अन्न, मांस, अल्कोहल, और तमाकू का सेवन नहीं करना चाहिए।

व्रत के दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए,

व्रत के दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए और उनके नाम का कीर्तन करना चाहिए।

प्रदोष व्रत के दिन व्रती को सूर्यास्त के समय और सूर्यास्त के बाद भगवान शिव का पूजन करना चाहिए।

व्रत के दिन दान और चारित्रिक कर्म करना चाहिए, जैसे कि दिनभर भगवान की पूजा-अर्चना करना और गरीबों को दान देना।

प्रदोष व्रत के फायदे क्या हैं? What are the benefits of observing Pradosh Vrat?

प्रदोष व्रत के ध्यानपूर्वक पालन से निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं:

भगवान शिव के कृपा प्राप्ति: प्रदोष व्रत का पालन करने से भगवान शिव के आशीर्वाद का प्राप्ति होता है और व्रती की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

साधना और आध्यात्मिक उन्नति: यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है और व्रती को अपने आत्मा की शुद्धि का अवसर प्रदान करता है।

सुख-शांति: प्रदोष व्रत के पालन से व्यक्ति का जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण होता है।

रोग निवारण: इस व्रत के पालन से शरीरिक और मानसिक रोगों का निवारण हो सकता है।

परिवार के हरिकित होने का आशीर्वाद: प्रदोष व्रत के द्वारा परिवार के सभी सदस्यों का हरिकित होने का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।

कर्मों का फल: यह व्रत व्रती के कर्मों के फल को शुभ दिशा में बदल सकता है और कर्मों की मांग को पूरा करता है।

प्रदोष व्रत 2023 के दिन कितनी बार मनाया जाएगा? How many times will Pradosh Vrat be observed in 2023?

प्रदोष व्रत 2023 में प्रत्येक माह में दो बार मनाया जाएगा। इसकी शुभ तिथियाँ निम्नलिखित हैं:

11 सितंबर 2023

27 सितंबर 2023

प्रदोष व्रत 2023 की तिथियों के आसपास भगवान शिव का पूजन और भक्ति करने का आदर्श अवसर है।

Kamika Ekadashi

Aja – Kamika Ekadashi कब है कामिका एकादशी : इस वर्ष, अजा एकादशी 10 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी।

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा या कामिका एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा का आयोजन होता है। इस दिन रात्रि जागरण और व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। अजा एकादशी का व्रत करने के लिए कई महत्वपूर्ण बातों का पालन करना चाहिए।

क्या करे एकादशी के दिन ?

दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल खाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे व्रत के फल में कमी हो सकती है।

चने नहीं खाने चाहिए । शाक आदि भोजन करने से भी व्रत के फल में कमी हो सकती है।

इस दिन शहद का सेवन करने से एकादशी व्रत के फल कम हो सकते हैं।

व्रत के दिन और दशमी तिथि के दिन पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए।

अजा एकादशी पूजा विधि (अजा एकादशी पूजा का आयोजन कैसे करें? ) Aja Ekadashi fasting Rules

अजा एकादशी का व्रत करने के बाद, व्यक्ति को एकादशी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए। उठने के बाद नित्यक्रिया से मुक्त होने के बाद, सभी घर की सफाई करनी चाहिए और फिर तिल और मिट्टी का लेप करके कुशा से स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद, भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।

भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करने के लिए, एक शुद्ध स्थान पर धान्य रखना चाहिए। धान्यों के ऊपर कुम्भ स्थापित किया जाता है और कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है। कुम्भ की पूजा करने के बाद, श्री विष्णु जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है और संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेने के बाद, धूप, दीप, और पुष्प से भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है।

अजा एकादशी का महत्व:

अजा एकादशी व्रत श्रेष्ठतम व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को अपने मन, इंद्रियों, आहार, और व्यवहार पर नियंत्रण रखना पड़ता है। अजा एकादशी व्रत व्यक्ति को आर्थिक और कामना से पारंपरिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। यह व्रत प्राचीन समय से चल रहा है और इसका महत्व पौराणिक, वैज्ञानिक, और संतुलित जीवन में है। इस उपवास का पालन मन को पवित्र करता है, ह्रदय को शुद्ध करता है, और साधक को सद्गति की ओर मार्गदर्शन करता है।

हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व है। 11 सितम्बर, 2023 को भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ रही है। इस एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि अजा एकादशी के दिन व्रत रखने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही अश्वमेध यज्ञ कराने के समान पुण्य फलों की प्राप्त होती है। इसके साथ ही श्रीहरि की कृपा हमेशा बनी रहती है।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी व्रत पारण विधि तथा शुभ मुहूर्त क्या है ?

अजा एकादशी व्रत धारण करने वाले भक्त व्रत के पराण का आयोजन शुभ मुहूर्त में करते हैं। इसके लिए सबसे उपयुक्त मुहूर्त 11 सितंबर, 2023 को 05:55 से 08:23 तक रहेगा, जिसकी अवधि 03 घंटे 15 मिनट होगी। भक्त इस शुभ मुहूर्त में अपने एकादशी व्रत का पारण कर सकते हैं।

2023 की अजा एकादशी:- अजा एकादशी के व्रत का आयोजन कैसे करें?

व्रती लोगों को व्रत के दिन सात्विक आहार का पालन करना चाहिए। पहले अगर संभव हो, तो व्रती ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और उन्हें श्रद्धा अनुसार भेंट देनी चाहिए। साथ ही, गायों को हरा चारा खिलाना भी अच्छा होता है। इसके बाद, सात्विक आहार के साथ अपने व्रत का पारण कर सकते हैं। इस तरीके से करने से भक्त अत्यधिक शुभ फलों को प्राप्त करते हैं।

अजा एकादशी का व्रत करने के बाद, व्यक्ति को एकादशी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए। उठने के बाद नित्यक्रिया से मुक्त होने के बाद, सभी घर की सफाई करनी चाहिए और फिर तिल और मिट्टी का लेप करके कुशा से स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद, भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।

2023 की अजा एकादशी( aja ekadashi vrat katha) Kamika Ekadashi 2023

अजा एकादशी के दिन, भक्त ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि करें।

इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

उनके बाद, भगवान विष्णु के सामने जाकर हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर अजा एकादशी व्रत रखने का संकल्प लें।

पूजा स्थल पर एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर उनका अभिषेक करें।

पीले पुष्प, अक्षत, चंदन, धूप, दीप, फल, गंध, मिठाई आदि अर्पित करते हुए श्रीहरि की पूजा करें।

पंचामृत और तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाएं।

इसके बाद एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।

अंत में आरती करके भूल चूक के लिए क्षमा मांग लें।

दिनभर फलाहारी व्रत रखें। इसके साथ ही प्रसाद का वितरण कर दें।

2023 की अजा एकादशी:- अजा एकादशी पर कैसे उपाय करें?

