षटतिला एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, जिससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इसके अनुष्ठान से भक्तों को आनंद, शांति, और समृद्धि मिलती हैं। व्रत का उपाय करने वाले भक्त नींदा, अनाहार, और तामसिक भोजन से बचते हैं और पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं।
षटतिला एकादशी का महत्व (Importance of Shattila Ekadashi)
षटतिला एकादशी, हिन्दू पंचांग के अनुसार, फागुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार को ‘षटतिला एकादशी’ के नाम से जाना जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है।
षटतिला एकादशी का आयोजन
षटतिला एकादशी का आयोजन भारतवर्ष में कई स्थानों पर होता है, खासकर गुजरात राज्य में जहां यह एक प्रमुख पर्व है। इस दिन तुलसी के पौधों की पूजा होती है और भक्तगण व्रत और पूजा के बाद भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।
षटतिला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व
षटतिला एकादशी भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मा के शुद्धिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
तिल का महत्व और पुण्य का अधिकारी बनाता है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, षटतिला एकादशी के दिन तिल के प्रयोग को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस विशेष दिन पर तिल का प्रयोग करने से साधक को रोग, दोष और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसे ‘पापहारिणी’ एकादशी भी कहा जाता है, जिससे पापों का नाश होता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी न केवल एक पर्व है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक सफलता और पुण्य का स्रोत भी है। इस महत्वपूर्ण दिन को ध्यान में रखकर भक्तों को आध्यात्मिक साधना की ओर प्रेरित करना चाहिए।
षटतिला एकादशी तिथि और मुहूर्त
षटतिला एकादशी की तिथि 6 फरवरी को है, जो दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी। ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 5.30 बजे से प्रातः 6.21 बजे तक। अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12.30 बजे से 1.15 बजे तक।
षटतिला एकादशी पर शुभ योग
षटतिला एकादशी के दिन सुबह 8.50 बजे तक व्याघात योग रहेगा। फिर हर्ष योग 7 फरवरी को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक है। ज्येष्ठ नक्षत्र सुबह 7.35 बजे तक है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja Vidhi)
एकादशी का व्रत विधि विधान से करना चाहिए, ताकि व्रती को लाभ हो। षटतिला एकादशी का व्रत रखने वालों को यह निर्देश ध्यान में रखना चाहिए।
पूर्व रात का भोजन: व्रत के दिन से एक दिन पहले रात को भोजन नहीं करें।
सफाई का महत्व: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें।
स्नान और ध्यान: स्नान करके देवी-देवताओं का ध्यान करें।
व्रत का संकल्प: व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की विधिवत पूजा शुरू करें।
पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत: देवता को पुष्प, जल, धूप, दीप और अक्षत अर्पित करें।
फल का भोग और आरती: फल का भोग लगाकर आरती करें।
जरूरतमंद को भोजन: इस दिन जरूरतमंद को भोजन कराएं।
व्रत खोलना: अगले दिन व्रत को विधिवत खोलें।
विधि-विधान से उपासना: षटतिला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। तिल मिलाकर स्नान करना न भूलें, क्योंकि शास्त्रों में इसका विशेष महत्व बताया गया है।
पूजा-स्थल की सफाई: स्नान के बाद पूजा-स्थल की साफ-सफाई करें और साफ-वस्त्र धारण करें।
व्रत का संकल्प: दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें और विधि-विधान से भगवान विष्णु की उपासना करें।
पूजा-अर्चना: भगवान विष्णु को जौ, तिल, गंध, पुष्प, धूप-दीप अर्पित करें।
सहस्रनाम स्तोत्र: भगवान विष्णु के सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।
आरती और समापन: आरती के साथ पूजा को संपन्न करें और व्रत अंत में सफलता से समापन हो।
इन सारी विधियों का पालन करके षटतिला एकादशी के व्रती भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उन्हें आनंद, शांति, और समृद्धि मिलती है। यह विशेष दिन आत्मा के शुद्धिकरण की ओर एक कदम बढ़ाता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
षटतिला एकादशी व्रत कथा:
पदम पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में एक वृद्ध ब्राह्मणी थीं, जो भगवान के नित्यनेम कर्मों में लगी रहती थीं और अपना अधिक समय भगवान के नाम सिमरण में बिताती रहती थीं। धार्मिक क्रियाओं का पालन करती हुई उन्होंने अनेक व्रत आदि किए और कन्याओं को वस्त्र दान तथा ब्राह्मणों को भूमि दान भी किया। इसके परिणामस्वरूप, वह शुद्ध आत्मा बन गईं, लेकिन उसकी शक्ति निर्बल हो गई थी।
एक दिन, भगवान ने उसका कल्याण करने के लिए साधू बनकर उसके द्वार पर भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने साधू से पूछा कि वह कौन हैं और कहां से आए हैं। साधू के प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलने पर वह गुस्से में चढ़ गईं और मिट्टी का ठेला साधू बनकर खड़े भगवान के भिक्षा पात्र में डाल दिया। इसके अनुसार, वह स्वर्गलोक में जाने का अधिकार प्राप्त कर लिया, लेकिन उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला।
उसने दुःख से परिपूर्ण होकर भगवान से प्रार्थना की और भगवान ने उसे यह सिखाया कि जब देव स्त्रियाएं दरवाजा आएं, तो उनसे षटतिला एकादशी की कथा पूछें और फिर ही दरवाजा खोलें। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया, जिससे उसने षटतिला एकादशी का व्रत जाना। इसके परिणामस्वरूप, उसे रूप, यौवन, तेज, और कांति के साथ ही अन्न, धन, और अनेक प्रकार के भोजन सामग्री की प्राप्ति हुई।
यह व्रत दुर्भाग्य, गरीबी, और कलह-कलेश को दूर करने के लिए जाना जाता है और तिल दान के माध्यम से सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करने में सहायक होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति अधिक संख्या में तिलों का दान करता है, उसे उतने ही अधिक जन्मों तक सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं, प्रभु कृपा से।
षटतिला एकादशी की तिथि क्या है?
षटतिला एकादशी की तिथि 6 फरवरी को है, जो दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी।
षटतिला एकादशी कब मनाई जाएगी उदयातिथि के अनुसार?
उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी।
ब्रह्म मुहूर्त का समय क्या है?
ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 5.30 बजे से प्रातः 6.21 बजे तक है।
अभिजीत मुहूर्त कब है?
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.30 बजे से 1.15 बजे तक है।
षटतिला एकादशी पर शुभ योग कब होगा?
षटतिला एकादशी के दिन सुबह 8.50 बजे तक व्याघात योग रहेगा।
षटतिला एकादशी पूजा की विधि क्या है?
षटतिला एकादशी पूजा करने के लिए निर्देशों की यहाँ ध्यान में रखें।
पूर्व रात का भोजन क्या होना चाहिए?
व्रत के दिन से एक दिन पहले रात को भोजन नहीं करें।
सफाई का महत्व क्या है?
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें।
व्रत का संकल्प कैसे लें?
व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा शुरू करें।
षटतिला एकादशी के दिन की उपासना कैसे करें?
सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें और तिल मिलाकर स्नान करें।
षटतिला एकादशी का क्या महत्व है?
षटतिला एकादशी व्रत दुर्भाग्य, गरीबी, और कलह-कलेश को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।
षटतिला एकादशी के व्रत से क्या लाभ होता है?
षटतिला एकादशी के व्रत से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और आध्यात्मिक उन्नति में मदद होती है।
षटतिला एकादशी के व्रत में तिल दान का क्या महत्व है?
जो व्यक्ति अधिक संख्या में तिलों का दान करता है, उसे अधिक जन्मों तक सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।
षटतिला एकादशी के व्रत से कैसे मिला अनुभव?
षटतिला एकादशी के व्रती भक्तों को रूप, यौवन, तेज, और कांति के साथ ही अन्न, धन, और अनेक प्रकार के भोजन सामग्री की प्राप्ति हुई है।
तारीख, महत्व, और पूजा विधि-Date, Significance, and Worship Method
पौष अमावस्या, 11 जनवरी 2024 को गुरुवार को आ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस अमावस्या की शुरुआत 10 जनवरी 2024 को बुधवार रात 8:10 पर होगी और समाप्ति 11 जनवरी 2024 को गुरुवार को शाम 5:26 पर होगी। स्नान और दान-दक्षिणा का मुहूर्त सुबह 5:57 से लेकर सुबह 6:21 तक रहेगा। पितरों के तर्पण के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:8 से दोपहर 12:50 तक रहेगा।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर माह का अपना महत्व होता है, और इसी तरह हिंदू धर्म में पौष माह में होने वाली पौष अमावस्या का भी विशेष महत्व है। नए साल के पौष माह की अमावस्या पहली अमावस्या के रूप में जानी जाएगी। इस समय पर, पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए विशेष क्रियाएं की जाती हैं, जो हमें पूर्वजों के आशीर्वाद में सहारा प्रदान करती हैं।
पौष मास की अमावस्या की तिथि 10 जनवरी को रात 8 बजकर 10 मिनट में आरंभ होगी, और इसका समापन अगले दिन 11 जनवरी को शाम के समय 5 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस दिन, पौष अमावस्या का आयोजन किया जाएगा, जिसे 11 जनवरी, गुरुवार को मनाया जाएगा।
पौष अमावस्या का महत्व– Significance of Paush Amavasya
हिंदू पंचांग के अनुसार, 11 जनवरी 2024 को होने वाली पौष अमावस्या अद्भुत और प्राचीन महत्व से भरी है। इस दिन कुछ विशेष क्रियाएं करके हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं और पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
पौष अमावस्या का आयोजन– Event of Paush Amavasya
पौष अमावस्या की तिथि 10 जनवरी को रात 8 बजकर 10 मिनट पर आरंभ होगी, और इसका समापन गुरुवार, 11 जनवरी को शाम 5 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस दौरान, स्नान और दान-दक्षिणा के शुभ मुहूर्त में कार्यों को पूरा करना श्रेष्ठ होता है।
पौष अमावस्या के दिन करें ये काम– Dos on Paush Amavasya
तर्पण और पिंड दान: पूर्वजों के नाम से तर्पण और पिंड दान करना महत्वपूर्ण है, जो पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है।
पूर्वजों का आशीर्वाद : Blessings from Forefathers
पौष अमावस्या में, पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इस दिन, पीपल के पेड़ की पूजा करके जल अर्पित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस विशेष क्रिया के माध्यम से पूर्वज आशीर्वाद प्रदान करते हैं क्योंकि हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को पितरों का आवास माना जाता है। इसी दिन, जरूरतमंदों को चावल, दूध, गरम कपड़े आदि के साथ पेट भरकर भोजन कराना भी महत्वपूर्ण है, जिससे पूर्वजों की कृपा बनी रहती है।
पौष अमावस्या पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व– The Mythological and Spiritual Significance of Poush Amavasya
पौष मास की अमावस्या पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ आती है। इस मास में, भगवान श्री हरि विष्णु और सूर्यदेव की पूजा के अलावा, पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण भी करना शुभ माना जाता है। पौष मास की अमावस्या विशेष रूप से शुभ और लाभकारी मानी जाती है, और इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। इस समय पर नदियों में स्नान करना, शिवलिंग का अभिषेक करना, और निर्धनों व जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देना पुण्यकारी माना जाता है।
पितरों की शांति के लिए तर्पण-Tarpan for the Peace of Ancestors
पौष अमावस्या के दिन, सूर्य देव को शुद्ध जल, लाल चंदन, और लाल रंग के पुष्पों के साथ तांबे के पात्र में अर्घ्य देना, पितरों की शांति के लिए तर्पण और उपवास करना शुभ है। इस दिन, जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देना, पीपल के वृक्ष में दीपक जलाना, और तुलसी के पौधे की परिक्रमा करना भी उत्तम माना जाता है। इस पवित्र दिन पंचबलि कर्म करना भी अत्यंत पुण्यप्रद है, जिससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
पवित्र नदी में स्नान: सूर्योदय के समय नदी में स्नान करना शुभ है और पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक सुंदर तरीका है।
दान और अर्घ्य: जरूरतमंदों को दान और अर्घ्य देना, पूर्वजों का आशीर्वाद बना रखता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
पौष अमावस्या की पूजा विधि-Worship Procedure for Poush Amavasya
सूर्य देव को अर्घ्य: सूर्योदय के समय, तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन, और लाल रंग के पुष्पों के साथ सूर्य देव को अर्घ्य दें।
पीपल के पेड़ की पूजा: पीपल के पेड़ की पूजा करना और उसमें जल अर्पित करना, पूर्वजों के आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक अच्छा तरीका है।
जरूरतमंदों को भोजन: इस दिन, जरूरतमंदों को चावल, दूध, और भर पेट भोजन कराना चाहिए, जो पूर्वजों की कृपा बनी रहती है।
पौष मास का महत्व-ignificance of the Poush Month
पौष मास में भगवान विष्णु और सूर्यदेव की आराधना करना, पिंडदान और श्राद्ध करना सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है। इस मास में किए गए कार्यों से हम अपने जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
Conclusion
पौष अमावस्या के महत्वपूर्ण और पवित्र दिन का समापन करते हुए, हम यह अनुभव करते हैं कि यह एक अद्वितीय और धार्मिक अवसर है। इस दिन का आयोजन अपने पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए किया जाता है और उनकी शांति के लिए तर्पण अर्पित किया जाता है।
पौष मास की अमावस्या न केवल पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें अपने आदिकाल से आने वाले पितृगण के प्रति कृतज्ञता और आदर की भावना से भी जोड़ती है।
इस दिन का आचरण करके हम अपने सम्पूर्ण परिवार को एक-दूसरे के साथ मिलकर श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्राप्त करते हैं और पौष मास की शुभ आवधि में आत्म-निरीक्षण और साधना का संकल्प लेते हैं।
इस धार्मिक उत्सव के माध्यम से हम अपने जीवन को शुद्धि, आनंद, और सामर्थ्य के साथ भर देते हैं, जिससे हमारा जीवन सफल और सत्यान्वेषी बनता है।
पौष अमावस्या क्या है?
पौष अमावस्या वर्ष के पौष मास की अमावस्या है, जो हिन्दू पंचांग में महत्वपूर्ण है।
पौष अमावस्या के महत्व क्या है?
पौष अमावस्या को आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसे विभिन्न पूजा और व्रतों के साथ मनाया जाता है।
पौष अमावस्या की पूजा कैसे की जाती है?
पौष अमावस्या की पूजा में धार्मिक रीतिवास्तु के अनुसार व्रत, आराधना और दान करना शामिल होता है।
पौष अमावस्या के उपाय क्या हैं?
विभिन्न उपायों में ध्यान, प्रार्थना, धार्मिक क्रियाएं, और शांति बनाए रखने के लिए सुझाव दिए जाते हैं।
पौष अमावस्या के रस्मों में कौन-कौन से धार्मिक आचरण शामिल हैं?
पौष अमावस्या के रस्मों में पूजा, अर्चना, दान, और ध्यान जैसे धार्मिक आचरण शामिल हो सकते हैं।
पौष अमावस्या में कौन-कौन सी आहार-विशेषताएँ होती हैं?
सौंफ, तिल, गुड़, उड़द की दाल, और खीरे जैसे आहार पौष अमावस्या में प्रिय माने जाते हैं।
पौष अमावस्या में रात्रि क्यों महत्वपूर्ण है?
रात्रि को पौष अमावस्या में विशेष महत्व दिया जाता है, और ध्यान, मेधा, और आध्यात्मिक गतिविधियों का पालन किया जाता है।
पौष अमावस्या का मेला कहाँ होता है?
