Gandmool Nakshtra
गण्ड मूल योग में जन्मे जातक का भविष्य और उपाय :
गण्ड मूल को शास्त्रों में गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है। यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है। मूलत: अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते है। इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से इनकी शान्ति कराई जाती है।
क्या है गंडांत योग :
तिथि गन्डान्त- पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है।
नक्षत्र गण्डान्त- इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है। खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़यां अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़यां, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है।
लग्न गण्डान्त- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है। अर्थात मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।
क्या होता है : ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है। मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।
गंडांत दोष के उपाय : गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें। गंडांत योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस योग में संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। पराशर मुनि के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है। संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अंतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।
ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।
पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-
दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि।
जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।।
अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।
Gandmool Nakshtra List
Gandmool Nakshtra List: अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती से ये 6 नक्षत्र गण्डमूल कहलाते हैं। इन नक्षत्रों में जन्मा हुआ बालक माता-पिता, कुल और अपने शरीर को नष्ट करता है। स्वयं का शरीर नष्ट न हो तो धन, वैभव, ऐश्वर्य तथा घोड़ों का स्वामी होता है। गण्डमूल में जन्में हुए बालक का मुख 27 दिन तक पिता न देखे। प्रसूतिस्नान के पश्चात् शुभ बेला में बालक का मुख देखना चाहिए। उपरोक्त गण्डमूल के चारों चरणों में से जिस चरण में बच्चा पैदा हो, उसका विशेष फल निम्न चक्र से मालूम कर ले
अभुक्त मूल – Abhukt Mool
ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्तिम पाँच घटी, किसी के मत से चार घटी, किसी के मत से एक घटी और किसी के मत से आधी घटी एवं मूल नक्षत्र के आदि की आठ घटी, किसी के मत से चार घटी, दो घटी, आधी घटी का समय अभूक्त मूल कहलाता है। | इस समय में जो बच्चा जन्म ले, उसका परित्याग करदे या आठ वर्ष तक बच्चे का पिता उसका मुख न देखे। शान्ति करके मुख देखने में शास्त्रीय बाधा नहीं है।
मूल नक्षत्र में गर्भाधान करना उचित नहीं है तथा उक्त नक्षत्रों में रजस्वला स्त्री को स्नान करना वर्जित है।
The future and remedies of a native born under the Gand Mool Yoga:
In scriptures, the term “Gandmool” has been given for Gandmool Nakshatras. “Gand” in Sanskrit means extraction, and a portion of the date, ascendant, and constellation is called Gandmool. Originally, the six constellations – Ashwini, Ashlesha, Magha, Jyeshtha, Moola, and Revati – are referred to as Gandmool Nakshatras. Different results are obtained based on the specific birth within these constellations. For a birth occurring in these constellations, on the 27th day after birth, when the same constellation comes again, a ritual is performed to calm their influence.
What is Gandmool Yoga:
Gandmool is defined as the last two ghadis of the time when Tithi Gand is ending (5, 10, 15), and the first ghadi of Nanda Tithi (1, 6, 11) and other similar instances. This includes the beginning of the first ghadi of Pratipada, Shashthi, and Ekadashi Tithis, and the last ghadi of Purnima, Panchami, and Dashami Tithis.
Nakshatra Gandmool – Similarly, by combining the last four ghadis of Revati and Ashwini, Ashlesha and Magha, and Jyeshtha and Moola, Nakshatra Gandmool is determined. Similarly, Lagna Gandmool is calculated. Kheta, Jyeshtha, and Ashlesha Nakshatras are treated as negative, and two sets of 48 minutes each are calculated for Ashwini, Magha, and Moola Nakshatras, known as Nakshatra Gandmool.
Lagna Gandmool – This occurs in the last half ghadi of Meena Lagna, the end of Karka Lagna, the beginning and end of Simha Lagna, and the end of Vrishchika Lagna. In these cases, specific remedies are performed.