केसर और चंदन का उपाय: भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा में चंदन और केसर का महत्व होता है। अजा एकादशी पर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर पीले चंदन और केसर में गुलाब जल मिलाकर भगवान विष्णु को तिलक करें और स्वयं भी माथे पर टीका लगाकर घर से शुभ कार्य के लिए जाएं। ऐसा करने से आपके कार्य बिना बाधा के पूर्ण होंगे और मां लक्ष्मी का वास आपके घर में होगा।

पान के पत्ते का उपाय: अजा एकादशी पर पान के पत्ते पर रोली या कुमकुम से ‘श्री’ लिखें और ये पत्ते विष्णु भगवान को अर्पित करें। पूजा पूर्ण करने के बाद ये पत्ते लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रख लें। इसके बाद आपको नौकरी में नए-नए अवसर प्राप्त होते हैं और आपके व्यापार में भी लगातार वृद्धि होती है।

कन्याओं को खीर खिलाएं: शास्त्रों में बताया गया है कि विशेष शुभ तिथियों पर कन्याओं की सेवा करने से बड़ा पुण्य कोई और नहीं है। अजा एकादशी पर सात कन्याओं को केसर की खीर खिलाएं और उनके पांव छूकर उन्हें उपहार देकर सम्मान के साथ विदा करें। आपके इस अच्छे कार्य को देखकर मां लक्ष्मी आपसे प्रसन्न होंगी और आपकी धन संबंधी समस्याएं भी दूर होंगी।

मनोकामना पूर्ति का उपाय: अजा एकादशी पर भगवान कृष्ण को नारियल और बादाम का भोग लगाएं और फिर 27 एकादशी तक इस उपाय को करने से आपको विशेष फल की प्राप्ति होगी और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। इन चढ़े हुए नारियल और बादाम को पूजा के बाद छोटे-छोटे बच्चों को खिलाने के लिए दें।

2023 की अजा एकादशी:- अजा एकादशी व्रत का महत्व क्या है? Kamika Ekadashi Significance, Kamika Ekadashi ka Mahatva

अजा एकादशी व्रत 2023 बहुत महत्वपूर्ण है और इसे धारण करने से अनेक उद्देश्य प्राप्त होते हैं। इस व्रत का आयोजन भगवान विष्णु को समर्पित होता है और जो भी जातक इसे धारण करते हैं, उन्हें शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।

इस व्रत का आयोजन महिलाओं द्वारा भी किया जाता है और इसका महत्व है कि इस व्रत को धारण करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्र की व्याधियां और कष्टों को दूर किया जा सकता है। इसलिए, इस व्रत को धारण करने से पहले अगर पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही है, तो महिलाओं को इसे अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को धारण करने से पुत्र की प्राप्ति होती है और पुत्र के साथ-साथ उसकी सभी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। इसके अलावा, इस व्रत को धारण करने के कई मान्यताएँ हैं जो भक्तों को इसे करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

Aja Ekadashi 2023:- अजा एकादशी व्रत कथा क्या है ? Kamika Ekadashi Vrat Katha in Hindi

बहुत समय पहले, एक दानी और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र थे। राजा हरिश्चंद्र इतने प्रसिद्ध सत्यवादी और धर्मात्मा थे कि उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इंद्र को भी चिंता होने लगी। इंद्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। इंद्र के कहने पर, महर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को योगबल से एक स्वप्न दिखाया, जिसमें राजा ऋषि को सभी राज्य को दान कर रहे थे।

अगले दिन, महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आए और अपने राज्य की मांग की। राजा ने स्वप्न में किए दान को स्वीकार कर लिया और विश्वामित्रजी को पूरा राज्य सौंप दिया। महाराज हरिश्चंद्र पृथ्वीभर के सम्राट थे, लेकिन उन्होंने अपना पूरा राज्य दान कर दिया। अब जब उनके पास धन नहीं था, तो वे अपनी पत्नी और पुत्र के साथ काशी गए, क्योंकि पुराणों में कहा गया है कि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है, और यहाँ पृथ्वी से अलग मानी जाती है।

अयोध्या से जब राजा हरिश्चंद्र चलने लगे, तो विश्वामित्रजी ने कहा, “जप, तप, दान, आदि के बिना सफल नहीं होते। तुमने इतना बड़ा राज्य दिया है, तो उसकी दक्षिणा में एक हजार सोने की मोहरें और दो राजा हरिश्चंद्र के पास अब धन नहीं था। राज्य दान करने के साथ उनके पास धन सिर्फ कुछ ही बचा था। महर्षि विश्वामित्र की सलाह पर, वे काशी गए और वहाँ अपनी पत्नी रानी शैव्या को एक ब्राह्मण के पास बेच दिया।

राजकुमार रोहिताश्व छोटा बच्चा था और ब्राह्मण की पूजा के लिए फूल चुन रहा था, जब उसे एक साँपने काट लिया। साँप का विष तुरंत फैल गया और रोहिताश्व की मौके पर मौत हो गई। उसकी माता महारानी शैव्या के पास कुछ भी धन नहीं था, और वह अकेली रात के समय में श्मशान पहुंची, जहां उसके पुत्र की देह जलाने के लिए उनके पास कुछ नहीं था।

रानी शैव्या को बहुत दुख हुआ, लेकिन वह अपने धर्म के प्रति स्थिर रहीं। वह राजा हरिश्चंद्र को बताने के लिए अपनी साड़ी के एक अंश को छोड़ने के बाद वहाँ से चली गईं। इसके बाद, भगवान नारायण, इंद्र, धर्मराज, और अन्य देवता स्वयं प्रकट हो गए, और महर्षि विश्वामित्र ने बताया कि उनकी परीक्षा योग माया के द्वारा हुई थी। राजा हरिश्चंद्र को धर्म के प्रति स्थिर रहने के लिए अपने धन को छोड़ना पड़ा, और वे अपनी पत्नी के साथ भगवान के धाम में चले गए। महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।

Janeyu Muhurat 2023

Janeyu Muhurat 2023 यज्ञोपवीत (उपनयन) मुहूर्त

यज्ञोपवीत संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार)

सनातन संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक एक व्यवस्थित प्रक्रिया के अंतर्गत एक व्यक्ति का जीवन व्यतीत होता है। जैसे गर्भधारण से लेकर पैदा होने तक और उसके बाद बड़े होने से लेकर मृत्यु तक सभी चीजों के लिए अलग-अलग 16 संस्कारों की व्यवस्था की गई है। इन 16 संस्कारों में से एक हैं “यज्ञोपवीत संस्कार”। यज्ञोपवीत को “उपनयन,” “यज्ञसूत्र,” “व्रतबन्ध,” “बलबन्ध,” “मोनीबन्ध,” “ब्रह्मसूत्र,” आदि नामों से भी जाना जाता है, और किसी भी सनातनी के जीवन में यज्ञोपवीत का अलग ही महत्व होता है। आज इस लेख में हम यज्ञोपवीत (यज्ञोपवीत संस्कार) के महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

क्या होता है यज्ञोपवीत संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार)?