कई स्थानों में पौष अमावस्या मेले आयोजित होते हैं, जो स्थानीय विभिन्नता और आकर्षण के साथ होते हैं।
पौष अमावस्या के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
पौष अमावस्या के दिन अशुभ कार्यों से बचना चाहिए, और आध्यात्मिक गतिविधियों में ध्यान केंद्रित रहना चाहि
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कोई इस दिन को खिचड़ी तो कोई पोंगल के नाम से जानता है।
इस दिन सूर्य की पूजा होती है और लोग खिचड़ी का दान करते हैं और खाते हैं, साल 2024 की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में इस साल का सबसे पहला त्योहार मकर संक्रांति जल्द ही आने वाला है। इस साल ये त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति: सूर्य उत्सव
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं। इस साल इसका समय सुबह 2 बजकर 54 मिनट पर रहेगा।
मकर संक्रांति, जिसे हम सूर्य उत्सव भी कहते हैं, भारतीय सांस्कृतिक कैलेंडर के एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देवता दक्षिणायन की दिशा में गतिमान होते हैं, जिससे शीतकाल अवधि का आरंभ होता है और वसंत ऋतु का स्वागत होता है।
Makar Sankranti 2024 Date: नव वर्ष का आगाज हिंदू पंचांग के अनुरूप मकर संक्रांति के साथ ही होता है, जो एक प्रमुख और बड़ा त्यौहार है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है और मनुष्य इस दिन दान-पुण्य करने पर खासकर अधिक महत्व देते हैं। मकर संक्रांति का तात्पर्य होता है ‘मकर राशि में संप्राप्ति’ और इसे हिंदी पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति को पृष्ठीय समर्पण और न्यू एनर्जी के संचार के रूप में मनाना चाहिए। इस अवसर पर विभिन्न इलाकों में व्यक्ति खिचड़ी, तिल-गुड़, रेवड़ी, खीर, और अन्य स्वादिष्ट विषयों की तैयारी करके मिलकर बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
हमारे सनातन धर्म में मकर संक्रांति को नया आरंभ, सत्य, और शुभारंभ का सूचक माना जाता है। इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि सूरज देवता अपने उत्तरायण में मकर राशि में गोचर करते हैं, जिससे धरती पर शुभ संदेशों सहित हंसी खुशी का बेहद ज्यादा शुभ संचार होता है। मकर संक्रांति के दिन दान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके माध्यम से लोग सामाजिक सेवाएं और परोपकारी कार्यों में योगदान करते हैं, जिससे समाज में एकता और समरसता की भावना बढ़ती है। इस दिन को अलग अलग स्वरूपों में देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, जैसे कि पोंगल तमिलनाडु, माघ बिहु असम, उत्तरायण गुजरात, और खिचड़ी बनाकर खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में।
मकर संक्रांति को बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी श्रेणी के लोग खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं, जिससे इसे एक सामाजिक और परंपरागत त्यौहार भी कहा गया है। इस दिन को धार्मिक, सांस्कृतिक, और नियमानुसार मनाने का आनंद लें, जिससे नए वर्ष की शुरुआत हो सके और जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता आएं।
मकर संक्रांति 2024
मकर संक्रांति के आसपास इस बार भी तारीख के विषय में कंफ्यूजन देखने को मिल रहा है, जैसा कि बीते वर्ष हुआ था। इस साल 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मकर संक्रांति का अर्थ होता है ‘मकर राशि में प्रवेश’ और इसे हिंदी पंचांग के अनुसार सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे धरती पर शुभ अंशों का संचार होता है। हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस बार तिथि में विशेषता है और लोगों में कंफ्यूजन बढ़ा रही है। मकर संक्रांति का यह त्योहार हिंदू पर्वों में महत्वपूर्ण है, क्योंकि सूर्य देवता इस दिन मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इससे खरमास का महीना समाप्त होता है। इससे पहले खरमास के दौरान लोगों को शादी-विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों में रोक लगी थी, लेकिन इसके समाप्त होने के बाद मंगल कार्य फिर से प्रारंभ हो जाएंगे।
मकर संक्रांति 2024 स्नान-दान शुभ मुहूर्त
सूर्य देवता के मकर राशि में प्रवेश के बाद खरमास की समाप्ति का माहौल बन रहा है और लोग नए आरंभ के लिए तैयार हो रहे हैं। इस अवसर पर लोग धार्मिक अनुष्ठान, दान-पुण्य, और सामाजिक कार्यों में योगदान करते हैं और इसे धूमधाम से मनाते हैं। इस विशेष त्योहार को भारतवर्ष में विभिन्न नामों से मनाया जाता है, जैसे कि उत्तरायण, पोंगल, मकरविलक्कु, माघ बिहु, और खिचड़ी, लेकिन इसका सामंजस्यक अर्थ यही है कि सूर्य देवता ने मकर राशि में प्रवेश किया है और नया आरंभ हुआ है।
सूर्य का मकर राशि में गोचर– 15 जनवरी को प्रातकाल 2 बजकर 54 मिनट पर
मकर संक्रांति का महा पुण्य काल– 15 जनवरी को प्रभात 7 बजकर 15 मिनट से प्रभातकाल 9 बजे तक
मकर संक्रांति का पुण्य काल– 14 जनवरी को प्रभातकाल 7 बजकर 15 मिनट से सायंकाल 5 बजकर 46 मिनट तक
पूजा विधि
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पूजा का महत्व है। तो इस दिन सबसे पहले स्नान करिए।
वैसे तो गंगा स्नान का महत्व होता है लेकिन अगर आप गंगा स्नान नहीं पाएं तो नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल डालकर उससे स्नान करिए।
इसके बाद तांबे के लोटे में साफ पानी भरकर उसमें लाल सिंदूर, गुड़ का टुकड़ा और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।
अर्घ्य देने के बाद सूर्य देव को भोग लगाएं।
इसके बाद गरीबों को खिचड़ी, गुड़ और तिल का दान करें।
मकर संक्रांति के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
धार्मिक महत्व: मकर संक्रांति हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ मनाया जाता है। इसे सूर्य भगवान की पूजा के रूप में भी जाना जाता है।
विशेष तारीख: मकर संक्रांति का आयोजन हर साल 14 जनवरी को होता है, जब सूर्य मकर राशि में स्थानांतरित होता है।
पतंग उड़ाना: इस त्योहार में पतंग उड़ाना एक प्रमुख गतिविधि है, जिससे लोग अपनी ऊँचाईयों को चढ़ाने का आनंद लेते हैं।
तिल-गुड़ पर्व: मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और चिक्की खाए जाते हैं, जो ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होते हैं।
दान का महत्व: इस दिन लोग दान करने का महत्व बताते हैं और तिल, गुड़, खीर, और अन्य आहार उपहारों को गरीबों और आवश्यकता मंद लोगों को भींजते हैं।
बसंती राग: मकर संक्रांति के बाद से ही बसंत ऋतु की शुरुआत होती है और इसे बसंती राग कहा जाता है।
अनेक नाम: भारतवर्ष में इस त्योहार को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे हरियाली, उत्तरायण, और पोंगल आदि।
रिवाज और परंपराएँ: विभिन्न राज्यों और समुदायों में मकर संक्रांति को मनाने के लिए विभिन्न रिवाज और परंपराएँ होती हैं, जो स्थानीय सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं।
तापमान का बढ़ना: मकर संक्रांति के बाद से ही दिन का समय बढ़ना शुरू होता है और सर्दी की छुट्टियों का समाप्त होना शुरू होता है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
मनाए जाने वाले राज्यों में विशेषता: उत्तर भारत में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, और असम में माघी बिहु जैसे विशेषता से मनाए जाने वाले रूपों में मकर संक्रांति को देखा जाता है।
धर्मराज युधिष्ठिर और मकर संक्रांति की कहानी: “उदाहरण धर्म का”
बहुत समय पहले की बात है, महाभारत काल में जब पांडव और कौरव धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में धरती पर राज्य कर रहे थे। युधिष्ठिर धर्म और न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध थे।
एक दिन, युधिष्ठिर ने अपने सभी भाईयों के साथ मिलकर गाँववालों के साथ एक विशेष पहल का आयोजन करने का निर्णय लिया। उन्होंने यह निर्णय लिया क्योंकि वह जानते थे कि मकर संक्रांति एक विशेष मौका है जब लोग एक नए साल की शुरुआत करते हैं और धन और सुख की कामना करते हैं।
धरती पर अपने राजा के इस निर्णय के बारे में सुनकर, लोगों में बड़ी खुशी हुई। गाँववाले सभी एक साथ आए और राजा युधिष्ठिर के सामंजस्यपूर्ण नेतृत्व में एक खास पहल का आनंद लेने के लिए तैयार हो गए।
मकर संक्रांति के दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगा था। लोग अपने-अपने आवासों से निकलकर सभी को मिलने और एक-दूसरे के साथ खुशियाँ मनाने के लिए आए थे। युधिष्ठिर ने सभी को आशीर्वाद दिया और उन्होंने धरती पर सामंजस्य, शांति, और सौभाग्य की कामना की।
उन्होंने लोगों से यह सिखाई कि जीवन में धर्म और सत्य का पालन करना हमें सच्ची खुशियाँ दिलाता है। यह उनकी शिक्षा थी कि मकर संक्रांति का आचरण करके हम सभी अपने जीवन में उत्तम रूप से आगे बढ़ सकते हैं और समृद्धि की ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।
इस प्रकार, धर्मराज युधिष्ठिर ने मकर संक्रांति के मौके पर लोगों को एक सकारात्मक दिशा में प्रेरित किया और सच्चे धर्म का अनुसरण करने के महत्व को समझाया।
प्रश्न: मकर संक्रांति क्या है?
उत्तर: मकर संक्रांति एक हिन्दू संस्कृति का त्योहार है जो सूर्य ग्रहण के दिन मनाया जाता है। यह हिन्दी पंचांग के अनुसार मकर राशि में सूर्य का स्थानांतरण करने का समय होता है।
प्रश्न: मकर संक्रांति कब है?
उत्तर: 2024 में, मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
प्रश्न: मकर संक्रांति का महत्व क्या है?
उत्तर: इस दिन को सूर्य का उत्तरायण माना जाता है और यह संसारभर में अलग-अलग नामों और रूपों में मनाया जाता है। इसे हरियाली, लोहड़ी, उत्तरायण, और मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है
प्रश्न: मकर संक्रांति पर कौन-कौन से रितुओं का मनाना चाहिए?
उत्तर: इस दिन वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, इसलिए इसे सर्वांग सुन्दरता के साथ मनाने के लिए कहा जाता है।
प्रश्न: मकर संक्रांति पर खास खाना क्या होता है?
उत्तर: लोग मकर संक्रांति पर सेसमी सीड़ी, तिल के लड्डू, गुड़ वाले रेवड़ी, और खीर जैसे विशेष खाद्य पदार्थ बनाते हैं और उन्हें दोस्तों और परिवार के साथ साझा करते हैं
प्रश्न: क्या मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व है?
उत्तर: हां, इसे हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन को देवता सूर्य भगवान की पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।
प्रश्न: मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?
उत्तर: लोग इस दिन उन्हें पर्व के रूप में मनाने के लिए पर्वती नदी तटों पर जाते हैं, पतंग उड़ाते हैं, और अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।
प्रश्न: बच्चों के लिए मकर संक्रांति में क्या विशेष आयोजन हो सकते हैं?
उत्तर: बच्चों के लिए पतंग उड़ाने, रंग-बिरंगे कपड़े पहनने, और संगीत के साथ दाना-चना बाँटने जैसे आयोजन किए जा सकते हैं।
प्रश्न: विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?
उत्तर: विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और रूपों में मनाया जाता है, जैसे माघी बिहु असम में, पोंगल तमिलनाडु में, और लोहड़ी पंजाब और हरियाणा में।
प्रश्न: मकर संक्रांति के अलावा कौन-कौन से त्योहार हैं जो इस दिन के आस-पास मनाए जाते हैं?
उत्तर: इस समय में बसंत पंचमी और लोहड़ी जैसे त्योहार भी मनाए जाते हैं, जो विभिन्न प्रांतों में अपने विशेष अर्थों और परंपराओं के साथ मनाए जाते हैं।
2024 की पहली सफला एकादशी का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा और व्रत का आयोजन किया जाता है, जिससे शुभ फल प्राप्त होता है। सफला एकादशी तिथि 7 जनवरी को है, और इस दिन वैदिक पंचांग के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:15 बजे से रात 10:03 बजे तक रहेगा।
सफला एकादशी का महत्व: Significance of Safla Ekadashi
सफला एकादशी के व्रत से जीवन में सुख और समृद्धि होती है, और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, एकादशी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है, इसलिए इस दिन पीले वस्त्र पहनना चाहिए। सफला एकादशी की कथा का सुनना और इसका व्रत करना साधक को श्रद्धा और आत्मा के संबंध में मदद करता है।
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का अहम महत्व है। साल में कुल 24 एकादशी तिथि होती है। साल 2024 की पहली एकादशी 7 जनवरी को है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-व्रत करने से साधक को जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है और घर में खुशियों का आगमन होता है।
सफला एकादशी शुभ मुहूर्त: Auspious Time
सफला एकादशी तिथि की शुरुआत 07 जनवरी को देर रात्रि 12 बजकर 41 मिनट से होगी और इसके अगले दिन यानि 8 जनवरी को देर रात्रि 10 बजकर 41 मिनट पर तिथि का समापन होगा।
सफला एकादशी का पूजा विधि: Pooja Vidhi
सुबह उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र धारण करें।
मंदिर की सफाई करें और गंगाजल से शुद्धि करें।
चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
घी का दीपक जलाएं और विष्णु जी को हल्दी और कुमकुम से तिलक करें।
भगवान विष्णु को फल, मिठाई का भोग लगाएं और तुलसी दल को शामिल करें।
आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
सफला एकादशी व्रत का महत्व–
सनातन धर्म में सफला एकादशी का अधिक महत्व है। सफला एकादशी के दिन पूजा-व्रत करने से साधक के रुके हुए काम सफल होते हैं और सदैव जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी की कृपा बनी रहती है। इस दिन अन्न का दान करने का भी विधान है। धार्मिक मत है कि सफला एकादशी व्रत करने से साधक को जीवन के सभी पापों से निजात मिलती है। एकादशी के दिन पीले रंग का बेहद खास महत्व है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे केशव…!!! आपके श्री मुख से मागशीर्ष माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली मोक्षदा एकादशी की कथा और महात्मय सुन में तृप्त हो गया हुँ और अब में आपसे पोश माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी पर्व के विषय में जानने को इच्छुक हुँ। अतः आप मुझे इस एकादशी को किस नाम से सम्बोधित किया जाता है? इस एकादशी व्रत का क्या महात्मय है? इस व्रत के पुण्यफ़ल स्वरुप हमें किस फल की प्राप्ति होती है? यह हमें विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें।”
श्री कृष्ण – “हे पाण्डुपुत्र..!! पोष माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को सफला एकादशी(Saphala Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के देवता स्वयं श्री नारायण है। अतः इस एकादशी को विधि विधान पूर्वक करने से सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है। जैसे नागो में शेषनाग, सभी ग्रहो में चंद्रमां, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेघ और सभी देवताओं में भगवान श्री विष्णु श्रेष्ठ है उसी प्रकार से सभी प्रकार के वृतो में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ माना गया है। जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धा से एकादशी व्रत का अनुष्ठान करता है वह सदैव मेरे निकट रहता है। एकादशी व्रत के अतिरिक्त अगर अधिक से अधिक दक्षिणा या दान प्राप्त होने वाले यज्ञ से भी में प्रसन्न नहीं होता हुँ। अतः इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विधि विधान से करना चाहिये। हे धर्मराज अब में तुम्हे इस व्रत की कथा सुनने जा रहा हुँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना।
सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक राजा राज किया करता था। भगवान श्री हरी की कृपा से उसे चार पुत्र थे। किन्तु उन सभी पुत्रो में लुम्पक नाम का सबसे ज्येष्ठ पुत्र महापापी और दुराचारी था। वह अधर्म के मार्ग पर चलते हुए परस्त्री गमन, जुआ, मदिरापान, वैश्यागमन जैसे कुकर्मो में अपने पिता का पुण्य से अर्जित किया हुआ धन नष्ट कर रहा था। वह सदैव ब्राह्मण, देवता, वैष्णव, ऋषि, संतो की निंदा करता रहता था। उसे किस भी धर्म काज में रूचि नहीं थी। एक समय जब उसके परम धर्मात्मा पिता को उसके कुकर्मो के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसी क्षण उसे अपने नगर से बाहर धकेल दिया। नगर से दूर होते ही लुम्पक की बुद्धि ने उसका साथ देना छोड़ दिया। उसे अब कुछ भी नहीं सूझ रहा था की इस अवस्था में वह क्या करें और क्या ना करें।
भूख से व्याकुल हो कर वो वन्य जीवो को मार कर खाने लगा। और धन की लालसा में रात्रि को अपने ही नगर में जा कर चोरी करता और निर्दोष नगर जनो को परेशान कर उन्हें मारने का महापाप करने लगा। कुछ समय पश्चात सारी नगरी उससे भयभीत होने लगी। निर्दोष वन्य जीवो को मार कर उसकी बुद्धि कुपित हो गई थी। कई बार राजसी सेवको और नगर जनों ने उसे पकड़ा किन्तु राजा के भय से वह उसे छोड़ देते।
वन के मध्य में एक अतिप्राचीन और विशाल पीपल का वृक्ष था। वह इतना प्राचीन था की कई नगर जन उसे भगवान की ही तरह पूजा करते थे। वंही लुम्पक को इस विशाल वृक्ष की छाया अति आनंद प्रदान करती थी इसी कारणवश वह भी इसी वृक्ष की छाया में जीवन व्यतीत करने लगा। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली भी मानते थे। कुछ समय बीतने पर आनेवाली पोष माह के कृष्णपक्ष की दसवीं तिथि की रात्रि को लुम्पक वस्त्रहीन होने के कारण शीत ऋतु के चलते वो पूरी रात्रि सो ना सका। उसके शरीर के अंग जकड गये थे।
सूर्योदय होते होते वह मूर्छित हो गया। अगले दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गरमी से उसकी मूर्छा दूर हुई। रात्रि जागरण और कई दिन से आहार ना करने की वजह से वो बहुत अशक्त हो गया था। गिरता संभालता आज वह फिर भोजन की खोज में वन को निकल पड़ा। अशक्त होने के कारण वह आज इस स्तिथि में नहीं था की किसी पशु का आखेट कर सके इस लिए वृक्ष के निचे गिरे हुए फलो को एकत्रित करते हुए वह पुनः वही विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे आ बैठा तब तक सूर्यास्त होने को था। एकदशी के महापर्व पर आज उससे अनजाने में व्रत हो चुका था। अत्यंत दुःख के कारण वह अपने आप को प्रभु श्री हरी को समर्पित करते हुए कहने लगा –
