धार्मिक व साम्प्रदायिक उपद्रवों से आतंक में वृद्धि होगी। शासकों में आपसी कलह होकर मंत्रिमंडल में विवाद व हंगामों का वातावरण बार-बार होगा। जिससे विकास जन्य कामों में रुकावटें रहेंगी। उत्तरी पूर्वी प्रान्तों में तेज हवा के साथ हिमपात तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में कहीं वर्षा होगी। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिल में | सामान्य वर्षा होगी। शीत का प्रकोप रहेगा।
तेजी मंदी – चीनी, चावल, गुड़ में तेजी रहेगी,शेयर बाजार, मशीनरी सामान, सोना-चाँदी, ताँबा आदि धातुओं में मंदी रहेगी। कपास, रुई, सूत, अफीम, काफी इत्यादि में तेजी होगी। गेहूँ, मोठ, सोयाबीन, अरण्ड, मूंगफली, तुरई के तेलों में तेजी होगी। 14 जनवरी के बाद चीनी, घी आदि रस पदार्थों तथा मेवा सामान, काजू, बादाम किसमिस में तेजी होगी। शेयर बाजार, केमिकल सामान और प्लास्टिक सामान में तेजी होगी। चाँदी-सोना में अत्यधिक तेजी बनेगी।
फरवरी
विश्व के पश्चिम भूभाग में रोग वृद्धि एवं प्रकृति से प्रजा में भय रहेगा। केन्द्र में शासक नीति की सफलता का देश में सम्मान बढ़ेगा। समुद्र तट के क्षेत्रों में तूफान, चक्रवात का उत्पात होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश पूर्वोत्तर, राजस्थान में सामान्य ओस की धुन्ध का वातावरण रहेगा। हिमपात, ओला, ठिठुरन तेज होगी।
तेजी मंदी — गेहूँ, जौ, चना, मूंग, मोठ, मक्का, तिलहन, अलसी, मटर, सोना-चाँदी में घटाबढ़ी रहेगी। कपास, बिनौला, वस्त्र, फल, सब्जी में तेजी होगी। जीरा, धनियां, मसाले के सामान तथा केमिकल सामान में तेजी रहेगी। शेयर बाजार में उछाल आयेगी। प्लास्टिक सामान, स्टील सामान में तेजी होगी। शेयर बाजार तथा सोना चाँदी में मंदी का झटका लगेगा। लोहे के सामान वाहन | इत्यादि महंगे होंगे।
मार्च
बम विस्फोट, यान दुर्घटना एवं प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की हानि के संकेत हैं। विभिन्न देशों में राजनैतिक सम्बन्ध अकस्मात बिगड़ सकते हैं। कहीं घोर दुर्भिक्ष की स्थिति बनेगी। काश्मीर, हिमांचल प्रदेश, भूटान के क्षेत्रों में हिमपात व वर्षा होगी, शीतलहर चलेगी। मासान्त में मौसम परिवर्तन के लक्षण उभरेंगे। शुक्रवारी प्रतिपदा -से पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात तथा तूफानी हवाओं से रोग होगा। आकाशीय स्थिति प्रायः धूमिल रहेगी।
तेजी मंदी-चीनी, दवा, औषधि में तेजी आयेगी, चावल, चना में मंदी, सोना-चाँदी, ताँबा आदि धातु तेज होंगे। मशीनरी सामान एवं लोहे के सामान में अस्थिरता बनकर तेजी होगी। सरसो, एरण्ड, मूंगफली, सोयाबीन तेलों में तेजी, गुड़, शक्कर, रसपदार्थ में मंदी होगी। गेहूँ, चावल, ज्वार, मूंग, मोठ आदि धान्य भावों में गिरावट आयेगी। पीली वस्तु में या धातु में तेजी आयेगी। प्लास्टिक, रबड़ के सामान में, शेयर में अस्थिरता रहेगी।
अप्रैल
देश की सीमाओं पर शान्ति को भंग करने वाले देश से भारत को स्वयं निपटना होगा। प्रधान शासक की गरिमा (प्रतिष्ठा) बढ़ेगी। भारतीय जनता पार्टी का पड़ला भारी रहेगा। तापमान में तेजी आयेगी। पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं सामान्य वर्षा होगी। हि.प्र., मणिपुर, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक के कुछ स्थानों में वर्षा होगी। बिहार, उत्तर प्रदेश में बादल व बूंदाबांदी हो सकती है।
तेजी मंदी-सोना-चाँदी, ताँबा, मशीन, लोहे के सामान में तेजी आयेगी। सभी तेल, तिलहन के भाव में अस्थिरता रहेगी। सभी प्रकार के अनाज में तेजी आयेगी। रासायनिक पदार्थ, औषधि एवं शेयर बाजारों में उछाल आयेगी। सभी प्रकार के दलहन के भाव अस्थिर रहेंगे।
मई
चीन, बंगला देश, पाकिस्तान की गतिविध पर ध्यान रखना पड़ेगा। कुछ मुस्लिम राष्ट्र पर भयंकर युद्ध के समाचार मिलेंगे। किसी भी देश में युद्ध अवश्य होगा। लू व गर्मी का प्रकोप बहुत ज्यादा रहेगा। आन्ध्रप्रदेश महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के क्षेत्रों में ज्यादा गर्म रहेगा। उत्तरार्ध में सामान्य वर्षा के योग है।
तेजी मंदी – सभी प्रकार के धान्य महँगे होंगे। चना, सरसों, मूंगफली तथा पीली वस्तुओं में तेजी आयेगी। मेवा के सामान, प्लास्टिक, रबड़ एवं शेयर के बाजार में अस्थिरता रहेगी।
जून
पूर्वी गोलार्ध में युद्ध का भय बनेगा। रुस, जापान, चीन, वर्मा, पूर्वी भारत एवं आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों में तूफान, भूकम्प, भूस्खलन एवं हिमपात से जन-धन की हानि होगी। बादल चाल रहकर भी वर्षा नहीं होगी। तापमान अधिक रहेगा, महाराष्ट्र, उड़ीसा के पूर्वी क्षेत्र, बंगाल व असम में वर्षा तथा हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश में वर्षा अवरोध रहेगा। दक्षिण प्रान्तों में एवं उत्तर प्रान्त में प्रलयकारी वर्षा के योग हैं।
तेजी मंदी -अनाज के भावों में उतार-चढ़ाव रहेगा। शेयर बाजारों में तेजी आयेगी। सोना-चाँदी आदि में गिरावट आयेगी। ईंधन, पेट्रोल, डीजल आदि में तेजी रहेगी। तिलहन एवं दलहन के भाव स्थिर रहेंगे।
जुलाई
पर्वतीय क्षेत्र में भयंकर आता आ सकती है। विकृति जन्य अनेक प्रकार के रोगों से जनता परेशान होगी। चीन में बाढ़, तूफान से विशेष हानि हो सकती है। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में वर्षा सामान्य होगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश में वायु के साथ अच्छी वर्षा होगी। आसाम, बंगाल, बिहार, कर्नाटक में अतिवृष्टि से लोग परेशान होंगे। काश्मीर में या हिमाचल में बादल फटने जैसी घटना हो सकती
तेजी मंदी-सभी अनाजों में तेजी होगी। पीली वस्तु में तेजी, शेयर के भाव नीचे गिर सकते हैं। रस पदार्थ में मंदी होगी। लोहा सामान, चाय, काफी, अफीम, रेशमी वस्त्र में तेजी आयेगी। सभी प्रकार के तेल, घी | आदि में घटाबढ़ी चलेगी।
अगस्त
पर्वतीय प्रान्तों में प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की। हानि होगी। बिहार में भयंकर बाढ़ की स्थिति एवं भारत के कुछ प्रान्तों में सूखा रहेगा। कृषकों के लिये कठिन परिस्थिति हो सकती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में आकाश साफ रहेगा। बंगाल, बिहार, मणिपुर, असम, अरुणाचल में भारी तूफान आने की संभावना है। दक्षिण पश्चिम के प्रान्तों में जोरदार वर्षा हो सकती है। बाढ़ से लोग परेशान हो जायेंगे।
तेजी मंदी – प्लास्टिक, केमिकल सामान, सभी मसाले के सामान में स्थिरता रहेगी। शेयर के भावों में आगे पीछे होकर जोरदार तेजी आयेगी। मशीन कल पुर्जे, वाहन, लोहे के सामान, स्टील में अच्छी तेजी आयेगी। केमिकल सामान, रंगरोगन, औषधियों में घटाबढ़ी चलेगी।
सितम्बर
भारत नये-नये देश में औद्योगिक प्रगति शेष कुप्रभावों का उपकरण अनार्य उपायों से प्राप्त करेगी। इस मास में कहीं-कहीं सामान्य होगी। | वायुवेग का प्रकोप रहेगा। हिमाचल प्रदेश, काश्मीर क बिहार के क्षेत्रों में वर्षा होगी। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश में खण्डवृष्टि के योग है। तापमान में गिरावट के साथ मौसम में परिवर्तन हो सकता है।
तेजी मंदी – शेयर बाजारों में अस्थिरता रहेगी। चना, मूंग, मोठ, उड़द आदि दलहन व धान्यों में तेजी होगी। गुड़, शक्कर, चीनी, अलसी, मूंगफली, सरसो, सोयाबीन तेलों में तेजी होगी। मासान्त में शेयर नीचे आ सकते हैं।
अक्टूबर
केन्द्र सरकार के अथक प्रयासोपरास्त भी निर्वाचन जन्य स्थिति उभरेगी। बाल मृत्युदर में वृद्धि होगी। पूर्वी प्रान्तों बंगाल, आसाम, बिहार, अरुणाचल, मेघालय आदि में तथा समुद्र तटीय नगरों में तूफान के साथ वर्षा होगी। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में खण्ड वर्षा होगी। उत्तरी क्षेत्रों में तापमान में गिरावट आयेगी।
तेजी मंदी-सभी तेलों के भावों में तेजी होगी। चावल, जौ, गेहूं, चना में मंदी आयेगी। सोना, चाँदी, मूंग, मोठ में तेजी, रसायनिक वस्तु, प्लास्टिक की वस्तु तथा रेशमी कपड़े में तेजी, शेयर बाजारों में पटा चलती रहेगी, मेवा के सभी सामान में अस्थिरता रहेगी।
नवम्बर
आयात निर्यात के नये कानूनों में जनता को श्रेष्ठ -लाभ होगा। शासकीय कर्मचारियों के लिये अच्छी खबर आयेगी। बादल चाल के साथ शीत वायु का प्रकोप बढ़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात अथवा ओला वृष्टि हो सकती -है। मध्य भारत में वायु वेग रहेगा। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में वर्षा हो सकती है।
तेजी मंदी – अनाजों में मंदी रहेगी। गुड़, शक्कर, चीनी, घी आदि रस पदार्थों में तथा मेवा सामान काजू बादाम, किसमिस में तेजी रहेगी। शेयर बाजार, केमिकल सामान, प्लास्टिक सामान, सोना-चाँदी में झटके की। तेजी बनेगी। चाय, अफीम, तम्बाकू आदि नशीले पदार्थ में तेजी आयेगी।
दिसम्बर
शांति भंग होगी। उत्तर में खड़ी फसलों को हानि, | राजनीत के नये नये समीकरण बनेंगे। भारत की सेना का मनोबल बढ़ेगा। आसमान में धुन्ध हो सकती है। | कई जगहों पर वर्षा भी हो सकती है। राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों में लगातार बादल दिखाई देंगे। खण्ड वर्षा के साथ शीत प्रकोप बढ़ेगा।
तेजी मंदी – मसाले की वस्तुओं एवं किराना वस्तुओं में तेजी आयेगी। सभी प्रकार के अनाजों में घटाबढ़ी। चलेगी। सोने-चाँदी में उछाल तथा शेयर बाजारों में तेजी रहेगी। ऊनी वस्त्रों में तेजी रहेगी। सभी प्रकार के तेल तिलहन एवं वनस्पति घी में तेजी रहेगी।
हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले दीपावली के त्योहार का समय आगया है। इस साल, दीपावली का आयोजन 12 नवंबर 2023, रविवार को होगा। यह पाँच दिनों तक चलेगा, जिसमें धनतेरस, छोटी दिवाली, दीपावली, गोवर्धन पूजा, और भाई दूज शामिल हैं।
दीपावलीकामहत्व- The Importance of Diwali
दीपावली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। दीपावली को रोशनी, उल्लास और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है।
दीपावलीकामहत्वनिम्नलिखितहै– The Importance of Diwali is Given Below
अंधकार पर प्रकाश की विजय: दीपावली को अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों, दुकानों और मंदिरों में दीपक जलाते हैं। दीपक प्रकाश का प्रतीक है और अंधकार का प्रतीक है। इसलिए, दीपावली के दिन दीपक जलाकर लोग अंधकार पर प्रकाश की विजय का जश्न मनाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की विजय: दीपावली को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम अयोध्या लौटकर आये थे। भगवान राम को अच्छाई का प्रतीक माना जाता है और रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, दीपावली के दिन भगवान राम की पूजा करके लोग बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हैं।
धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति: दीपावली को धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन लोग लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी धन और समृद्धि की देवी हैं और गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। इसलिए, दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करके लोग धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति की कामना करते हैं।
दीपावली का त्योहार लोगों के लिए एक विशेष अवसर होता है। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं। दीपावली के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाई और पकवान खाते हैं, और आतिशबाजी करते हैं। दीपावली का त्योहार लोगों में भाईचारे और प्रेम की भावना को बढ़ावा देता है।
दीपावली: धन, समृद्धि, और खुशियों का उत्सव
दीपावली एक ऐसा त्योहार है जो धन, सुख-समृद्धि, और खुशहाली की भरपूर शुभकामनाएं लेकर आता है। इस दिन लोग नए सामान की खरीदारी करते हैं और मिठाई, पकवान, और विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
दीपावली 2023 के मुहूर्त- Deewali 2023 Muhurat
पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या 12 नवंबर 2023, रविवार, दोपहर 02 बजकर 44 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 13 नवंबर 2023, सोमवार, दोपहर 02 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी।
दीपावली के शुभ मुहूर्त-The auspicious timings for Diwali
लक्ष्मी पूजा: सुंदरता और शुभता का महत्वपूर्ण त्योहार
लक्ष्मी पूजा को समर्पित करने के लिए सही मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे शाम 5:07 बजे से 7:15 बजे तक मनाना शुभ माना गया है।
आरंभ: 12 नवंबर 2023, रविवार, दोपहर 2:44 बजे
समाप्त: 13 नवंबर 2023, सोमवार, दोपहर 2:56 बजे
लक्ष्मी पूजा का विशेष समय- Auspicious Worship Time for Laxmi Poojan
शाम 05:39 से रात 07:35 तक (12 नवंबर 2023)
अवधि: 01 घंटा 56 मिनट
अन्य महत्वपूर्ण मुहूर्त- Other Auspious Muhurat
प्रदोष काल: शाम 05:29 से रात 08:08 तक
वृषभ काल: शाम 05:39 से रात 07:35 तक
निशिता काल मुहूर्त: रात 11:39 से 13 नवंबर 2023, प्रात: 12:32 तक (अवधि: 53 मिनट)
सिंह लग्न: प्रात: 12:10 से प्रात: 02:27 तक (13 नवंबर 2023)
इस दीपावली, इन शुभ मुहूर्तों का उपयोग करके अपने घर को माँ लक्ष्मी की कृपा से भर दें और नए साल की शुरुआत को धन, समृद्धि, और सुख के साथ करें।
दीपावली के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त: लक्ष्मी पूजा का अद्वितीय अनुभव
अपराह्न मुहूर्त (शुभ):
दोपहर 02:44 से दोपहर 02:47 तक (12 नवंबर 2023)
सायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर):
शाम 05:29 से रात 10:26 तक (12 नवंबर 2023)
रात्रि मुहूर्त (लाभ):
प्रात: 01:44 से प्रात: 03:24 तक (13 नवंबर 2023)
उषाकाल मुहूर्त (शुभ):
प्रात: 05:06 से 06:45 तक (13 नवंबर 2023)
नोट:
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल के दौरान होता है।
निशिता काल मुहूर्त मध्यरात्रि में होता है।
चौघड़िया मुहूर्त एक घंटे का होता है।
दीपावली में प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का महत्व
दीपावली पर प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। प्रदोष काल सूर्यास्त से लेकर चंद्रोदय तक का समय होता है। इस समय में लक्ष्मी पूजा करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन-धान्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा करने का एक अन्य कारण यह भी है कि इस समय में स्थिर लग्न होती है। स्थिर लग्न को लक्ष्मी के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए इस समय में लक्ष्मी पूजा करने से धन की देवी लक्ष्मी घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं।
दीपावली 2023 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
दीपावली 2023 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:39 से रात 7:35 तक है। इस दौरान आप लक्ष्मी पूजा कर सकते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा विधि
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे पहले घर को साफ-सुथरा कर लें। फिर, पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां या तस्वीरें स्थापित करें। इसके बाद, धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, और माला अर्पित करें। फिर, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती करें। अंत में, प्रसाद बांटें।
दीपावली पर क्या करें क्या नहीं- Do & Don’t Do
दीपावली पर घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं।
दीपावली पर नए कपड़े पहनें।
दीपावली पर मिठाई, पकवान और अन्य व्यंजनों का आनंद लें।
दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करें।
दीपावली पर निम्नलिखित कार्य करने से बचें- Avoid this things on Deewali
दीपावली पर किसी को उधार न दें।
दीपावली पर झूठ न बोलें।
दीपावली पर किसी को अपशब्द न कहें।
दीपावली पर किसी का अपमान न करें।
दिवाली पूजा के लिए सामग्री सूची 2023 (Diwali 2023 Puja Samagri List)
मां लक्ष्मी, गणेश जी, माता सरस्वती और कुबेर देव की मूर्ति
इस दिवाली, जब आप मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करने के लिए तैयार हो रहे हैं, तो यहां है एक सूची जो आपको उन्हें समर्पित करने के लिए आवश्यक सामग्री की महत्वपूर्ण सूची है:
पूजा सामग्री-
मूर्तियाँ: मां लक्ष्मी, गणेश जी, माता सरस्वती और कुबेर देव की मूर्तियाँ
पूजा के फूल: अक्षत्, लाल फूल, कमल के और गुलाब के फूल
पूजा आर्टिकल्स: माला, सिंदूर, कुमकुम, रोली, चंदन, पान का पत्ता, सुपारी
बर्तन और खाद्य सामग्री: केसर, फल, कमलगट्टा, पीली कौड़ियां, धान का लावा, बताशा, मिठाई, खीर, मोदक, लड्डू, पंच मेवा
मिठा स्वाद: शहद, इत्र, गंगाजल, दूध, दही, तेल, शुद्ध घी
अन्य सामग्री: कलावा, पंच पल्लव, सप्तधान्य
पूजा के उपकरण: कलश, पीतल का दीपक, मिट्टी का दिया, रुई की बत्ती, नारियल, लक्ष्मी और गणेश के सोने या चांदी के सिक्के, धनिया
पूजा के स्थान की सजावट: आसन के लिए लाल या पीले रंग का कपड़ा, लकड़ी की चौकी, आम के पत्ते
धूप सामग्री: लौंग, इलायची, दूर्वा आदि।
दिवाली 2023 पूजा विधि (Diwali Puja Vidhi 2023)
इस दिवाली, लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा को सही ढंग से करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
पूजा की तैयारी
साफ-सफाई: पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं.