यज्ञोपवीत (यज्ञोपवीत संस्कार) या उपनयन संस्कार का अर्थ होता है पास या सन्निकट ले जाना, अर्थात् ब्रह्म या ज्ञान के पास ले जाना। ज्ञान प्राप्ति की शुरुआत करने से पहले ही उपनयन संस्कार की प्रक्रिया होती है। इस संस्कार के अंतर्गत मंत्रों का उच्चारण कर एक पवित्र धागा बनाया जाता है, जिसे संस्कार में मुंडन और स्नान के बाद ही धारण किया जा सकता है। इस धागे को “जनेऊ” के नाम से जाना जाता है, और इसे सूत के तीन धागों से बनाया जाता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस प्रकार डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे।

जनेऊ में ये तीन सूत्र त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के भी प्रतीक होते हैं। देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण को भी जनेऊ के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसी के साथ यज्ञोपवीत संस्कार का आरंभ गायत्री मंत्र से किया जाता है।

जनेऊ धारण के नियमों का पालन

जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को अपने जीवन में नियमों का पालन करना पड़ता है। उसे अपनी दैनिक जीवन के कार्यों को भी जनेऊ को ध्यान में रखते हुए ही करना होता है। जैसे – मल, मूत्र का त्याग करने के दौरान जनेऊ को दायने कान पर बांधना होता है ताकि यह अपवित्र न हो और उसके बाद स्वच्छ हाथों से ही उसे स्पर्श करना होता है। इसके अलावा एक बार पहनने के बाद अपवित्र, मैला या टूटने पर ही उसे बदला जाता है और स्नान करने के दौरान जनेऊ को शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता है। बालक की 8 वर्ष की आयु होने पर यज्ञोपवीत संस्कार कराया जा सकता है। परन्तु वर्तमान समय में लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन होने के कारण बचपन में नहीं, अपितु विवाह के दौरान यज्ञोपवीत संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार) कराया जाता है। सनातन धर्म में आज भी बिना जनेऊ संस्कार के विवाह पूर्ण नहीं माना जाता है।

जनेऊ का महत्व

जनेऊ को अगर सामान्य मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो सिर्फ यह एक धागा है परन्तु इसे धर्म और शिक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो इसे बनाने के पीछे पूरा गणित और विज्ञान छिपा हुआ है। जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है और इस लंबाई को रखने के पीछे 64 कलाओं और 32 विद्याओं का सीखना है। 32 विद्याओं की बात की जाए तो इसमें चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक सम्मिलित होते हैं। इसके अलावा 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।

वहीं क्योंकि जनेऊ के हृदय के पास से गुजरता है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है। वहीं जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई से जुड़े नियमों से भी बंध जाता है। जनेऊ से पवित्रता का अहसास भी होता है, जो व्यक्ति के मन को बुरे कार्यों से बचाती है।

यज्ञोपवीत संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार)

के मूल रूप को अगर देखा जाए तो हमें यह देखने को मिलता है कि जीवन के सबसे पहले चरण शिक्षा की शुरुआत है यज्ञोपवीत। आज के समय में हम इसकी तुलना विद्यालय जाने की शुरुआत से कर सकते हैं। जिस प्रकार आज हम विद्यालय में अपने गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने से प्रवेश प्रक्रिया पूरी करते हैं, ठीक उसी प्रकार गुरूकुल में प्रवेश करने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता था। इसका उद्देश्य छात्र जीवन में व्यक्ति को नियमों का पालन करना और दृढ़निश्चयी बनाना होता था।

जनेऊ पहनने का मंत्र

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

जनेऊ उतारने का मंत्र

एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।

यज्ञोपवीत धारण करने की विधि- यज्ञोपवीत धारण करने का सम्पूर्ण विधान

सर्वप्रथम जानना जरुरी है की जनेऊ कितनी लम्बी होनी चाहिए यह बहुत जरुरी आवश्यक कात्यायन के अनुसार यज्ञोपवीत कमर तक (कटि भाग) तक होनी चाहिए। यज्ञोपवीत अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए।

वशिष्ठ के अनुसार नाभि के ऊपर यज्ञोपवीत होने से अर्थात बहुत छोटी यज्ञोपवीत होने से आयुनाश होता है। नाभि के निचे होने से तपबल क्षय होता है। अतः सदैव यज्ञोपवीत नाभि के समान अर्थात नाभि के बराबर मात्रा में धारण करनी चाहिए।

यज्ञोपवीत धारण करने की सामग्री :

यज्ञोपवीत नाभि के बराबर

अक्षत – एक छोटी कटोरी भरकर चन्दन टिका लगाने के लिए– 1

यज्ञोपवीत धारण करने का क्रम :

आचमन

प्राणायाम

सङ्कल्प

यज्ञोपवीत प्रक्षालन हाथो से सम्पुट बनाना

तन्तु देवताओ का आवाहन

ग्रंथि देवता आवाहन

मानसिक पूजा यज्ञोपवीत ध्यान

सूर्य प्रदर्शन

यज्ञोपवीत धारण मंत्र

जीर्ण यज्ञोपवीत त्याग

यथा शक्ति गायत्री मंत्र जाप गायत्री मंत्र जाप अर्पण करना

सङ्कल्प छोड़ना।

आचमन:

ॐ ऋग्वेदाय नमः । ॐ यजुर्वेदाय नमः । ॐ सामवेदाय नमः |ॐ अथर्ववेदाय नमः ।

बोलकर अपने हाथ धोये ।

पश्चात प्राणायाम करे :

पूरक | गहरी सांस लेना।

कुम्भक । उस सांस को जब तक हो सके अपने पेट में रककर रखे। प्राणायाम करते समय गायत्री मंत्रोच्चारण करे। गायत्री मंत्र मन में ही बोले।

रेचक ।. सांस को छोड़ना । फिर अपने हाथ धोये।

सङ्कल्प :

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः अत्र अद्य मासोत्तम मासे,  पक्षे……..तिथौ………नक्षत्रे………..योगे……….करणे

वासरे एवं ग्रहगणविशेषेण विशिष्टयां शुभपुण्यतिथौ मम शर्मणः श्रौतस्मार्तकर्मानुष्ठान सिद्धि अर्थम् शुभ कर्मांगत्वेन नूतन यज्ञोपवीत धारणं अहम् करिष्ये ॥ गोत्र उत्पन्नस्य (गोत्र का नाम पता हो तो गोत्र का नाम ले)

यज्ञोपवीत प्रक्षालन :

यज्ञोपवीत को जल से प्रक्षालन करे और निम्न मंत्र को उच्चारित करे।

ॐ आपोहिष्ठा मयो भुवस्ता नऽऊर्जे दधातन । महेरणाय चक्षसे || जो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयते हनः ।

उशतीरिव मातरः तस्मा अरं गमाम वो जस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥ (यह एक वैदिक मंत्र है जो यजुर्वेद के अनुसार उच्चारित किया है और लिखा भी है)

यज्ञोपवीतं करसंपुटे धृत्वा दशवारं गायत्री मन्त्रं जपेत (जपित्वा) : दोनों हाथोसे सम्पुट बनाकर सम्पुट में जनेऊ को रखे। दसबार मन में ही गायत्री मंत्र का उच्चरण करे।

तंतु देवता आवाहनं :

ॐ प्रथम तन्तौ ॐ काराय नमः ।ॐ कारं आवाहयामि स्थापयामि || ॐ द्वितीय तन्तौ अग्नये नमः । अग्निं आवाहयामि स्थापयामि ॥ॐ तृतीय तन्तौ नागेभ्यो नमः । नागान आवाहयामि स्थापयामि ||ॐ चतुर्थ तन्तौ सोमाय नमः । सोमं आवाहयामि स्थापयामि || ॐ पञ्चम तन्तौ पितृभ्यो नमः । पितृन आवाहयामि स्थापयामि ||ॐ षष्ठतन्तौ प्रजापतये नमः ।प्रजापतिं आवाहयामि स्थापयामि ॥ॐ सप्तमतन्तौ अनिलाय नमः ।अनिलं आवाहयामि स्थापयामि ॥ॐ अष्टतन्तौ यमाय नमः । यमं आवाहयामि स्थापयामि ॥आनल आवाहयाम स्थापयामि ॥ॐ अष्टतन्तौ यमाय नमः । यमं आवाहयामि स्थापयामि ||ॐ नवम तन्तौ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । विश्वान देवान आवाहयामि स्थापयामि ||ग्रंथि मध्ये देवता आवाहन |

जहा गाँठ है वह देवताओ का आवाहन करे ||

नाम बोलकर भी आवाहन कर सकते हो या एक ही साथ सब नाम बोलकर भी आवाहन कर सकते हो।

यज्ञोपवीत ग्रंथिमध्ये ब्रह्मविष्णुरुद्रेभ्यो नमः । ब्रह्म विष्णु रुद्राँ आवाहयामि स्थापयामि ||

यज्ञोपवीत को सिर्फ स्पर्श करना है। चारवेदो का नाम बोलकर न्यसामि बोले ।

ऋग्वेदं प्रथम दोरके न्यसामि । यजुर्वेदं द्वितीय दोरके न्यसामि सामवेदं तृतीय दोरके न्यसामि । अथर्ववेदं ग्रन्थौ न्यसामि।आवाहित देवताः सुप्रतिष्ठताः वरदाः भवत । पश्चात यज्ञोपवीत की मानसिक पूजा करे

मानसिक पूजा विधि (मानर्सोपचार पूजा)

ॐ लं पृथिव्यात्मक गन्धं परिकल्पयामि । हे प्रभु में आपक पृथ्वीरूप चंदन आपको अर्पण करता हु ।

ॐ हूं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि । हे प्रभु में आपको आकाशरूपी पुष्प (सुंगंध) अर्पण कर रहा हु।

ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि । हे प्रभु में आपको वायुदेव के रूप में आपको धूप अर्पण कर रहा हु।

ॐ रं वन्यात्मकं दीपं दर्शयामि । हे प्रभु में आपको अग्निदेव के रूप में दीप प्रदान कर रहा हु ।

ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि । हे प्रभु में आपको अमृत रूपी नैवेद्य अर्पण कर रहा हु ।

ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं परिकल्पयामि ।

हे प्रभु में सर्वात्म रूप से आपको संसार की सभी पूजा सामग्री आपको समर्पित कर रहा हु आप स्वीकार करे। प्रसन्न हो ।

यज्ञोपवीत ध्यान :

प्रजापतेर्यत् सहजं पवित्रं कार्पाससुत्रोद्भवब्रह्मसूत्रम् । ब्रह्मत्वसिद्धयै च यशः प्रकाशं जपस्य सिद्धिं कुरु ब्रह्मसूत्रम् ॥

पश्चात भगवान सूर्य को जनेऊ दिखाए

यहाँ सूर्य का कोई भी मंत्र या श्लोक बोल सकते है ।

ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोरि सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ॥

यज्ञोपवीत धारण विधान और मंत्र : विनियोग :

ॐ यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः लिङ्गोक्ता देवता त्रिष्टुप छन्दः यज्ञोपवीत धारणे विनियोगः ।

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ॥ कितने तन्तु वाली या कैसी यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिए उसके विषय में शास्त्रों में कई प्रमाण दिए है

जीर्ण यज्ञोपवीत त्यागः । एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्मत्वं धारितं मया । जीर्णत्वात त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम् ॥ शुद्धभूमौ निधाय ॥

पुरानी यज्ञोपवीत किसी पवित्र जगह पर विसर्जित करे या गड्डा खोदकर उसमे गाड़ दे

यथा शक्ति गायत्री मंत्र जाप करे। गायत्री मंत्र जाप समर्पित करे। अनेन यथाशक्ति गायत्री मंत्रजपकर्मणा श्रीसवितादेवता प्रीयतां न मम ।

सङ्कल्प छोड़ना :

अनेन कर्मणा मम श्रौतस्मार्तकर्म अनुष्ठानं सिद्धि द्वारा श्रीभगवान परमेश्वरः प्रीयतां न मम ।

॥ अस्तु ॥

Janeyu Muhurat 2023

फरवरी

8. बुध-फाल्गुन कृष्ण 3 पू. फा. ल. 2 ।

10. शुक्र- फाल्गुन कृष्ण 5 हस्त ल. 2|

22. बुध- फाल्गुन शुक्ल 2 उ.भा.ल. 2|

24. शुक्र- फाल्गुन शुक्ल 5 अश्विनी ल. 12|

मार्च

1. बुध- फाल्गुन शुक्ल 9 आर्द्रा ल. 3 ।

12. गुरु- फाल्गुन शुक्ल 10 आर्द्रा ल. 12 |

3. शुक्र- फाल्गुन शुक्ल 11 पुनर्वसु ल. 2|

9. गुरु- चैत्र कृष्ण 2 हस्त ल. 12, 2,3|

31. शुक्र – चैत्र शुक्ल 10 पुष्य विप्र कु. ल. 12, 8वें केतुदान, ल. 3 लग्नस्थ भौमदान ।

मई

7. रवि- ज्येष्ठ कृष्ण 2 अनुराधा ल. 2,5|

22. सोम- ज्येष्ठ शुक्ल 3 मृगशिरा ल. 2, 3 5 वें केतु दान।

29. सोम-ज्येष्ठ शुक्ल 9 दिन 8:55 रिक्ताबाद उ. फा. ल. 5|

Vadhu Pravesh Muhurat

Vadhu Pravesh Muhurat -वधू प्रवेश व द्विरागमन

फरवरी-2023

16. गुरु- फाल्गुन कृष्ण 11 मूल वधू प्र. ल. 11,2,5। द्विरागमन ल 21

 17. शुक्र- फा. कृ. 12 उं.षा. ल.5|

22. बुध- फाल्गुन शुक्ल 2 उ. भा. द्विरागमन ल 21

24. शुक्र- फाल्गुन शुक्ल 5 अश्विनी व.प्र.ल. 11, द्विरा.ल. 11,2|

मार्च-2023

2. गुरु- फाल्गुन शुक्ल 10 आर्द्रा द्विरा. ल. 3 ।

3. शुक्र- फाल्गुन शुक्ल 11 पुष्य व.प्र. ल.8, द्विरागमन ल. 3,8|

8. बुध-चैत्र कृष्ण 1 उ. फा. द्विरा.ल. 2,3 |

9. गुरु- चैत्र कृष्ण 2 हस्त द्विरा. ल.3,8|

15. बुध-चैत्र कृष्ण 8 मूल द्विरा.ल. 11।

मई-2023

3. बुध- वैशाख शुक्ल 13 हस्त द्विरा. ल. 2,3|

6. शनि – ज्येष्ठ कृष्ण 1 अनुराधा व.प्र.ल. 11 ।

10. बुध- ज्येष्ठ कृष्ण 5 उ. षा. व.प्र.ल. 11, द्विरा. ल.7।

11. गुरु-ज्येष्ठ कृष्ण 6 उषा. व.प्र. द्वि.ल.2, वधू.ल. 5|

 12. शुक्र- ज्येष्ठ कृष्ण 7 श्रवण व.प्र. ल.2, 5|

नवम्बर-2023

22. बुध-कार्तिक शुक्ल 10 उ.भा. द्विरागमन ल. 2,3 |

 23. गुरु- कार्तिक शुक्ल 11 उ.भा. व.प्र.ल. 8 ।

30. गुरु- मार्गशीर्ष कृष्ण 3 पुनर्वसु द्विरा.ल. 3,7|

दिसम्बर-2023

1. शुक्र- मार्गशीर्ष कृष्ण 4 पुष्य व.प्र. ल. 3, 8, द्विरा.ल. 3,7|

7. गुरु- मार्गशीर्ष कृष्ण 10 हस्त द्विरा. ल.7 ।

 8. शुक्र- मार्गशीर्ष कृष्ण 11 हस्त द्विरा. ल. 8 ।

Pitra Paksha 2023

Important Dates in Pitra Paksha 2023: 29 सितंबर 2023 – 14 October 2023

What is “Pitra Paksha”“पितृ पक्ष”

पितृ पक्ष, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो मृत पितरों (अभिज्ञात और अनभिज्ञात पूर्वज) की आत्मा की शांति और आत्मा के मोक्ष के लिए मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के आधार पर प्रतिवर्ष सितंबर या अक्टूबर में मनाया जाता है और आमतौर पर 15 दिनों तक चलता है।

पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों की पूजा करते हैं, उन्हें आहार और जल देते हैं, तर्पण करते हैं, और उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति की प्राप्ति की कामना करते हैं। इस समय किसी भी नए शुभ कार्य या आरंभ से बचा जाता है और व्रत और पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है।

पितृ पक्ष का मुख्य उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति का प्रशंसा और आभार दिखाना है। यह एक पारंपरिक धार्मिक उपवास और पूजा का महत्वपूर्ण पर्व है जो हिन्दू समुदाय में मान्यता है।

  1. क्या गया में पिण्डदान करने के बाद फिर श्राद्ध, तर्पण, आदि करना चाहिए?

धर्मशास्त्र के अनुसार, गया में पिण्डदान करने के पश्चात् भी श्राद्ध, तर्पण, और पितरों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।

  1. श्राद्ध, तर्पण, और पितरों की गोलोकगमन तिथि क्यों महत्वपूर्ण है?

इन तिथियों पर ब्राह्मण को भोजन कराकर और दक्षिणा देकर पितरों की कृपा प्राप्त की जा सकती है और उनके आत्माओं को शांति मिल सकती है।

  1. क्या श्राद्ध केवल पिण्ड (दान) पूजन से होना चाहिए?

नहीं, श्राद्ध केवल पिण्ड (दान) पूजन से नहीं होता, बल्कि तर्पण और पितरों का समर्पण भी महत्वपूर्ण है।

  1. श्राद्ध का सही समय क्या होता है?

श्राद्ध सदैव मध्याह्नव्यापिनी तिथि में किया जाना चाहिए।

  1. क्या अन्य कोई धार्मिक कार्य श्राद्ध करने के बाद किया जा सकता है?

जी हां, अन्य कोई धार्मिक कार्य किया जा सकता है, लेकिन श्राद्ध का महत्व भी समझना चाहिए और उसे श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।

  1. क्यों ब्राह्मण, गाय, कुत्ता, कौवा को ही भोजन कराया जाता है?

इन चारों को श्राद्ध में भोजन कराने से माना जाता है कि वे स्वर्ग गए हैं और उनका साथ देने से पितरों को आशीर्वाद मिलता है।

  1. क्या ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन कराने का महत्व है?

हां, ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन कराने से पितरों की कृपा प्राप्त की जा सकती है और उनका आशीर्वाद मिल सकता है।

  1. क्या गाय माता जी को श्राद्ध में भोजन कराने का कोई विशेष कारण है?

गाय माता को श्राद्ध में भोजन कराने से उसकी महत्वपूर्ण भूमिका का समर्थन किया जाता है, और उसका समर्पण पितरों को आनंदित कर सकता है।

  1. क्या कुत्ता और कौवा को भी श्राद्ध में भोजन कराने का कोई विशेष अर्थ है?

हां, कुत्ता और कौवा को श्राद्ध में भोजन कराने से उनका स्वर्ग गमन और उनके साथ देने से पितरों को लाभ मिल सकता है।

  1. क्या अग्नि देव को भोजन कराने का कोई विशेष कारण है?

अग्नि देव को भोजन कराने से उसका समर्पण सूर्य से होता है, और इसके माध्यम से सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

गया में पिण्डदान आदि करने के पश्चात्, क्या हमें फिर श्राद्ध, तर्पण, आदि करना चाहिए या नहीं? धर्मशास्त्रीय निर्णय प्रस्तुत है। गया में श्राद्ध करने के पश्चात् भी पितरों का तर्पण और श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, केवल पिण्ड (दान) पूजन नहीं करना चाहिए। श्राद्ध, तर्पण, पितरों की गोलोकगमन तिथि पर ब्राह्मण को भोजन और श्रद्धापूर्वक दक्षिणा देकर पितरों की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।

नोट: श्राद्ध सदैव मध्याह्नव्यापिनी तिथि में किया जाना चाहिए। अन्य कोई धार्मिक कार्य करें या न करें, किंतु श्राद्ध अवश्य श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।

एक और विचारणीय प्रश्न है, कि श्राद्ध में, ब्राह्मण, गाय, कुत्ता, कौवा को ही भोजन क्यों कराया जाता है?

मैंने इस पर विचार किया, अंत में एक निष्कर्ष निकाला कि ब्राह्मण, गाय, कुत्ता, और कौआ यह चारों सशरीर स्वर्ग गए हैं, क्षमतावान हैं।

ब्राह्मण के रूप में नचिकेता सशरीर स्वर्ग गए।

साथ ही आशीर्वाद देने के समय ब्राह्मण सदैव हृदय से आशीर्वाद देते हैं, उदारमना, संतोषी होते हैं। लोगों के विकर्मों की शांति और उनके दोषों का शमन, उनके दोषों के अपने ऊपर ले लेने की भावना, क्षमता ब्राह्मणों में ही होती है।

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम जी ने स्वयं अपने श्री मुख से कहा है कि, मैं जो कुछ भी हूँ, वह सब ब्राह्मणों की ही कृपा है। गाय माता जी भी सशरीर स्वर्ग गई हैं, कामधेनु। धरती स्वयं गौरूपा है। गाय माता की सुषुम्ना नाड़ी का संबंध सूर्य से होता है।

कुत्ता जी, भी युधिष्ठिर के साथ सशरीर स्वर्ग गए। कौवा साहब भी इन्द्र (स्वर्ग के राजा) के पुत्र जयन्त जी भी काग रूप में स्वर्ग सशरीर वापस गए। इसके साथ ही अग्नि देव को भी भोजन कराया जाता है, क्योंकि अग्नि का अस्तित्व सूर्य से है, सूर्य देव के लिए प्रतीक रूप में अग्नि को भोजन समर्पित करने का विधान है।


2023 में पितृ पक्ष कब है?

इस साल 29 सितंबर 2023 से पितृ पक्ष आरंभ हो जाएगा और 14 अक्टूबर 2023 को पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा।

Pitru Paksha 2023 Date: यहां जानें श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां

 29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- पूर्णिमा श्राद्ध

 29 सितंबर 2023 दिन शुक्रवार- प्रतिपदा श्राद्ध

 30 सितंबर 2023 दिन शनिवार- द्वितीया श्राद्ध

 01 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- तृतीया श्राद्ध

 02 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- चतुर्थी श्राद्ध

03 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार- पंचमी श्राद्ध

04 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- षष्ठी श्राद्ध

05 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- सप्तमी श्राद्ध

 06 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- अष्टमी श्राद्ध

07 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- नवमी श्राद्ध

08 अक्टूबर 2023 दिन रविवार- दशमी श्राद्ध

09 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार- एकादशी श्राद्ध

11 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार- द्वादशी श्राद्ध

12 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार- त्रयोदशी श्राद्ध

13 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार- चतुर्दशी श्राद्ध

14 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार- सर्व पितृ अमावस्या

पितृ पक्ष में क्या करें

पितृ पक्ष में हम अपने पितृगणों की आत्मिक शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। यह तर्पण के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें हम अपने पितृगणों को भोजन और जल देते हैं। इसका महत्व यह है कि हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