“हे प्रभु..!! अब आपके ही है यह फल। आपको ही समर्पित करता हुँ। आप भी तृप्त हो जाइये।”
उस दिन भी अत्यंत दुःख के चलते वो पूरी रात्रि सो नहीं पाया। उसके इस व्रत (उपवास) से भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए। प्रातः होने पर एक अत्यंत सुन्दर अश्व, सुन्दर परिधानो से सुसज्ज, उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसी क्षण एक आकाशवाणी हुई –
“हे राजपुत्र, श्री नारायण की कृपा से तुम्हारे सभी पापो का नाश हो चुका है। अब तुम अपने राज्य अपने पिता के पास लौट कर उनसे राज्य ग्रहण करोI”
आकाशवाणी से सुन प्रसन्न चित हो कर सुन्दर परिधान धारण कर भगवान श्री हरी का जय कारा लगते हुए वह अपने राज्य को प्रस्थान कर गया। वंहा राज्य में राजा को भी इस बात की पुष्टि हो गई थी। अपने पापी पुत्र के पाप नष्ट होने पर राजा ने भी उसे सहर्ष स्वीकाराते हुए अपना राजपाठ उसे सौप दिया और खुद वन की और चले गये।
अब लुम्पक भी शास्त्रनुसार राजपाठ चलाने लगा था और उसका सारा परिवार पुत्र, स्त्री सहित भगवान श्री हरी के परम भक्त बन चुके थे। वृद्धावस्था आने पर वह भी अपने सुयोग्य पुत्र को अपने राज्य का कार्यभार सौपते हुए वन की ओर तपस्या करने चला गया और अपने अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।
अतः हे धर्मराज, जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में इस एकादशी(Saphala Ekadashi) का व्रत करता है उसे अपने अंत समय में निसंदेह मुक्ति की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य इस पतित पावनी एकादशी का व्रत नहीं करता है वो सींग और पूँछ रहित पशु के समान है। इस सफला एकादशी(Saphala Ekadashi) की कथा का जो भी मनुष्य श्रवण या पठन करता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
महत्वपूर्ण सन्देश
सफला एकादशी कथा ने हमें एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया है कि ईश्वर भक्ति, धर्माचरण, और अच्छे कर्मों का पालन करने से ही हम अध्यात्मिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त कर सकते हैं। सफला एकादशी का व्रत करने से मन, वचन, और क्रिया से हमें शुद्धि की प्राप्ति होती है और हम अध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के आदर्शों और सुझावों के माध्यम से, हम यह सीखते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के साथ ही हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। इसके साथ ही, सफला एकादशी व्रत ने हमें अनन्य प्रेम और सहानुभूति के महत्व को सिखाया है जो एक समृद्धि और सामर्थ्यपूर्ण समाज की नींव हो सकती है।
इस व्रत की कथा ने हमें यह भी दिखाया है कि अगर हम पुण्यशाली और भक्तिपूर्ण भावना के साथ एकादशी व्रत का पालन करते हैं, तो हमारे जीवन में सभी कष्टों का समापन होता है और हम भगवान के समीप बढ़ सकते हैं।
सफला एकादशी के व्रत से हमें यह सिखने को मिलता है कि साधना, समर्पण, और आत्ममंथन से ही हम अध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि कर सकते हैं और एक उदार, शान्तिपूर्ण समृद्धि से भरा हुआ जीवन जी सकते हैं। सफला एकादशी की कथा हमें सबको मिलाजुला रहकर मिल-जुलकर रहने, धर्म के मार्ग पर चलने, और सबका भला करने का संदेश देती है।
इस पावन एकादशी पर, हम सभी को आत्मनिर्भरता, ध्यान, और परमात्मा के प्रति प्रेम में बढ़ने की शक्ति प्राप्त हो। सभी को सफला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Kartik Purnima: पौराणिक किस्सों के अनुसार, भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर त्रिपुरासुर नामक राक्षस को विजयी बनाया था। इससे ही इस अवसर पर देव दीपावली का आयोजन होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर को 03:53 बजे से शुरू होकर 27 नवंबर को 02:45 बजे पर समाप्त होती है। इसलिए, उदय तिथि के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व (Importance of Kartik Purnima)
कार्तिक पूर्णिमा के दौरान धार्मिक रीति-रिवाज और आचरण में भाग लेना बहुत शुभ माना जाता है। कार्तिक मास के दौरान स्नान करना सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ के समान माना जाता है। इस समय की धार्मिक प्रथाएं भक्तों के जीवन में आनंद और समृद्धि लाती हैं। हिंदू शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा को धर्म, कर्म, और मोक्ष का प्रदाता दिन माना गया है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 शुभ मुहूर्त (Kartik Purnima Date and Time)
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 2023 (Kartik Purnima 2023) 27 नवंबर, दिन सोमवार को पड़ रही है।
हिंदी पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 53 मिनट से अगले दिन 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट तक है।
अतः उदयातिथि होने के कारण कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर, 2023 को मनाई जाएगी। साथ ही 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजकर 53 मिनट से 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
शिव योग और सिद्ध योग( Shiv Yoga & Siddha Yog)
कार्तिक पूर्णिमा पर इस बार दुर्लभ शिव योग निर्मित हो रहा है। इसका समय देर रात 11.39 तक है। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान यदि भगवान शिव की आराधना की जाती है तो सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं। वहीं कार्तिक पूर्णिमा तिथि को शिव योग के बाद सिद्ध योग भी निर्मित हो रहा है।
Kartik Purnima 2023:
सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा (kartik purnima) का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान, दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 शुभ समय
इस वर्ष, कार्तिक पूर्णिमा सोमवार, 27 नवंबर, 2023 को है। हिंदी पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को 3:53 बजे से शुरू होकर 27 नवंबर को 2:45 बजे तक है। इसके अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव 27 नवंबर, 2023 को होगा। 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के शुभ समय 4:53 बजे से 5:46 बजे तक रहेगा।
कार्तिक पूर्णिमा की पवित्रता धार्मिक आचरणों से अधिक है। यह एक दिन है जो आध्यात्मिक आत्म-विचार और दिव्य से गहरा जुड़ा है। भक्तगण इस दिन पवित्र कार्यक्रमों में शामिल होते हैं, और स्नान की पवित्रता आत्मा का शुद्धिकरण प्रतिष्ठित करती है।
कार्तिक पूर्णिमा परंपरा और रीति-रिवाज
कार्तिक पूर्णिमा का आचरण पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करने का भी है। तीर्थयात्री दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पवित्र नदियों की ओर बढ़ते हैं। अन्नदान और गरीबों की सहायता के क्रियाएँ इस शुभ समय में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
शिव योग और सिद्ध योग
शिव योग और सिद्ध योग का संगम कार्तिक पूर्णिमा पर दिन को दिव्य महत्वपूर्ण बनाता है। यह मान्यता है कि इन अद्वितीय योगिक संरचनाओं के दौरान ध्यान और आध्यात्मिक प्रयासों में प्रवृत्ति पूर्ण ऊर्जा को बढ़ावा देती है और ब्रह्मांडीय शक्तियों से गहरा जुड़ाव स्थापित करती है।
धार्मिक चित्रमय स्थिति के परे, कार्तिक पूर्णिमा समुदायों के सांस्कृतिक वस्त्र में बाँधी जाती है। त्योहार, मेले, और उत्साही समारोह समुदाय को आपसी मेल-जोल में एकजुट करते हैं। पारंपरिक दीपकों की चमक और आध्यात्मिक उत्साह एक मोहक वातावरण बनाते हैं।
हिन्दू दर्शन में गहरे परम्परागत प्रभाव
हिन्दू दर्शन में कर्म, और मोक्ष के सिद्धांतों में खो जाने के बारे में सोचने का समय है। यह एक दिन है अपने कर्मों पर विचार करने, धार्मिक जीवन के साथ समर्थन करने, और आध्यात्मिक मुक्ति के लिए आत्म-निरीक्षण के लिए। इन दार्शनिक सिद्धांतों का खेल भी कार्तिक पूर्णिमा के दर्शन में गहराई बढ़ाता है।
विशेष महत्व: कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि
स्नान का महत्व
इस विशेष दिन, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्नान आपको शुभ ऊर्जा से भर देगा और आपको सकारात्मकता में मदद करेगा।
नदी या सरोवर में स्नान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना अत्यंत शुभ होता है। यदि यह संभव नहीं है, तो घर में ही गंगाजल से स्नान करें।
सूर्य देव को अर्घ्य
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में ही सूर्य देव को अर्घ्य देना शुभ होता है। इससे आपके जीवन में पौष्टिकता और सकारात्मकता आएगी।
तुलसी पूजा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, तुलसी के पौधे की जड़ों में गाय का दूध अर्पित करें, दीप प्रज्वलित करें, धूप दिखाएं, भोग लगाएं और आरती उतारें। यह साधना आपके घर को पूर्णता और शांति से भर देगी।
सत्यनारायण पूजा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, सत्यनारायण भगवान (विष्णु जी) की पूजा का विशेष महत्व है। ईशान-कोण में चौकी स्थापित करें और उसमें भगवान की प्रतिमा स्थापित करें।
कलश स्थापना
चौकी के ऊपर केले के पत्तों का मंडप लगाएं और अच्छी तरह से सजाएं। कलश की स्थापना के लिए मूर्ति के समक्ष चावल रखें और उस पर कलश रखकर मौली बांध दें।
कलश पूजा
कलश में गंगा जल, शुद्ध जल, सुपारी, सिक्का, हल्दी, कुमकुम आदि डालें और उसमें आम के पत्ते रखें। आम के पत्तों और नारियल पर भी मौली बांधकर सजाएं।
मंत्र जाप और पूजा
पूजा की शुरुआत “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र के जाप से करें। इसके बाद, घी के दीपक को प्रज्वलित करें और हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। फिर वह पुष्प भगवान के चरणों में अर्पित करें।
समापन
पूजा के अंत में, अक्षत और पुष्प लेकर भगवान से क्षमा मांगें और उनके चरणों में इन्हें छोड़ दें। इससे आपका व्रत सफलता से पूरा होगा और आपके जीवन में आने वाले कठिनाइयों का सामना करने में मदद करेगा।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
तारकासुर का आतंक
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, तारकासुर नामक राक्षस बहुत बलवान था। उसके तीन पुत्र थे – तारकक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली। तारकासुर ने धरती और स्वर्ग पर अपना आतंक मचा रखा था, जिससे देवताओं ने भगवान शिव से उसका अंत करने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सुनी और तारकासुर का वध किया। इससे देवताओं ने बड़े प्रसन्न हुए।
तीनों पुत्रों की तपस्या
तारकासुर के तीनों पुत्रों ने इसका बदला लेने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने तीनों से एक अमर होने का वरदान मांगने को कहा। तीनों ने ब्रह्मा जी से अपने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने अमरता के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
त्रिपुर निर्माण
तीनों ने मिलकर तारकासुर के नाश के बाद ब्रह्माजी के निर्देशानुसार तीन नगरों का निर्माण किया। इन नगरों को मिलाकर त्रिपुर कहा गया और यहां बैठकर देवताओं ने पृथ्वी और आकाश में घूमने की क्षमता प्राप्त की।
भगवान शिव का दिव्य रथ
इंद्र देवता ने इन त्रिपुर निवासियों से भयभीत होकर भगवान शंकर की शरण में गए। भगवान शिव ने इस दुर्दंत त्रिपुर का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। इस रथ पर चंद्रमा, सूर्य, इंद्र, वरुण, यम, कुबेर, हिमालय, और शेषनाग समाहित थे। भगवान शिव ने खुद बाण बनाया और युद्ध के समय तीनों भाइयों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ।
त्रिपुर का नाश
युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया कि तीनों रथ एक ही सीध में आ गए। उसी समय भगवान शिव ने अपने बाण छोड़े और तीनों को नष्ट कर दिया। इस वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा था, जिससे उनकी महिमा में वृद्धि हुई।
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (kartik purnima) के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप नष्ट होता है और अगले जन्म में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही इसदिन अन्न, धन और वस्त्र आदि का दान करने से कई गुना अधिक लाभ मिलता है।
विक्रम संवत् 2081 का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल मंगलवार, सन् 2024 ई. से हो रहा है। इस वर्ष में ‘पिंगल’ नामक संवत्सर होगा, नित्य संकल्प विनियोगादि में पिंगल’ नामक संवत्सर का ही प्रयोग होगा। राजा के महत्वपूर्ण पद पर धरती के पुत्र “मंगल” को अधिकार मिला है। तथा मंत्री का महत्त्वपूर्ण पद सूर्य पुत्र शनिदेव को मिला है। दोनों महत्वपूर्ण पद क्रूर ग्रहों के पास है। फलस्वरूप मनुष्यों को अग्निभय, चोरों का उत्पात, राजाओं में विग्रह होगा, मंत्री पद पर आसीन शनिदेव के कारण राजा लोग विनय रहित, जनता को दुःख देने वाले, वर्षा की कमी से जनता को कष्ट, लोगों को धन सम्बन्धी सुख बहुत कम मिलेगा।
भारत–2024
जनवरी
धार्मिक व साम्प्रदायिक उपद्रवों से आतंक में वृद्धि होगी। शासकों में आपसी कलह होकर मंत्रिमंडल में विवाद व हंगामों का वातावरण बार-बार होगा। जिससे विकास जन्य कामों में रुकावटें रहेंगी। उत्तरी पूर्वी प्रान्तों में तेज हवा के साथ हिमपात तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में कहीं वर्षा होगी। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिल में | सामान्य वर्षा होगी। शीत का प्रकोप रहेगा।
फरवरी
विश्व के पश्चिम भूभाग में रोग वृद्धि एवं प्रकृति से प्रजा में भय रहेगा। केन्द्र में शासक नीति की सफलता का देश में सम्मान बढ़ेगा। समुद्र तट के क्षेत्रों में तूफान, चक्रवात का उत्पात होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश पूर्वोत्तर, राजस्थान में सामान्य ओस की धुन्ध का वातावरण रहेगा। हिमपात, ओला, ठिठुरन तेज होगी।
मार्च
बम विस्फोट, यान दुर्घटना एवं प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की हानि के संकेत हैं। विभिन्न देशों में राजनैतिक सम्बन्ध अकस्मात बिगड़ सकते हैं। कहीं घोर दुर्भिक्ष की स्थिति बनेगी। काश्मीर, हिमांचल प्रदेश, भूटान के क्षेत्रों में हिमपात व वर्षा होगी, शीतलहर चलेगी। मासान्त में मौसम परिवर्तन के लक्षण उभरेंगे। शुक्रवारी प्रतिपदा -से पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात तथा तूफानी हवाओं से रोग होगा। आकाशीय स्थिति प्रायः धूमिल रहेगी।
अप्रैल
देश की सीमाओं पर शान्ति को भंग करने वाले देश से भारत को स्वयं निपटना होगा। प्रधान शासक की गरिमा (प्रतिष्ठा) बढ़ेगी। भारतीय जनता पार्टी का पड़ला भारी रहेगा। तापमान में तेजी आयेगी। पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं सामान्य वर्षा होगी। हि.प्र., मणिपुर, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक के कुछ स्थानों में वर्षा होगी। बिहार, उत्तर प्रदेश में बादल व बूंदाबांदी हो सकती है।
मई
चीन, बंगला देश, पाकिस्तान की गतिविध पर ध्यान रखना पड़ेगा। कुछ मुस्लिम राष्ट्र पर भयंकर युद्ध के समाचार मिलेंगे। किसी भी देश में युद्ध अवश्य होगा। लू व गर्मी का प्रकोप बहुत ज्यादा रहेगा। आन्ध्रप्रदेश महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के क्षेत्रों में ज्यादा गर्म रहेगा। उत्तरार्ध में सामान्य वर्षा के योग है।
जून
पूर्वी गोलार्ध में युद्ध का भय बनेगा। रुस, जापान, चीन, वर्मा, पूर्वी भारत एवं आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों में तूफान, भूकम्प, भूस्खलन एवं हिमपात से जन-धन की हानि होगी। बादल चाल रहकर भी वर्षा नहीं होगी। तापमान अधिक रहेगा, महाराष्ट्र, उड़ीसा के पूर्वी क्षेत्र, बंगाल व असम में वर्षा तथा हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश में वर्षा अवरोध रहेगा। दक्षिण प्रान्तों में एवं उत्तर प्रान्त में प्रलयकारी वर्षा के योग हैं।
जुलाई
पर्वतीय क्षेत्र में भयंकर आता आ सकती है। विकृति जन्य अनेक प्रकार के रोगों से जनता परेशान होगी। चीन में बाढ़, तूफान से विशेष हानि हो सकती है। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में वर्षा सामान्य होगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश में वायु के साथ अच्छी वर्षा होगी। आसाम, बंगाल, बिहार, कर्नाटक में अतिवृष्टि से लोग परेशान होंगे। काश्मीर में या हिमाचल में बादल फटने जैसी घटना हो सकती है|
अगस्त
पर्वतीय प्रान्तों में प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की। हानि होगी। बिहार में भयंकर बाढ़ की स्थिति एवं भारत के कुछ प्रान्तों में सूखा रहेगा। कृषकों के लिये कठिन परिस्थिति हो सकती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में आकाश साफ रहेगा। बंगाल, बिहार, मणिपुर, असम, अरुणाचल में भारी तूफान आने की संभावना है। दक्षिण पश्चिम के प्रान्तों में जोरदार वर्षा हो सकती है। बाढ़ से लोग परेशान हो जायेंगे।
सितम्बर
भारत नये-नये देश में औद्योगिक प्रगति शेष कुप्रभावों का उपकरण अनार्य उपायों से प्राप्त करेगी। इस मास में कहीं-कहीं सामान्य होगी। | वायुवेग का प्रकोप रहेगा। हिमाचल प्रदेश, काश्मीर क बिहार के क्षेत्रों में वर्षा होगी। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश में खण्डवृष्टि के योग है। तापमान में गिरावट के साथ मौसम में परिवर्तन हो सकता है।
अक्टूबर
केन्द्र सरकार के अथक प्रयासोपरास्त भी निर्वाचन जन्य स्थिति उभरेगी। बाल मृत्युदर में वृद्धि होगी। पूर्वी प्रान्तों बंगाल, आसाम, बिहार, अरुणाचल, मेघालय आदि में तथा समुद्र तटीय नगरों में तूफान के साथ वर्षा होगी। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में खण्ड वर्षा होगी। उत्तरी क्षेत्रों में तापमान में गिरावट आयेगी।
नवम्बर
आयात निर्यात के नये कानूनों में जनता को श्रेष्ठ -लाभ होगा। शासकीय कर्मचारियों के लिये अच्छी खबर आयेगी। बादल चाल के साथ शीत वायु का प्रकोप बढ़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात अथवा ओला वृष्टि हो सकती -है। मध्य भारत में वायु वेग रहेगा। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में वर्षा हो सकती है।
दिसम्बर
शांति भंग होगी। उत्तर में खड़ी फसलों को हानि, | राजनीत के नये नये समीकरण बनेंगे। भारत की सेना का मनोबल बढ़ेगा। आसमान में धुन्ध हो सकती है। | कई जगहों पर वर्षा भी हो सकती है। राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों में लगातार बादल दिखाई देंगे। खण्ड वर्षा के साथ शीत प्रकोप बढ़ेगा।