पूजा स्थल सजाएं: चौकी पर बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें और कलश को अनाज के बीच में रखें.
कलश में सामग्री डालें: कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें.
आम के पत्ते और मूर्तियाँ रखें: कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें, देवी लक्ष्मी की मूर्ति और भगवान गणेश की मूर्ति भी रखें.
थाली सजाएं: एक छोटी-सी थाली में चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें.
अर्थिक सामग्री प्रदर्शित करें: अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें.
पूजा का आरंभ
मूर्तियों की पूजा: देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं.
कलश पर तिलक: कलश पर भी तिलक लगाएं.
फूल चढ़ाएं: भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं.
पूजा सामग्री से स्नान: पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें और मूर्तियों को स्नान कराएं.
पूजा सामग्री से पूजा: मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें।
धूप और आरती: माला को देवी के गले में डालें और अगरबत्ती जलाएं। नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें।
आरती करें: देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें, थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें।
इस दिवाली, यह पूजा विधि आपके घर में धन, समृद्धि, और शांति का आभास कराएगी।
दीपावली पूजा मंत्र (Diwali Puja Mantra) – सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए
दीपावली, जो धरती पर आत्मा की ऊर्जा को पुनः जगाती है, उसे मनाने का समय है। यह विशेष त्योहार हमें नए आरंभों की ओर मोड़ने का भी मौका प्रदान करता है। दीपावली पूजा मंत्रों का उच्चारण एक शक्तिशाली पूजन विधि है जो सुख, समृद्धि, और धन की प्राप्ति में सहायक हो सकती है।
दिवाली में क्या करें?
दिवाली के दिन, प्रातःकाल स्नान करने के बाद सुंदर वस्त्रों में धारण करें। दिन में अच्छे पकवान बनाएं और घर को सजाएं, इससे घर में पॉजिटिव ऊर्जा बढ़ेगी। अपने बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करें और शाम को पूजा से पहले पुनः स्नान करें। लक्ष्मी-गणेश की पूजा विधि का पालन करें, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और गद्दी को विधिपूर्वक पूजित करें। घर के मुख्य द्वार पर दिपक जलाएं, जो समृद्धि का प्रतीक है।
दिवाली में क्या न करें?
इस पवित्र दिन पर, घर के प्रवेश द्वार पर और घर के अंदर कहीं भी गंदगी न रखें, इससे शुभता बनी रहेगी। किसी गरीब या जरूरतमंद को दरवाजे से खाली हाथ न लौटाएं, यह दान का महत्वपूर्ण समय है। जुआ न खेलें, शराब पीने और मांसाहारी भोजन से बचें। भगवान गणेश की मूर्ति में सूंड बायीं ओर रखें, इससे धन का संरक्षण हो सकता है। लेदर से बने तोहफे, धारदार तोहफे उपयोग न करें। पूजा स्थल को रात भर खाली न छोड़ें, वहां दिए में इतना घी या तेल डालें कि पूरी रात जलता रहे।
दिवाली उपाय (Diwali 2023 Upay)
दीपावली की रात, मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी को प्रसन्न करने के लिए उनके प्रिय भोग अर्पित करें। लक्ष्मी जी को खीर या दूध से बनी सफेद मिठाई का भोग लगाएं, गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें और उनको मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। कुबेर देवता को साबुत धनिया से चढ़ाएं। माना जाता है कि इस से लक्ष्मी-गणेश और कुबेर प्रसन्न होंगे और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा।
लक्ष्मी पूजा की विधि-The procedure of Lakshmi Puja
लक्ष्मी पूजा की शुरुआत एक साफ-सुथरे घर से होती है। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, उस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां या तस्वीरें स्थापित की जाती हैं। इसके बाद, धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, और माला से पूजा की जाती है। फिर, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती की जाती है। अंत में, प्रसाद बांटा जाता है।
सामग्री- Pooja Articles
लक्ष्मी यंत्र
गंगाजल
रोली
चावल
पुष्प
दीपक
धूप
अगरबत्ती
मिठाई
फल
धनिया
पान का पत्ता और सुपारी
नारियल
कलश
पूजा विधि: Worship Procedure
सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
कलश को चौकी के मध्य में रखें। कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें। कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें।
बीच में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति रखें।
अब एक छोटी-सी थाली में चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें दें।
इसके बाद अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें।
अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं। साथ ही कलश पर भी तिलक लगाएं।
इसके बाद भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं और पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें।
अपनी आंखें बंद करें और लक्ष्मी पूजा मंत्र का जाप करें। हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ाएं।
लक्ष्मी जी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। मूर्ति को फिर से पानी से स्नान कराकर, एक साफ कपड़े से पोछें और वापस रख दें।
मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें। माला को देवी के गले में डालकर अगरबत्ती जलाएं।
फिर नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें।
देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें।
थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें।
लक्ष्मी पूजा मंत्र: Laxmi Pooja Mantra
ॐ श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:
लक्ष्मी आरती- Laxmi Ji Aarti
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॐ जय लक्ष्मी माता
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता तुम शत्रु दमनकारी, तुम सबकी रक्षाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम सिंहासन पर विराजो, करो सब पर दया तुम बिना सुख ना पाए, कोई भी जग में ॐ जय लक्ष्मी माता
तुमको शंख, चक्र, गदा, धनुष बाण सुहाता तुमको कमल है प्यारा, तुमको भोग लगाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुमको नारियल चढ़ाऊं, सुपारी, पान का पत्ता तुमको दूध का अर्घ्य दूँ, धूप, दीप, अगरबत्ता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम रक्षा करो हमारी, हर दोष मिटा दो तुम कृपा करो हम पर, सुख-शांति बसा दो ॐ जय लक्ष्मी माता
पूजा के बाद प्रार्थना- Prayer after Worship
हे मां लक्ष्मी, मैं आपकी पूजा-अर्चना करके आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता/चाहती हूं। आप मेरे जीवन में धन, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करें। मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
लक्ष्मी पूजा के नियम- Rules for Laxmi Pooja
लक्ष्मी पूजा में केवल साफ और पवित्र वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
लक्ष्मी पूजा में हृदय से मंत्र का जाप करना चाहिए।
लक्ष्मी पूजा के बाद लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए।
लक्ष्मी पूजा के लाभ- Benefits of Laxmi Pooja
लक्ष्मी पूजा से धन, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
लक्ष्मी पूजा से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
लक्ष्मी पूजा से परिवार में प्रेम और सद्भावना बढ़ती है।
कुबेर पूजा विधि- Kuber Worship Procedure
सामग्री- Articles
कुबेर यंत्र
गंगाजल
रोली
चावल
पुष्प
दीपक
धूप
अगरबत्ती
मिठाई
फल
धनिया
पान का पत्ता और सुपारी
नारियल
पूजा विधि- Pooja Procedure
सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े। दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे। योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
गदा त्रिशूल हाथ में,शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे। दुख भय संकट मोचन,धनुष टंकार करें॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
भाँति भाँति के व्यंजन बहुत बने,स्वामी व्यंजन बहुत बने। मोहन भोग लगावैं,साथ में उड़द चने॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
अपने भक्त जनों के,सारे काम संवारे॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
मुकुट मणी की शोभा,मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले। अगर कपूर की बाती,घी की जोत जले॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
यक्ष कुबेर जी की आरती,जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे। कहत प्रेमपाल स्वामी,मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
इति श्री कुबेर आरती ॥
पूजा के बाद प्रार्थना- Prayer after Worship
हे कुबेर देवता, मैं आपकी पूजा-अर्चना करके आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता/चाहती हूं। आप मेरे जीवन में धन, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करें। मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
कुबेर पूजा के नियम- Rules for Kuber Ji Worship
कुबेर पूजा हमेशा उत्तर दिशा में करना चाहिए।
कुबेर पूजा में केवल साफ और पवित्र वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
कुबेर पूजा से धन, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
कुबेर पूजा से व्यापार में वृद्धि होती है।
कुबेर पूजा से कर्ज से छुटकारा मिलता है।
कुबेर पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Conclusion
दीपावली का पर्व हमें अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैलाना चाहिए। यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि हमें हमेशा अच्छाई का साथ देना चाहिए और बुराई से दूर रहना चाहिए। दीपावली का पर्व हमें मिलकर रहने और खुशियां मनाने का संदेश भी देता है। इस त्योहार के माध्यम से हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मना सकते हैं और उनसे प्यार और सद्भाव का रिश्ता बना सकते हैं। दीपावली का पर्व एक खुशियों का त्योहार है और हमें हमेशा खुश रहने का संदेश देता है।
Govardhan Pooja– गोवर्धन पूजा, भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के एक महत्वपूर्ण घटना के स्मरण के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की भक्ति करना और उनके द्वारका प्राप्ति की आशीर्वाद प्राप्त करना है।
History -इतिहास
भगवान कृष्ण के जन्म के बाद, वो वृन्दावन में बचपन में वत्सलय और लीलाओं के साथ गुजरे। एक दिन, गोपिका और गोप बच्चे बड़े उत्साहित होकर गोवर्धन पर्वत के चारों ओर पूजा करने के लिए तैयार हुए। भगवान कृष्ण ने देखा कि उनके भक्तों के मन में ईश्वरीय भावना है और वे गिरिराज गोवर्धन को पूज रहे हैं, उनके मन में ब्रह्मांड के एकत्व की भावना है। इस पर्व के माध्यम से, भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों के प्रेम को महत्वपूर्ण बनाया और गोवर्धन पर्वत को उठाने का निर्णय लिया। जिस से वहां के निवासियों की इंद्र के कोप से रक्षा की जा सके |
Event- घटना
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने कृपाशक्ति से उठाया और गोपों और गोपियों को पर्वत के नीचे शरण दी । इससे उन्हें इन्द्र के कोप से बचाया जो लगातार वर्षा करके सभी को पानी में डूबाना चाहते थे क्युकी वहां के निवासी इंद्र की जगह भगवान् कृष्ण की पूजा कर रहे थे|
Siginificance -महत्व
गोवर्धन पूजा का महत्व है कि यह भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और विश्वास का प्रतीक है। इस दिन भगवान कृष्ण की मूर्ति व गोवर्धन पर्वत के प्रति भक्तों की पूजा की जाती है। लोग गोवर्धन पर्वत को बनाने और सजाने में विशेष ध्यान देते हैं और उसे अन्न, फल, फूल आदि से सजाते हैं।
इस दिन, भक्त गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसे ‘गोवर्धन परिक्रमा’ कहा जाता है, जिससे भगवान कृष्ण के लीला को याद किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की आराधना और भक्ति की जाती है, और लोग उनके गुणगान करते हैं।
The Significance of Govardhan Puja and Annakut Festival- गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकामहत्व
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव हिन्दू धर्म के दो महत्वपूर्ण त्योहार हैं। ये त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा गोकुलवासियों की रक्षा के उपलक्ष में मनाए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र देवता के प्रकोप से बचाया था। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति और पराक्रम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
अन्नकूट महोत्सव नई फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को 64 प्रकार के व्यंजन भोग लगाए जाते हैं। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है।
The tradition of Govardhan Puja and Annakut Festival-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकीपरंपरा
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव की परंपरा बहुत पुरानी है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इस त्योहार को शुरू किया था। तब से लेकर आज तक यह त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
How is Govardhan Puja and Annakut Mahotsav celebrated?-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकैसेमनायाजाताहै?
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। इसके बाद, वह अपने घरों में गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा या चित्र बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। पूजा के बाद, वह भगवान श्रीकृष्ण को 64 प्रकार के व्यंजन भोग लगाते हैं।
इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं। माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अन्नकूट महोत्सव के दिन लोग अपने घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं और उनका आदान-प्रदान करते हैं। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर भोजन करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
The Significance of Govardhan Puja and Annakut Mahotsav-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकामहत्व
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के कई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व हैं। ये त्योहार हमें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा गोकुलवासियों की रक्षा के उपलक्ष में मनाए जाते हैं। ये त्योहार हमें कृतज्ञता व्यक्त करना भी सिखाते हैं।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव हमें प्रकृति के प्रति सम्मान करना भी सिखाते हैं। गोवर्धन पर्वत प्रकृति का ही एक रूप है। इस पर्वत की पूजा करके हम प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
“When is Govardhan Puja?-कबहैगोवर्धनपूजा?
गोवर्धन पूजा 2023, 14 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है और इसी दिन अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने जिस गोवर्धन को अपनी चींटी उंगली में उठा लिया था उसकी पूजा और परिक्रमा का महत्व है। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र देवता को पराजित किए जाने के उपलक्ष में मनाया जाता है। कभी-कभी दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अन्तराल हो सकता है, जैसा की इस बार है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 13 नवम्बर 2023 को दोपहर 02:56 से प्रारंभ होगी।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 14 नवम्बर 2023 को दोपहर 02:36 को समाप्त होगी
“The morning auspicious time for Govardhan Puja-गोवर्धनपूजाकाप्रातःकालमुहूर्त:
गोवर्धन पूजा का प्रातः काल मुहूर्त सुबह 06:43 से 08:52 तक है। इस समय के दौरान, आप भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा कर सकते हैं।
“Other auspicious times.” -अन्यशुभमुहूर्त:
दिवाली अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:44 से 12:27 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:53 से 02:36 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:28 से 05:55 तक
सायाह्न पूजा: शाम 05:28 से 06:48 तक
अमृत काल: शाम 05:00 से 06:36 तक
अन्यजानकारी– Other Information
गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन, भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
2022 गोवर्धन पूजा की तारीख और शुभ मुहूर्त
2022 में गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त निम्नलिखित है:
प्रारंभ: 25 अक्टूबर, 2023 को शाम 4 बजकर 18 मिनट
समापन: 26 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 2 बजकर 44 मिनट
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के स्मरण में मनाया जाता है। इस दिन, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोपों और ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। इस घटना ने भगवान कृष्ण की महान शक्ति और भक्तों के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाया।
गोवर्धन पूजा का महत्व निम्नलिखित है:
यह भगवान कृष्ण की भक्ति और विश्वास का प्रतीक है।
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भगवान के प्रति निष्ठा और भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है।
यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति आदर और सम्मान का भाव सिखाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा के दिन, लोग अपने घरों में गोवर्धन पर्वत की मिट्टी से बनी मूर्ति की पूजा करते हैं। इसके साथ ही, लोग गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा भी करते हैं। पूजा में भगवान कृष्ण को अन्न, फल, फूल, मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
Somvati Amvasya, सोमवती अमावस्या का दिन पुराणों में भी बहुत महत्व दिया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में देवताओं की रक्षा की थी। इसीलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से रोगों से मुक्ति और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
सोमवतीअमावस्यापरस्नानऔरदानकामहत्व
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान का बहुत महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या का समय और मुहूर्त
सोमवती अमावस्या 2023, 13 नवंबर को, सुबह 6:31 बजे से शुरू होकर, 14 नवंबर को, सुबह 5:01 बजे तक समाप्त होगी।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 बजे से 8:11 बजे तक है।
सोमवतीअमावस्यापरपितरोंकाश्राद्ध
सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें शांति मिलती है और उनकी आत्माएं तृप्त होती हैं। इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सोमवतीअमावस्याकेदिनध्यानऔरमंत्रोंकाजाप
सोमवती अमावस्या के दिन ध्यान और मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस दिन भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
सोमवतीअमावस्याकेदिनउपवासऔरब्रह्मचर्य
सोमवती अमावस्या के दिन उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। इस दिन उपवास रखने से शरीर में विषैले पदार्थों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
सोमवतीअमावस्याकेदिनविशेषउपाय
इस दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करें।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के मंत्रों का जाप करें।
इस दिन व्रत रखें और उपवास करें।
इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
Conclusion :
सोमवती अमावस्या हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन पूजा करने से हमें सभी मनोकामनाओं की पूर्ति, पितरों की आत्माओं को शांति, पुण्य की प्राप्ति, रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय, वैवाहिक जीवन में सुख-शांति, संतान प्राप्ति और आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है।
इस दिन हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के साथ-साथ स्नान, दान, पितरों का श्राद्ध, ध्यान, मंत्रों का जाप, उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से हमें इस दिन के विशेष लाभ प्राप्त होंगे और हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध होगा।
सोमवती अमावस्या क्या है?