What happens: Jyeshtha Nakshatra’s Kanya causes harm to her husband’s elder brother, and a Kanya born in the fourth phase of Vishakha Nakshatra causes harm to her brother-in-law. Kanya born in the last three phases of Ashlesha may bring misfortune to her mother-in-law, and the first three phases of Moola may cause harm to the father-in-law. The fourth phase is considered auspicious for the native.
Remedies for Gandmool Dosha: For a child born under Gandmool Yoga, the father should only look at the child’s face when the Gandmool Shanti is done. Consult a pandit to perform the appropriate remedies. Gandmool Yoga is considered inauspicious for childbirth. If a child is born during this time, the father should only see the child’s face after performing Gandmool Shanti. According to Parashar Muni, donating a bull during Tithi Gand, a cow during Nakshatra Gand, and gold during Lagna Gand helps mitigate the dosha.
For Jyeshtha Gand Shanti, Indra Sukta and Mahamrityunjaya Mantra are recited. Different donations of cows are prescribed for different Gand Nakshatras.
Parashar Hora Grantha emphasizes the importance of appeasing planets during unfavorable planetary positions by means of rituals, donations, worship, chants, and peace rituals.
Gandmool Nakshatra List:
Gandmool Nakshatra List includes Ashwini, Ashlesha, Magha, Jyeshtha, Moola, and Revati. Birth in these Nakshatras may cause harm to parents, family, and even the native’s health. If the native’s own health is not affected, they may possess wealth, riches, and horses. If a child is born in Gandmool Nakshatras, the father should not see the child’s face for 27 days. After the purification bath, the father can see the child’s face during an auspicious time. The specific effects of being born in each phase of these Nakshatras can be determined using the mentioned chart.
Abhukt Mool:
The last five ghadis of Jyeshtha Nakshatra, according to some, the fourth ghadi, according to others, one ghadi, and in some opinions, half a ghadi, as well as the first eight ghadis of Moola Nakshatra, according to some, four ghadis, two ghadis, or half a ghadi, are referred to as Abhukt Mool. During this time, if a child is born, either the child is abandoned or the father does not see the child’s face for eight years. Seeing the face after performing the appropriate rituals is not against scriptural injunction.
It’s not recommended to conceive during Moola Nakshatra and pregnant women should avoid bathing during these mentioned Nakshatras.
प्रश्न 1: गण्डमूल नक्षत्र क्या हैं?
उत्तर: गण्डमूल नक्षत्र ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण नक्षत्र हैं जो मेष राशि के 0 डिग्री से 13 डिग्री 20 मिनट तक क्षेत्र में स्थित होते हैं।
प्रश्न 2: गण्डमूल नक्षत्र के क्या फल होते हैं?
उत्तर: गण्डमूल नक्षत्र के फल आमतौर पर विपरीत होते हैं। यह नक्षत्र व्यक्ति को चुनौतियों और परेशानियों का सामना करने का मौका देते हैं। इन फलों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, पारिवारिक विवाद, निराशा आदि शामिल हो सकती हैं।
प्रश्न 3: गण्डमूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव कैसे कम किया जा सकता है?
उत्तर: गण्डमूल नक्षत्र का अशुभ प्रभाव कम करने के लिए व्यक्ति को सत्संग और ध्यान की अभ्यास करना चाहिए। योग और मेधावी व्यायाम भी इस प्रकार के नक्षत्र के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, व्यक्ति को अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए दान या दान करने में आनंद लेना चाहिए।
प्रश्न 5: क्या गण्डमूल नक्षत्र का कोई पौष्टिक पहलु होता है?
उत्तर: हां, गण्डमूल नक्षत्र का भी कुछ पौष्टिक पहलु होता है। इस नक्षत्र के जातकों का धैर्य, संघर्ष और साहसी होता है। वे समस्याओं का सामना करने की क्षमता रखते हैं और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं।