Gandmool Poojan Samgri List

  • Home
  • Blog
  • Gandmool Poojan Samgri List
Gandmool

Gandmool Poojan Samgri List

गंडमूल पूजन सामग्री विवरण 

S. N0 पूजन सामग्रीमात्रा
1रोली1 पैकेट
2कलावा5 पैकेट
3सिन्दूरपैकेट
4लौंग108
5इलायची20
6सुपारी15
7गरी गोला1 नग
8शहद50 ग्राम
9इत्र5 ग्राम
10गंगाजल100 ग्राम
11गुलाब जल100 ग्राम
12अबीर- गुलाल100 ग्राम
13हल्दी100 ग्राम
14लाल कपड़ा1.25 मीटर
15पीला कपडा1.25 मीटर
16कलश मिटटी का ढक्कन के साथ1 नग
17सकोरा10 नग
18दिए मिटटी के20 नग
19धूपबत्ती1 पैकेट
20रूईबत्ती1 पैकेट
21कपूर100 ग्राम
22देशी घी500 ग्राम
23जनेऊ-यज्ञोपवित5 नग
24पीली सरसो100 ग्राम
25पंचमेवा100 ग्राम
26सप्तमातृका2 नग
27सप्तधान्य1 किलो
28पंचरत्न1 नग
29सर्वौषधि1 पैकेट
30दोना20 नग
31माचिस1 नग
32रंग- लाल, हरा, पीला, काला,2-2पुड़िया
33झंडा- हनुमान जी का1 नग
34सत्ताईस वृक्षों के पत्ते4-4 नग
35सत्ताईस नक्षत्र हवन समिधा1 पैकेट
36सत्ताईस कुओ का पानी500 ग्राम
37सत्ताईस किलो अनाज1 नग
38सत्ताईस कुल्हड़1 नग
39सत्ताईस छिद्रो वाला कलश1 नग
40सत्ताईस प्रकार की औषधि1 नग
41कम्बल या चद्दर1 नग
42चाँदी की गाय- अथवा गौदान1 नग
43ब्रह्मपूर्ण पात्र- धातु पात्र ( भगोना ) – ५ किलो1 नग
44कटोरा- छाया दान हेतु1 नग
45नवग्रह समिधा1 पैकेट
46हवन सामग्री500 ग्राम
47आम की समिधा3 किलो
48हवन कुंड- लोहे का इस्तेमाल न करे1 नग
49लकड़ी की चौकी1 नग
50लकड़ी का पीठा1 नग
51आम का पत्ता50 नग
52फूल माला5 नग
53खुले फूल500 ग्राम
54फल – ५ प्रकार के500 ग्राम
55मिठाई – ५ प्रकार की500 ग्राम
56पान के पत्ते20 नग
57दूध500 ग्राम
58दही500 ग्राम
59नारियल पानी वाला1 नग

गण्ड मूल योग में जन्मे जातक का भविष्य और उपाय :

ALSO READ  Astrology - The First Science

गण्ड मूल को शास्त्रों में गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है। यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है। मूलत: अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते है। इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से इनकी शान्ति कराई जाती है।

क्या है गंडांत योग :

तिथि गन्डान्त- पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है।

नक्षत्र गण्डान्त- इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है। खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़यां अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़यां, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है।

ALSO READ  Siddh Chaupai

लग्न गण्डान्त- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है। अर्थात मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।

क्या होता है : ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है। मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।

ALSO READ  Radha Asthmi

गंडांत दोष के उपाय : गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें। गंडांत योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस योग में संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। पराशर मुनि के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है। संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अंतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।

ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।

पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-

दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि।

जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।।

अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।

Gandmool Nakshtra List

अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती से ये 6 नक्षत्र गण्डमूल कहलाते हैं।

इन नक्षत्रों में जन्मा हुआ बालक माता-पिता, कुल और अपने शरीर को नष्ट करता है। स्वयं का शरीर नष्ट न हो तो धन, वैभव, ऐश्वर्य तथा घोड़ों का स्वामी होता है। गण्डमूल में जन्में हुए बालक का मुख 27 दिन तक पिता न देखे। प्रसूतिस्नान के पश्चात् शुभ बेला में बालक का मुख देखना चाहिए। उपरोक्त गण्डमूल के चारों चरणों में से जिस चरण में बच्चा पैदा हो, उसका विशेष फल निम्न चक्र से मालूम कर ले

Leave a Reply