सोमवती अमावस्या हिंदू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है जो अमावस्या के दिन होती है।
सोमवती अमावस्या का महत्व क्या है?
सोमवती अमावस्या का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है, जो इसे भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के दिन के रूप में जानते हैं।
इस दिन किस भगवान की पूजा की जाती है?
सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
क्या भगवान विष्णु का भी कोई महत्व है इस दिन?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में देवताओं की रक्षा की थी, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
सोमवती अमावस्या पर स्नान क्यों महत्वपूर्ण है?
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे दान देने का प्राम्य होता है?
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या का समय क्या होता है?
सोमवती अमावस्या 2023 में, 13 नवंबर को, सुबह 6:31 बजे से शुरू होकर, 14 नवंबर को, सुबह 5:01 बजे तक समाप्त होगी।
सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त कब होता है?
इस दिन भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 बजे से 8:11 बजे तक होता है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे पितरों का श्राद्ध करने का आदर्श माना गया है?
सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने का आदर्श माना गया है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे ध्यान और मंत्रों का जाप करने की सिफारिश की जाती है?
सोमवती अमावस्या के दिन ध्यान और मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने की सिफारिश की जाती है
सोमवती अमावस्या के दिन उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं
सोमवती अमावस्या के दिन किसे विशेष उपाय करने की सिफारिश की जाती है?
इस दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करने, गरीबों को दान देने, मंत्रों का जाप करने, व्रत रखने और उपवास करने की सिफारिश की जाती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किस मंत्र का जाप करने का विशेष फल होता है?
इस दिन भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
सोमवती अमावस्या के दिन कैसे व्रत रखा जाता है?
इस दिन व्रत रखने की सिफारिश की जाती है, जिससे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन ब्रह्मचर्य का पालन क्यों किया जाता है?
ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है, इसलिए इसे सुझाया जाता है।
सोमवती अमावस्या के महत्व का संक्षेप में क्या है?
सोमवती अमावस्या हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का अवसर प्रदान करता है,
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने असुरराज नरकासुर का वध किया था और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करते हैं, भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करते हैं, घर को साफ-सुथरा रखते हैं और दीया जलाते हैं। इस दिन परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताया जाता है, मिठाई खाई जाती है और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद की जाती है। नरक चतुर्दशी का पर्व हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करता है।
नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल नरक चतुर्दशी 12 नवंबर 2023 को है। इसे छोटी दिवाली, रूप चौदस,नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व-The Significance of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन भगवान कृष्ण ने असुरराज नरकासुर का वध किया था और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन यमराज की पूजा भी की जाती है, ताकि मृत्यु के भय से मुक्ति मिल सके। इसके अलावा, इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है, उनके द्वारा नरकासुर के वध का स्मरण करते हुए।
नरक चतुर्दशी की पूजा विधि-The Worship Rituals of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करनी चाहिए। पूजा में दीपक जलाएं, फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।
यमराज की पूजा करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि वे आप पर प्रसन्न हों और आपको मृत्यु के भय से मुक्ति दें। आप इस दिन यमराज को दीपदान भी कर सकते हैं। इसके लिए 12 दीपक जलाकर घर के बाहर रखें।
नरक चतुर्दशी 2023 के दिन, कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 11 नवंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 12 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करने की परंपरा है।
स्नान मुहूर्त – Snan Muhurat
दिनांक: 12 नवंबर 2023
समय: प्रात: 05:28 से सुबह 06:41 तक
अवधि: 01 घंटा 13 मिनट
स्नान का महत्व- Importance of Snan
नरक चतुर्दशी के दिन स्नान करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान के बाद भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
स्नान विधि- Snan-Bath Procedure
सुबह जल्दी उठकर स्नान के लिए तैयार हो जाएं।
स्नान करने से पहले अपने शरीर पर तेल लगाएं।
पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करें।
स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करें।
नरक चतुर्दशी के दिन क्या करें और क्या न करें?
क्या करें-Dos
सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करें।
भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करें।
यमराज को दीपदान करें।
घर को साफ-सुथरा रखें और दीया जलाएं।
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं।
क्या न करें-Don’t Dos
मांस-मदिरा का सेवन न करें।
क्रोध और झगड़े से बचें।
गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें।
नरक चतुर्दशी के दिन खास व्यंजन
विशेष व्यंजन-Special Food Items
नरकासुर का बली (एक तरह की मिठाई)
गुलगुले
जलेबी
इमरती
हलवा
पूड़ी-छोले
चावल-दाल
सब्जी
नरक चतुर्दशी का सामाजिक महत्व – Social Importance of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी का सामाजिक महत्व निम्नलिखित है:
घर-परिवार में सुख-शांति का माहौल बनाता है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और दीया जलाते हैं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति का माहौल बनता है।
परस्पर संबंधों को मजबूत करता है। इस दिन लोग परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं और मिठाई खाते हैं। इससे आपसी रिश्तों में मधुरता बढ़ती है और खुशी का माहौल बनता है।
समाज में भाईचारे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देता है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। इससे समाज में भाईचारे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा मिलता है।
उपसंहार-Conclusion
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसका सामाजिक महत्व भी बहुत है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
हमारे हिंदू धर्म में हर साल पांच दिवसीय दीप पर्व का उत्सव मनाया जाता है। यह धनतेरस का त्योहार हिन्दू धर्म के लोगों के लिए सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है।इस उत्सव को हिंदू पंचांग में काफी शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन dhanteras puja करने से घर में धन और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन लोग परिवार के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, दीये घर के बाहर जलाते हैं, और साथ ही Dhanteras 2023 पर सौभाग्य के प्रतीक माने जाने वाले सोने या चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं।
धनतेरस दीवाली महोत्सव के पांच दिनों के महोत्सव का पहला दिन है और इसे आयुर्वेद और चिकित्सा के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए समर्पित किया जाता है। “धनतेरस” शब्द दो संस्कृत शब्दों से निकला है: “धन,” जिसका मतलब होता है धन, और “तेरस,” जिसका मतलब होता है 13वें दिन का। इस दिन, लोग अपने घरों को साफ सफाई करते हैं, उन्हें दीपकों और रंगोलियों से सजाते हैं, और संपदा और समृद्धि के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
यह एक सामान्य परंपरा भी है कि सोने या चांदी के आइटम खरीदने और देने का समय है, क्योंकि माना जाता है कि धनतेरस पर प्रिय मेटल्स की प्राप्ति शुभ फल लाती है। बहुत से लोग शाम को तेल के दीपक जलाते हैं और अपने घरों में संपदा और समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए विशेष पूजा करते हैं।
धनतेरस व्यापारी और व्यापारियों के लिए शुभ दिन होता है, क्योंकि यह हिन्दू वित्त वर्ष की शुरुआत की गणना की जाती है। इसे नए उद्यमों की शुरुआत करने या महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लेने का अवसर माना जाता है।
The significance of Dhanteras- धनतेरस(धनत्रयोदशी) का महत्व
हमारे हिंदू धर्म में प्रति वर्ष पांच दिवसीय दीप पर्व का उत्सव मनाया जाता है, और इसमें से एक दिन है धनतेरस, जो हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस उत्सव को हिंदू पंचांग में काफी शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन धनतेरस का पूजन करने से घर में धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग परिवार के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, दीपक घर के बाहर जलाते हैं, और साथ ही धनतेरस 2023 के मौके पर सोने और चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं।
The date of Dhanteras festiva- धनतेरस (धनत्रयोदशी) पर्व की तिथि
धनतेरस या धन तेरस को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल, 2023 में यह पावन त्योहार 10 नवंबर 2023 को शुक्रवार को मनाया जाएगा।
The auspicious timing of Dhanteras festival- धनतेरस(धनत्रयोदशी) पर्व का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस का पर्व 10 नवंबर 2023 को शुक्रवार को मनाया जाएगा। धनतेरस पर्व के दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 25 मिनट से लेकर शाम 6 बजे तक होता है। इस दिन प्रदोष काल शाम के समय 5 बजकर 39 मिनट से लेकर शाम 8 बजकर 14 मिनट तक रहता है, जबकि वृषभ काल शाम 6 बजकर 51 मिनट से लेकर शाम 8 बजकर 47 मिनट तक रहता है।
धनतेरस (धनत्रयोदशी) पर्व की पूजा विधि- Worship Procedure of Dhanteras
पूजा के दौरान, देवी-देवताओं को फूल, अक्षत, धूप, दीप, भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की आरती की जाती है और प्रसाद सभी को बांटा जाता है। इसके अलावा, शाम के समय प्रदोष काल में घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया जाता है, और धनवंतरी देव, मां लक्ष्मी, और भगवान गणेश से सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
धनतेरस 2023 कुबेर पूजा के त्योहार का महत्व (The Significance of Dhanteras 2023 Kuber Puja)
धनतेरस एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो भारतीय समुदाय में खास महत्व रखता है। इसे दीपावली के पंच दिनों के उत्सव का पहला दिन माना जाता है, और यह त्योहार धन, समृद्धि, और खुशियों की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा का विशेष महत्व होता है।
कुबेर – धन के देवता (Kubera – The Deity of Wealth)
भगवान कुबेर – धन के देवता (Lord Kubera – The Deity of Wealth)
भगवान कुबेर को धन का देवता माना जाता है। उनके पास विशेष रूप से धन की खजाना है, और वे धन के प्रमुख संचयक के रूप में जाने जाते हैं। कुबेर का धन हमें आर्थिक सुख और संपत्ति की प्राप्ति में मदद करता है।
कुबेर पूजा से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद (Blessings of Goddess Lakshmi through Kubera Puja)
धनतेरस (धनत्रयोदशी) 2023 कुबेर पूजा से प्राप्त लाभ (Benefits of Dhanteras 2023 Kuber Puja)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने से माता लक्ष्मी बड़े प्रसन्न होती हैं, और वह अपने भक्तों पर अपने आशीर्वाद के साथ वर्षा करती हैं। यह पूजा धन, ऐश्वर्य, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भगवान कुबेर की पूजा विधि (Dhanteras 2023 Kuber Puja Vidhi)
धनतेरस 2023 कुबेर पूजा विधि (Dhanteras 2023 Kuber Puja Procedure)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
कुबेर यंत्र का स्थापना: सबसे पहले, कुबेर यंत्र को दक्षिण दिशा में स्थापित करें। यंत्र को ध्यान से रखें और उसका समर्पण करें।
गंगाजल के साथ विनियोग मंत्र का जाप: अगला कदम है कुबेर मंत्र का जाप करना। यंत्र के सामने बैठकर गंगाजल के साथ मंत्र का उच्चारण करें।
जल का अर्पण: जब मंत्र का जाप हो जाए, तो उस जल को भूमि पर अर्पित करें। इससे धन की प्राप्ति होती है।
कुबेर मंत्र का उच्चारण: फिर, कुबेर मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें और भगवान कुबेर की आराधना करें।
आरती: पूजा को पूरा करने के बाद, आरती करना न भूलें। आरती के बिना पूजा पूरी नहीं होती है।
आस्था – विश्वास की शक्ति (Faith – The Power of Belief)
आस्था की शक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारा विश्वास हमारे कार्यों को सफल बना सकता है। धनतेरस के दिन हम भगवान कुबेर की पूजा करके यह दिखाते हैं कि हम विश्वास और आस्था से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।
धनतेरस (धनत्रयोदशी) 2023 पर क्या खरीदें?
कई लोग इस अवसर को कीमती धातु खरीदने के लिए भी उपयोगी मानते हैं। इसलिए, आप इस दिन कुछ खास उपहार विचार भी कर सकते हैं, जैसे सोने और चांदी के सिक्के, गहने, और बर्तन, ताकि आपके प्रियजनों के घर में समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति हो।
धनतेरस, जो आने वाला है, धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण अवसर है, जो हम सभी को समृद्धि और खुशी लेकर आता है।
Dhanteras 2022
धनतेरस एक हिन्दू त्योहार है जो भारत और अन्य धार्मिक विश्वास वाले लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह आमतौर पर हिन्दू पंचांग के आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 13वें दिन को मनाया जाता है, जो सामान्य रूप से अक्टूबर या नवम्बर में होता है। 2022 में, धनतेरस को 24 अक्टूबर को मनाया गया था।
संक्षेप में, 2022 में धनतेरस 24 अक्टूबर को मनाया गया था, और यह समृद्धि और कल्याण की खोज के लिए समर्पित मनाने का एक दिन था।
समापन (Conclusion)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करना हमारे धन, समृद्धि, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति में मदद करता है। यह एक धार्मिक परंपरागत त्योहार है जो हमें आस्था, भक्ति, और धन के महत्व को समझाता है। इस त्योहार के माध्यम से हम ध्यान और आस्था के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करने के महत्व को अनुसरण करते हैं, और भगवान कुबेर की कृपा से हमारा जीवन समृद्धि से भरा होता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: हिन्दू, जैन, और सिख त्योहार का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा 2023: तारीख और समय
कार्तिक पूर्णिमा, जिसे हिन्दू चांद्रमास के कार्तिक मास के पूर्ण चंद्रमा दिन के रूप में भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग में से एक सबसे पुण्यकारी और पवित्र दिनों में से एक है। भारत, नेपाल, और बांग्लादेश में मनाया जाने वाला, कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस त्योहार को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है और इसका महत्व है क्योंकि यह दिन है जब वह कार्तिके के रूप में अवतरित हुए थे, भगवान शिव के पुत्र के रूप में। इस साल, कार्तिक पूर्णिमा को सोमवार, 27 नवम्बर, 2023 को मनाया जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा क्या है?