Varshfala
विश्व में रोग वृद्धि होगी। अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों में जन उपद्रव, अराजकता व गृह कलह उभरने के योग हैं। पश्चिमी प्रान्तों में साम्प्रदायिक अनेक आन्दोलन से शासन सत्ता में चिन्ता वृद्धि होगी। देश के अधिकतर भागों में रोग उपद्रवों महामारी बढ़ने के कारक हैं। देश के अनेक भागों में धार्मिक व साम्प्रदायिक उपद्रवों से आतंक वृद्धि होगी।
शासकों में आपसी कलह होकर मंत्रिमंडल में विवाद व हंगामों का वातावरण बार-बार होगा। जिससे विकास जन्य कामों में रुकावट रहेगी। उत्तरी पूर्वी प्रान्तों में तेज हवा के साथ हिमपात तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश. दिल्ली में कहीं वर्षा होगी। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिल में सामान्य वर्षा होगी। शीत का प्रकोप रहेगा। पश्चिमी राष्ट्रों में कहीं भयंकर अशांति का वातावरण रहेगा। किसानों के लिये परेशानी का कारण बनेगा। खड़ी फसलें खराब होगी|
पूर्वी प्रान्तों में भूकम्प अथवा तूफानादि एवं दक्षिणी प्रदेशों में अग्नि काण्ड, बारूद विस्फोट आदि गतिविधि रहेगी। विश्व के पश्चिम भूभाग में रोग वृद्धि एवं प्रकृति से प्रजा में भय रहेगा। केन्द्र में शासक नीति की सफलता का देश में सम्मान बढ़ेगा। समुद्र तट के क्षेत्रों में तूफान, चक्रवात का उत्पात होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश पूर्वोत्तर राजस्थान में सामान्य ओस की धुन्ध का वातावरण रहेगा।
हिमपात, ओला, ठिठुरन तेज होगी। नेताओं में आपसी तनाव होकर अनेक आन्दोलन विग्रह तथा तोड़फोड़ व हानिकारक घटनाओं से जनता में आक्रोश व भयवृद्धि होगी। देश की कई प्रान्तीय सत्तारूढ़ पार्टी में विघटन हो सकता है। पूर्व व दक्षिण के प्रान्तों की चिन्ता बढ़ेगी।
राजनैतिक दलों को कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा। बम विस्फोट यान दुर्घटना एवं प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की हानि के संकेत हैं। विभिन्न देशों में राजनैतिक सम्बन्ध अकस्मात बिगड़ सकते हैं। कहीं धोर दुर्भिक्ष की स्थिति बनेगी। कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, भूटान के क्षेत्रों में हिमपात व वर्षा होगी, शीतलहर चलेगी।
मौसम परिवर्तन के लक्षण उभरेंगे। पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात तथा तूफानी हवाओं से रोग होगा। आकाशीय स्थिति प्रायः धूमिल रहेगी। यूरोप के कुछ देशों में अशान्ति, युद्ध, लम्बे समय तक सामना करना पड़ेगा। यूरोप के प्रमुख देशों में अर्थ व्यवस्था की चर्चा विशेष बनेगी। राजनीतिक व्यक्तियों के लिये समय भयावह रहेगा।
कहीं हत्याकाण्ड, कहीं गृह युद्ध से अशान्ति होगी। भारत में नई-नई प्रगतिप्रद योजनाओं का निर्माण होगा। भारत की शिक्षा पद्धति को नई दिशा मिलेगी। गोचर ग्रह स्थिति के अनुसार राष्ट्रपति पद की गरिमा बढ़ेगी। | देश की सीमाओं पर शान्ति को भंग करने वाले देश से भारत को स्वयं निपटना होगा। प्रधान शासक की गरिमा (प्रतिष्ठा) बढ़ेगी। एवं भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा। तापमान में तेजी आयेगी।
पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं सामान्य वर्षा होगी। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक के कुछ स्थानों में वर्षा होगी। बिहार, उत्तर प्रदेश में बादल व बूंदाबांदी हो सकती है।
The commencement of the Vikram Samvat 2081 is scheduled for Tuesday, 9th April in the bright fortnight of the month of Chaitra, in the year 2024 CE. In this year, the calendar will be named ‘Pingal,’ and the ‘Pingal’ year will be used for daily resolutions and dedications. Earth’s son, “Mangal,” has been granted authority in a crucial position of the king, while the important ministerial position is assigned to Surya’s son, Shani Dev.
Both critical positions are influenced by malevolent planets. Consequently, humanity will face fear of fire, increased theft, and conflicts among rulers. Due to Shani Dev holding the ministerial position, rulers will lack humility, causing distress to the people. Scarcity of rainfall will lead to hardships, and prosperity related to wealth will be scarce.
Globally, there will be an increase in diseases. Nations like Africa, South America, Australia, etc., may experience social unrest, lawlessness, and domestic conflicts. Western regions will witness various religious movements, causing concerns in the political power structure.
The majority of the country will face epidemics and disasters, contributing to the rise of tensions. Religious and sectarian disturbances in many parts of the country will lead to increased terrorism. Disputes among rulers will result in conflicts and disturbances in the ministerial council, impeding developmental activities.
Northern and northeastern regions may experience snowfall and rain accompanied by strong winds, while states like Gujarat, Maharashtra, and Tamil Nadu will witness average rainfall. The intensity of the cold will persist.
Western nations will face severe unrest, causing distress to farmers, leading to poor harvests. Earthquakes or storms may occur in eastern regions, and incidents like fire accidents and explosions may happen in southern states. In the western part of the world, there will be an increase in diseases and a sense of fear among the public due to natural disasters.
The success of policy implementation by the central government will earn the country respect. Coastal areas will experience storms and cyclones. Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, and northeastern Rajasthan will have a normal atmosphere of misty dew.
There will be tensions among leaders, leading to various protests, conflicts, and harmful incidents, causing anger and fear among the people. Many regional ruling parties may face disintegration. Concerns will increase in the eastern and southern regions.
Political parties will have to face challenging situations. There is a possibility of incidents like bombings, accidents, and natural disasters indicating financial loss. Signs of climate change will become more apparent. Mountainous regions will face health issues due to snowfall and stormy winds.
The celestial positions suggest an atmosphere often covered in haze. Some European countries may unexpectedly face unrest, war, and prolonged struggles. Economic discussions will be crucial in major European countries. Political personalities will face a fearful time. Some regions in India, including Kashmir, Himachal Pradesh, and Bhutan, may experience snowfall and rainfall, accompanied by a cool breeze.
Construction of new progressive plans will take place in India, and there will be a new direction for the country’s education system. The dignity of the presidential position will increase according to the positions of the celestial bodies.
India will have to deal with its issues independently in the face of a country that disturbs peace on its borders. The prestige of the chief ruler will increase, and the balance will tilt heavily in favor of the Bharatiya Janata Party.
The temperature will rise rapidly. In mountainous regions, there will be occasional regular rainfall in places like Himachal Pradesh, Manipur, Bengal, Tamil Nadu, and Karnataka. Bihar and Uttar Pradesh may experience cloudiness and drizzling.
शक्तिशाली राष्ट्र रुस, चीन, अमेरिका तथा ईराक, ब्रिटेन में आतंकवाद का भय, शासकों में आपसी मतभेद् उभ् रेगा! संवेदनशील क्षेत्रों में तथा सीमा प्रान्तों पर सैन्य बल तैनात करना पड़ेगा| पूर्वी एवं पश्चिमी भूभाग पर प्राकृतिक प्रकोप से जन- धन की हानि होगी।
नेपाल में माओवादियों व आई एस आई के बढ़ते सहयोग से भारत के सीमा प्रान्त प्रभावित होंगे। चीन, बंगला देश, पाकिस्तान की गतिविध पर ध्यान रखना पड़ेगा। किसी मुस्लिम राष्ट्र पर भयंकर युद्ध के समाचार मिलेंगे। किसी भी देश में युद्ध अवश्य होगा।
लू व गर्मी का प्रकोप बहुत ज्यादा रहेगा आन्ध्रप्रदेश महाराष्ट्र गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के क्षेत्रों में ज्यादा गर्म रहेगा। उत्तरार्ध में सामान्य वर्षा के योग हैं। उत्तरी प्रान्तों के पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहेगा। कहीं यान दुर्घटना, भूचाल से हानि, कहीं ज्वालामुखी विस्फोट किसी प्रभागी देश के विरुद्ध सोमालिया, चीन, फिलिस्तीन एवं रूस के किसी एक वर्ग द्वारा विरोध होगा।
अर्थ व्यवस्था की धीमी विकास दर से बेरोजगारी को लेकर मजदूर वर्ग एवं किसानों को सरकार संघर्ष से रोक नहीं सकेगी। कहीं समुद्री तूफान, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदा की ग्रहस्थिति है। पूर्वी गोलार्ध में युद्ध का भय बनेगा। रूस, जापान, चीन, वर्मा, पूर्वी भारत एवं आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों में तूफान, भूकम्प, भूस्खलन एवं हिमपात से जन-धन की हानि होगी। बादल चाल रहकर भी वर्षा नहीं होगी। तापमान अधिक रहेगा, महाराष्ट्र, उड़ीसा के पूर्वी क्षेत्र, बंगाल व असम में वर्षा तथा हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश में वर्षा अवरोध रहेगा। दक्षिण प्रान्तों में एवं उत्तर प्रान्त में प्रलयकारी वर्षा के योग हैं पाञ्चात्य राष्ट्रों में आतंकवादी हरकतों से हानि व भय व्याप्त होगा।
यूरोप के कई देशों में भी जनाक्रोश बढ़ेगा। केन्द्र स्थल व उत्तर प्रदेश, बिहार के क्षेत्रों में जनाक्रोश बढ़ेगा। अग्निकाण्ड से हानि, उग्रवादी ताकतों का दुष्प्रभाव बढ़कर , शासकों को चिन्ता का कारण बनेगी। चीन, जपान, रूस, तिब्बत, वर्मा आदि राष्ट्रों से भूकम्प आदि प्राकृतिक प्रकोप से जन धन की हानि होगी।
विश्व के किसी राष्ट्र में प्राकृतिक आपदा जैसे भूकम्प, समुद्री तूफान आदि से भारी जन-धन की हानि हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्र में भयंकर आपदा आ सकती है। एवं विकृति जन्य अनेक प्रकार के रोगों से जनता परेशान होगी। चीन में बाढ़, तूफान से विशेष हानि हो सकती है।
दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में वर्षा सामान्य होगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश में वायु के साथ अच्छी वर्षा होगी। असम, बंगाल, बिहार, कर्नाटक में अतिवृष्टि से लोग परेशान होंगे। काश्मीर में या हिमाचल में बादल फटने जैसी घटना हो सकती है। किसी भी क्षेत्र में अतिवृष्टि, प्राकृतिक आपदा विशेष होगी।
देश के राजनेताओं में पदलोलुपता बढ़कर जनता को साम्प्रदायिक धार्मिक दंगल हेतु प्रोत्साहित कर स्वार्थ की पूर्ति करेंगे। अरब, ईरान, ईराक तथा पाकिस्तान, अफगानिस्तान में शासकों को आपसी मतान्तर बनकर विग्रह होगा। पश्चिमोत्तर प्रांतों में नवीन क्रान्ति का उदय होकर जन उपद्रव से शासकों में भय की वृद्धि होगी।
विपक्ष बल सबल होगा। पर्वतीय प्रान्तों में प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की हानि होगी। बिहार में भयंकर बाढ़ की स्थिति एवं भारत के कुछ प्रान्तों में सूखा रहेगा। कृषकों के लिये कठिन परिस्थिति हो सकती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में आकाश साफ रहेगा। बंगाल, बिहार, मणिपुर, असम, अरुणाचल में भारी तूफान आने की संभावना है।
दक्षिण पश्चिम के प्रान्तों में जोरदार वर्षा हो सकती है। बाढ़ से लोग परेशान हो जायेंगे। देश के महान पुरुषों या प्रधान शासकों के लिये कष्टप्रद रहेगा। शक्तिशाली राष्ट्र रुस, चीन, अमेरिका तथा ईराक, ब्रिटेन में आतंकवाद का भय रहेगा। अमेरिका और इंग्लैण्ड की अन्य महाशक्ति के साथ मतभेद गहरा सकते हैं।
खाड़ी देशों में तनाव होगा। अलकायदा समर्पित आतंकवाद दक्षिण पूर्व एशिया में जड़े मजबूत करने को उद्धत होगा। भारत नये- नये कायदे कानून बनाने की प्रेरणा देगा। देश में औद्योगिक प्रगति विशेष होगी। विश्व व्यापार जन्य कुप्रभावों का उपाकरण जनहितार्थ उपायों से पुनः चेतना प्राप्त करेगी।
कहीं-कहीं वर्षा सामान्य होगी। वायुवेग का प्रकोप रहेगा। हिमाचल प्रदेश, काश्मीर व बिहार के क्षेत्रों में वर्षा होगी। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश में खण्ड वृष्टि के योग है। तापमान में गिरावट के साथ मौसम परिवर्तन हो सकता है।
The powerful nations Russia, China, America, and Iraq, Britain will continue to fear terrorism, and there will be political disagreements among the rulers! Military forces will need to be deployed in sensitive areas and border regions.
There will be economic losses due to natural disasters in eastern and western regions. In Nepal, the increasing cooperation of Maoists and ISI will affect India’s border areas. It will be necessary to keep an eye on the activities of China, Bangladesh, and Pakistan. News of a severe war in some Muslim nations may come. There will be war in any country. The scourge of heat and summer will be excessive; areas like Andhra Pradesh, Maharashtra, Gujarat, Haryana, Uttar Pradesh, and Punjab will experience intense heat.
There will be normal rainfall in northern regions. Life will be disrupted by natural disasters in mountainous regions. There may be incidents like volcanic eruptions against some countries like Somalia, China, Palestine, and Russia by a certain group.
The economy’s slow growth rate will not prevent unemployment, affecting the working class and farmers. Some regions may face epidemics and disasters. Due to conflicts among rulers, there will be obstacles in developmental activities in the Cabinet, leading to a slowdown. Rainfall will occur in western states, causing anxiety among farmers.
There will be crop damage in Gulf regions. Eastern regions may face earthquakes or hurricanes, and southern states may experience incidents like arson, explosions, etc. There will be a tense atmosphere of unrest in western nations. Farmers will worry.
Drought will harm crops in the Gulf regions. Earthquakes or hurricanes and incidents like arson and explosions will occur in eastern regions. There will be global unrest in western territories. Fear of terrorism and internal conflicts will spread in various parts of the world.
The majority of the world will face epidemics and disasters, leading to increased tension. Conflicts among rulers will lead to disruption in the Cabinet, hindering development-related work. There will be heavy rain in northern and eastern regions, while western states will experience a severe drought.
Farmers will face difficulties. The major nations or rulers will face hardships. Terrorism fears will persist in powerful nations like Russia, China, America, and Iraq, Britain. There will be deep disagreements with other superpowers like America and England. There will be tension in Gulf countries.
Terrorism dedicated to Al-Qaeda will strengthen in Southeast Asia. India will be affected by the increasing cooperation of Maoists and ISI. It will be necessary to pay attention to the activities of China, Bangladesh, and Pakistan.
There will be news of a severe war in some Muslim nations. There will be war in any country. The scourge of heat and summer will be excessive, and areas like Andhra Pradesh, Maharashtra, Gujarat, Haryana, Uttar Pradesh, and Punjab will experience intense heat.
There will be normal rainfall in northern regions. Life will be disrupted by natural disasters in mountainous regions. There may be incidents like volcanic eruptions against some countries like Somalia, China, Palestine, and Russia by a certain group. The economy’s slow growth rate will not prevent unemployment, affecting the working class and farmers.
Some regions may face epidemics and disasters. Due to conflicts among rulers, there will be obstacles in developmental activities in the Cabinet, leading to a slowdown. Rainfall will occur in western states, causing anxiety among farmers. There will be crop damage in Gulf regions. Eastern regions may face earthquakes or hurricanes, and southern states may experience incidents like arson, explosions, etc. There will be a tense atmosphere of unrest in western nations. Farmers will worry. Drought will harm crops in the Gulf regions.
Earthquakes or hurricanes and incidents like arson and explosions will occur in eastern regions. There will be global unrest in western territories. Fear of terrorism and internal conflicts will spread in various parts of the world.
The majority of the world will face epidemics and disasters, leading to increased tension. Conflicts among rulers will lead to disruption in the Cabinet, hindering development-related work. There will be heavy rain in northern and eastern regions, while western states will experience a severe drought. Farmers will face difficulties. The major nations or rulers will face hardships.