पितृ पक्ष में क्या नहीं करें

पितृ पक्ष के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. नई शुरुआतें न करें: इस समय नई कार्यों की शुरुआत नहीं करनी चाहिए, जैसे कि नया व्यापार आदि।
  2. नमक न खाएं: पितृ पक्ष में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  3. बाल कटवाना न करें: इस समय बच्चों के बालों को कटवाना नहीं चाहिए।

पितृ पक्ष के मंत्र

पितृ पक्ष के दौरान कुछ मंत्रों का जाप करना भी अच्छा होता है, जैसे:

  • “ओम् आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।”
  • “ओम् तर्पयामि तुभ्यं ब्रह्माणो द्वितीयकम्।”

पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण हिन्दू परंपरागत त्योहार है जिसका सम्मान करना हमारे पूर्वजों के प्रति आभार और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसके द्वारा हम उन्हें याद रखते हैं और उनकी आत्मा को शांति देते हैं।

FAQ

  1. पितृ पक्ष 2022 Date & Time: Pitru Paksha 2022 is from September 16 to September 30.
  2. पितृ पक्ष Significance: Pitru Paksha is a time to honor ancestors and perform rituals for their peace.
  3. पितृपक्ष Importance: Pitru Paksha holds significance in expressing gratitude and reverence towards ancestors.
  4. पितृ पक्ष 2022 प्रारंभ दिनांक और समय: Pitru Paksha 2022 begins on September 16.
  5. पितृपक्ष 2022 Amavasya: Pitru Paksha Amavasya falls on September 28, 2022.
  6. पितृ पक्ष में पूजा करना चाहिए या नहीं: It is recommended to perform rituals and worship during Pitru Paksha.
  7. पितृ पक्ष 2022 प्रारंभ तिथि: Pitru Paksha 2022 starts on September 16.
  8. पितृ पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए: Avoid starting new ventures or any auspicious events during Pitru Paksha.
  9. पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष 2023: Pitru Paksha Shraddha Paksha in 2023 is 29 सितंबर 2023 – 14 October 2023
  10. पितृ पक्ष में मृत्यु शुभ या अशुभ: Death during Pitru Paksha is considered inauspicious in Hindu beliefs.
  11. पितृ पक्ष 2022 date: Pitru Paksha in 2022 starts on September 16.
  12. पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए: It is advisable to perform rituals and pay homage to ancestors during Pitru Paksha.
  13. पितृ पक्ष में वर्जित कार्य: Avoid auspicious ceremonies, like weddings, during Pitru Paksha.
  14. पितृ पक्ष कब है 2023: Pitru Paksha in 2023 dates are 29 September 2023 – 14 October 2023
  15. पितृ पक्ष कब से शुरू है 2022: Pitru Paksha in 2022 starts on September 16.
  16. पितृ पक्ष में भगवान की पूजा करनी चाहिए या नहीं: Worship of deities during Pitru Paksha is not recommended.
  17. पितृ पक्ष में जल कैसे दिया जाता है: Water is offered to ancestors by pouring it in Bowl having milk and rose leafs .
  18. पितृपक्ष कब है this year: Pitru Paksha dates for the current year 29 September 2023 – 14 October 2023
  19. पितृ पक्ष में बाल कटवाना: Avoid cutting children’s hair during Pitru Paksha.
  20. पितृपक्ष में क्या नहीं करना चाहिए: Things to avoid during Pitru Paksha are not to start new ventures, marriages, house warming , haircut.
  21. पितृ पक्ष में व्रत रखना चाहिए या नहीं: Observing fasts during Pitru Paksha is a personal choice.
  22. पितृ पक्ष कब से शुरू है: Pitru Paksha starts on a specific date is 29th September
  23. पितृ पक्ष कब है 2022: Pitru Paksha in 2022 starts on September 16.
  24. पितृपक्ष के नियम: Rules to be followed during Pitru Paksha like offering Tarpan to Pitra and not to eat onion & garlic and any kind of Nonveg
  25. पितृ पक्ष में जन्मे बच्चे का भविष्य: Impact of a child born during Pitru Paksha is considered bad always
  26. पितृपक्ष में क्या करना चाहिए: Things to do during Pitru Paksha are Rituals and remembering our heavenly family members.
  27. पितृ पक्ष में यात्रा करना चाहिए या नहीं: Travel during Pitru Paksha is a matter of personal choice.
  28. पितृ पक्ष श्राद्ध: Shraddha rituals during Pitru Paksha is considered good.
  29. पितृ पक्ष में क्या दान करना चाहिए: Donations and charity during Pitru Paksha are like anything related to human use from birth to death.
  30. पितृपक्ष में भगवान की पूजा करना चाहिए या नहीं: Worship of deities during Pitru Paksha is not recommended.
  31. पितृ पक्ष अष्टमी श्राद्ध: Eighth day of Pitru Paksha, special rituals are performed  06 october 2023
  32. पितृ पक्ष 2023: Pitru Paksha dates in 2023 from 29th September
  33. पितृ पक्ष में क्या नहीं खाना चाहिए: Avoid specific foods having onion & garlic  during Pitru Paksha
  34. पितृ पक्ष मंत्र: Mantras chanted during Pitru Paksha

ओम् आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।”

“ओम् तर्पयामि तुभ्यं ब्रह्माणो द्वितीयकम्।”

  • पितृ पक्ष में घर में पूजा करना चाहिए या नहीं: Performing home worship during Pitru Paksha is a personal choice.
  • पितृ पक्ष में जन्मे बच्चे कैसे होते हैं: Beliefs about children born during Pitru Paksha are considered like bad only. It is believed that a family member is being reborn.
  • पक्ष में शुभ कार्य: Auspicious activities like weddings are avoided during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष में क्या न करे: Avoid starting new projects or important work during this period.
  • पितृपक्ष में पूजा करना चाहिए या नहीं: It is recommended to perform worship and rituals during Pitru Paksha.
  • पितृपक्ष में क्या नहीं खाना चाहिए: Foods like garlic and onion are avoided during this period.
  • पितृ पक्ष कब से शुरू हो रहा है: The start date of Pitru Paksha varies each year based on the Hindu lunar calendar.
  • पितृ पक्ष क्या होता है: Pitru Paksha is a period to pay homage and respect to deceased ancestors.
  • पितृ पक्ष कब से लग रहा है: The commencement of Pitru Paksha varies each year but dates for this year are 29-9-2023 to 14th October 2023.
  • पितृ पक्ष अमावस्या श्राद्ध: Special rituals and offerings are made on the Amavasya day during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष में भगवान की पूजा करनी चाहिए: Worship of deities during Pitru Paksha is not recommended.
  • पितृ पक्ष क्यों मनाया जाता है: Pitru Paksha is observed to honor and seek blessings for the departed souls.
  • पितृ पक्ष कब खत्म होगा: Pitru Paksha typically lasts for 15 days and concludes on Amavasya which falls on 14th  October 2023.
  • पितृ पक्ष में बच्चे का जन्म: Birth during Pitru Paksha is believed to be inauspicious.
  • पितृ पक्ष में पूजा करनी चाहिए: Paying homage through rituals and prayers is recommended during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष में पितरों को जल कैसे दे: Water is offered by pouring it from the palm as a sign of respect to ancestors.
  • पितृ पक्ष में पूजा करनी चाहिए या नहीं: Performing rituals during Pitru Paksha is a traditional practice.
  • पितृ पक्ष में गर्भधारण करना चाहिए या नहीं: It is generally avoided to conceive during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष में पानी देने की विधि: Water is offered by pouring it on a vessel kept for the purpose having milk & Gangajal mixed with Rose leafs .
  • पितृ पक्ष में बाल कटवाना चाहिए या नहीं: Cutting children’s hair is generally avoided during Pitru Paksha.
  • पितृपक्ष में तर्पण की विधि: Tarpan involves offering water and food to ancestors while reciting specific mantras.
  • पितृ पक्ष meaning in English: “Pitru Paksha” translates to “Fortnight of the Ancestors” in English.
  • पितृ पक्ष क्या है: Pitru Paksha is a period dedicated to honoring deceased ancestors.
  • पितृ पक्ष में मृत्यु होना: Death during Pitru Paksha is considered inauspicious in Hindu beliefs.
  • पितृपक्ष में पूजा करना चाहिए: Performing rituals and prayers is a common practice during Pitru Paksha.
  • पितृपक्ष कब से है: The start date of Pitru Paksha varies each year 29th September
  • पितृ पक्ष कब से कब तक है: Pitru Paksha typically spans 15 days.
  • पितृपक्ष में क्या खाना चाहिए: Simple and sattvic vegetarian food is preferred during Pitru Paksha.
  • पितृपक्षात काय करावे: Special rituals like Tarpan and Shradh are observed during Pitru Paksha.
  • क्या पितृ पक्ष में पूजा करनी चाहिए: Yes, it is a traditional practice to perform worship during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष के नियम: There are specific guidelines and rituals to follow during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष अमावस्या: Amavasya during Pitru Paksha is significant for ancestor worship.
  • पितृ पक्ष कब से शुरू है 2023: The start date of Pitru Paksha in 2023 is 29 September
  • पितृ पक्ष कब से शुरू होगा: The commencement date of Pitru Paksha may vary each year.
  • पितृ पक्ष में गर्भधारण: Conceiving during Pitru Paksha is generally avoided in Hindu culture.
  • पितृ पक्ष कब खत्म हो रहा है: Pitru Paksha typically concludes on Amavasya 14th October 2023.
  • पितृपक्ष में पूजा करना चाहिए कि नहीं: Performing rituals and prayers is a common practice during Pitru Paksha.
  • पितृ पक्ष में मृत्यु होने पर: In case of a death during Pitru Paksha, special rituals are performed to honor the deceased’s soul.
  • Auspicious Activities During Pitru Paksha: It’s best to avoid initiating new, auspicious activities like weddings during this period.
  • What Not to Do During Pitru Paksha: Avoid starting new ventures or important work, as it’s a time for ancestral remembrance and not new beginnings.
  • Tarpan Vidhi During Pitru Paksha: Tarpan involves offering water and food to ancestors while reciting specific mantras.
  • Offering Water During Pitru Paksha: Water is offered respectfully by pouring it on the ground as an offering to ancestors.
  • Should You Worship During Pitru Paksha: Yes, performing rituals and worship during Pitru Paksha is a common practice.
  • Foods to Avoid During Pitru Paksha: It’s recommended to avoid foods like garlic and onion during this time.
  • Start Date of Pitru Paksha: The beginning date of Pitru Paksha varies each year based on the Hindu lunar calendar.
  • What Is Pitru Paksha: Pitru Paksha is a period dedicated to honoring and remembering deceased ancestors.
  • Dates of Pitru Paksha: The specific dates of Pitru Paksha change each year form 29 Sep to 14th  October
  • Amavasya Shradh During Pitru Paksha: Special rituals and offerings are made on the Amavasya day during Pitru Paksha.
  • Worshipping Deities During Pitru Paksha: It’s not recommended; the focus is on ancestor worship.
  • Significance of Pitru Paksha: It’s observed to honor and seek blessings for the souls of departed ancestors.
  • End Date of Pitru Paksha: Pitru Paksha typically lasts for 15 days and concludes on Amavasya 14th October 2023.
  • Birth During Pitru Paksha: Birth during this period is considered inauspicious in Hindu belief.
  • Importance of Worship During Pitru Paksha: Rituals and prayers are performed to honor ancestors.
  • Offering Water to Ancestors: Water is offered respectfully as an homage to ancestors.
  • Should You Perform Worship During Pitru Paksha: Yes, it’s a traditional practice to perform worship during this time.
  • Conceiving During Pitru Paksha: Generally, it’s avoided to conceive during this period.
  • Method of Offering Water During Pitru Paksha: Water is offered by pouring it on the ground or into a vessel kept for the purpose.
  • Hair Cutting During Pitru Paksha: Cutting children’s hair is generally avoided during this time.
  • Tarpan Ritual During Pitru Paksha: Tarpan involves offering water and food to ancestors while reciting specific mantras.
  • Meaning of Pitru Paksha: “Pitru Paksha” translates to “Fortnight of the Ancestors” in English.
  • What Is Pitru Paksha: Pitru Paksha is a period dedicated to honoring deceased ancestors.
  • Death During Pitru Paksha: It’s considered inauspicious in Hindu beliefs.
  • Performing Worship During Pitru Paksha: It’s a common practice to perform rituals and prayers..
  • Start Date of Pitru Paksha: The beginning date varies each year based on the lunar calendar.
  • Duration of Pitru Paksha: Pitru Paksha typically spans 15 days.
  • Diet During Pitru Paksha: Simple and sattvic vegetarian food is preferred.
  • Observances During Pitru Paksha: Special rituals like Tarpan and Shradh are observed.
  • Performing Worship During Pitru Paksha: Yes, it’s a traditional practice.
  • Rules of Pitru Paksha: There are specific guidelines and rituals to follow.
  • Amavasya During Pitru Paksha: Amavasya during this period is significant for ancestor worship.
  • Start Date of Pitru Paksha in 2023: The specific start date for 2023, Sep 29th
  • Commencement Date of Pitru Paksha: The beginning date varies each year.
  • Method of Offering Water During Pitru Paksha: Water is offered respectfully as an homage to ancestors.
  • Conceiving During Pitru Paksha: It’s generally avoided in Hindu culture.
  • Conclusion Date of Pitru Paksha: Pitru Paksha typically concludes on Amavasya 14th  Oct 2023.
  • Performing Worship During Pitru Paksha: It’s a common practice to perform rituals and prayers.
  • In Case of Death During Pitru Paksha: Special rituals are performed to honor the deceased’s soul.
  • Significance of Pitru Paksha: It’s a time to remember and honor ancestors.
  • Physical Relationships During Pitru Paksha: They are generally avoided during this time.

Performing Puja and Prayers During Pitru Paksha: Yes, it’s a traditional practice.

Observances During Pitru Paksha: Various rituals and offerings are made.

What Not to Do During Pitru Paksha: Avoid certain activities during this period.

Performing Worship During Pitru Paksha: It’s a traditional practice during this period.

Start Date of Pitru Paksha in 2022: Refers to the commencement date in 2022.

Vivah Muhurat 2023

विवाह तिथि 2023 ( Vivah Muhurat 2023)

विवाह तिथि निकालने के कुछ नियम :

  1. विवाह तिथि के दिन वर या वधु की राशि से चंद्रमाँ छठी-आठवीं या बारहवीं राशि में नहीं होना चाहिए।
  2. वर अथवा वधु का सप्तमेशं ( सप्तम भाव का स्वामी ) छठी-आठवीं या बारहवीं राशि में नहीं होना चाहिए।
  3. सप्तमेशं वर अथवा वधु की कुंडली में अगर ६-८-१२ भाव में बैठा है तो उसकी दशा-अन्तर्दशा या गोचर में विवाह न करे।
  4. विवाह के फेरो के समय तथा वरमाला के समय मुहूर्त होना आवश्यक है।
  5. जन्म माह और जन्म दिन पर किये गए विवाह शुभ फल नहीं देते या हमारा व्यक्तिगत अनुभव है।
  6. नीचे दी गयी तिथिओ का समय घडी- पल-विपल में दिया गया है :

१ दिन = ६० घडी ( घटी)

१ घटी = ६० पल

१ पल = ६० विपल

समय ( आज के हिसाब से )

१ पल = २४ सेकंड

१ घटी = २४ मिनिट

Shubh Vivah Muhurat -2023

जनवरी विवाह मुहूर्त 2023- Janaury Vivah Muhurat- January Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 04 जनवरी 07:14:37   24:03:10
शुक्रवार, 06 जनवरी 24:14:08   31:14:57
रविवार, 15 जनवरी 07:15:08   19:48:40
बुधवार, 18 जनवरी 07:14:44   16:05:40
रविवार, 22 जनवरी 07:13:48   22:30:19
सोमवार, 23 जनवरी 18:46:25   31:13:30
गुरुवार, 26 जनवरी 18:57:33   31:12:26
       
फरवरी विवाह मुहूर्त 2023February Vivah Muhurat- February Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 01 फरवरी 07:09:40   14:04:45
शुक्रवार, 03 फरवरी 07.08.32   19:00:44
रविवार, 05 फरवरी 07:07:19   12:13:36
शुक्रवार, 10 फरवरी 08:01:59   31:03:55
सोमवार, 20 फरवरी 12:38:17   30:55:41
सोमवार, 27 फरवरी 06:48:57   26:24:19
       
मार्च विवाह मुहूर्त 2023March Vivah Muhurat -March Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
गुरुवार, 02 मार्च 12:44:04   33:14:16
गुरुवार, 09 मार्च 20:57:22   30:38:21
शुक्रवार, 10 मार्च 06:37:14   21:45:38
सोमवार, 13 मार्च 08:21:49   21:30:13
रविवार, 19 मार्च 08:10:11   30:26:59
बुधवार, 22 मार्च 15:32:59   20:23:34
रविवार, 26 मार्च 14:01:30   30:18:53
सोमवार, 27 मार्च 06:17:42   17:30:09
शुक्रवार, 31 मार्च 06:13:05   25:57:52
       
अप्रैल विवाह मुहूर्त 2023-April Vivah Muhurat- April Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 05 अप्रैल 11:23:35   30:07:21
गुरुवार, 06 अप्रैल 06:06:13   30:06:12
शुक्रवार, 07 अप्रैल 06:05:04   10:23:20
सोमवार, 10 अप्रैल 08:39:43   13:39:55
रविवार, 16 अप्रैल 05:55:17   18:16:57
सोमवार, 24 अप्रैल 08:26:46   26:07:30
बुधवार, 26 अप्रैल 05:45:19   11:29:15
गुरुवार, 27 अप्रैल 13:40:18   29:44:24
शुक्रवार, 28 अप्रैल 05:43:29   09:52:57
       
मई विवाह मुहूर्त 2023May Vivah Muhurat-May Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 03 मई 05:39:10   23:51:31
शुक्रवार, 05 मई 05:37:35   21:39:56
शुक्रवार, 12 मई 09:08:44   29:32:31
रविवार, 14 मई 05:31:14   10:16:22
सोमवार, 22 मई 05:26:58   10:36:59
बुधवार, 24 मई 05:26:08   29:26:08
गुरुवार, 25 मई 05:25:45   17:53:53
बुधवार, 31 मई 05:23:52   13:47:29
       
जून विवाह मुहूर्त 2023-June Vivah Muhurat- June Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
गुरुवार, 01 जून 13:40:48   29:23:39
गुरुवार, 08 जून 05:22:39   29:22:39
शुक्रवार, 09 जून 05:22:35   16:22:53
सोमवार, 12 जून 13:49:55   29:22:35
रविवार, 18 जून 10:08:06   18:06:42
बुधवार, 21 जून 05:23:36   15:10:56
सोमवार, 26 जून 12:44:25   26:06:21
बुधवार, 28 जून 05:25:28   29:25:28
गुरुवार, 29 जून 05:25:47   16:30:27
       
जुलाई विवाह मुहूर्त 2023July Vivah Muhurat- July Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 05 जुलाई 10:03:46   29:28:04
शुक्रवार, 07 जुलाई 05:28:57   22:16:49
रविवार, 09 जुलाई 20:01:36   29:29:50
सोमवार, 10 जुलाई 05:30:18   18:45:56
शुक्रवार, 14 जुलाई 19:18:39   29:32:15
       
अगस्त विवाह मुहूर्त 2023August Vivah Muhurat- August Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
सोमवार, 21 अगस्त 05:53:07   29:53:07
गुरुवार, 24 अगस्त 09:04:11   27:11:56
बुधवार, 30 अगस्त 11:00:27   29:57:47
गुरुवार, 31 अगस्त 05:58:16   17:45:54
       
सितंबर विवाह मुहूर्त 2023-September Vivah Muhurat- September Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 06 सितंबर 15:39:48   30:01:17
गुरुवार, 07 सितंबर 06:01:46   16:16:33
रविवार, 10 सितंबर 06:03:15   21:30:47
रविवार, 17 सितंबर 11:11:29   30:06:39
सोमवार, 18 सितंबर 06:07:10   12:41:35
बुधवार, 20 सितंबर 14:59:20   30:08:09
गुरुवार, 21 सितंबर 06:08:38   14:16:28
सोमवार, 25 सितंबर 11:55:10   30:10:39
बुधवार, 27 सितंबर 06:11:39   22:20:46
शुक्रवार, 29 सितंबर 23:19:03   30:12:41
       
अक्टूबर विवाह मुहूर्त 2023-October Vivah Muhurat- October Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
बुधवार, 04 अक्टूबर 06:15:18   29:43:41
रविवार, 08 अक्टूबर 10:15:21   26:45:33
रविवार, 15 अक्टूबर 06:21:33   24:34:57
सोमवार, 23 अक्टूबर 17:46:43   30:26:32
बुधवार, 25 अक्टूबर 06:27:51   12:34:12
       
नवंबर विवाह मुहूर्त 2023November Vivah Muhurat- November Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
शुक्रवार, 03 नवंबर 06:34:09   23:10:04
शुक्रवार, 10 नवंबर 12:38:00   30:39:23
सोमवार, 20 नवंबर 06:47:15   27:18:23
सोमवार, 27 नवंबर 13:35:47   30:52:51
       
दिसंबर विवाह मुहूर्त 2023December Vivah Muhurat- December Marriage Dates
दिनांक आरंभ   समाप्त
शुक्रवार, 01 दिसंबर 15:33:33   30:55:58
गुरुवार, 07 दिसंबर 07:00:29   31:00:29
शुक्रवार, 08 दिसंबर 07:01:13   30:33:41
रविवार, 10 दिसंबर 07:15:24   11:50:16
रविवार, 17 दिसंबर 07:07:07   31:07:08
सोमवार, 18 दिसंबर 07:07:42   15:15:40
गुरुवार, 21दिसंबर 09:39:34   22:09:39
रविवार, 24 दिसंबर 21:19:51   29:57:06
बुधवार, 27 दिसंबर 23:29:28   30:48:43
शुक्रवार, 29 दिसंबर 08:02:22   27:10:28

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