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू, जैन, और सिख त्योहार है, जो कार्तिक मास के पूर्ण चंद्रमा दिन या पंद्रहवें चंद्रमा दिन को चिह्नित करता है। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपने अवतार त्रिविक्रम के रूप में राक्षस राजा बलि को हराया था। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है। यह त्योहार अच्छे के बुरे पर जीत का प्रतीक है।
जैन धर्म के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा भगवान महावीर, जैन तीर्थंकरों में आखिरी के द्वारा प्राप्त मोक्ष या सल्वेशन का संकेत करता है। सिख धर्म के अनुसार, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के जन्मदिन के रूप में इस दिन का जश्न मनाया जाता है। इसलिए, कार्तिक पूर्णिमा हिन्दुओं, जैनों, और सिखों के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: तारीख और समय
2023 में, कार्तिक पूर्णिमा को सोमवार, 27 नवम्बर को मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि शुरू: 26 नवम्बर, 2023 को 15:55 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 27 नवम्बर, 2023 को 14:17 बजे
इसलिए पूर्ण चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देगा वह दिन होगा सोमवार, 27 नवम्बर, जो 2023 में कार्तिक पूर्णिमा की मुख्य तारीख है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: त्योहार का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार एक बार आता है और यह पूर्णिमा तिथि का महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। इस दिन व्रत, पूजा, और दान करने का महत्व है, और यह भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है। यह एक मानवीय त्योहार है जो हमें अच्छे के बुरे पर जीत की महत्वपूर्ण सिख देता है।
2023 में कार्तिक पूर्णिमा कब है: कार्तिक पूर्णिमा 2023 कब है
कार्तिक पूर्णिमा 2023, इस साल 27 नवंबर को आ रही है। यह कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार एक बार साल में आती है और यह पूर्णिमा तिथि का महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। इस दिन व्रत, पूजा, और दान करने का महत्व होता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा: कार्तिक पूर्णिमा व्रत की कहानी
कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन पर, व्यक्तियों ने उपवास किया और भगवान विष्णु को प्रार्थना की। कार्तिक पूर्णिमा व्रत की कथा निम्नलिखित रूप में है:
प्राचीन काल में, एक भयंकर राक्षस नामक तारकासुर ने महाशक्ति को प्रशन्न करके शक्तिओ को प्राप्त किया था, जिससे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। देवताओं ने उसे पराजित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके, और इस पर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने बताया कि केवल उनके द्वारा जन्मे एक बच्चा ही तारकासुर को पराजित कर सकता है। हालांकि, उस समय भगवान शिव ध्यान में रत थे और किसी बच्चे को जन्म देने की इच्छा नहीं थी।
उसके बाद देवताएं भगवान विष्णु की सहायता के लिए आगे आए। भगवान विष्णु ने एक सुंदर महिला के रूप में मोहिनी के नाम से प्रकट होकर भगवान शिव के पास गई। उनकी सुंदरता से मोहित होकर भगवान शिव ने उससे विवाह करने की सहमति दी। उनके मिलन से एक पुत्र जिनका नाम कार्तिकेय था, उसने आखिरकार तारकासुर को पराजित किया।
कार्तिक पूर्णिमा पर कार्तिकेय के तारकासुर पर विजय की स्मृति में, लोगों ने उपवास का परंपरा आरंभ की। जो भक्ति भाव से इस उपवास को मानते हैं, उन्हें खुशियाँ और समृद्धि का अहसास होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, व्यक्तिगण सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं और तेल की दीपक या दीयाओं को जलाकर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूरे दिन वे अनाज और दालों से व्रत करते हैं।
शाम को, लोग चाँद की पूजा करते हैं और अपने उपवास को तोड़ते हैं। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ आहार और मिठाई साझा करते हैं। इस व्रत को मानकर, कोई भी मोक्ष प्राप्त करने और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की आकांक्षा कर सकता है।
इसलिए, कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा में भक्ति की महत्वपूर्णता और अदल-बदल के विश्वास की ताक़त को हावी किया जाता है।
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच का संबंध
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा दो महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार हैं जिनके बीच महत्वपूर्ण संबंध है, उनके जश्न गहरे रूप में जुड़े होते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की 14वीं तारीख को मनाई जाती है, जबकि कार्तिक पूर्णिमा उसी माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। वैकुंठ चतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, वह दिन है जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को पराजित किया था। इस अवसर पर, भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिए वैकुंठ, अपने दिव्य आवास, के द्वार खोलते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी के दौरान, लोग पारंपरिक रूप से सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं, अपने घरों के बाहर आटे से बने 14 दियों को प्रकाशित करते हैं, अपने माथे पर तिलक लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस तरीके से, यह माना जाता है कि ये मोक्ष को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करने में मदद करते हैं।
विपरीत, कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इसका संकेत इस दिन को है जब भगवान विष्णु का अवतार कार्तिकेय के रूप में हुआ, जो भगवान शिव के पुत्र थे, और उनके 14 वर्षों के पृथ्वी पर विचरण के बाद उनके दिव्य आवास, वैकुंठ, में वापसी का दिन।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, व्यक्तिगण पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं, दीपक या दीयों को प्रकाशित करते हैं, फूल प्रस्तुत करते हैं, और जरूरतमंदों को खाद्य और वस्त्र दान करते हैं। इस तरीके से, कोई भगवान विष्णु और भगवान शिव की आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच का गहरा संबंध भगवान विष्णु और उनके आवास, वैकुंठ, के प्रति उनकी साझी भक्ति में है। दोनों त्योहार अच्छे का बुरे पर प्रशंसा करते हैं और हमारे जीवन में भक्ति और विश्वास की गहरी महत्वपूर्णता की प्रोत्साहक याद दिलाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व: कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व हिन्दू धर्म में कितना अद्भुत है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। यह एक प्रमुख त्योहार है जो हिन्दू महीने कार्तिक की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, और इसका महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक होता है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व हिन्दू धर्म में
कार्तिक पूर्णिमा को हिन्दू धर्म में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के जन्म का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने 14 वर्षों के भूलों के लिए पृथ्वी पर बिताए दिनों के बाद अपने दिव्य आवास, वैकुंठ, में लौटने का था। इसलिए, इस दिन को गहरे शुभ और समृद्धि का संकेत माना जाता है, और उन लोगों के लिए भी है जो इसे मनाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के रूप में भी प्रसिद्ध है और यह कार्तिक मास की शुरुआत का संकेत देता है, जो हिन्दू पंचांग में सबसे पवित्र मासों में से एक है। इस अवधि के दौरान, भक्त विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक आचरणों में शामिल होते हैं, जैसे उपवास, पूजा, और दान देना।
यह त्योहार जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन भगवान महावीर, आखिरी तीर्थंकर, निर्वाण प्राप्त कर गए थे। इसलिए, जैन भक्त भगवान की पूजा करते हैं और दान के कार्यों में भाग लेते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि यह चातुर्मास काल के अंत का प्रतीक होता है, जिसे हिन्दू साधुओं और मुनियों द्वारा अनुसरण किया जाता है, जिसमें चार महीनों तक अनुपवास और तप किया जाता है। भक्त इस अवधि के अंत को उत्साह और भक्ति से मनाते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनकी आशीर्वाद की मांग करते हैं।
इसके अलावा, यह त्योहार पूर्णिमा के साथ मिलता है, जो हिन्दू धर्म में एक शुभ घटना होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से माना जाता है कि व्यक्ति के पापों को शुद्ध करता है और मोक्ष/Moksha या जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के प्रमुख अनुष्ठान और रीति-रिवाज
पवित्र स्नान करना: सुबह के समय, गंगा, यमुना, गोदावरी, आदि जैसी पवित्र नदियों या अन्य जल स्रोतों में, या कुंडों और तालाबों में पवित्र स्नान करना बड़ी मान्यता प्राप्त है। तीर्थयात्री भोर के समय नदी किनारों पर इकट्ठा होते हैं और इस धार्मिक स्नान के लिए आगे बढ़ते हैं। इसे अपनी आत्मा को शुद्ध करने का माना जाता है।
चाँद देवता की पूजा: कार्तिक पूर्णिमा की पूर्णिमा रात, चाँद की पूजा आभार की एक संकेत के रूप में की जाती है। चावल-खीर, फूल, मिठाई, आदि चाँद को चढ़ाया जाता है। लोग चाँद देवता की पूजा करने के लिए उपवास भी करते हैं।
दीपक जलाना: मिट्टी के तेल के दीपक दिन में जलाए जाते हैं और रात भर जलाए रहते हैं, आमतौर पर तुलसी या पीपल के पेड़ों के पास या मंदिरों और नदी के घाटों पर। दीपकों का माना जाता है कि वे अंधकार और अज्ञान को दूर करते हैं।
दान देना: आहार, वस्त्र, धन आदि को ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को देना एक उदार कृत्य माना जाता है। गायों को भी अपनी सामर्थ्यानुसार दिया जाता है। दिए जाने वाले दान से व्यक्ति को नकारात्मक कार्मिक कर्ज से मुक्ति मिलती है।
गंगा आरती करना: कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा और अन्य पवित्र नदियों के घाटों पर विशेष गंगा आरतियाँ की जाती हैं। इस आरती को देखने से आशीर्वाद प्राप्त होता है
सात्विक आहार खाना: पवित्र हिन्दू इस दिन उपवास और प्रार्थना के बाद दूध, फल, मेवे और मिठाई जैसे सादे शाकाहारी आहार खाते हैं। कुछ लोग उपवास का पालन करते हैं और चाँद को देखने के बाद ही खाते हैं।
कार्तिक स्नान का जश्न मनाना: वाराणसी और हरिद्वार जैसे स्थानों में, हजारों भक्तों के बीच नदी किनारों पर महान स्नान अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। घाटों पर भी विशाल मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर व्रत कैसे रखें How to Observe a Fast on Kartik Purnima 2023
कार्तिक पूर्णिमा 2023 को विशेष रूप से मनाने के लिए, आप उपर्युक्त अनुष्ठानों का पालन कर सकते हैं। इस दिन को आध्यात्मिकता और धर्मिकता के साथ मनाने से आपको आशीर्वाद मिलेगा और आपके जीवन में समृद्धि और खुशी आएगी। यह एक अद्वितीय तरीका है किसी भी हिन्दू श्रद्धालु के लिए इस महत्वपूर्ण दिन को मनाने का।
कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास को हिन्दू धर्म में एक अत्यंत मान्यता से किया जाता है, क्योंकि यह किसी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन में उनकी दिव्य हस्तक्षेप की मांग करने की अनुमति देता है। यहां 2023 में कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास कैसे मनाने के कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं:
शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए दिन की शुरुआत किसी नदी या किसी अन्य पवित्र जलस्रोत में शुद्ध स्नान से करें।
उपवास के दौरान, सात्विक आहार पर ध्यान केंद्रित करें, जो पवित्र, हल्का, और आसानी से पाचनीय होता है। अमांसी व्यंजन, लहसुन, और प्याज का इस्तेमाल न करें। फल, मेवे, और दूध उत्पादों को चुनें।
दिन भर भगवान विष्णु के समर्पित मंत्र और प्रार्थनाएँ पढ़ें। यह प्रथा आपको दिव्य से जुड़े रहने में मदद करेगी और उनकी आशीर्वाद की मांग करेगी।
मंदिर जाएं और भगवान विष्णु की पूजा करें। एक शांत वातावरण बनाने के लिए दीये और अगरबत्ती जलाएं और देवता को फूल चढ़ाएं, जिससे परमात्मा के साथ आपका संबंध बढ़ेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोगों को दान देकर दान के कार्यों में संलग्न होना अत्यधिक शुभ होता है। आप जरूरतमंद लोगों को कपड़े, भोजन या धन का योगदान दे सकते हैं।
प्रसाद के साथ व्रत का समापन करें: शाम को सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु को अर्पित प्रसाद से अपना व्रत खोलें। इस प्रसाद में फल, सूखे मेवे, दूध या अन्य सात्विक भोजन शामिल हो सकता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर क्या करें और क्या न करें
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर उपवास कैसे करें
कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास को हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह किसी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन में उनकी दिव्य हस्तक्षेप की मांग करने की अनुमति देता है। यहां हम 2023 में कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास कैसे मना सकते हैं, इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देंगे:
दिन की शुरुआत शुद्धता से
उपवास की शुरुआत कोई भी शुद्ध नदी या पवित्र जलस्रोत में स्नान करके करें, ताकि आपका शरीर और आत्मा शुद्ध हो सके।
सात्विक आहार का पालन
उपवास के दौरान, सात्विक आहार पर ध्यान केंद्रित करें, जो पवित्र, हल्का, और पाचनीय होता है। इसमें अमांसी व्यंजन, लहसुन, और प्याज शामिल नहीं करने चाहिए, जबकि फल, मेवे, और दूध उत्पादों को चुनना चाहिए।
मंत्र और पूजा का महत्व
दिन भर भगवान विष्णु के समर्पित मंत्र और प्रार्थनाएँ पढ़ें, जो आपको दिव्य से जुड़े रहने में मदद करेंगे और उनकी आशीर्वाद की मांग करेंगे।
मंदिर यात्रा
मंदिर जाएं और भगवान विष्णु की पूजा करें। शांत वातावरण बनाने के लिए दीये और अगरबत्ती जलाएं और देवता को फूल चढ़ाएं, जिससे परमात्मा के साथ आपका संबंध बढ़ेगा।
दान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोगों को दान देना अत्यधिक शुभ होता है। आप जरूरतमंद लोगों को कपड़े, भोजन, या धन का योगदान कर सकते हैं।
व्रत का समापन
प्रसाद के साथ व्रत का समापन करें: शाम को सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु को अर्पित प्रसाद से अपना व्रत खोलें। इस प्रसाद में फल, सूखे मेवे, दूध, या अन्य सात्विक भोजन शामिल हो सकता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर क्या करें और क्या न करें?
करने योग्य (Dos)
शुद्धिकरण स्नान: उपवास की शुरुआत कोई भी शुद्ध नदी या पवित्र जलस्रोत में स्नान करके करें।
सफेद पारंपरिक कपड़े: साफ-सुथरे, सफेद पारंपरिक कपड़े पहनें।
हल्का शाकाहारी भोजन: स्नान और पूजा के बाद ही हल्का शाकाहारी भोजन करें।
पूजा और आरती: इस दिन पूजा और आरती करें। दीये जलाएं और भगवान को फूल और मिठाइयां चढ़ाएं।
आध्यात्मिक अभ्यास: इस आध्यात्मिक दिन पर मंत्रों का जाप करें और ध्यान करें।
मंदिर यात्रा: मंदिरों के दर्शन करें, पुजारियों और गुरुओं के प्रवचनों में भाग लें।
दान: अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करें।
पूर्णिमा के चंद्रमा के दर्शन: रात्रि के समय पूर्णिमा के चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही व्रत का समापन करें।
न करने योग्य (Don’ts)
मांस, शराब, और तंबाकू: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मांस, शराब या तंबाकू का सेवन नहीं करें।
क्रोध और कठोर वाणी: इस शांतिपूर्ण, पवित्र दिन पर क्रोध और कठोर वाणी से बचें।
झगड़े और उकसाना: उकसाए जाने पर भी झगड़े में पड़ने से बचें।
काले कपड़े: इस दिन चमड़े का सामान और काले कपड़े न पहनें।
इस दिन नाखून, बाल काटने या शेविंग करने से बचें।
चोरी, बेईमानी या अनैतिक कार्य न करें।
निष्कर्ष: नतीजा
हिन्दी कार्तिक पूर्णिमा, जिसे हिन्दू धर्म के साथ-साथ जैन और सिख धर्म में भी गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है, पर्व के दिन विभिन्न पवित्र अनुष्ठान, भगवान विष्णु की पूजा और दान का आयोजन किया जाता है, और यह क्रियाएं पुण्यकारी मानी जाती हैं। अगर आप कार्तिक पूर्णिमा व्रत मनाते हैं और जानना चाहते हैं कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, तो यह पुनः सरलता, विविधता और पूर्वता के साथ आपके लिए ध्यानादि, समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद लेकर आएगा। इस संदेश के माध्यम से हम सभी पाठकों को 2023 की कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं भेजते हैं! कार्तिक पूर्णिमा 2023 की शुभकामनाएं!
नवार्ण मंत्र (Navarna Mantra) का महत्व एव नवार्ण मंत्र जप का विधान
माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है ।
नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है।
यह भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों महाकाली,महालक्ष्मी एवं महासरस्वती की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है ।
नवार्ण मंत्र-Navarna Mantra
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है,जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है—
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है।
1-” ऐं “ -से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
2-” ह्रीं “-से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
3- ” क्लीं “-से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
4- ” चा“- से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
5- ” मुं “-से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
6-” डा “- से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
7- ” यै “-से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
8- ” वि – से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
9- ” चै “-से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
अत: प्रतिदिन 108 बार “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” नवार्ण मंत्र का जप करें।
उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें।
इस प्रकार “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का 1,25000 बार जप करके,जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।
दशहरा(विजयादशमी) क्यों मनाया जाता है- “why dussera is celebarated?
दशहरा का त्योहार भारत में मनाया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है। यह पर्व विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा का महत्व भगवान राम के जीवन में बड़े महत्वपूर्ण घटना के साथ जुड़ा हुआ है।
इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य असत्य के प्रति सत्य की विजय का प्रतीकित करना है। इसे विजयादशमी के दिन मनाते हैं, जब भगवान राम ने लंका के रावण को वनवास से मुक्ति दिलाई थी।
इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया और असत्य के प्रति सत्य की जीत का प्रतीक दिखाया। इसके अलावा, दशहरा का त्योहार मां दुर्गा की नौ दिन की नवरात्रि के अंत में आयोजित नौवीं रात्रि के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा के दिन भगवान राम की विजय को याद करते हैं और रावण के पुतले को आग में दहन करते हैं, जिससे असत्य के प्रति सत्य की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार भारत में आने वाले परिवार और दोस्तों के साथ मनाया जाता है और विभिन्न प्रकार की परंपराओं और आचरणों के साथ मनाया जाता है।
2022 में विजयदशमी 6 अक्टूबर को था। विजयदशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, हिन्दू परंपराओं का एक त्योहार है जो आमतौर पर पंचांग के अनुसार सितंबर या अक्टूबर में होता है। इसकी तारीख हर साल बदल सकती है।
दशहरा-विजयादशमी कब है– When is Dussehra?
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर की शाम 5.44 पर हो रही है और 24 अक्टूबर को दोपहर 3.14 बजे तक दशमी तिथि रहेगी. उदया तिथि के अनुसार 24 को अक्टूबर दशहरा मनाया जाएगा | उदया तिथि के अनुसार 24 को अक्टूबर दशहरा मनाया जाएगा
दशहरा -विजयादशमीका महत्व– Sigificance of Dussera
विजयदशमी या दशहरा का त्यौहार हिन्दू धर्म में विशेष मान्यता रखता है जो असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। इस त्यौहार से जुड़ीं ऐसी अनेक धार्मिक मान्यताएं है जिसके बारे में हम आपको अवगत कराएंगे।
दशहरा से जुड़ीं ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। वहीँ, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का संहार किया था इसलिए इसे कई स्थानों पर विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा तिथि पर कई राज्यों में रावण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन देश में कई जगह मेले आयोजित किये जाते है।
दशहरे से 14 दिन पहले तक पूरे भारत में रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण एवं सीता जी के जीवन की लीला दर्शायी जाती है। विभिन्न पात्रों के द्वारा मंच पर प्रदर्शित की जाती है। विजयदशमी तिथि पर भगवान राम द्वारा रावण का वध होता है, जिसके बाद रामलीला समाप्त हो जाती है।
दशहरा-विजयादशमी की पूजा विधि- The worship method of Dussehra.
दशहरा की पूजा सदैव अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
अपने घर के ईशान कोण में शुभ स्थान पर दशहरा पूजन करें।
पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके चंदन का लेप करें|
आठ कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र निर्मित करें।
पश्चात संकल्प मंत्र का जप करें तथा देवी अपराजिता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र द्वारा देवी की प्रतिमा स्थापित करके आह्वान करें।
इसके बाद मां जया को दाईं एवं विजया को बाईं तरफ स्थापित करें और उनके मंत्र “क्रियाशक्त्यै नमः” व “उमाये नमः” से देवी का आह्वान करें।
तीनों देवियों की शोडषोपचार पूजा विधिपूर्वक करें।
शोडषोपचार पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम और हनुमान जी का भी पूजन करें।
सबसे अंत में माता की आरती करें और भोग का प्रसाद सब में वितरित करें।
दशहरा -विजयादशमीपर संपन्न होने वाली पूजा- The puja performed on Dussehra.