पश्चिमी राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, ग्रीनलैण्ड आदि राष्ट्रों में युद्धोन्माद एवं शासकों में तनाव बढ़ेगा। मुस्लिम राष्ट्र एवं उत्तरी प्रान्तों में, पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदा से जनजीवन अस्त-व्यस्त होगा। नेताओं में आपसी तनाव होकर अनेक आन्दोलन विग्रह तथा तोड़फोड़ व हानि कारक घटनाओं से जनता में आक्रोश व भय की वृद्धि होगी।
देश के दक्षिण पूर्व राज्यों में पुनः सत्तारूढ़ पार्टी में मन मुटाव अथवा विघटन हो सकता है। केन्द्र सरकार के अथक प्रयासोपरास्त भी निर्वाचन जन्य स्थिति उभरेगी। बाल मृत्युदर में वृद्धि होगी। पूर्वी प्रान्तों बंगाल, असम, बिहार, अरुणाचल, मेघालय आदि में तथा समुद्र तटीय नगरों में तूफान के साथ वर्षा होगी।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में खण्ड वर्षा होगी। उत्तरी क्षेत्रों में तापमान में गिरावट आयेगी। बादल चाल के साथ शीत वायु का प्रकोप बढ़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात अथवा ओला वृष्टि हो सकती है। मध्य भारत में वायु वेग रहेगा। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में वर्षा हो सकती है।
आकाशीय बिजली से जन-धन हानि होगी। पाकिस्तान, ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैण्ड, अमेरिका, हालैण्ड, भारत आदि देश में महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में कमी नहीं होगी। एवं तलाकों की संख्या में भारी वृद्धि होगी। किसी बड़े सैनिक टकराव या किसी राष्ट्र के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का संकेत है।
देश की शिक्षा व व्यावसायिक स्थितियों में नवीन परिवर्तन से दृढ़ता बढ़ेगी। आयात निर्यात के नये परिवर्तन से दृढ़ता ‘बनेगी। आयात निर्यात के नये कानूनों में जनता को श्रेष्ठ लाभ होगा। शासकीय कर्मचारियों के लिये अच्छी खबर आयेगी। बादल चाल के साथ शीत वायु का प्रकोप बढ़ेगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात अथवा ओला वृष्टि हो सकती है। मध्य भारत में वायु वेग रहेगा। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में वर्षा हो सकती है। विश्व के राजनैतिक स्तर में विशेष उतार-चढ़ाव रहेगा। ब्रिटेन, अमेरिका, रुस आदि शक्तिशाली राष्ट्र में आपसी खिंचाव बनेगा।
दक्षिण प्रान्तों के शासकों में आपसी मतभेद बढ़कर जनतंत्र में आक्रोश, विश्व में अघटित घटना किसी राष्ट्र विशेष में भूकम्प, जलप्लाव आदि प्राकृतिक प्रकोप से जनधन हानि होगी। बड़े देशों में एवं मुस्लिम राष्ट्रों की कुनीति से परोक्ष, युद्ध अप्रत्यक्ष युद्ध विकट रूप धारण करेगा। जिससे शांति भंग होगी। उत्तर में खड़ी फसलों को हानि, राजनीत के नये नये समीकरण बनेंगे। भारत की सेना का मनोबल बढ़ेगा। आसमान में धुन्ध हो सकती है। कई जगहों पर वर्षा भी हो सकती है। राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों में लगातार बादल दिखाई देंगे। खण्ड वर्षा के साथ शीत प्रकोप बढ़ेगा।
शनि का वक्री होना दक्षिण पश्चिम के देशों में संक्रामक रोग फैलने की आशंका है। तथा मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ेगा। शनिवारी मिथुन की संक्रान्ति तथा शनि के वक्री होने के फलस्वरूप जून महीने में भीषण गर्मी पड़ेगी। हैदराबाद, औरंगाबाद के कुछ क्षेत्रों में अशांति की स्थिति होगी।
किसी विशेष व्यक्ति के निधन का योग है। दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में अग्नि तथा उपघात से जनधन की हानि होगी। विदेशी जासूसी सम्बन्धी कोई विशेष घटना सामने आयेगी। पश्चिमोत्तर प्रांत की जनता प्राकृतिक प्रकोप तथा राजनैतिक उपद्रव से त्रस्त रहेगी। उत्तरार्ध में कोई समुद्री दुर्घटना सम्भव है।
In Western countries such as America, Britain, Europe, Greenland, etc., there will be an increase in military tensions and political instability. Muslim nations and northern regions, as well as mountainous areas, will experience disruptions in daily life due to natural disasters.
Interleader tensions will lead to various protests, conflicts, and incidents of violence, causing anger and fear among the public. Southern states of the country may witness changes in political allegiance or even party disintegration.
The relentless efforts of the central government for election-related situations will also come to the forefront. Child mortality rates will increase. Eastern states like Bengal, Assam, Bihar, Arunachal, Meghalaya, etc., and coastal cities can expect storms accompanied by rainfall. Central regions like Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, and Delhi will experience intermittent rainfall.
There will be a decrease in temperature in northern regions. The increase in cloud movement will lead to a surge in cold winds. Mountainous regions may experience snowfall or hailstorms. Central India will have moderate air velocity.
Rainfall is likely in Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, and Delhi. There will be damage due to lightning. Incidents of violence against women will not decrease in countries like Pakistan, Britain, Germany, Poland, America, Holland, India, etc. Divorce rates will see a significant increase.
A major military confrontation or military action against a nation is indicated. The country’s education and business conditions will strengthen due to new changes. The new developments in import-export will bring stability.
The public will benefit from new laws related to import-export. Good news awaits government employees. Cloud movement will intensify with a surge in cold winds. Mountainous regions may experience snowfall or hailstorms.
Central India will have moderate air velocity. Rainfall is likely in Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, and Delhi. There will be damage due to lightning. On the political stage worldwide, there will be special fluctuations.
Powerful nations like Britain, America, Russia, etc., will experience mutual tensions. Increased internal conflicts among southern rulers will lead to public dissatisfaction in democracies, and an unprecedented incident will occur globally.
A particular nation may face earthquakes, floods, and other natural disasters. In major countries and Muslim nations, indirect, proxy wars will adopt a severe form, disrupting peace. Losses to major crops in the north, and new political equations will form.
The morale of the Indian army will rise. The sky may become cloudy. Continuous clouds will be visible in places. Along with continuous rainfall, there will be an increase in cold waves.
Saturn’s retrograde in Western countries raises concerns about the spread of infectious diseases. Some areas in central India will face drought. The transition of Mercury into Gemini on Saturday and Saturn’s retrograde will result in intense heat in June.
Disruption may occur in Hyderabad and Aurangabad. The death of a prominent person is indicated. In the southeastern regions, there will be financial loss due to fire and accidents. A significant event related to foreign espionage will come to light.
The people of the northwest will be distressed by natural disasters and political unrest. There is a possibility of a maritime accident in the northern half of the country.
वैकुण्ठ चतुर्दशी, जिसे हरिहर का मिलन भी कहा जाता है, भगवान शिव और विष्णु के आपसी मिलन को संकेत करती है। इस दिन विष्णु और शिव के पुजारी इस त्योहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह त्योहार दिवाली के समान ही हरिहर के मिलन का जश्न मनाया जाता है। खासकर, इसे उज्जैन और वाराणसी में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, उज्जैन में एक विशेष आयोजन होता है, जिसमें भगवान की विशेष सवारी शहर के बीच से निकलकर महाकालेश्वर मंदिर तक पहुँचती है। उज्जैन में इस दिन उत्सव का आदान-प्रदान सड़कों पर होता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी को कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन भक्त एक साथ भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं। यही वह दिन है जब भगवान विष्णु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष सम्मान प्राप्त होता है, और मंदिर को वैकुण्ठ धाम की भावना से सजाया जाता है। भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे को तुलसी पत्तियों और बेलपत्रों के साथ पूजा करते हैं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी को महाराष्ट्र में मराठे समुदाय भी बड़े धूमधाम से मनाता है। महाराष्ट्र में वैकुण्ठ चतुर्दशी का आयोजन शिवाजी महाराज और उनकी माता जिजाबाई ने किया था।
वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा और मुहूर्त- Vaikuntha Chaturdashi Puja and Muhurat.
वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। अगर आप संपूर्ण विधिविधान और शुभ मुहूर्त में पूजा करते हैं, तो आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अपने समस्त कार्यों की सिद्धि के लिए आप भगवान विष्णु के सहस्रनाम की पूजा के साथ रुद्राभिषेक पूजा जरूर करवाएं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी 25 नवंबर 2023
वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिताकाल 23:45 से 00:34, 26 नवंबर 2023
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ 25 नवंबर, 2023 को 17:22
चतुर्दशी तिथि समाप्त 26 नवंबर, 2023 को 15:53
वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व और मणिकर्णिका स्नान- The significance of Vaikuntha Chaturdashi and Manikarnika Snan
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाला यह त्योहार शैव (भगवान शिव के उपासक) और वैष्णवों दोनों के लिए समान रूप से पवित्र माना जाता है। इस दिन दोनों भगवानों की पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व ऋषिकेश, गया, वाराणसी सहित देश भर में बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मृत्यु के पश्चात वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी पर निशिता मुहूर्त के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जो मध्यरात्रि का समय होता है। इस दिन भगवान विष्णु के हजार नाम, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए श्रीहरि विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। हालांकि, यह पूजा दिन के दो अलग-अलग समय पर की जाती है। भगवान विष्णु के भक्त निशिता मुहूर्त में पूजा करना पसंद करते हैं, जो मध्यरात्रि है। जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदय मुहूर्त में पूजा करना पसंद करते हैं, सूर्योदय से पहले का समय होता है। शिव भक्तों के लिए, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदय के दौरान सुबह का स्नान बहुत महत्वपूर्ण है और इस दिन की पवित्र डुबकी की को कार्तिक चतुर्दशी पर मणिकर्णिका स्नान के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।
पौराणिक कथा- Mythological Story
वैकुण्ठ चतुर्दशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी आए थे। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्प से भगवान शंकर के पूजन का संकल्प लिया। भगवान विष्णु जब श्री विश्वनाथ जी के मंदिर में पूजन करने लगे, तो शिवजी ने भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान विष्णु ने एक हजार पुष्प कमल भेंट करने का संकल्प लिया था, जब उन्होंने देखा कि एक कमल कम हो गया है, तो वे विचलित हो उठे। तभी उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल पुष्प के ही समान हैं। इसीलिए मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। इस विचार के बाद भगवान श्री हरि विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने के लिए प्रस्तुत हुए।
भगवान विष्णु की इस अगाध भक्ति से भगावन शिव प्रसन्न हो गए, वह तुरंत ही वहां पर प्रकट हुए और श्रीहरि विष्णु से बोले- ‘हे विष्णु! तुम्हारे समान इस पूरे संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। इसलिए आज मैं तुम्हें वचन देता हूं कि इस दिन जो भी तुम्हारी पूजा करेगा, वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करेगा।
आज का यह दिन ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाएगा। इसके अलावा भगवान शिव ने प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु को करोड़ों सूर्य की कांति (तेज) के समान वाला सुदर्शन चक्र प्रदान किया। इसी कारण से ऐसा माना जाता है कि इस दिन मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, तो वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित कर लेता है।
इसके बाद देवर्षि नारद पूरे पृथ्वी लोक का भ्रमण कर वैकुण्ठ धाम पहुंचे, तो उनके चेहरे पर एक सवाल दिख रहा था। जिसे भांपते हुए श्रीहरि विष्णु ने पुछ लिया- ऋषिवर आपके चेहरे पर मुझे एक प्रश्न नजर आ रहा है, कृपया बताएं आप क्या पूछना चाहते हैं।
नारद जी ने तुरंत ही कहा कि भगवन आपके अनन्य भक्त हैं, जिनमें से कई दिन रात आपका नाम जपते हैं, जिन्हें आसानी से वैकुण्ठ प्राप्त हो जाता है। लेकिन, कुछ लोग है जो दिन रात आपका नाम जपने में असमर्थ है, क्या उन्हें वैंकुंठ प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है। इसके जबाव में श्री हरि विष्णु ने कहा कि जो भी व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी का उपवास करेगा, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होगी। ऐसा माना जाता है कि तभी से वैकुण्ठ चतुर्दशी के इस व्रत का पालन किया जाने लगा है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा- Vaikuntha Chaturdashi Story
धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वह गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी। कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था। इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया।
तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा। अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।
वैकुण्ठ चतुर्दशी को भारतीय परंपराओं में एक पवित्र दिन माना गया है, जो कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि दोनों ही देवताओं का वैकुण्ठ चतुर्दर्शी से गहरा संबंध है। अन्यथा, ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है। वाराणसी के अधिकांश मंदिर वैकुण्ठ चतुर्दशी मनाते हैं। वाराणसी के अलावा, वैकुण्ठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में मनाई जाती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पवित्र त्योहार इस साल 25 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। वैकुण्ठ चतुर्दशी के महत्व को समझना बहुत जरूरी है|
वैकुण्ठ चतुर्दशी को कैसे करें पूजन- Pooja Procedure of Vaikunth Chaturdashi
वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा करने के लिए आपको वैदिक विधि का ध्यान रखना आवश्यक है। इस पवित्र दिन पर आपको ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद आप व्रत का संकल्प लें। दिनभर में आप थोड़ बहुत फलाहार कर सकते हैं, इसके अलावा किसी भी प्रकार के अन्न का सेवन न करें। इसके बाद रात के समय निशिता मुहूर्त में श्रीहरि विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करें।
भगवान शिव को भी कमल का फूल के साथ सपेद चंदन, भोग आदि लगाएं। घी का दीपक और धूप जलाने के बाद शिव जी और विष्णु जी के नामों का अच्छी तरह से उच्चारण करें। पूजा करने के लिए आप इस मंत्र का उच्चारण करें…
Vaikunth Chaturdashi Pooja Mantra
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
इस दिन अपने निकट के किसी विष्णु अथवा शिव मंदिर में जाकर वहां भगवान को फल, फूल, माला, धूप, दीपक आदि समर्पित करें। अपनी श्रद्धा के अनुसार उनके मंत्र का जप करें अथवा भगवान विष्णु के महामंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय तथा भगवान शिव के महामंत्र ॐ नम: शिवाय का जप अधिकाधिक जप करें। पूजा के बाद यथाशक्ति दान, पुण्य आदि दें और भगवान से मनोकामना पूर्ति का वरदान मांगे।
रात को श्रीहरि विष्णु की पूजा के पश्चात दूसरे दिन सुबह अरुणोदय मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद उपवास खोलें। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पवित्र व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता का प्रतीक माना गया है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी हमारे धर्म में पवित्र तिथि माना गया है है। धर्मिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा, श्रीहरि विष्णु, देवाधिदेव भगवान शंकर आदि ने इस तिथि को परम पुण्यदायी बताया है। इस पवित्र दिन पर गंगा स्नान और शाम के समय दीपदान करने को विशेष महत्वपूर्ण बताया गया है।
पूजा करने के लाभ-Benefits of Pooja
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इस दिन दान और जप करने से दस यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो, तो यह महाकार्तिकी होती है। वहीं अगर भरणी नक्षत्र हो तो वैकुण्ठ चतुर्दशी विशेष फलदायी होती है और रोहिणी नक्षत्र में आने पर इसका फल और भी अच्छा मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि एक बार देवऋषि नारद जी भगवान श्रीहरि विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पाने का मार्ग पूछा था। जिसके जवाब में श्री विष्णु जी कहते हैं कि जो भी वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन व्रत रखते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं। भगवान विष्णु बताते हैं कि इस पवित्र दिन के शुभ अवसर पर जो भी उनका पूजन करता है, वह वैकुण्ठ को प्राप्त करता है।
ऐसी भी मान्यता है कि वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन वैकुण्ठ लोक के द्वार खुले रहते हैं। इस व्रत की पूजा के बाद कथा सुनने को भी आवश्यक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर आप वैकुण्ठ चतुर्दशी को कथा का श्रवण करते हैं, तो आपके सारे पाप नष्ट हो जाता हैं।
तुलसी विवाह का महत्व- The significance of Tulsi Vivah.
हिंदू धर्म में कार्तिक माह को ‘ईश्वर का महीना’ कहा जाता है। इस महीने में ही भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं और इसी के बाद से ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं, जो पिछले चार महीनों से बंद रहते हैं। इसलिए इस एकादशी को लोग ‘बड़ी एकादशी’ या ‘देवउठनी एकादशी’ भी कहते हैं, जिस दिन तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह होता है।
तुलसी विवाह की तारीख: कन्फ्यूजन दूर करें- Date of Tulsi Vivah: Clarify the confusion.
तुलसी विवाह के डेट को लेकर इस बार कन्फ्यूजन हो गया है। कुछ लोग कहते हैं कि तुलसी विवाह 23 नवंबर को है, तो कुछ लोग कहते हैं कि यह 24 नवंबर को होगा। इसमें स्पष्टता लाने के लिए, देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है।
शुभ मुहूर्त और पूजन विधि- Auspicious timing and worship procedure.
एकादशी 22 नवंबर को रात 11:04 PM से लग रही है, जिसका अंत 23 नवंबर को 09:01 PM को होगा, उदयातिथि मान्य होने के कारण देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी और इसी कारण तुलसी विवाह भी इसी दिन होगा।
कुछ लोग कार्तिक मास की द्वादशी तिथि में तुलसी विवाह करते हैं, तो उनके लिए तुलसी विवाह 24 नवंबर को है। द्वादशी तिथि आरंभ – 23 नवंबर को 9:01 PM, और समाप्त – 24 नवंबर को 7:06 PM। तुलसी विवाह तिथि – 24 नवंबर 2023, प्रदोष काल – 24 नवंबर 2023 को 05:25 PM। जिनके घर में तुलसी विवाह होता है, वहां उत्सव का माहौल होता है।
मां तुलसी का महत्व- The significance of Mother Tulsi.
‘कभी धन की कमी नहीं होती है…’ मां तुलसी को मां लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है, इसे जहां रहती है, वहां कभी धन की कमी नहीं होती है। तुलसी विवाह करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और जिनकी शादी में अड़चनें आ रही हैं, वह भी समाप्त हो जाती है।
तुलसी विवाह 2023: शुभ मुहूर्त- Tulsi Vivah 2023: Auspicious Timing
पंचांग के मुताबिक, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 23 नवंबर को रात 09:01 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 नवंबर को शाम 07:06 मिनट पर खत्म होगी। 24 नवंबर को तुलसी विवाह किया जाएगा।
तुलसी विवाह का शुभ योग- Auspicious conjunction for Tulsi Vivah.
सिद्धि योग: सुबह 09:05 मिनट तक, तुलसी विवाह के दिन सिद्धि योग बन रहा है, जो शुभ कार्यों के लिए अनुकूल है।
सर्वार्थ सिद्धि योग- Yoga for the fulfillment of all desires.
तुलसी विवाह के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जिससे सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं और यह योग दिन भर रहेगा।
अमृत सिद्धि योग- Yoga for attaining nectar-like success.
अमृत सिद्धि योग का निर्माण सुबह 06:51 मिनट से लेकर संध्याकाल 04:01 मिनट तक है, जो ज्योतिष में बहुत शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह की पूजन सामग्री-Materials for the worship of Tulsi Vivah.
तुलसी का पौधा
भगवान शालिग्राम की मूर्ति या तस्वीर, शालिग्राम का पत्थर
लाल रंग की एक चुनरी और पीले रंग का कपड़ा
अक्षत्, घी, फूल, मिट्टी का दीया, सिंदूर, मौसमी फल और कुमकुम
आरती: जय जय तुलसी माता (Aarti: Jai Jai Tulsi Mata)
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
सब योगों से ऊपर,
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥ [Extra]
॥ जय तुलसी माता…॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
तुलसी विवाह का महत्व- The Significance of Tulsi Vivah.
पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरराज जलंधर की पत्नी का नाम वृंदा था और वृंदा विष्णु भगवान की परम भक्त और पतिव्रता महिला थी। भगवान विष्णु ने जलंधर का वध करने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग कर दिया, जिसके चलते वृंदा ने अपना जीवन खत्म कर लिया। वहां पर एक तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि उनके अवतार शालिग्राम से उसका विवाह होगा और बिना तुलसी के उनकी पूजा अधूरी मानी जाएगी। इसी कारण भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी को अनिवार्य माना जाता है। और इसी कारण हर साल कार्तिक शुक्ल द्वादशी को तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराया जाता है।
इस धार्मिक उत्सव में, भगवान विष्णु की पूजा को लेकर विशेष विधान है। इस बार, यह एकादशी गुरुवार को हो रही है, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु, चार महीने के अंतराल के बाद, दोबारा जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।
देवउठनीएकादशीकामहत्व- The Significance of Dev Uthani Ekadashi
देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि का संचालन फिर से शुरू करते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।
देवउठनीएकादशीकाशुभमुहूर्त- Auspicious Timing for Dev Uthani Ekadashi
2023 में देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त सुबह 6:51 से 8:57 बजे तक है।
महत्वपूर्ण दिन का आगमन- Arrival of an Important Day
इस धार्मिक उत्सव में, भगवान विष्णु की पूजा को लेकर विशेष विधान है। इस बार, यह एकादशी गुरुवार को हो रही है, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु, चार महीने के अंतराल के बाद, दोबारा जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।
पूजन का शुभ मुहूर्त- Auspicious Timing for Worship
दिल्ली के पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी 22 नवंबर 2023 की रात्रि 11:03 बजे से प्रारंभ होकर 23 नवंबर 2023 की रात्रि 09:01 बजे समाप्त होगी। उदय तिथि के अनुसार, इस साल देवोत्थान एकादशी का पावन पर्व 23 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा और इस व्रत का पारण 24 नवंबर 2023 को प्रात:काल 06:51 से 08:57 बजे के बीच किया जा सकेगा। ध्यान रखें कि एकादशी का व्रत बिना पारण के अधूरा माना जाता है।
देवउठनी एकादशी के दिन, भगवान श्री विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद, सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए। फिर भगवान श्री विष्णु के व्रत एवं पूजन का संकल्प करना चाहिए और अपने घर के ईशान कोण में उनकी विधि-विधान से फल-फूल, धूप-दीप, चंदन-भोग आदि अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। इसके बाद, एकादशी की कथा का पाठ या श्रवण जरूर करना चाहिए और सबसे अंत में श्रीहरि और माता लक्ष्मी की आरती करनी चाहिए, तथा व्रत एवं पूजा का प्रसाद बांटना चाहिए।
अगर आप निर्जला व्रत नहीं रख सकते हैं, तो केवल पानी के ही व्रत रख सकते हैं।
अगर यह व्रत कोई गर्भवती महिला, बीमार लोग रख रहे हैं, तो फलाहार का पालन जरूर करें।
एकादशी व्रत रखने के साथ मन और तन की शुद्धि करना बेहद जरूरी है।
देवउठनी एकादशी के दिन किसी से भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
भगवान विष्णु स्तोत्र का पाठ करें
देवउठनी एकादशी के दिन इस स्तोत्र का पाठ जरूर करें। इससे भगवान विष्णु की कृपा हमेशा आपके ऊपर बनी रहेगी और शुभ फलों की भी प्राप्ति हो सकती है।
भगवान विष्णु स्तोत्र- Prayer to Lord Vishnu
नारायण नारायण जय गोपाल हरे॥
करुणापारावारा वरुणालयगम्भीरा ॥
घननीरदसंकाशा कृतकलिकल्मषनाशा॥
यमुनातीरविहारा धृतकौस्तुभमणिहारा ॥
पीताम्बरपरिधाना सुरकल्याणनिधाना॥
मंजुलगुंजा गुं भूषा मायामानुषवेषा॥
राधाऽधरमधुरसिका रजनीकरकुलतिलका॥
मुरलीगानविनोदा वेदस्तुतभूपादा॥
बर्हिनिवर्हापीडा नटनाटकफणिक्रीडा॥
वारिजभूषाभरणा राजिवरुक्मिणिरमणा॥
जलरुहदलनिभनेत्रा जगदारम्भकसूत्रा॥
पातकरजनीसंहर करुणालय मामुद्धर॥
अधबकक्षयकंसारेकेशव कृष्ण मुरारे॥
हाटकनिभपीताम्बर अभयंकुरु मेमावर॥
दशरथराजकुमारा दानवमदस्रंहारा॥
गोवर्धनगिरिरमणा गोपीमानसहरणा॥
शरयूतीरविहारासज्जनऋषिमन्दारा॥
विश्वामित्रमखत्रा विविधपरासुचरित्रा॥
ध्वजवज्रांकुशपादा धरणीसुतस्रहमोदा॥
जनकसुताप्रतिपाला जय जय संसृतिलीला॥
दशरथवाग्घृतिभारा दण्डकवनसंचारा॥
मुष्टिकचाणूरसंहारा मुनिमानसविहारा॥
वालिविनिग्रहशौर्यावरसुग्रीवहितार्या॥
मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर॥
जलनिधिबन्धनधीरा रावणकण्ठविदारा॥
ताटीमददलनाढ्या नटगुणगु विविधधनाढ्या॥
गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन॥
स्रम्भ्रमसीताहारा साकेतपुरविहारा॥
अचलोद्घृतिद्घृञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर॥
नैगमगानविनोदा रक्षःसुतप्रह्लादा॥
भारतियतिवरशंकर नामामृतमखिलान्तर॥
देवउठनीपूजाकाअचूकउपाय- Foolproof Ritual for Dev Uthani Puja
देवउठनी एकादशी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के निद्रा काल के बाद जागते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है। इस दिन घर में सुख-शांति और सौभाग्य बनाए रखने के लिए कुछ अचूक उपाय किए जा सकते हैं।
घीकादीयाजलाएं- Light the Ghee Lamp
देवउठनी एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति के सामने घी का दीया जलाएं। इसके बाद पूरे घर-आंगन, छत और मुख्य द्वार पर दीया जरूर रखें। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सुख-शांति बनी रहती है।
तुलसीपूजनकरें
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजन करना भी बहुत शुभ माना जाता है। तुलसी को माँ लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए तुलसी के पौधे के चारों ओर गन्ने का तोरण बनाएं और तुलसी के साथ आंवले का गमला लगाएं। इसके बाद तुलसी पूजन करें और आरती करें। इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
एकादशीकीकथासुनेंयापढ़ें
देवउठनी एकादशी के दिन एकादशी की कथा सुनना या पढ़ना भी बहुत शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति और सौभाग्य बनी रहती है।
इन उपायों को करने से देवउठनी एकादशी का पर्व और भी अधिक शुभ और मंगलमय बन जाता है।
देवउठनी एकादशी की कथा
एक समय की बात है, एक राज्य था जहां के सभी निवासी एकादशी व्रत का पालन किया करते थे। पालन इतनी कड़ाई से होता था कि एकादशी के दिन क्या मनुष्य और क्या पशु पक्षी किसी को भी भोजन नहीं दिया जाता था। एक बार एक बाहरी व्यक्ति राजा के राज्य में नौकरी पाने की इच्छा से पहुंचा। तब राजा ने नौकरी देने का वचन तो दिया लेकिन एक शर्त के साथ। शर्त ये थी कि महीने में जो दो बार एकादशी आती है उन दोनों दिन उसे भोजन नहीं मिलेगा।
व्यक्ति ने भगवान विष्णु से की भोजन की मांग
नौकरी के चलते व्यक्ति ने राजा की बात मान ली। जब अगले महीने एकादशी आई तो राजा के कथन अनुसार उस व्यक्ति को अन्न नहीं मिला। हालांकि उसे राजा की ओर से फलाहार की सामग्री प्रदान की गई लेकिन उस व्यक्ति से भूख बर्दाश्त नहीं हुई और वो राजा से अन्न की मांग करने लगा। वह राजा के सामने अन्न के लिए गिड़गिड़ाने लगा। राजा ने उस व्यक्ति को नौकरी की शर्त याद दिलाते हुए अन्न देने से मना कर दिया। मगर भूख से बेबस वो व्यक्ति अन्न की मांग करता रहा जिसके बाद राजा ने उसे अन्न देने का आदेश जारी कर दिया।
राजा के आदेश पर उस व्यक्ति को कच्चा आटा, चावल और दाल दिया गया। भोजन सामग्री पाकर व्यक्ति खुश हो गया और नदी किनारे पहुंच गया। नदी के तट पर पहुंचते ही उसने स्नान किया और भोजन पकाने की तैयारी में जुट गया। जैसे ही भोजन तैयार हुआ उसने भगवान विष्णु का स्मरण किया और उन्हें भोजन पर आमंत्रित करने लगा। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज स्वरूप में पीले वस्त्र धारण किए प्रकट हुए। वह व्यक्ति भगवान के साथ भोजन करने लगा। भगवान विष्णु ने भी उसके साथ बड़े ही प्यार से खाना खाया और फिर वो अपने धाम वापस लौट गए।
राजा को हुआ भ्रम
जब अगली एकादशी आई तो उस व्यक्ति ने राजा से पुनः ज्यादा मात्र में खाना मांगा जिसका कारण उसने यह बताया कि वह भगवान के साथ खाता है और पहली एकादशी पर खाना कम पड़ गया था। व्यक्ति की बात सुन राजा अचरज में पड़ गया। उस व्यक्ति की बात पर भरोसा नहीं हुआ। राजा मन ही मन सोचने लगा कि इतने सालों से वह एकादशी का व्रत कर रहा है लेकिन भगवान ने उसे आजतक दर्शन नहीं दिए। वहीं, जिसने एकादशी का कभी व्रत नहीं किया भगवान उसके साथ खाना खाते हैं।
राजा ने व्यक्ति की परीक्षा ली
राजा के मन में अविश्वास देख उस व्यक्ति ने राजा को अपने साथ चलने को कहा। एकादशी के दिन राजा एक पेड़ के पीछे छिप गया और वह व्यक्ति अपने हमेशा के नियम अनुसार स्नान ध्यान करके और भोजन बना कर भगवान को बुलाने लगा मगर इस बार भगवान नहीं आए। व्यक्ति ने कई बार भगवान से आने की प्रार्थना की लेकिन मानो भगवान ने उसकी हर प्रार्थना अनसुनी कर दी। जिसके बाद उस व्यक्ति ने नदी में कूदकर भगवान से अपनी जान देने की बात कही।
राजा को हुआ भगवान का दर्शन
वह व्यक्ति नदी में कूदने ही जा रहा था कि तभी भगवान प्रकट हो गए और उसे रोक लिया। वे उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे। भोजन के बाद भगवान उस व्यक्ति को बैठाकर अपने साथ अपने धाम ले गए। राजा ने यह पूरा दृश्य छुपकर देखा और तब उसे इस बात का ज्ञान हुआ कि मन की शुद्धता के साथ ही व्रत और उपवास करना चाहिए तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस घटना के बाद से राजा भी पवित्र मन से व्रत और उपवास करने लगा। जीवन के अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
कथा का सारांश
एकादशी के दिन भगवान विष्णु का व्रत और उपवास करने से मनोकामना पूर्ण होती है।
व्रत और उपवास के साथ-साथ मन की शुद्धता भी आवश्यक है।
यदि मन शुद्ध है तो भगवान प्रसन्न होते हैं और दर्शन देते हैं।
धार्मिक व साम्प्रदायिक उपद्रवों से आतंक में वृद्धि होगी। शासकों में आपसी कलह होकर मंत्रिमंडल में विवाद व हंगामों का वातावरण बार-बार होगा। जिससे विकास जन्य कामों में रुकावटें रहेंगी। उत्तरी पूर्वी प्रान्तों में तेज हवा के साथ हिमपात तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में कहीं वर्षा होगी। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिल में | सामान्य वर्षा होगी। शीत का प्रकोप रहेगा।
तेजी मंदी – चीनी, चावल, गुड़ में तेजी रहेगी,शेयर बाजार, मशीनरी सामान, सोना-चाँदी, ताँबा आदि धातुओं में मंदी रहेगी। कपास, रुई, सूत, अफीम, काफी इत्यादि में तेजी होगी। गेहूँ, मोठ, सोयाबीन, अरण्ड, मूंगफली, तुरई के तेलों में तेजी होगी। 14 जनवरी के बाद चीनी, घी आदि रस पदार्थों तथा मेवा सामान, काजू, बादाम किसमिस में तेजी होगी। शेयर बाजार, केमिकल सामान और प्लास्टिक सामान में तेजी होगी। चाँदी-सोना में अत्यधिक तेजी बनेगी।
फरवरी
विश्व के पश्चिम भूभाग में रोग वृद्धि एवं प्रकृति से प्रजा में भय रहेगा। केन्द्र में शासक नीति की सफलता का देश में सम्मान बढ़ेगा। समुद्र तट के क्षेत्रों में तूफान, चक्रवात का उत्पात होगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश पूर्वोत्तर, राजस्थान में सामान्य ओस की धुन्ध का वातावरण रहेगा। हिमपात, ओला, ठिठुरन तेज होगी।
तेजी मंदी — गेहूँ, जौ, चना, मूंग, मोठ, मक्का, तिलहन, अलसी, मटर, सोना-चाँदी में घटाबढ़ी रहेगी। कपास, बिनौला, वस्त्र, फल, सब्जी में तेजी होगी। जीरा, धनियां, मसाले के सामान तथा केमिकल सामान में तेजी रहेगी। शेयर बाजार में उछाल आयेगी। प्लास्टिक सामान, स्टील सामान में तेजी होगी। शेयर बाजार तथा सोना चाँदी में मंदी का झटका लगेगा। लोहे के सामान वाहन | इत्यादि महंगे होंगे।
मार्च
बम विस्फोट, यान दुर्घटना एवं प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की हानि के संकेत हैं। विभिन्न देशों में राजनैतिक सम्बन्ध अकस्मात बिगड़ सकते हैं। कहीं घोर दुर्भिक्ष की स्थिति बनेगी। काश्मीर, हिमांचल प्रदेश, भूटान के क्षेत्रों में हिमपात व वर्षा होगी, शीतलहर चलेगी। मासान्त में मौसम परिवर्तन के लक्षण उभरेंगे। शुक्रवारी प्रतिपदा -से पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात तथा तूफानी हवाओं से रोग होगा। आकाशीय स्थिति प्रायः धूमिल रहेगी।
तेजी मंदी-चीनी, दवा, औषधि में तेजी आयेगी, चावल, चना में मंदी, सोना-चाँदी, ताँबा आदि धातु तेज होंगे। मशीनरी सामान एवं लोहे के सामान में अस्थिरता बनकर तेजी होगी। सरसो, एरण्ड, मूंगफली, सोयाबीन तेलों में तेजी, गुड़, शक्कर, रसपदार्थ में मंदी होगी। गेहूँ, चावल, ज्वार, मूंग, मोठ आदि धान्य भावों में गिरावट आयेगी। पीली वस्तु में या धातु में तेजी आयेगी। प्लास्टिक, रबड़ के सामान में, शेयर में अस्थिरता रहेगी।
अप्रैल
देश की सीमाओं पर शान्ति को भंग करने वाले देश से भारत को स्वयं निपटना होगा। प्रधान शासक की गरिमा (प्रतिष्ठा) बढ़ेगी। भारतीय जनता पार्टी का पड़ला भारी रहेगा। तापमान में तेजी आयेगी। पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं-कहीं सामान्य वर्षा होगी। हि.प्र., मणिपुर, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक के कुछ स्थानों में वर्षा होगी। बिहार, उत्तर प्रदेश में बादल व बूंदाबांदी हो सकती है।
तेजी मंदी-सोना-चाँदी, ताँबा, मशीन, लोहे के सामान में तेजी आयेगी। सभी तेल, तिलहन के भाव में अस्थिरता रहेगी। सभी प्रकार के अनाज में तेजी आयेगी। रासायनिक पदार्थ, औषधि एवं शेयर बाजारों में उछाल आयेगी। सभी प्रकार के दलहन के भाव अस्थिर रहेंगे।