शस्त्र पूजा: दशहरा के दिन दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ और शस्त्र पूजा करने की परंपरा है। प्राचीनकाल में विजयदशमी पर शस्त्रों की पूजा की जाती थी। राजाओं के शासन में ऐसा होता था। अब रियासतें नहीं है, लेकिन शस्त्र पूजन को करने की परंपरा अभी भी जारी है।
शामी पूजा: इस दिन शामी पूजा करने का भी विधान है जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से शामी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पूजा को मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में किया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से योद्धाओं या क्षत्रिय द्वारा की जाती थी।
अपराजिता पूजा: दशहरा पर अपराजिता पूजा भी करने की परंपरा है और इस दिन देवी अपराजिता से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए पहले विजय की देवी, देवी अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह पूजा अपराहन मुहूर्त के समय की जाती है, साथ आप चौघड़िये पर अपराहन मुहूर्त भी देख सकते हैं।
वर्ष के शुभ मुहूर्तों में से एक दशहरा-विजयादशमी
दशहरा की गिनती शुभ एवं पवित्र तिथियों में होती है, यही कारण है कि अगर किसी को विवाह का मुहूर्त नहीं मिल रहा हो, तो वह इस दिन शादी कर सकता हैं। यह हिन्दू धर्म के साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो इस प्रकार है- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आधा मुहूर्त माना गया है। यह अवधि किसी भी कार्यों को करने के लिए उत्तम मानी गई है।
दशहरा -विजयादशमीकथा– Dussera Story
अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम अपनी अर्धागिनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे। वन में दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया।
अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण से मुक्त कराने के लिए दस दिनों के भयंकर युद्ध के बाद भगवान राम ने रावण का वध किया था। उस समय से ही प्रतिवर्ष दस सिरों वाले रावण के पुतले को दशहरा के दिन जलाया जाता है|जो मनुष्य को अपने भीतर से क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का संदेश देता है।
महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव दुर्योधन से जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। उस समय एक शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा था, ओर एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास पर भी रहना पड़ा था।
अज्ञातवास के समय उन्हें सबसे छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलना पड़ता। इसी वजह से अर्जुन ने उस एक वर्ष के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक पेड़ पर छुपा दिया था|
राजा विराट के महल में एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण करके कार्य करने लग गए थे। एक बार जब विराट नरेश के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा के लिए सहायता मांगी तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को पराजित किया था।
दशहरा-विजयादशमी पर क्यों होता है शस्त्र पूजन-Why is weapon worship performed on Dussehra?
दशहरा (Dussehra) एक हिन्दू पर्व है जो अश्विन माह की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार, 23 अक्टूबर को यह पर्व पूरे देश में मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से शस्त्र पूजन (Shashtra Puja Dussehra) का विधान है ।
दशहरा को विजय दशमी भी कहा जाता है, और इस दिन मां दुर्गा और भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। इस दिन किए जाने वाले कामों का शुभ फल मिलता है, और यह भी मान्यता है कि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा करनी चाहिए।
जानें किस तरह शुरू हुई ये परंपरा-Know how this tradition began.
दशहरा बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है. मान्यता है| इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी|दशहरे के इस पर्व को विजय दशमी के नाम से भी जानते हैं. साथ ही मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का इसी दिन वध किया था|
रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक हैं-What is the symbol of Ravana’s ten heads?
अहंकार का प्रतीक रावण के 10 सिर को अहंकार का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि 10 सिर में 10 प्रकार की बुराइयां छुपी हुई है|
पहला सिर -काम,
दूसरा सिर -क्रोध,
तीसरा सिर -लोभ,
चौथा सिर- मोह,
पांचवा सिर -मद,
छठा सिर- मत्सर,
सातवां सिर -वासना,
आठवां सिर -भ्रष्टाचार,
नौवां सिर -सत्ता, एवं शक्ति का दुरुपयोग ईश्वर से विमुख होना,
दसवां सिर -अनैतिकता और दसवा अहंकार का प्रतीक माना जाता है।
दशहरे-विजयादशमी के बारे में रोचक बाते | Dussehra Facts In hindi
दशहरा का अर्थ: दशहरा एक संस्कृत के शब्द दश हारा से आता है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद ‘सूर्य की हार’ है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यदि भगवान राम ने रावण को नहीं हराया होता, तो सूर्य फिर कभी नहीं उगता।
महिषासुर कथा: महिषासुर राक्षसों और असुरों का एक राजा था, और बहुत शक्तिशाली था। वह निर्दोष लोगों पर अत्याचार करता। उस समय, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सामूहिक शक्तियों द्वारा शक्ति को महिषासुर के बुरे कार्यों को समाप्त करने के लिए बनाया गया था।
देवी दुर्गा की आवश्यकता: पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा को अद्भुत शक्ति की आवश्यकता थी, इसलिए अन्य सभी देवी-देवताओं ने उनकी शक्तियों को उनके पास स्थानांतरित कर दिया। परिणामस्वरूप, वे मूर्तियों के रूप में स्थिर रहे।
नवरात्रि की परंपरा: उत्तर भारत में, नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के बर्तनों में जौ के बीज बोने की परंपरा है। दशहरे के दिन, इन स्प्राउट्स का उपयोग भाग्य के प्रतीक के रूप में किया जाता है। पुरुष उन्हें अपनी टोपी में या कान के पीछे रखते हैं।
दुर्गा का पारिवारिक संयोग: कुछ किंवदंतियों में यह भी उल्लेख किया गया है कि देवी दुर्गा, अपने बच्चों, लक्ष्मी, गणेश, कार्तिक और सरस्वती के साथ कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने जन्मस्थान में आगमन हुवी थी। दशहरे के दिन, वह अपने पति भगवान शिव के पास लौट गयी थी।
दशहरा का पर्व: हिंदू कैलेंडर के 10 वें महीने अश्विन में दशहरा पर्व मनाया जाता है। यह अक्टूबर या नवंबर के आस पास कभी-कभी भी होता है और 2023 में दशहरा Monday, 23 October को मनाया जायेगा।
विजय दशमी: हिंदू धर्म की कुछ उप-संस्कृतियों में, दशहरा को विजय दशमी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है दसवें दिन जीत। इसे दानव राजा महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में विजय दशमी के रूप में भी मनाया जाता है।
मैसूर में पूजा: मैसूर में, देवी चामुंडेश्वरी की पूजा दशहरे के दिन की जाती है।
रामलीला: रामलीला द्वारा पूरे देश में नवरात्रि के 10 दिनों को अंकित किया जाता है। दशहरे के अंतिम दिन, भगवान राम द्वारा रावण को पराजित करने का दृश्य सबसे खास होता है। रामलीला के अंत को चिह्नित करने के लिए, रावण का एक पुतला जलाया जाता है।
गोलू उत्सव: तमिलनाडु में, दशहरे के उत्सव को गोलू कहा जाता है। मूर्तियाँ विभिन्न दृश्यों को बनाने के लिए बनाई गई हैं जो उनकी संस्कृति और विरासत को दर्शाती हैं।
दशहरा का आयोजन: दशहरा का पहला भव्य उत्सव 17 वीं शताब्दी में तत्कालीन राजा, वोडेयार के आदेश पर मैसूर पैलेस में हुआ था। तब से, पूरे देश में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय महत्व: आपको जानकर हैरानी होगी की दशहरा केवल भारत में ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और मलेशिया में भी मनाया जाता है। यह मलेशिया में एक राष्ट्रीय अवकाश भी होता है। यह इन देशों में समान उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि उनके पास एक बड़ी हिंदू आबादी है।
फसलों का महत्व: दशहरा खरीफ फसलों की कटाई और रबी फसलों की बुवाई का प्रतीक है। यह सभी विश्वासों के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
मौसम का संकेत: दशहरे के मौसम का अंत भी होता है क्योंकि गर्मियों के अंत का समय है और सर्दियों के मौसम का समय है।
दशहरा का संदेश: दशहरा भगवान राम और देवी दुर्गा दोनों की शक्ति को प्रकट करने का प्रतीक है। देवी दुर्गा ने भगवान राम को राक्षस राजा रावण को मारने का रहस्य उजागर किया था।
नवरात्रि के दौरान, भक्त दुर्गा माता की पूजा करने के लिए ध्यान, भजन, और पूजा के आयोजन करते हैं। यह नौ दिन देवी के नौ रूपों की पूजा के रूप में भी मनाई जाती है, जिन्हें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्रि कहा जाता है।
नवरात्रि के इन दिनों, लोग नेत्रा व्रत, कन्या पूजन, और यज्ञों का आयोजन करते हैं और दुर्गा माता के प्रति अपनी विशेष श्रद्धा और आस्था का प्रकटीकरण करते हैं। नवरात्रि के आयोजन के दौरान, महिलाएं विशेष रूप से आकर्षक श्रृंगार करती हैं और नवीन वस्त्र पहनती हैं।
नवरात्रि हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे पूरे उत्साह और आनंद के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का महत्व विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है और यह हर साल नौ दिनों के अवसर पर मनाया जाता है। इस लेख में, हम आपको Navratri 2023 के महत्व, तिथियाँ, और पूजा की विधि के बारे में जानकारी देंगे।
नवरात्रि का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक है। इस त्योहार के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, जिन्हें नौ दिनों तक पूजा जाता है। इन दिनों में, भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।
वर्ष में कुल चार नवरात्रि मनाई जाती है, लेकिन इनमें से दो नवरात्रि गुप्त होती हैं, जिन्हें चैत्र और आश्वयुज मास में मनाया जाता है। दूसरी ओर, दो नवरात्रि गृहस्थी लोगों द्वारा धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाई जाती है, जो शारदीय और वसंत नवरात्रि के रूप में होती है।
शारदीय नवरात्रि 2023 तिथि-The date of Sharad Navratri in 2023
नवरात्रि का आयोजन इस वर्ष 15 अक्टूबर को रविवार को होगा और 24 अक्टूबर को मंगलवार को समाप्त होगा। शारदीय नवरात्रि का आरंभ प्रतिपदा तिथि को होगा, जो 14 अक्टूबर को शनिवार को रात 11 बजकर 24 मिनट पर होगा, और इसका समापन 16 अक्टूबर को सोमवार को रात 12 बजकर 3 मिनट पर होगा।
नवरात्रि का आयोजन शुभ मुहूर्त में किया जाता है। घटस्थापना मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा। घटस्थापना की कुल अवधि 46 मिनट होती है, जिसमें पूजा की समय सीमा शामिल होती है।
शारदीय नवरात्रि 2023 पूजा सामग्री-Sharadiya Navratri 2023 Puja Items
नवरात्रि पूजन की सामग्री महत्वपूर्ण होती है और इसमें कई आवश्यक चीजें शामिल होती हैं। यह सामग्री पूजा के अवसर पर इस्तेमाल की जाती है और मां दुर्गा की पूजा को समर्पित किया जाता है।
कलश: घटस्थापना के लिए कलश एक महत्वपूर्ण भूषण होता है।
मिट्टी का पात्र: जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र का उपयोग किया जाता है।
गंगाजल: पूजा में शुद्धता के लिए गंगाजल का उपयोग होता है।
रोली, कलावा: रोली और कलावा पूजा सामग्री के रूप में उपयोग होते हैं।
सुपारी, दूर्वा, पीपल या आम के पत्ते: ये भी पूजा के लिए आवश्यक होते हैं।
नारियल: रेशेदार ताजा नारियल पूजा में उपयोग होता है।
हवन के लिए सूखा नारियल: हवन के लिए सूखा नारियल बनाने में मदद करता है।
कलश के ढक्कन: कलश को ढकने के लिए मिट्टी या तांबे का ढक्कन उपयोग होता है।
हवन सामग्री: हवन के लिए आवश्यक सामग्री भी तैयार की जाती है।
माता के शिर्न्गर के लिए मोतियों या फूलों की माला, सुंदर सी साड़ी, माता की चुनरी, कुमकुम, लाल बिंदी, लाल चूड़ियां, सिंदूर, शीशा, मेहंदी आदि खरीदें।
कलश का महत्व- Importance of kalash
विशेष धारणा का पात्र – कलश
कलश का महत्व हमारे पौराणिक और धार्मिक परंपरा में महत्वपूर्ण है। यह एक पवित्र जल से भरा जाता है और श्रद्धा और पवित्रता का प्रतीक होता है।
कलश के गले में कलावा बाँधने का महत्व
कलावा का अर्थ है पात्रता को आदरणीय तरीके से बाँधना। यह एक प्रतीक है कि हम पात्रता को ईश्वर के साथ जोड़ना चाहते हैं।
नारियल का महत्व
नारियल हमारे धार्मिक उपकरणों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और सुख-सौभाग्य की वर्षा करता है।
कलश स्थापना के लिए सामग्री
कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
कलश: यह तांबे, कासा या मिट्टी का कलश होता है, जिसमें पात्रता को स्थापित किया जाता है।
घेरा (ईडली): कलश को नीचे रखने के लिए एक घेरा या ईडली की आवश्यकता होती है।
शुद्ध जल: पवित्र जल कलश में भरने के लिए शुद्ध और पवित्र जल की आवश्यकता होती है।
कलावा: कलश के गले में कलावा बाँधने के लिए कलावा की आवश्यकता होती है।
मंगल द्रव्य: कलश में दूर्वा, कुश, पूगीफल, पुष्प और पल्लव डालने के लिए मंगल द्रव्य की आवश्यकता होती है।
पाँच उपचार पूजन
कलश स्थापना के पाँच महत्वपूर्ण उपचार पूजन
1. घटस्थापन
इस उपचार में, कलश को उच्च स्थान पर स्थापित किया जाता है। मन्त्रों के साथ कलश को निर्धारित स्थान या चौकी पर स्थापित किया जाता है, और भावना की जाती है कि हम अपने प्रभाव क्षेत्र की पात्रता को ईश्वर के चरणों में स्थापित कर रहे हैं।
इस उपचार में, कलश में कलावा बाँधा जाता है। इससे पात्रता को अवाञ्छनीयता से जोड़ने का अवसर नहीं दिया जाता है और उसे आदरणीय तरीके से अनुबंधित किया जाता है, ईश्वर के अनुशासन में बाँधा जाता है।
मंत्र:
“ॐ सुजातो ज्योतिषा सह, शर्मवरूथ माऽसदत्स्वः।
वासोऽ अग्ने विश्वरूपœ, सं व्ययस्व विभावसो॥”
5. नारियल संस्थापन
इस उपचार में, कलश के ऊपर नारियल रखा जाता है। इसके माध्यम से दिखाया जाता है कि पात्रता सुख-सौभाग्य की आधार बन रही है और यह दिव्य कलश जो स्थापित हुआ है, वहाँ की जड़-चेतना सारी पात्रता इन्हीं संस्कारों से भर रही है।
मंत्र:
“ॐ याः फलिनीर्या ऽ अफला, अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता, नो मुञ्चन्त्वœ हसः।।”
नवरात्री में कलश स्थापना कैसे करें? Kalash Sthapana Kaise Kare ?
यदि आप अपने घर में कलश स्थापना कर रहे हैं, तो सबसे पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएं। फिर कलश पर मौली बांधें और उसमें जल भरें। कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र और पंचरत्न व सिक्का डालें। इसमें अक्षत भी डालें।
कलश स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। नित्य कर्म और स्नान के बाद ध्यान करें।
इसके बाद पूजन स्थल से अलग एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाएं।
इस पर अक्षत से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश का मुँह खुला न रखें, उसे किसी चीज़ से ढक देना चाहिए।
अगर कलश को किसी ढक्कन से ढका है, तो उसे चावलों से भर दें और उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें।
इस कलश में शतावरी जड़ी, हलकुंड, कमल गट्टे व रजत का सिक्का डालें।
दीप प्रज्वलित कर इष्ट देव का ध्यान करें। तत्पश्चात देवी मंत्र का जाप करें।
अब कलश के सामने गेहूं व जौ को मिट्टी के पात्र में रोंपें।
इस ज्वारे को माताजी का स्वरूप मानकर पूजन करें। अंतिम दिन ज्वारे का विसर्जन करें।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त- Kalash Sthapana Muhurat
घटस्थापना मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा। घटस्थापना की कुल अवधि 46 मिनट होती है, जिसमें पूजा की समय सीमा शामिल होती है
कलश के मुख में विष्णुजी, कण्ठ में रुद्र, मूल में ब्रह्मा और कलश के मध्य में सभी मातृशक्तियां निवास करती हैं। कलश स्थापना का अर्थ है नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तितत्त्व का घट अर्थात कलश में आवाहन कर उसे सक्रिय करना। शक्तितत्व के कारण वास्तु में उपस्थित कष्टदायक तरंगे नष्ट हो जाती हैं। नवरात्र के पहले दिन पूजा की शुरुआत दुर्गा पूजा निमित्त संकल्प लेकर ईशानकोण में कलश-स्थापना करके की जाती है।
नवरात्री तिथि-Navratri Date 2023
नवरात्री के दौरान, तिथियों का महत्व विशेष रूप से माना जाता है। नवरात्री का पूरा आयोजन नवमी तिथि के अगले दिन तक चलता है, जब दशमी तिथि का विसर्जन होता है। इसके पहले नौ दिन के अवसर पर, नवरात्री के प्रत्येक दिन का महत्वपूर्ण होता है, और भक्त विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा करते हैं।
यह तिथियाँ अनुसरणीय होती हैं और नवरात्री के पूजन और उपासना का अवसर प्रदान करती हैं। इस दौरान, विशेष रूप से बड़े मन्त्र, आरती, और पूजन क्रियाओं का आयोजन किया जाता है, जो नवरात्री के महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं।
नवरात्री के नौ दिनों के अवसर पर भक्त देवी की आराधना करते हैं और उनके प्रति अपनी अद्भुत श्रद्धा का प्रकटीकरण करते हैं। यह तिथियाँ नारी शक्ति की महत्वपूर्ण प्रतीक होती हैं और उनके अवसर पर मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश की जाती है।
नवरात्रि के उपवास के लिए सात्विक भोजन के लिए घी, मूंगफली, सिंघाड़े का आटा या कुट्टू का आटा, मखाना, आलू, लौकी, हरी मिर्च, व्रत में खाई जाने वाली सब्जी और ताजे फल आदि सामग्री घर लाएं।
नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को साफ करें। मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। फिर कलश रखें। इसके बाद मिट्टी के घड़े के गले में पवित्र धागा बांधे। कलश को भरपूर मिट्टी और अनाज के बीज से भरें। इसके बाद कलश में पवित्र जल भी भरकर रखें। फिर सुपारी, गंध, अक्षत, दूर्वा घास, सिक्के डालें। कलश के मुख पर एक साबुत नारियल रखें। कलश को आम के पत्तों से सजाएं। इसके बाद माता रानी की पूजा आरंभ करें।
सबसे पहले माता रानी का श्रृंगार करें। माता रानी को फल, फूल, धूप, दीप आदि चढ़ाएं। माता रानी को सुंदर फूलों की माला पहनाएं। इसके बाद उन्हें चुनरी उढ़ाएं। मां के मंत्रों का जाप करें। मां दुर्गा के ‘दुर्गासप्तशती स्तोत्र’ का पाठ करें। फिर मां को उनके प्रिय व्यंजन का भोग लगाएं। मां की आरती उतारें और भोग वितरित करें।
शारदीय नवरात्री में आदि शक्ति माँ दुर्गा के नौ दिनों में अलग अलग रूप की आराधना पूजा किया जाता है
माँ की मूर्ति या तसवीर स्थापना:-माँ दुर्गा जी की मूर्ती या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र(अपनी सुविधानुसार) के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली अक्षत(बिना टूटा हुआ चावल), धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
अखण्ड ज्योति:-नवरात्र के दौरान लगातार नौ दिनो तक अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। किंतु यह आपकी इच्छा एवं सुविधा पर है। आप केवल पूजा के दौरान ही सिर्फ दीपक जला सकते है।
आसन:-लाल अथवा सफेद आसन पूरब की ओर बैठकर नवरात्रि करने वाले विशेष को पूजा, मंत्र जप, हवन एवं अनुष्ठान करना चाहिए।
नवरात्र पाठ:-माँ दुर्गा की साधना के लिए श्री दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ अर्गला, कवच, कीलक सहित करना चाहिए।
भोगप्रसाद:- प्रतिदिन देवी एवं देवताओं को श्रद्धा अनुसार विशेष अन्य खाद्द्य पदार्थो के अलावा हलुए का भोग जरूर चढ़ाना चाहिए।
नौ दिन तक चलने वाले इस महायोग में आप माता को निम्न भोग लगाये:- प्रथम दिन घी का, दूसरे दिन शक्कर का, तीसरे दिन दूध, चौथे दिन मालपुआ, पांचवें दिन केला, छठे दिन शहद, सातवें दिन गुड़, आठवें दिन नारियल, नौंवे दिन काले तिल का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती है।
विसर्जन:- विजयादशमी के दिन समस्त पूजा हवन इत्यादि सामग्री को किसी नदी या जलाशय में विसर्जन करना चाहिए।
संकल्प:- दाहिने हाथ मे गंगा जल, कुंकुम, लाल पुष्प, चावल ले कर संकल्प करे
संकल्प करने की विधि: Sankalp Karne ki Vidhi
पूजा स्थल की तैयारी: संकल्प करने से पहले, पूजा स्थल को साफ़ और शुद्ध रूप में तैयार करें। एक सफेद कपड़ा या आसन पर बैठें।
मौन रहें: संकल्प करने से पहले, आपको निरंतरता और शांति के साथ बैठना है। किसी भी तरह की बहस और बक-बक से बचें।
मानसिक तैयारी: आपको यह विचार करना होगा कि आपका संकल्प क्या होगा और क्या उद्देश्य होंगे। आपका संकल्प व्यक्तिगत या आध्यात्मिक भी हो सकता है।
प्रारंभिक मंत्र: संकल्प करने के पहले, आपको कुछ प्रारंभिक मंत्रों का उच्चारण करना होगा, जैसे “ओम श्री गणेशाय नमः” या “ओम नमः शिवाय”। इससे मन को शुद्ध करें और ध्यान केंद्रित करें।
संकल्प का देवता के साथ संबंधित होना: आपका संकल्प किस देवता या देवी के साथ संबंधित होना चाहिए। यदि आप किसी विशेष देवता के संकल्प कर रहे हैं, तो उनकी मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें।
संकल्प का उच्चारण: आपको अब अपना संकल्प ज़ोरदार आवाज़ में उच्चारण करना है। आपको अपने संकल्प के उद्देश्य और लक्ष्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना होगा।
संकल्प की स्वीकृति: संकल्प करने के बाद, आपको इसे देवता की प्रसाद मानकर आदरपूर्वक स्वीकार करना होगा।
ध्यान और धारणा: संकल्प करने के बाद, आपको ध्यान और धारणा करनी चाहिए जो आपके संकल्प को पूरा करने में मदद करेगी।
संकल्प करते समय यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आपका मन पूरी तरह से शांत और लक्ष्य में निहित हो, और आपका संकल्प पूर्णत: स्पष्ट और समर्थ हो। संकल्प करने से पहले सीधे हाथ में कुंकुम, लाल पुष्प, गंगाजल, अक्षत और कुछ धन रख कर मुट्ठी बंद करे और उसे बाये हाथ की हथेली के ऊपर रखकर ही संकल्प पढ़े
“ॐ विष्णु र्विष्णु: श्रीमद्भगवतो विष्णोराज्ञाया प्रवर्तमानस्य, अद्य, श्रीबह्मणो द्वितीय प्ररार्द्धे श्वेत वाराहकल्पे जम्बूदीपे भरत खण्डे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते, मासानां मासोत्तमेमासे अश्वनी मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ ……..वासरे (अपने गोत्र का उच्चारण करें) गोत्रोत्पन्न: (अपने नाम का उच्चारण करें) नामा: अहं (सपरिवार/सपत्नीक) सत्प्रवृतिसंवर्धानाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याण्य, ………..(अपनी कामना का उच्चारण करें) कामना सिद्दयर्थे दुर्गा पूजन विद्यानाम तथा साधनाम करिष्ये।“
कुन्जिका स्तोत्रं : Kunjika Strotra
श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ इस सिद्धि कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से संपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का फल मिलता है ..
यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ नहीं है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा बनी रहती है ..
1. हे परमेश्वरी मेरे द्वारा रात-दिन बहुत से अपराध होते रहते है। मुझे अपना दास समझकर मेरे उन अपराधों को आप कृपा पूर्वक क्षमा करिये।
2. परमेश्वरी मैं आवाहन करना नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता। हे माँ मुझे क्षमा करिए।
3. देवि सुरेश्वरि मैने जो मन्त्रहीन (ना मंत्रो को जानता हूँ), कियाहीन (ना क्रियाओ को जानता हूँ), और भक्तिहीन (ना भक्ति के प्रकार जानता हूँ) पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूरे हों ।
4. सैकड़ों अपराध करने के बाद भी जो आपके शरण में आ के जगदम्बा कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है, जो ब्रम्हादि देवताओं के लिये भी पाना आसान नहीं है।
5. जगदम्बिके ! मैं अपराधी हूँ, किंतु आपकी शरण में आया हूँ। इस समय दया का पात्र हूँ। आप जैसा चाहे, वैसा करे।
6. हे देवी परमेश्वरी अज्ञान वस, भूल से या बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण मैं ने जो भी न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करें और प्रसन्न हों ।
7. सच्चिदानन्दस्वरूपा परमेश्वरि! जगतमाता कामेश्वरि ! आप प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करें और मुझ पर प्रसन्न रहें ।
8. देवि! सुरेश्वरि! आप गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हैं। मेरे निवेदन किये हुए इस जपको ग्रहण करिये। आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो।
इस प्रकार क्षमा प्रार्थना मंत्र के पाठ से दुर्गा माता आप के जाने अनजाने में हुए सारे अपराधों को क्षमा करेंगी और उनकी कृपा सदैव आपके ऊपर बनी रहेगी ।
आरती अंबे जी की
आरती अंबे जी की के ध्वनि से मन में उत्साह उमड़ता है। मां शेरवाली की महिमा का गान करते सभी भक्त अपने मन को शांति और आनंद से भरते हैं। इस पावन आरती में मां अंबे के महत्वपूर्ण गुणों की महिमा होती है, जो हमें आदर्श और प्रेरणा प्रदान करते हैं। यह आरती भक्तों के दिलों को सुख, शांति, और आत्मा की ऊर्जा से भर देती है।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत । हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को|
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता|
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख -संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ॥
नवरात्रि के नौ दिन: मां दुर्गा के नौ रूप-The Nine Forms of Goddess Durga
भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें मां दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। यह नौ दिन का त्योहार हर साल आवागमन होता है और हम सभी भक्त इसे बड़े श्रद्धा भाव से मनाते हैं। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां दुर्गा के कौन-कौन से रूप पूजे जाते हैं और उनके भोग कैसे चढ़ाते हैं।
नव दुर्गा देवियों के मंत्र-Nav Durga Mantra
नवरात्रि का पहला दिन – शैलपुत्री देवी- Kaun hai Devi Shailputri
पहली दुर्गा शैलपुत्री हैं । ये पर्वतों के राजा हिमवान् की पुत्री तथा नौदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। ये पूर्वजन्म में दक्षप्रजापति की कन्या सती भवानी- अर्थात् भगवान् शिव की पत्नी थीं। जब दक्ष ने यज्ञ किया, तब उसने शिवजी को यज्ञ में नहीं बुलाया। सती अत्याग्रहपूर्वक वहाँ पहुँची तो दक्ष ने शिव का अपमान भी किया।
पति के अपमान को सहन न कर सती ने अपने माता एवं पिता की उपेक्षा कर योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को जलाकर भस्म कर दिया। फिर जन्मान्तर में पर्वतों के राजा हिमवान् की पुत्री ‘पार्वती- हैमवती’ बनकर पुनः शिव की अर्धांगिनी बनीं। प्रसिद्ध औपनिषद कथानुसार जब इन्हीं भगवती हेमवती ने इन्द्रादि देवों का वृत्रवधजन्य अभिमान खण्डित कर दिया, तब वे लज्जित हो गये। उन्होंने हाथ जोड़कर उनकी स्तुति की और स्पष्ट कहा ‘वस्तुतः आप ही शक्ति है’ आपसे ही शक्ति प्राप्त कर हम सब- ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव भी शक्तिशाली हैं। आपकी जय हो, जय हो।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
शैलपुत्री की प्रार्थना:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम् ।
वृषारूढाम् शूलधराम् शैलपुत्रीम् यशस्विनीम् ॥
अर्थ : मैं अपनी वंदना/श्रद्धांजलि देवी मां शैला-पुत्री को देता हूं, जो भक्तों को सर्वोत्तम वरदान देती हैं। अर्धचंद्राकार चंद्रमा उनके माथे पर मुकुट के रूप में सुशोभित है। वह बैल पर सवार है। वह अपने हाथ में एक भाला रखती है। वह यशस्विनी हैं – प्रसिद्ध माँ दुर्गा।
नवरात्रि का दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी देवी-Kaun hai Devi Brahmcharini
दूसरी दुर्गा शक्ति ब्रह्मचारिणी हैं। ब्रह्म अर्थात् तप की चारिणी-आचरण करने वाली हैं । यहाँ ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ ‘तप’ है। ‘वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म’- इस कोष-वचन के अनुसार वेद, तत्व एवं तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ हैं। ये देवी ज्यातिर्मयी भव्यमूर्ति है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमण्डलु है तथा ये आनन्द से परिपूर्ण हैं |
इनके विषय में ये कथानक प्रसिद्ध हैं कि ये पूर्व जन्म मेंं हिमवान् की पुत्री पार्वती हेमवती थी। एक बार अपनी सखियों के साथ क्रीड़ा में रत थीं। उस समय इधर-उधर घूमते हुये नारद जी वहाँ पहुँचे और इनकी हस्त रेखाओं को देखकर बोले- ‘तुम्हारा तो विवाह उसी भोले बाबा से होगा जिनके साथ पूर्वजन्म में भी तुम दक्ष की कन्या सती के रूप में थीं’ किन्तु इसके लिये तुम्हें तपस्या करनी पड़ेगी नारद जी के चले जाने के बाद पार्वती ने अपनी माता मेनका से कहा की ‘वरउँ संभु न त रहउँ कुआरी।’
यदि मैं विवाह करूँगी तो भोले-बाबा शम्भु से ही करूँगी, अन्यथा कुआरी ही रहूँगी, इतना कहकर वे (पार्वती) तप करने लगी। इसलिये इनका ‘ब्रह्मचारिणी’ यह नाम प्रसिद्ध हो गया। इतना ही नहीं, जब ये तप करने में लीन हो गयीं, तब मेनका ने इनको ‘पुत्री ! तप मत करो -‘ उ मा तप’ ऐसा कहा तबसे इनका नाम ‘उमा’ भी प्रसिद्ध हो गया ।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नम:
ब्रह्मचारिणी की प्रार्थना:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
नवरात्रि का तीसरा दिन – चंद्रघंटा देवी-Kaun hai Devi Chandraghanta
तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है। इनके मस्तक में घण्टा के आकार का अर्ध-चन्द्र है। ये लावण्यमयी दिव्यमूर्ति हैं। स्वर्णके सदृश्य इनके शरीर का रंग है। इनके तीन नेत्र और दस हाथ हैं, जिसमें दस प्रकार के खड्ग आदि शस्त्र और बाण आदि अस्त्र हैं।
ये सिंह पर आरूढ़ हैं तथा लड़ने के लिये युद्ध में जाने को उन्मुख हैं। ये वीर रस की अपूर्व मूर्ति हैं। इनके चण्ड- भयंकर घण्टे की ध्वनि से सभी दुष्ट दैत्य दानव एवं राक्षस त्रस्त हो उठतें हैं।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
नवरात्रि का चौथा दिन – कुष्मांडा देवी-Kaun hai Devi Kushmanda
चौथी दुर्गा का नाम कूष्माण्डा है। ईषत् हँसने से अण्ड को अर्थात् ब्रह्माण्ड को जो पैदा करती है, वे शक्ति कूष्माण्डा हैं। ये सूर्यमण्डल के भीतर निवास करती हैं। सूर्य के समान उनके तेज की झलक दसां दिशाओं में व्याप्त है। इनकी आठ भुजायें हैं।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
नवरात्रि का पांचवा दिन – स्कंदमाता-Kaun hai Devi Skand Mata
पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद भगवान् शिव से विवाह किया तदन्तर स्कन्द उनके नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुये। उनकी माता होने से ये ‘स्कन्द माता’ कहलाती है।
ये स्कन्द देवताओं की सेना का संचालन करने से सेनापति हैं। ये स्कन्दमाता अग्निमण्डल की देवता हैं, स्कन्द इनकी गोद में बैठे हैं। इनकी तीन आँखें व चार भुजायें हैं। ये शुभ्रवर्णा हैं तथा पद्म के आसन पर विराजमान हैं।
ॐ देवी स्कन्दमातायै नम:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
स्कंदमाता की प्रार्थना:
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।
नवरात्रि का छठा दिन – कात्यायनी देवी-Kaun hai Devi Katyayni
कात्यायनी ये छठी दुर्गा शक्ति का नाम है। ‘कत’ का पुत्र ‘कात्य’ है। इस कात्य के गोत्र में पैदा होने वाले ऋषि कात्यायन हुए । इसी नाम के कात्यायन आचार्य हुए हैं, जिन्होंने पाणिनिकी अष्टाध्यायी की पूर्ति करने के लिये ‘वार्तिक’ बनाये हैं इन्हीं को ‘वररूचि’ भी कहते हैं।
इन कात्यायन ऋषि ने इस धारणा से भगवती पराम्बा की तपस्या की कि आप मेरी पुत्री हो जायें। भगवती ऋषि की भावना की पूर्णता के लिये उनके यहाँ ये पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई। इससे इनका नाम ‘कात्यायनी’ पड़ा।
वृन्दावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति-रूप में पाने के लिये मार्गशीर्ष के महीने में कालिन्दी-यमुना नदी के तट पर ‘कात्यायनी’ की पूजा की थी। इससे सिद्ध है कि यह वज्रमण्डल की अधीश्वरी देवी हैं। इनका स्वर्णमय दिव्य स्वरूप है। इनके तीन नेत्र तथा आठ भुजाएँ हैं। इन आठ भुजाओं में आठ प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हैं। इनका वाहन सिंह है।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
नवरात्रि का सातवां दिन – कालरात्रि देवी-Kaun hai Devi Kalratri
सातवीं दुर्गा शक्ति का नाम ‘कालरात्रि’ है। इनके शरीर का अंग अंधकार की तरह गहरा काला है। इनके सिर के केश बिखरे हुए हैं। इनके गले में विद्युत्-सदृश चमकीली माला है। इन तीन नेत्रों से विद्युत् की ज्योति चमकती रहती है।
नासिका से श्वास-प्रश्वास छोड़ने पर हजारों अग्नि की ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। ऊपर उठे हुये दाहिने हाथ में चमकती तलवार है। उसके नीचे वाले हाथ में वरमुद्रा है, जिससे भक्तों को अभीष्ट वर देती हैं।
बाँयें हाथ में जलती हुई मसाल है और उसके नीचे वाले बाँयें हाथ में अभय-मुद्रा है जिससे अपने सेवकों को अभयदान करती और अपने भक्तों को सब प्रकार के कष्टों से मुक्त करती हैं। अतएव शुभ करने से यह ‘शुभंकरी’ भी हैं।
ॐ देवी कालरात्र्यै नम:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः |
कालरात्रि की प्रार्थना:
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें ।
नवरात्रि का आठवां दिन – महागौरी देवी-Kaun hai Devi Mahagauri
आठवीं दुर्गा-शक्ति का नाम ‘महागौरी’ है। इनका वर्ण इन्दु एवं कुन्द के सदृश गौर है। इनकी अवस्था आठ वर्ष की है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके वस्त्र एवं आभूषण सभी श्वेत, स्वच्छ है। इनके तीन नेत्र हैं। ये वृषभवाहिनी और चार भुजाओं वाली हैं। ऊपर वाले वामहस्त में अभय-मुद्रा और नीचे के बाँयें हाथ में त्रिशूल है। ऊपर के दक्षिण हस्त में डमरू वाद्य और नीचे वाले दक्षिण हस्त में वरमुद्रा है। यह सुवासिनी, ये शान्तमूर्ति और शान्त-मुद्रा हैं।
‘नारद-पाञ्चरात्र’ में लिखा है कि ‘व्रियेऽहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात।’ इस प्रतिज्ञा के अनुसार शभ्भु की प्राप्ति के लिये हिमालय में तपस्या करते समय गौरी का शरीर धूल-मिट्टी से ढककर मलिन हो गया था। जब शिवजी ने गंगाजल से मलकर उसे धोया, तब महागौरी का शरीर विद्युत् के सदृश कान्तिमान् हो गया-अत्यन्त गौर हो गया। इसी से ये विश्व में ‘महागौरी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते॥
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव-प्रमोद-दा॥
महागौरी की प्रार्थना:
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
नवरात्रि का नौवां दिन – सिद्धिदात्री देवी-Kaun hai Devi Siddhidatri
नवीं दुर्गा-शक्ति ‘सिद्धिदात्री’ हैं। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी हैं। इन सबको देनेवाली ये महाशक्ति हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण-जन्मखण्ड में 1- अणिमा, 2- लघिमा, 3- प्राप्ति, 4- प्राकाम्य, 5- महिमा, 6- ईशित्व, वशित्व, 7- सर्वकामावसायिता, 8- सर्वज्ञत्व, 9- दूरश्रवण, 10- परकायप्रवेशन, 11- वाकसिद्धि, 12- कल्पवृक्षत्व, 13- सृष्टि, 14- संहारकरण सामर्थ्य, 15- अमरत्व, 16- सर्वन्यायकत्व, 17- भावना, 18- सिद्धि ‘सिद्धयोऽष्टादश स्मृताः’ इन अठारह सिद्धियों का उल्लेख है। इन सबको ये देती हैं। देवीपुराण में कहा गया है कि भगवान् शिव ने इनकी आराधना करके सब सिद्धियाँ पायी और इनकी कृपा से उनका आधा अंग देवी हो गया, जिससे उनका नाम जगत् में -‘अर्द्धनारीश्वर’ प्रसिद्ध हो गया। ये देवी सिंहवाहिनी तथा चतुर्भजा और सर्वदा प्रसन्नवदना है। दुर्गा के इस स्वरूप की देव, ऋषि-मुनि, सिद्ध, योगी-साधक और भक्त सभी सर्वश्रेय की प्राप्ति के लिये आराधना-उपासना करते हैं।
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
गन्धर्व + यक्ष + आद्य -> का अर्थ (स्वर्गलोकनिवासी उपदेवता गण, जिन में गन्धर्व, यक्ष, इत्यादि आद्य हैं), और असुर (राक्षस) , अमर (देव) गण भी, इन सब से जिसकी सेवा होती है ।
सिद्धगन्धर्व-यज्ञज्ञैरसुरैरमरैरपि यह पाठभेद भी दिखता है । यज्ञज्ञ = वह जो यज्ञों के विधान आदि जानता हो
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
Days- Colors & Bhog
1. देवी शैलपुत्री: प्रथम दिन
नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा का पहला रूप देवी शैलपुत्री होता है। इनकी पूजा और अर्चना इस दिन की जाती है। शैलपुत्री को पार्वती या हेमवती के रूप में भी पूजा जाता है। इस दिन शुद्ध देसी घी माता के पैरों पर अर्पित किया जाता है और भोग भी शुद्ध घी का ही बनता है। इसके साथ मां को मीठी खीर जरूर चढ़ानी चाहिए।
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है.माना जाता है कि माता शैलपुत्री को पीला रंग बहुत प्रिय है.इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनकर मां की पूजा करने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं.