मई
चीन, बंगला देश, पाकिस्तान की गतिविध पर ध्यान रखना पड़ेगा। कुछ मुस्लिम राष्ट्र पर भयंकर युद्ध के समाचार मिलेंगे। किसी भी देश में युद्ध अवश्य होगा। लू व गर्मी का प्रकोप बहुत ज्यादा रहेगा। आन्ध्रप्रदेश महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब के क्षेत्रों में ज्यादा गर्म रहेगा। उत्तरार्ध में सामान्य वर्षा के योग है।
तेजी मंदी – सभी प्रकार के धान्य महँगे होंगे। चना, सरसों, मूंगफली तथा पीली वस्तुओं में तेजी आयेगी। मेवा के सामान, प्लास्टिक, रबड़ एवं शेयर के बाजार में अस्थिरता रहेगी।
जून
पूर्वी गोलार्ध में युद्ध का भय बनेगा। रुस, जापान, चीन, वर्मा, पूर्वी भारत एवं आस्ट्रेलिया आदि राष्ट्रों में तूफान, भूकम्प, भूस्खलन एवं हिमपात से जन-धन की हानि होगी। बादल चाल रहकर भी वर्षा नहीं होगी। तापमान अधिक रहेगा, महाराष्ट्र, उड़ीसा के पूर्वी क्षेत्र, बंगाल व असम में वर्षा तथा हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश में वर्षा अवरोध रहेगा। दक्षिण प्रान्तों में एवं उत्तर प्रान्त में प्रलयकारी वर्षा के योग हैं।
तेजी मंदी -अनाज के भावों में उतार-चढ़ाव रहेगा। शेयर बाजारों में तेजी आयेगी। सोना-चाँदी आदि में गिरावट आयेगी। ईंधन, पेट्रोल, डीजल आदि में तेजी रहेगी। तिलहन एवं दलहन के भाव स्थिर रहेंगे।
जुलाई
पर्वतीय क्षेत्र में भयंकर आता आ सकती है। विकृति जन्य अनेक प्रकार के रोगों से जनता परेशान होगी। चीन में बाढ़, तूफान से विशेष हानि हो सकती है। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में वर्षा सामान्य होगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश में वायु के साथ अच्छी वर्षा होगी। आसाम, बंगाल, बिहार, कर्नाटक में अतिवृष्टि से लोग परेशान होंगे। काश्मीर में या हिमाचल में बादल फटने जैसी घटना हो सकती
तेजी मंदी-सभी अनाजों में तेजी होगी। पीली वस्तु में तेजी, शेयर के भाव नीचे गिर सकते हैं। रस पदार्थ में मंदी होगी। लोहा सामान, चाय, काफी, अफीम, रेशमी वस्त्र में तेजी आयेगी। सभी प्रकार के तेल, घी | आदि में घटाबढ़ी चलेगी।
अगस्त
पर्वतीय प्रान्तों में प्राकृतिक प्रकोप से जनधन की। हानि होगी। बिहार में भयंकर बाढ़ की स्थिति एवं भारत के कुछ प्रान्तों में सूखा रहेगा। कृषकों के लिये कठिन परिस्थिति हो सकती है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में आकाश साफ रहेगा। बंगाल, बिहार, मणिपुर, असम, अरुणाचल में भारी तूफान आने की संभावना है। दक्षिण पश्चिम के प्रान्तों में जोरदार वर्षा हो सकती है। बाढ़ से लोग परेशान हो जायेंगे।
तेजी मंदी – प्लास्टिक, केमिकल सामान, सभी मसाले के सामान में स्थिरता रहेगी। शेयर के भावों में आगे पीछे होकर जोरदार तेजी आयेगी। मशीन कल पुर्जे, वाहन, लोहे के सामान, स्टील में अच्छी तेजी आयेगी। केमिकल सामान, रंगरोगन, औषधियों में घटाबढ़ी चलेगी।
सितम्बर
भारत नये-नये देश में औद्योगिक प्रगति शेष कुप्रभावों का उपकरण अनार्य उपायों से प्राप्त करेगी। इस मास में कहीं-कहीं सामान्य होगी। | वायुवेग का प्रकोप रहेगा। हिमाचल प्रदेश, काश्मीर क बिहार के क्षेत्रों में वर्षा होगी। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश में खण्डवृष्टि के योग है। तापमान में गिरावट के साथ मौसम में परिवर्तन हो सकता है।
तेजी मंदी – शेयर बाजारों में अस्थिरता रहेगी। चना, मूंग, मोठ, उड़द आदि दलहन व धान्यों में तेजी होगी। गुड़, शक्कर, चीनी, अलसी, मूंगफली, सरसो, सोयाबीन तेलों में तेजी होगी। मासान्त में शेयर नीचे आ सकते हैं।
अक्टूबर
केन्द्र सरकार के अथक प्रयासोपरास्त भी निर्वाचन जन्य स्थिति उभरेगी। बाल मृत्युदर में वृद्धि होगी। पूर्वी प्रान्तों बंगाल, आसाम, बिहार, अरुणाचल, मेघालय आदि में तथा समुद्र तटीय नगरों में तूफान के साथ वर्षा होगी। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में खण्ड वर्षा होगी। उत्तरी क्षेत्रों में तापमान में गिरावट आयेगी।
तेजी मंदी-सभी तेलों के भावों में तेजी होगी। चावल, जौ, गेहूं, चना में मंदी आयेगी। सोना, चाँदी, मूंग, मोठ में तेजी, रसायनिक वस्तु, प्लास्टिक की वस्तु तथा रेशमी कपड़े में तेजी, शेयर बाजारों में पटा चलती रहेगी, मेवा के सभी सामान में अस्थिरता रहेगी।
नवम्बर
आयात निर्यात के नये कानूनों में जनता को श्रेष्ठ -लाभ होगा। शासकीय कर्मचारियों के लिये अच्छी खबर आयेगी। बादल चाल के साथ शीत वायु का प्रकोप बढ़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात अथवा ओला वृष्टि हो सकती -है। मध्य भारत में वायु वेग रहेगा। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली में वर्षा हो सकती है।
तेजी मंदी – अनाजों में मंदी रहेगी। गुड़, शक्कर, चीनी, घी आदि रस पदार्थों में तथा मेवा सामान काजू बादाम, किसमिस में तेजी रहेगी। शेयर बाजार, केमिकल सामान, प्लास्टिक सामान, सोना-चाँदी में झटके की। तेजी बनेगी। चाय, अफीम, तम्बाकू आदि नशीले पदार्थ में तेजी आयेगी।
दिसम्बर
शांति भंग होगी। उत्तर में खड़ी फसलों को हानि, | राजनीत के नये नये समीकरण बनेंगे। भारत की सेना का मनोबल बढ़ेगा। आसमान में धुन्ध हो सकती है। | कई जगहों पर वर्षा भी हो सकती है। राजस्थान, गुजरात, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों में लगातार बादल दिखाई देंगे। खण्ड वर्षा के साथ शीत प्रकोप बढ़ेगा।
तेजी मंदी – मसाले की वस्तुओं एवं किराना वस्तुओं में तेजी आयेगी। सभी प्रकार के अनाजों में घटाबढ़ी। चलेगी। सोने-चाँदी में उछाल तथा शेयर बाजारों में तेजी रहेगी। ऊनी वस्त्रों में तेजी रहेगी। सभी प्रकार के तेल तिलहन एवं वनस्पति घी में तेजी रहेगी।
हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले दीपावली के त्योहार का समय आगया है। इस साल, दीपावली का आयोजन 12 नवंबर 2023, रविवार को होगा। यह पाँच दिनों तक चलेगा, जिसमें धनतेरस, छोटी दिवाली, दीपावली, गोवर्धन पूजा, और भाई दूज शामिल हैं।
दीपावलीकामहत्व- The Importance of Diwali
दीपावली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। दीपावली को रोशनी, उल्लास और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है।
दीपावलीकामहत्वनिम्नलिखितहै– The Importance of Diwali is Given Below
अंधकार पर प्रकाश की विजय: दीपावली को अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों, दुकानों और मंदिरों में दीपक जलाते हैं। दीपक प्रकाश का प्रतीक है और अंधकार का प्रतीक है। इसलिए, दीपावली के दिन दीपक जलाकर लोग अंधकार पर प्रकाश की विजय का जश्न मनाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की विजय: दीपावली को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम अयोध्या लौटकर आये थे। भगवान राम को अच्छाई का प्रतीक माना जाता है और रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, दीपावली के दिन भगवान राम की पूजा करके लोग बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हैं।
धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति: दीपावली को धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन लोग लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी धन और समृद्धि की देवी हैं और गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। इसलिए, दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करके लोग धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति की कामना करते हैं।
दीपावली का त्योहार लोगों के लिए एक विशेष अवसर होता है। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं। दीपावली के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाई और पकवान खाते हैं, और आतिशबाजी करते हैं। दीपावली का त्योहार लोगों में भाईचारे और प्रेम की भावना को बढ़ावा देता है।
दीपावली: धन, समृद्धि, और खुशियों का उत्सव
दीपावली एक ऐसा त्योहार है जो धन, सुख-समृद्धि, और खुशहाली की भरपूर शुभकामनाएं लेकर आता है। इस दिन लोग नए सामान की खरीदारी करते हैं और मिठाई, पकवान, और विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
दीपावली 2023 के मुहूर्त- Deewali 2023 Muhurat
पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या 12 नवंबर 2023, रविवार, दोपहर 02 बजकर 44 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 13 नवंबर 2023, सोमवार, दोपहर 02 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी।
दीपावली के शुभ मुहूर्त-The auspicious timings for Diwali
लक्ष्मी पूजा: सुंदरता और शुभता का महत्वपूर्ण त्योहार
लक्ष्मी पूजा को समर्पित करने के लिए सही मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे शाम 5:07 बजे से 7:15 बजे तक मनाना शुभ माना गया है।
आरंभ: 12 नवंबर 2023, रविवार, दोपहर 2:44 बजे
समाप्त: 13 नवंबर 2023, सोमवार, दोपहर 2:56 बजे
लक्ष्मी पूजा का विशेष समय- Auspicious Worship Time for Laxmi Poojan
शाम 05:39 से रात 07:35 तक (12 नवंबर 2023)
अवधि: 01 घंटा 56 मिनट
अन्य महत्वपूर्ण मुहूर्त- Other Auspious Muhurat
प्रदोष काल: शाम 05:29 से रात 08:08 तक
वृषभ काल: शाम 05:39 से रात 07:35 तक
निशिता काल मुहूर्त: रात 11:39 से 13 नवंबर 2023, प्रात: 12:32 तक (अवधि: 53 मिनट)
सिंह लग्न: प्रात: 12:10 से प्रात: 02:27 तक (13 नवंबर 2023)
इस दीपावली, इन शुभ मुहूर्तों का उपयोग करके अपने घर को माँ लक्ष्मी की कृपा से भर दें और नए साल की शुरुआत को धन, समृद्धि, और सुख के साथ करें।
दीपावली के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त: लक्ष्मी पूजा का अद्वितीय अनुभव
अपराह्न मुहूर्त (शुभ):
दोपहर 02:44 से दोपहर 02:47 तक (12 नवंबर 2023)
सायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर):
शाम 05:29 से रात 10:26 तक (12 नवंबर 2023)
रात्रि मुहूर्त (लाभ):
प्रात: 01:44 से प्रात: 03:24 तक (13 नवंबर 2023)
उषाकाल मुहूर्त (शुभ):
प्रात: 05:06 से 06:45 तक (13 नवंबर 2023)
नोट:
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल के दौरान होता है।
निशिता काल मुहूर्त मध्यरात्रि में होता है।
चौघड़िया मुहूर्त एक घंटे का होता है।
दीपावली में प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का महत्व
दीपावली पर प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है। प्रदोष काल सूर्यास्त से लेकर चंद्रोदय तक का समय होता है। इस समय में लक्ष्मी पूजा करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन-धान्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है।
प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा करने का एक अन्य कारण यह भी है कि इस समय में स्थिर लग्न होती है। स्थिर लग्न को लक्ष्मी के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए इस समय में लक्ष्मी पूजा करने से धन की देवी लक्ष्मी घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं।
दीपावली 2023 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
दीपावली 2023 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:39 से रात 7:35 तक है। इस दौरान आप लक्ष्मी पूजा कर सकते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा विधि
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे पहले घर को साफ-सुथरा कर लें। फिर, पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां या तस्वीरें स्थापित करें। इसके बाद, धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, और माला अर्पित करें। फिर, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती करें। अंत में, प्रसाद बांटें।
दीपावली पर क्या करें क्या नहीं- Do & Don’t Do
दीपावली पर घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं।
दीपावली पर नए कपड़े पहनें।
दीपावली पर मिठाई, पकवान और अन्य व्यंजनों का आनंद लें।
दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करें।
दीपावली पर निम्नलिखित कार्य करने से बचें- Avoid this things on Deewali
दीपावली पर किसी को उधार न दें।
दीपावली पर झूठ न बोलें।
दीपावली पर किसी को अपशब्द न कहें।
दीपावली पर किसी का अपमान न करें।
दिवाली पूजा के लिए सामग्री सूची 2023 (Diwali 2023 Puja Samagri List)
मां लक्ष्मी, गणेश जी, माता सरस्वती और कुबेर देव की मूर्ति
इस दिवाली, जब आप मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करने के लिए तैयार हो रहे हैं, तो यहां है एक सूची जो आपको उन्हें समर्पित करने के लिए आवश्यक सामग्री की महत्वपूर्ण सूची है:
पूजा सामग्री-
मूर्तियाँ: मां लक्ष्मी, गणेश जी, माता सरस्वती और कुबेर देव की मूर्तियाँ
पूजा के फूल: अक्षत्, लाल फूल, कमल के और गुलाब के फूल
पूजा आर्टिकल्स: माला, सिंदूर, कुमकुम, रोली, चंदन, पान का पत्ता, सुपारी
बर्तन और खाद्य सामग्री: केसर, फल, कमलगट्टा, पीली कौड़ियां, धान का लावा, बताशा, मिठाई, खीर, मोदक, लड्डू, पंच मेवा
मिठा स्वाद: शहद, इत्र, गंगाजल, दूध, दही, तेल, शुद्ध घी
अन्य सामग्री: कलावा, पंच पल्लव, सप्तधान्य
पूजा के उपकरण: कलश, पीतल का दीपक, मिट्टी का दिया, रुई की बत्ती, नारियल, लक्ष्मी और गणेश के सोने या चांदी के सिक्के, धनिया
पूजा के स्थान की सजावट: आसन के लिए लाल या पीले रंग का कपड़ा, लकड़ी की चौकी, आम के पत्ते
धूप सामग्री: लौंग, इलायची, दूर्वा आदि।
दिवाली 2023 पूजा विधि (Diwali Puja Vidhi 2023)
इस दिवाली, लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा को सही ढंग से करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
पूजा की तैयारी
साफ-सफाई: पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं.
पूजा स्थल सजाएं: चौकी पर बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें और कलश को अनाज के बीच में रखें.
कलश में सामग्री डालें: कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें.
आम के पत्ते और मूर्तियाँ रखें: कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें, देवी लक्ष्मी की मूर्ति और भगवान गणेश की मूर्ति भी रखें.
थाली सजाएं: एक छोटी-सी थाली में चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें.
अर्थिक सामग्री प्रदर्शित करें: अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें.
पूजा का आरंभ
मूर्तियों की पूजा: देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं.
कलश पर तिलक: कलश पर भी तिलक लगाएं.
फूल चढ़ाएं: भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं.
पूजा सामग्री से स्नान: पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें और मूर्तियों को स्नान कराएं.
पूजा सामग्री से पूजा: मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें।
धूप और आरती: माला को देवी के गले में डालें और अगरबत्ती जलाएं। नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें।
आरती करें: देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें, थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें।
इस दिवाली, यह पूजा विधि आपके घर में धन, समृद्धि, और शांति का आभास कराएगी।
दीपावली पूजा मंत्र (Diwali Puja Mantra) – सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए
दीपावली, जो धरती पर आत्मा की ऊर्जा को पुनः जगाती है, उसे मनाने का समय है। यह विशेष त्योहार हमें नए आरंभों की ओर मोड़ने का भी मौका प्रदान करता है। दीपावली पूजा मंत्रों का उच्चारण एक शक्तिशाली पूजन विधि है जो सुख, समृद्धि, और धन की प्राप्ति में सहायक हो सकती है।
दिवाली में क्या करें?