2. देवी ब्रह्मचारिणी: दूसरा दिन
नवरात्रि के दूसरे दिन, देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। उनका रूप अत्यंत पवित्रता और भक्ति का है। शक्ति के इस रूप को धारण करना तपस्या, त्याग, पुण्य और बड़प्पन की भावना का आह्वान करने के लिए जाना जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी सादा भोजन और प्रसाद पसंद करती हैं। उनके लिए आप चीनी और फलों का भोग लगा सकते हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना होती है. मान्यता है कि माता ब्रह्मचारिणी को हरा रंग बहुत पसंद है. इसलिए उनकी चुनरी और श्रंगार भी हरे रंग से किया जाता है.भक्तों को उनकी पूजा हरे रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए.
3. देवी चंद्रघंटा: तीसरा दिन
दुर्गा की तीसरी अभिव्यक्ति देवी चंद्रघंटा होती है। उन्हें क्रोध में दहाड़ते हुए एक 10-सशस्त्र देवी के रूप में चित्रित किया जाता है। नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के लिए पकवान बनाए जाते हैं। उनकी पसंद का प्रसाद बनाया जाता है। अगर आप मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो तीसरे दिन दूध, मिठाई या खीर चढ़ाकर उन्हें खुश जरूर करें।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है.उन्हें भूरा रंग बहुत भाता है.इसलिए उनका वस्त्र विन्यास भी भूरे रंग के कपड़ों से किया जाता है.भक्तों को नवरात्र के तीसरे दिन भूरे रंग के कपड़े पहनकर मां की पूजा करनी चाहिए.
4. देवी कुष्मांडा: चौथा दिन
नवरात्रि के चौथे दिन, मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कुष्मांडा नाम तीन अन्य शब्दों ‘कू’ (छोटा), ‘ऊष्मा’ (ऊर्जा) और ‘अमंडा’ (अंडा) से बना है जिसका अर्थ है जिसने ब्रह्मांड को ऊर्जा और गर्मी के साथ ‘लिटिल कॉस्मिक एग’ के रूप में बनाया है। देवी के इस रूप की पूजा भव्य तरीके से की जाती है और भोग के रूप में मालपुआ चढ़ाकर देवी की पूजा करते हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना की जाती है.मान्यता है कि उन्हें नारंगी रंग बहुत प्रिय है.उनकी पूजा के दौरान सारा श्रंगार भी नारंगी रंग के कपड़ों से किया जाता है.इसलिए भक्तों को उनकी पूजा नारंगी रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए.
5. देवी स्कंदमाता: पांचवा दिन
मां दुर्गा का पांचवां रूप स्कंदमाता होता है। देवी स्कंदमाता को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया जाता है, जो कमंडल और घंटी के साथ अपनी दो भुजाओं में कमल धारण करती है। देवी को केले का भोग लगाया जाता है और कहा जाता है कि इससे भक्तों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है.माना जाता है कि मां स्कंदमाता को सफेद रंग से बेहद लगाव है. इसलिए उनकी पूजा करते हुए भक्तों को सफेद रंग के कपड़े जरूर पहनने चाहिएं.भक्तों को इस श्रद्धा का फल जरूर मिलता है.
6. देवी कात्यायनी: छठा दिन
देवी कात्यायनी को छठे दिन (षष्ठी) पर पूजा की जाती है, देवी कात्यायनी शक्ति का एक रूप है, जिसे चार भुजाओं वाली और तलवार लिए हुए दिखाया जाता है। भक्त देवी कात्यायनी को प्रसाद के रूप में शहद चढ़ाते हैं। उनका आशीर्वाद उनके जीवन को मिठास से भर देता है और उन्हें कड़वी परेशानियों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा का माना जाता है.मान्यता है कि मां कात्यायनी को लाल रंग काफी प्रिय है.इसे देखते हुए उनका श्रंगार भी लाल रंग के कपडों से किया जाता है.भक्तों को भी मां को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए.
7. देवी कालरात्रि: सातवां दिन
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, देवी कालरात्रि चार भुजाओं वाली देवी हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए भक्त गुड़ या गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाते हैं। इसे दक्षिणा के साथ ब्राह्मणों को प्रसाद में भी दिया जाता है।
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. उन्हें नीला रंग बहुत प्रिय है. उनकी प्रतिमा के वस्त्रों और पूजा के दूसरे सामानों का रंग भी नीला ही रखा जाता है. भक्तों को उनकी आराधना करते हुए नीले रंग के कपड़े धारण करने चाहिए.
8. देवी महागौरी: आठवां दिन
नवरात्रि का आठवां दिन देवी महागौरी को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, महागौरी को चार भुजाओं वाले देवी के रूप में पूजा जाता है जो बैल या सफेद हाथी पर सवार होती हैं। देवी महागौरी को भक्तों द्वारा नारियल का भोग चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अष्टमी पर ब्राह्मणों को नारियल दान करने से निः संतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है. उन्हें गुलाबी रंग से बेहद लगाव माना जाता है. इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए नवरात्र के आठवें दिन गुलाबी रंग के कपड़े पहनने चाहिए.
9. देवी सिद्धिदात्री: नौवां दिन
नवरात्रि के नौवें दिन, देवी सिद्धिदात्रीकी पूजा की जाती है, जिन्हें कमल पर शांति से बैठे चार भुजाओं के साथ दर्शाया जाता है। उनके पास एक कमल, गदा, चक्र और एक पुस्तक होती है। देवी सिद्धिदात्री पूर्णता का प्रतीक हैं। नवरात्रि के नौवें दिन, भक्त उपवास रखते हैं और भोग के रूप में उन्हें तिल या तिल तेल का चढ़ाते हैं।
नवरात्रि के नौवें और आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है. माना जाता है कि जामुनी रंग मां सिद्धिदात्री को बहुत भाता है. इसलिए उनकी पूजा करते समय जामुनी रंग के कपड़े) पहनने चाहिए.
अब आप भी 9 दिनों में मां के लिए ये अलग-अलग तरह के भोग बनाकर उन्हें खुश करें। इससे देवी मां की असीम कृपा आप पर बनेगी और आपके काम सिद्ध होंगे।
Note : किसी भी देवी की सिद्धि प्राप्त करने या आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्री के दिनों में १ माला प्रतिदिन जाप करे| कात्यायनी देवी की सिद्धि या कृपा प्राप्त करने, शीघ्र विवाह हेतु १ दिन में १०८ माला का जाप करे
नवरात्रि में निषेध वस्तुएँ- Restricted Items During Navratri
प्याज और लहसुन: नवरात्रि के दौरान प्याज और लहसुन का सेवन नहीं किया जाता, क्योंकि इन्हें तामसिक माना जाता है और ये शुभ अवसर के दौरान नहीं खाए जाते।
अल्कोहल: शराब और अन्य अल्कोहोली द्रवियों का सेवन भी नवरात्रि के दौरान नहीं किया जाता, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।
मांस: नवरात्रि के दौरान मांस का सेवन नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक शाकाहारी आहार का समय होता है और भगवान दुर्गा की पूजा के दौरान यह अनुचित माना जाता है।
अभद्र वचन: बुरी भाषा या अशुभ शब्दों का उपयोग भी नवरात्रि के दौरान नहीं किया जाना चाहिए।
मां कात्यायनी का बीज मंत्र: “ॐ ह्रीं कात्यायन्यै नमः।”
मां कालरात्रि का बीज मंत्र: “ॐ क्रीं कालरात्र्यै नमः।”
मां महागौरी का बीज मंत्र: “ॐ ऐं नमो महागौर्यै।”
मां सिद्धिदात्री का बीज मंत्र: “ॐ ह्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः।”
नवदुर्गा के ध्यान मंत्र: Nav Durga Dhyan Mantra
नवरात्रि और मां दुर्गा की पूजा में उपयोग किए जाते हैं ताकि भक्त उनकी ध्यान और साकार रूप में आराधना कर सकें। ये मंत्र आपके मानसिक शांति, शक्ति, और साधना को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री के ध्यान मंत्र–Shailputri Dhyan Mantra
“वन्दे वाद्द्रिचतलाभिरर्धकुचापारेन्द्रानीम।
रुपां देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।”
मां ब्रह्मचारिणी के ध्यान मंत्र–Brahmcharini Dhyan Mantra
“या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
मां चंद्रघंटा के ध्यान मंत्र–Chandraganta Dhyan Mantra
“पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चंद्रघण्टेति विश्रुता।”
मां कूष्माण्डा के ध्यान मंत्र-Kumanda Dhyan Mantra
“सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।”
मां स्कंदमाता के ध्यान मंत्र–Skandmata Dhyan Mantra
“सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।”
मां कात्यायनी के ध्यान मंत्र–Katyayani Dhyan Mantra
“चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी।”
मां कालरात्रि के ध्यान मंत्र–Kalratri Dhyan Mantra
मां सिद्धिदात्री के ध्यान मंत्र–Maa Siddhidatri Dhyan Mantra
“सिद्धिदात्रीमये देवी सर्वकामप्रदायिनी।
यथा त्वं यथा त्वं कुरु कुरु मां सिद्धयै।”
Navratri 2022:
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि शुरू होगी। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इस साल नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू होगी और 5 अक्टूबर को समाप्त होगी। मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्र में देवी धरती पर आती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इस दौरान भक्त मां आदि शक्ति की कृपा पाने के लिए पूजा और व्रत रखते हैं। नवरात्रि में महाष्टमी और महानवमी तिथि का विशेष महत्व है।
FAQ
नवरात्रि क्या होता है?
नवरात्रि हिन्दू धर्म में मां दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है।
नवरात्रि कब मनाई जाती है?
नवरात्रि वर्ष 2023 में 15 अक्टूबर से शुरू होकर 24 अक्टूबर को समाप्त होगी।
नवरात्रि का क्या महत्व है?
नवरात्रि में मां दुर्गा की नौ दिनों की पूजा करने से भक्त उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नवरात्रि के दौरान कितने प्रकार की पूजा की जाती है?
नवरात्रि के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री शामिल हैं।
नवरात्रि के दौरान रात्रि को कैसे पूजा जाता है?
रात्रि के दौरान, दीप जलाकर मां दुर्गा का आराधना किया जाता है और भजन-कीर्तन किया जाता है।
नवरात्रि के दौरान व्रत क्यों रखा जाता है?
व्रत रखने से भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।
नवरात्रि के दौरान कौन-कौन सी खास खाद्य चीजें खाई जाती हैं?
नवरात्रि के दौरान व्रत के अंतर्गत साबूदाना, कुट्टू के आटे, फल, सिंधाव, और दही जैसी खाद्य चीजें खाई जाती हैं।
नवरात्रि के दौरान दंडिया रास क्या होता है?
दंडिया रास नवरात्रि के दौरान खेले जाने वाले एक पॉपुलर गुजराती नृत्य और संगीत का हिस्सा होता है।
नवरात्रि के दौरान कैसे मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है?
नवरात्रि के प्रारंभ में, मां दुर्गा की मूर्ति को कलश और मिट्टी के पात्र में स्थापित किया जाता है।
नवरात्रि के दौरान कौन-कौन सी रंगीन पूजाएँ की जाती हैं?
नवरात्रि के दौरान माता की मूर्ति के श्रृंगार के लिए मोतियों या फूलों की माला, साड़ी, चुनरी, कुमकुम, लाल बिंदी, चूड़ियां, सिंदूर, शीशा, मेहंदी, और अन्य रंगीन आभूषण का उपयोग किया जाता है। यह सभी आइटम माता को सुंदरता के साथ सजाने में मदद करती हैं और उनकी पूजा को और भी आकर्षक बनाती है।
मां शैलपुत्री की पूजा कब और कैसे करनी चाहिए?
मां शैलपुत्री की पूजा 15 अक्टूबर 2023 को करनी चाहिए। पूजा में मां की मूर्ति या तस्वीर का स्थापना करें, रंगीन वस्त्र पहनाएं, और फूल और दीपक चढ़ाएं। मां के मंत्रों का जाप करें और व्रत में प्रिय भोग चढ़ाएं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान कौनसे मंत्र पढ़ने चाहिए?
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के समय “ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करें। इसके साथ, व्रत में दूध, फल, और सिंघाड़े का आटा चढ़ाएं।
मां चंद्रघंटा की पूजा कैसे करें?
मां चंद्रघंटा की पूजा में उनकी मूर्ति को सफेद वस्त्र में धारण करें और चंद्रमा के चिन्ह के साथ पूजन करें। चंद्रघंटा मंत्र का जाप करें और घी, मिष्ठान्न, और फल उनको चढ़ाएं।
मां कुष्मांडा की पूजा में क्या उपासना करें?
मां कुष्मांडा की पूजा में कद्दू की मूर्ति या छायाचित्र का स्थापना करें और कद्दू के बीजों से पूजा करें। कुष्मांडा मंत्र का जाप करें और उनको मिठाई, आलू, और सिंधाड़े का आटा चढ़ाएं।
मां स्कंदमाता की पूजा के दिन कौनसी पूजा करनी चाहिए?
मां स्कंदमाता की पूजा में श्री स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करें और उनके मंत्र का जाप करें। उनके पसंदीदा भोग के रूप में मिठाई और फल चढ़ाएं।
मां कात्यायनी की पूजा में कैसे उपासना करें?
मां कात्यायनी की पूजा में उनकी मूर्ति को शुद्ध वस्त्र पहनाकर स्थापित करें और काजल और फूलों की माला पहनाएं। कात्यायनी मंत्र का जाप करें और खीर और मूंगफली का भोग चढ़ाएं।
मां कालरात्रि की पूजा के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
मां कालरात्रि की पूजा के समय विशेष सावधानियाँ रखनी चाहिए। आपको धूप और दीपक के साथ उनकी पूजा करनी चाहिए, और रात के समय जागरूक रहना चाहिए। मां के मंत्रों का जाप करें और व्रत में फल, दूध, और व्रत के खाद्य पदार्थ चढ़ाएं।
मां सिद्धिदात्री की पूजा के दौरान क्या ध्यान देना चाहिए?
मां सिद्धिदात्री की पूजा में उनकी मूर्ति को स्थापित करें और उनके विभूषणों से श्रृंगार करें। सिद्धिदात्री मंत्र का जाप करें और खीर, दूध, और खजूर का भोग चढ़ाएं।
मां महागौरी की पूजा में कौनसे मंत्र पढ़ने चाहिए?
मां महागौरी की पूजा के समय “श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः” मंत्र का जाप करें। उनको सफेद वस्त्र पहनाएं और शुद्ध दूध चढ़ाएं।
दशहरा के दिन क्या महत्व है?
दशहरा को दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी, और शस्त्र पूजन का दिन माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की मूर्ति को नदी या जलाशय में विसर्जन किया जाता है, जिससे उनका विदायी गणेश जी के साथ होता है। इस दिन भगवान राम ने रावण को विजय प्राप्त की थी, इसलिए यह भी विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है, जिसमें व्यक्ति अपने शस्त्रों को सजाकर पूजते हैं।
प्रथम दिन, देवी शैलपुत्री की पूजा के दौरान, भोग के रूप में कौनसे प्रकार के आहार का सेवन किया जाता है?
प्रथम दिन, देवी शैलपुत्री को शुद्ध देसी घी का भोग चढ़ाया जाता है और मीठी खीर भी उनके लिए बनाई जाती है।
दुसरे दिन, देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौनसे आहार का भोग चढ़ाया जाता है?
दुसरे दिन, देवी ब्रह्मचारिणी को चीनी और फलों का भोग चढ़ाया जाता है।
तीसरे दिन, देवी चंद्रघंटा के पूजा के समय कौनसे प्रकार के आहार का भोग किया जाता है?
तीसरे दिन, देवी चंद्रघंटा को पकवान और शहद का भोग चढ़ाया जाता है।
चौथे दिन, देवी कुष्मांडा की पूजा के दौरान, कौनसे प्रकार के भोग की प्राथमिकता होती है?
चौथे दिन, देवी कुष्मांडा को मालपुआ का भोग चढ़ाया जाता है, और इसे दक्षिणा के साथ ब्राह्मणों को भी दिया जाता है।
पांचवे दिन, देवी स्कंदमाता की पूजा के दौरान, कौनसे भोग का आयोजन किया जाता है?
पांचवे दिन, देवी स्कंदमाता को केले का भोग चढ़ाया जाता है, जो उन्हें खुश करने में मदद करता है।
छठे दिन, देवी कात्यायनी की पूजा के दौरान, कौनसे प्रकार के भोग का सेवन किया जाता है?
छठे दिन, देवी कात्यायनी को गुड़ या गुड़ से बनी मिठाई का भोग चढ़ाया जाता है।
सातवे दिन, देवी कालरात्रि की पूजा के समय, कौनसे प्रकार के आहार का भोग किया जाता है?
सातवे दिन, देवी कालरात्रि को गुड़ या गुड़ से बनी मिठाई का भोग चढ़ाया जाता है, और इसे दक्षिणा के साथ ब्राह्मणों को भी दिया जाता है।
आठवे दिन, देवी महागौरी की पूजा के दौरान, कौनसे प्रकार के आहार का भोग चढ़ाया जाता है?
आठवे दिन, देवी महागौरी को नारियल का भोग चढ़ाया जाता है, और यह भक्तों को संतान की प्राप्ति में मदद करता है।
नौवे दिन, देवी सिद्धिदात्री की पूजा के दौरान, कौनसे प्रकार के भोग का सेवन किया जाता है?
नौवे दिन, देवी सिद्धिदात्री को तिल या तिल तेल का भोग चढ़ाया जाता है, और यह भक्तों को पूर्णता की प्राप्ति में मदद करता है।
देवी शैलपुत्री को किस रंग के कपड़े पहनकर पूजा करना चाहिए?
देवी शैलपुत्री को पीले रंग के कपड़े पहनकर पूजन करने से वे प्रसन्न होती हैं।
देवी चंद्रघंटा को पूजन के दौरान कौन-कौन से कपड़े पहनने चाहिए?
देवी चंद्रघंटा की पूजा के समय भूरा रंग के कपड़े पहनने चाहिए, और उनकी चुनरी भी हरे रंग की होनी चाहिए.
देवी कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए?
देवी कुष्मांडा को नारंगी रंग के कपड़े पहनकर पूजन करने की सिफारिश की जाती है।
देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए कौन-कौन से कपड़े पहनने चाहिए?
देवी स्कंदमाता की पूजा के समय सफेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
देवी कात्यायनी की पूजा में किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए?
देवी कात्यायनी को लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजन करने की सिफारिश की जाती है।
देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए कौन-कौन से कपड़े पहनने चाहिए?
देवी कालरात्रि की पूजा के समय नीला रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
देवी महागौरी को प्रसन्न करने के लिए किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए?
देवी महागौरी को गुलाबी रंग के कपड़े पहनकर पूजन करने की सिफारिश की जाती है.
देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए?
देवी सिद्धिदात्री को जामुनी के कपड़े पहनकर पूजन करने की सिफारिश की जाती है.
परिभाषा: वसुमती योग एक ग्रह योग है जो तब बनता है जब किसी के लग्न से या चन्द्रमा से उपचय भावों (३, ६, १० और ११) में शुभ ग्रह शुभ रूप से स्थित होते हैं।
फल: इस योग के प्रसार में, जातक किसी के ऊपर निर्भर नहीं होता, बल्कि वह काफी धन का स्वामी होता है। किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण : योग का संबंध अधिकतर धन से होता है, और इस बारे में पाया जाता है कि लग्न से वसुमती योग अधिक प्रभावी होता है, चन्द्रमा से वसुमती योग के इस निहितार्थ का यह भी अर्थ होता है कि दो शुभ ग्रह कम धन देते हैं जबकि एक शुभ ग्रह साधारण धन देता है।
यदि उपचय के ग्रह उच्च के होते हैं, तो योग पूरी तरह बली होता है, हालांकि यदि उपचय के ग्रह नीचे होते हैं, तो विपरीत परिणाम देते हैं। चन्द्रमा से गिनती करते समय, सभी चार उपचय भावों में ग्रह नहीं हो सकते, क्योंकि केवल तीन ही शुभ ग्रह होते है
वराहमिहिर ने इस योग को बेहद गंभीरता से देखा है और इसे सभी योगों में अत्यंत प्रमुख माना है, क्योंकि इसकी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती है।
परिभाषा: चतुः सागर योग एक ग्रह योग है जो तब बनता है जब किसी कुंडली में सभी केन्द्र भावों में ग्रह स्थित होता है।
फल: इस योग के प्रसार में, जातक की प्रसिद्धि होती है, वह शासकों के समान उच्च पद पर होता है, उसकी आयु लम्बी होती है, वह सम्पन्न और धनवान होता है, उसके बच्चे उत्तम होते हैं, उसका स्वास्थ्य अच्छा होता है, और वह चारों सागरों की यात्रा करता है।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण: केन्द्रपति के सिद्धान्त के अनुसार, कुण्डली के केन्द्र में स्थित ग्रह की शक्ति बढ़ती है। कुण्डली के चार कोण किसी भवन की चार दीवारों के समान होते हैं, इसलिए इस परिणाम को ज्यों का त्यों लागू नहीं किया जाना चाहिए।
दसम केन्द्र में स्थित ग्रह सप्तम केन्द्र में स्थित ग्रह से बली होता है; सप्तम केन्द्र में स्थित ग्रह चतुरं केन्द्र में स्थित ग्रह से बली होता है। इसी तरह, चतुर्थ केन्द्र में स्थित ग्रह प्रथम भाव में स्थित ग्रह से बली होता है, हालांकि लग्न का केन्द्र अपवाद होता है।
दशा फल पर विचार करते समय, शुभ और अशुभ स्वामी ग्रहों की स्थिति का विचार करना चाहिए। चतुस्सागर योग में वित्तीय समृद्धि होती है, और उस व्यक्ति का प्रसिद्ध नाम होता है, यह देखने का माध्यम नहीं होता कि वह व्यक्ति शासक है या नहीं।
परिभाषा: अधियोग ज्योतिष शास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण योग है जो चन्द्रमा के शुभग्रह से संबंधित है। यदि किसी की कुंडली में चन्द्रमा ६, ७, और १२वें भाव में शुभग्रहों के साथ स्थित होता है, तो उसे अधियोग माना जाता है।
फल: अधियोग के प्रसार में, व्यक्ति नम्र और विश्वासी होता है। उसका जीवन खुशहाल होता है, और वह ऐश और आराम की वस्तुओं से घिरा रहता है। वह अपने शत्रुओं पर विजयी होता है, स्वस्थ रहता है, और उसकी आयु लम्बी होती है।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण: अधियोग को पापाधियोग और शुभाधियोग में बाँटा जाता है, हालांकि कुछ ज्योतिषी इस वर्गीकरण को मान्यता नहीं देते हैं। बराहमिहिर की पुस्तकों के विद्वान व्याख्याकार भट्टोत्पल कहते हैं कि पापाधियोग होता है। वराहमिहिर इसे सौम्य योग मानते हैं, जिसमें वे केवल सौम्य ग्रहों (बुध और बृहस्पति) को लेते हैं। इन ग्रहों को ६, ७, या १२वें भावों में होने की शर्त में देखा जाता है। यदि किसी एक भाव में ग्रह पूर्ण रूप से बली हो, तो व्यक्ति नेता बनता है। दो बली ग्रहों के साथ, वह मंत्री बन सकता है, और तीन बली ग्रहों के साथ, वह जीवन में महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकता है। अधियोग को राजयोग या इसके बराबर का योग माना जाता है।
परिभाषा: यदि मंगल चन्द्रमा से समानित (संयुक्त) हो तो यह योग बनता है।
फल : कदाचार साधनों से आय, स्त्रियों को बेचने वाला, मां के साथ रूखा और उसके तथा अन्य सम्बन्धियों के साथ दुव्र्व्यवहार करने वाला होगा ।किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण: ऊपर दिये गये फल प्राचीन लेखकों के अनुसार है। इस विज्ञान के युग में प्राचीन विद्वानों के प्रति आदर भाव रखते हुए मैं यह कहना चाहता हूँ कि किसी व्यक्ति की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ बनाने में चन्द्र-मंगल योग का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं ।
सामान्यतः आधुनिक युग में ठेका शराब की दुकान, शराबखाना आदि जैसे व्यवसायों से आय होगी। जातक लोगों की मूल आवश्यकताएं पूरी करेगा परन्तु जब चन्द्रमा और मंगल उत्तम स्थिति में हों तो अन्य उचित माध्यमों से आय होगी ।
ऐसा कहा जाता है कि मंगल और चन्द्रमा की युति से यह योग बनता है कि यदि चन्द्रमा और मंगल में परस्पर दृष्टि परिवर्तन हो तो भी यह योग बनता है। मान लें कि चन्द्रमा वृषभ में और मंगल वृश्चिक में है। चन्द्रमा कर्क में और मंगल मकर में है। यह उत्कृष्ट स्थिति होती है। इस योग से बहुत उत्तम फल होगा यदि यह योग २, ९, १० या ११वें भावों में बनता हो ।
परिभाषा : यदि चन्द्रमा के दोनों ओर कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है।
फल: जातक गन्दा, दुखी, अनुचित काम करने वाला, गरीब, दूसरे पर निर्भर, दुष्ट और ठग होगा ।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण : कुछ लेखकों का कहना है कि यदि जन्म लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में ग्रह हों या चन्द्रमा किसी ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम योग नहीं बनता। फिर भी कुछ अन्य लेखकों का मत है कि ये योग केन्द्र और नवांश से बनते हैं किन्तु यह मत सामान्यतः स्वीकार्य नहीं है।
परिभाषा: यदि चन्द्रमा के दोनों ओर ग्रह स्थित हो तो जो योग बनता है उसे दुरुधरा योग कहा जाता है ।
फल : जातक सुन्दर होता है और उसके पास काफी धन और सवारियां होंगी।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण : विभिन्न योगों के लिए निहित फल चाहे जो भी हो, एक महत्त्वपूर्ण सत्य उद्भूत होता है जो यह है कि जातक धन, शक्ति, नाम और प्रसिद्धि अलग-अलग श्रेणी में प्राप्त करता है। वास्तव में यह प्रत्येक योग में लागू नहीं होता है। पाँच ग्रहों के परिवर्तन और संयोजन द्वारा अनेक प्रकार के सुनफा, अनफा और दुरुधरा योग बनते हैं और उनके फलों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए ।
यदि दूसरे में मंगल और १२वें में बुध हो तो एक प्रकार का दुरुधरा योग बनता है। इसी प्रकार १२व में मंगल और दूसरे में बुध हो तो अन्य प्रकार का योग बनता है और दूसरे में बृहस्पति तथा १२वें में बुध हो तो एक और अन्य प्रकार का योग बनता है।
यद्यपि इन सबको दुरुधरायोग कहते हैं। इन परिवर्तनों में प्रत्येक संधि में अलग- अलग फल होता है । एक साधारण उदाहरण के रूप में मान लेते हैं कि दूसरे भाव में मकर राशि में मंगल है जहाँ वह उच्च का है और १२वें भाव में वृश्चिक में वृहस्पति अपनी निम्न राशि में है. अब दूसरे भाव में बृहस्पति ( नीच ) को लें और १२वें भाव में मंगल (स्वराशि) को लें, क्या दोनों ही मामलों में फल एक जैसा होगा ?
इन सभी परिवर्तनों का सावधानी पूर्वक विश्लेषण करना चाहिए। मुनफा के ३१ प्रकार हो सकते हैं और अनफा योग के भी इतने ही प्रकार हो सकते हैं और दुरुधरा योग के लगभग १८० प्रकार हो सकते हैं। अधिक विवरण के लिए बृहत्जातक देखें ।
परिभाषा : यदि चन्द्रमा से १२ वें भाव मे ग्रह स्थित हो तो अनफा योग बनता है।
फल: जातक के अंग गठीले मुखाकृति आकर्षक होती है। यह प्रसिद्ध होता है, यह नम्र, उदार, आत्मसम्मानी कपड़ों तथा मनोरंजन का प्रेमी होता है, जीवन के अन्तिम काल में त्यागी और सन्यासी बनता है ।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण: अनफा योग में भी सूर्य को हिसाब में नहीं लिया जाता है । सुनफा के लिये दिए गए विवरण को कुछ अन्तर के साथ यहाँ भी लागू किआ जाता है |
चन्द्रमा से १२ भाव में बृहस्पति और शनि स्थित होने के कारण अनफा योग बनता है। यह योग क्षीण है क्योंकि बृहस्पति नीच का है, यद्यपि नीच भंग है क्योंकि शनि लग्न से केन्द्र में स्थित है । इस योग के अपने हिस्से का फल शनि अपनी दशा में देगा । इस तथ्य को भी ध्यान में रखें कि १२ वें भाव का सम्बन्ध मोक्ष या त्याग से होता है | अतः जातक जीवन के आखिरी काल में सांसारिक वस्तुओं से विरक्त हो जायेगा |
गण्ड मूल को शास्त्रों में गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है। यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है। मूलत: अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते है। इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से इनकी शान्ति कराई जाती है।
क्या है गंडांत योग :
तिथि गन्डान्त- पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है।
नक्षत्र गण्डान्त- इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है। खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़यां अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़यां, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है।
लग्न गण्डान्त- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है। अर्थात मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।
क्या होता है : ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है। मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।
गंडांत दोष के उपाय : गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें। गंडांत योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस योग में संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। पराशर मुनि के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है। संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अंतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।
ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।
पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-
अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।
Gandmool Nakshtra List
अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती से ये 6 नक्षत्र गण्डमूल कहलाते हैं।
इन नक्षत्रों में जन्मा हुआ बालक माता-पिता, कुल और अपने शरीर को नष्ट करता है। स्वयं का शरीर नष्ट न हो तो धन, वैभव, ऐश्वर्य तथा घोड़ों का स्वामी होता है। गण्डमूल में जन्में हुए बालक का मुख 27 दिन तक पिता न देखे। प्रसूतिस्नान के पश्चात् शुभ बेला में बालक का मुख देखना चाहिए। उपरोक्त गण्डमूल के चारों चरणों में से जिस चरण में बच्चा पैदा हो, उसका विशेष फल निम्न चक्र से मालूम कर ले
परिभाषा – यदि चन्द्रमा से दूसरे भाव में ग्रह हों (सूर्य को छोड़कर) तो सुनफा योग बनता है।
फल – जातक के पास स्वअर्जित सम्पत्ति होगी। वह राजा, शासक या उसके समतुल्य, तेज बुद्धि वाला, घनी और प्रसिद्ध होगा। किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
व्याख्या: सुनफा योगमें और निम्नलिखित दो योगों में चन्द्रमा का काफी महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। दूसरे भाव में सूर्य के सिवाय ग्रहों का होना आवश्यक हैं दूसरे भाव में मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र और शनि अकेले या एक साथ हो सकते हैं । पुनः इस योग का स्वरूप मुख्यतः दूसरे भाव में स्थित अधिपतियों के स्वभाव पर अधिक सीमा तक निर्भर करता है ।
इस प्रकार मान लिया जाय कि चन्द्रमा वृषभ राशि में है और बुध, वृहस्पति और शुक्र दूसरे भाव में है। यह एक प्रबल सुनफा योग है जो काफी धन देता है। इस मामले में यदि लग्न भाव में सिंह राशि हो तो इस योग की गहनता अधिक होगी क्योंकि योग का सम्बन्ध १० वें और ११ वें भावों से होगा । योग बनाने के लिए जिम्मेदार ग्रहों की दशा और मुक्ति में इस योग के फल प्राप्त होंगे है |