दिवाली के दिन, प्रातःकाल स्नान करने के बाद सुंदर वस्त्रों में धारण करें। दिन में अच्छे पकवान बनाएं और घर को सजाएं, इससे घर में पॉजिटिव ऊर्जा बढ़ेगी। अपने बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करें और शाम को पूजा से पहले पुनः स्नान करें। लक्ष्मी-गणेश की पूजा विधि का पालन करें, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और गद्दी को विधिपूर्वक पूजित करें। घर के मुख्य द्वार पर दिपक जलाएं, जो समृद्धि का प्रतीक है।
दिवाली में क्या न करें?
इस पवित्र दिन पर, घर के प्रवेश द्वार पर और घर के अंदर कहीं भी गंदगी न रखें, इससे शुभता बनी रहेगी। किसी गरीब या जरूरतमंद को दरवाजे से खाली हाथ न लौटाएं, यह दान का महत्वपूर्ण समय है। जुआ न खेलें, शराब पीने और मांसाहारी भोजन से बचें। भगवान गणेश की मूर्ति में सूंड बायीं ओर रखें, इससे धन का संरक्षण हो सकता है। लेदर से बने तोहफे, धारदार तोहफे उपयोग न करें। पूजा स्थल को रात भर खाली न छोड़ें, वहां दिए में इतना घी या तेल डालें कि पूरी रात जलता रहे।
दिवाली उपाय (Diwali 2023 Upay)
दीपावली की रात, मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी को प्रसन्न करने के लिए उनके प्रिय भोग अर्पित करें। लक्ष्मी जी को खीर या दूध से बनी सफेद मिठाई का भोग लगाएं, गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें और उनको मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। कुबेर देवता को साबुत धनिया से चढ़ाएं। माना जाता है कि इस से लक्ष्मी-गणेश और कुबेर प्रसन्न होंगे और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा।
लक्ष्मी पूजा की विधि-The procedure of Lakshmi Puja
लक्ष्मी पूजा की शुरुआत एक साफ-सुथरे घर से होती है। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, उस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां या तस्वीरें स्थापित की जाती हैं। इसके बाद, धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, और माला से पूजा की जाती है। फिर, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती की जाती है। अंत में, प्रसाद बांटा जाता है।
सामग्री- Pooja Articles
लक्ष्मी यंत्र
गंगाजल
रोली
चावल
पुष्प
दीपक
धूप
अगरबत्ती
मिठाई
फल
धनिया
पान का पत्ता और सुपारी
नारियल
कलश
पूजा विधि: Worship Procedure
सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
कलश को चौकी के मध्य में रखें। कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें। कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें।
बीच में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति रखें।
अब एक छोटी-सी थाली में चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें दें।
इसके बाद अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें।
अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं। साथ ही कलश पर भी तिलक लगाएं।
इसके बाद भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं और पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें।
अपनी आंखें बंद करें और लक्ष्मी पूजा मंत्र का जाप करें। हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ाएं।
लक्ष्मी जी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। मूर्ति को फिर से पानी से स्नान कराकर, एक साफ कपड़े से पोछें और वापस रख दें।
मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें। माला को देवी के गले में डालकर अगरबत्ती जलाएं।
फिर नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें।
देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें।
थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें।
लक्ष्मी पूजा मंत्र: Laxmi Pooja Mantra
ॐ श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:
लक्ष्मी आरती- Laxmi Ji Aarti
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॐ जय लक्ष्मी माता
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता तुम शत्रु दमनकारी, तुम सबकी रक्षाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम सिंहासन पर विराजो, करो सब पर दया तुम बिना सुख ना पाए, कोई भी जग में ॐ जय लक्ष्मी माता
तुमको शंख, चक्र, गदा, धनुष बाण सुहाता तुमको कमल है प्यारा, तुमको भोग लगाता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुमको नारियल चढ़ाऊं, सुपारी, पान का पत्ता तुमको दूध का अर्घ्य दूँ, धूप, दीप, अगरबत्ता ॐ जय लक्ष्मी माता
तुम रक्षा करो हमारी, हर दोष मिटा दो तुम कृपा करो हम पर, सुख-शांति बसा दो ॐ जय लक्ष्मी माता
पूजा के बाद प्रार्थना- Prayer after Worship
हे मां लक्ष्मी, मैं आपकी पूजा-अर्चना करके आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता/चाहती हूं। आप मेरे जीवन में धन, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करें। मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
लक्ष्मी पूजा के नियम- Rules for Laxmi Pooja
लक्ष्मी पूजा में केवल साफ और पवित्र वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
लक्ष्मी पूजा में हृदय से मंत्र का जाप करना चाहिए।
लक्ष्मी पूजा के बाद लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए।
लक्ष्मी पूजा के लाभ- Benefits of Laxmi Pooja
लक्ष्मी पूजा से धन, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
लक्ष्मी पूजा से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
लक्ष्मी पूजा से परिवार में प्रेम और सद्भावना बढ़ती है।
कुबेर पूजा विधि- Kuber Worship Procedure
सामग्री- Articles
कुबेर यंत्र
गंगाजल
रोली
चावल
पुष्प
दीपक
धूप
अगरबत्ती
मिठाई
फल
धनिया
पान का पत्ता और सुपारी
नारियल
पूजा विधि- Pooja Procedure
सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े। दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे, सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे। योगिनी मंगल गावैं, सब जय जय कार करैं॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
गदा त्रिशूल हाथ में,शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे। दुख भय संकट मोचन,धनुष टंकार करें॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
भाँति भाँति के व्यंजन बहुत बने,स्वामी व्यंजन बहुत बने। मोहन भोग लगावैं,साथ में उड़द चने॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
अपने भक्त जनों के,सारे काम संवारे॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
मुकुट मणी की शोभा,मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले। अगर कपूर की बाती,घी की जोत जले॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
यक्ष कुबेर जी की आरती,जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे। कहत प्रेमपाल स्वामी,मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय यक्ष कुबेर हरे…॥
इति श्री कुबेर आरती ॥
पूजा के बाद प्रार्थना- Prayer after Worship
हे कुबेर देवता, मैं आपकी पूजा-अर्चना करके आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता/चाहती हूं। आप मेरे जीवन में धन, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करें। मेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
कुबेर पूजा के नियम- Rules for Kuber Ji Worship
कुबेर पूजा हमेशा उत्तर दिशा में करना चाहिए।
कुबेर पूजा में केवल साफ और पवित्र वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
कुबेर पूजा से धन, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
कुबेर पूजा से व्यापार में वृद्धि होती है।
कुबेर पूजा से कर्ज से छुटकारा मिलता है।
कुबेर पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Conclusion
दीपावली का पर्व हमें अंधकार पर प्रकाश की विजय का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैलाना चाहिए। यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि हमें हमेशा अच्छाई का साथ देना चाहिए और बुराई से दूर रहना चाहिए। दीपावली का पर्व हमें मिलकर रहने और खुशियां मनाने का संदेश भी देता है। इस त्योहार के माध्यम से हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खुशियां मना सकते हैं और उनसे प्यार और सद्भाव का रिश्ता बना सकते हैं। दीपावली का पर्व एक खुशियों का त्योहार है और हमें हमेशा खुश रहने का संदेश देता है।
Govardhan Pooja– गोवर्धन पूजा, भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के एक महत्वपूर्ण घटना के स्मरण के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की भक्ति करना और उनके द्वारका प्राप्ति की आशीर्वाद प्राप्त करना है।
History -इतिहास
भगवान कृष्ण के जन्म के बाद, वो वृन्दावन में बचपन में वत्सलय और लीलाओं के साथ गुजरे। एक दिन, गोपिका और गोप बच्चे बड़े उत्साहित होकर गोवर्धन पर्वत के चारों ओर पूजा करने के लिए तैयार हुए। भगवान कृष्ण ने देखा कि उनके भक्तों के मन में ईश्वरीय भावना है और वे गिरिराज गोवर्धन को पूज रहे हैं, उनके मन में ब्रह्मांड के एकत्व की भावना है। इस पर्व के माध्यम से, भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों के प्रेम को महत्वपूर्ण बनाया और गोवर्धन पर्वत को उठाने का निर्णय लिया। जिस से वहां के निवासियों की इंद्र के कोप से रक्षा की जा सके |
Event- घटना
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने कृपाशक्ति से उठाया और गोपों और गोपियों को पर्वत के नीचे शरण दी । इससे उन्हें इन्द्र के कोप से बचाया जो लगातार वर्षा करके सभी को पानी में डूबाना चाहते थे क्युकी वहां के निवासी इंद्र की जगह भगवान् कृष्ण की पूजा कर रहे थे|
Siginificance -महत्व
गोवर्धन पूजा का महत्व है कि यह भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और विश्वास का प्रतीक है। इस दिन भगवान कृष्ण की मूर्ति व गोवर्धन पर्वत के प्रति भक्तों की पूजा की जाती है। लोग गोवर्धन पर्वत को बनाने और सजाने में विशेष ध्यान देते हैं और उसे अन्न, फल, फूल आदि से सजाते हैं।
इस दिन, भक्त गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसे ‘गोवर्धन परिक्रमा’ कहा जाता है, जिससे भगवान कृष्ण के लीला को याद किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की आराधना और भक्ति की जाती है, और लोग उनके गुणगान करते हैं।
The Significance of Govardhan Puja and Annakut Festival- गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकामहत्व
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव हिन्दू धर्म के दो महत्वपूर्ण त्योहार हैं। ये त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा गोकुलवासियों की रक्षा के उपलक्ष में मनाए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र देवता के प्रकोप से बचाया था। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति और पराक्रम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
अन्नकूट महोत्सव नई फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को 64 प्रकार के व्यंजन भोग लगाए जाते हैं। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है।
The tradition of Govardhan Puja and Annakut Festival-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकीपरंपरा
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव की परंपरा बहुत पुरानी है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इस त्योहार को शुरू किया था। तब से लेकर आज तक यह त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
How is Govardhan Puja and Annakut Mahotsav celebrated?-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकैसेमनायाजाताहै?
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। इसके बाद, वह अपने घरों में गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा या चित्र बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। पूजा के बाद, वह भगवान श्रीकृष्ण को 64 प्रकार के व्यंजन भोग लगाते हैं।
इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं। माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अन्नकूट महोत्सव के दिन लोग अपने घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं और उनका आदान-प्रदान करते हैं। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर भोजन करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
The Significance of Govardhan Puja and Annakut Mahotsav-गोवर्धनपूजाऔरअन्नकूटमहोत्सवकामहत्व
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के कई धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व हैं। ये त्योहार हमें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा गोकुलवासियों की रक्षा के उपलक्ष में मनाए जाते हैं। ये त्योहार हमें कृतज्ञता व्यक्त करना भी सिखाते हैं।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव हमें प्रकृति के प्रति सम्मान करना भी सिखाते हैं। गोवर्धन पर्वत प्रकृति का ही एक रूप है। इस पर्वत की पूजा करके हम प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
“When is Govardhan Puja?-कबहैगोवर्धनपूजा?
गोवर्धन पूजा 2023, 14 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है और इसी दिन अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने जिस गोवर्धन को अपनी चींटी उंगली में उठा लिया था उसकी पूजा और परिक्रमा का महत्व है। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र देवता को पराजित किए जाने के उपलक्ष में मनाया जाता है। कभी-कभी दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अन्तराल हो सकता है, जैसा की इस बार है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 13 नवम्बर 2023 को दोपहर 02:56 से प्रारंभ होगी।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 14 नवम्बर 2023 को दोपहर 02:36 को समाप्त होगी
“The morning auspicious time for Govardhan Puja-गोवर्धनपूजाकाप्रातःकालमुहूर्त:
गोवर्धन पूजा का प्रातः काल मुहूर्त सुबह 06:43 से 08:52 तक है। इस समय के दौरान, आप भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा कर सकते हैं।
“Other auspicious times.” -अन्यशुभमुहूर्त:
दिवाली अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:44 से 12:27 तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:53 से 02:36 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 05:28 से 05:55 तक
सायाह्न पूजा: शाम 05:28 से 06:48 तक
अमृत काल: शाम 05:00 से 06:36 तक
अन्यजानकारी– Other Information
गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन, भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
2022 गोवर्धन पूजा की तारीख और शुभ मुहूर्त
2022 में गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त निम्नलिखित है:
प्रारंभ: 25 अक्टूबर, 2023 को शाम 4 बजकर 18 मिनट
समापन: 26 अक्टूबर, 2023 को दोपहर 2 बजकर 44 मिनट
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के स्मरण में मनाया जाता है। इस दिन, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोपों और ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। इस घटना ने भगवान कृष्ण की महान शक्ति और भक्तों के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाया।
गोवर्धन पूजा का महत्व निम्नलिखित है:
यह भगवान कृष्ण की भक्ति और विश्वास का प्रतीक है।
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि भगवान के प्रति निष्ठा और भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है।
यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति आदर और सम्मान का भाव सिखाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा के दिन, लोग अपने घरों में गोवर्धन पर्वत की मिट्टी से बनी मूर्ति की पूजा करते हैं। इसके साथ ही, लोग गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा भी करते हैं। पूजा में भगवान कृष्ण को अन्न, फल, फूल, मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
Somvati Amvasya, सोमवती अमावस्या का दिन पुराणों में भी बहुत महत्व दिया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसीलिए इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में देवताओं की रक्षा की थी। इसीलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से रोगों से मुक्ति और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
सोमवतीअमावस्यापरस्नानऔरदानकामहत्व
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दान का बहुत महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या का समय और मुहूर्त
सोमवती अमावस्या 2023, 13 नवंबर को, सुबह 6:31 बजे से शुरू होकर, 14 नवंबर को, सुबह 5:01 बजे तक समाप्त होगी।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 बजे से 8:11 बजे तक है।
सोमवतीअमावस्यापरपितरोंकाश्राद्ध
सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें शांति मिलती है और उनकी आत्माएं तृप्त होती हैं। इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सोमवतीअमावस्याकेदिनध्यानऔरमंत्रोंकाजाप
सोमवती अमावस्या के दिन ध्यान और मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस दिन भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
सोमवतीअमावस्याकेदिनउपवासऔरब्रह्मचर्य
सोमवती अमावस्या के दिन उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। इस दिन उपवास रखने से शरीर में विषैले पदार्थों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
सोमवतीअमावस्याकेदिनविशेषउपाय
इस दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करें।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के मंत्रों का जाप करें।
इस दिन व्रत रखें और उपवास करें।
इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
Conclusion :
सोमवती अमावस्या हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन पूजा करने से हमें सभी मनोकामनाओं की पूर्ति, पितरों की आत्माओं को शांति, पुण्य की प्राप्ति, रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय, वैवाहिक जीवन में सुख-शांति, संतान प्राप्ति और आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है।
इस दिन हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के साथ-साथ स्नान, दान, पितरों का श्राद्ध, ध्यान, मंत्रों का जाप, उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से हमें इस दिन के विशेष लाभ प्राप्त होंगे और हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध होगा।
सोमवती अमावस्या क्या है?
सोमवती अमावस्या हिंदू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है जो अमावस्या के दिन होती है।
सोमवती अमावस्या का महत्व क्या है?
सोमवती अमावस्या का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है, जो इसे भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के दिन के रूप में जानते हैं।
इस दिन किस भगवान की पूजा की जाती है?
सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
क्या भगवान विष्णु का भी कोई महत्व है इस दिन?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सोमवती अमावस्या के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में देवताओं की रक्षा की थी, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
सोमवती अमावस्या पर स्नान क्यों महत्वपूर्ण है?
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे दान देने का प्राम्य होता है?
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या का समय क्या होता है?
सोमवती अमावस्या 2023 में, 13 नवंबर को, सुबह 6:31 बजे से शुरू होकर, 14 नवंबर को, सुबह 5:01 बजे तक समाप्त होगी।
सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त कब होता है?
इस दिन भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 बजे से 8:11 बजे तक होता है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे पितरों का श्राद्ध करने का आदर्श माना गया है?
सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध करने का आदर्श माना गया है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे ध्यान और मंत्रों का जाप करने की सिफारिश की जाती है?
सोमवती अमावस्या के दिन ध्यान और मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किसे उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने की सिफारिश की जाती है
सोमवती अमावस्या के दिन उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं
सोमवती अमावस्या के दिन किसे विशेष उपाय करने की सिफारिश की जाती है?
इस दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करने, गरीबों को दान देने, मंत्रों का जाप करने, व्रत रखने और उपवास करने की सिफारिश की जाती है।
सोमवती अमावस्या के दिन किस मंत्र का जाप करने का विशेष फल होता है?
इस दिन भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
सोमवती अमावस्या के दिन कैसे व्रत रखा जाता है?
इस दिन व्रत रखने की सिफारिश की जाती है, जिससे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन ब्रह्मचर्य का पालन क्यों किया जाता है?
ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन को शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है, इसलिए इसे सुझाया जाता है।
सोमवती अमावस्या के महत्व का संक्षेप में क्या है?
सोमवती अमावस्या हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का अवसर प्रदान करता है,
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने असुरराज नरकासुर का वध किया था और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करते हैं, भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करते हैं, घर को साफ-सुथरा रखते हैं और दीया जलाते हैं। इस दिन परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताया जाता है, मिठाई खाई जाती है और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद की जाती है। नरक चतुर्दशी का पर्व हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करता है।
नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल नरक चतुर्दशी 12 नवंबर 2023 को है। इसे छोटी दिवाली, रूप चौदस,नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व-The Significance of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन भगवान कृष्ण ने असुरराज नरकासुर का वध किया था और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। इसीलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन यमराज की पूजा भी की जाती है, ताकि मृत्यु के भय से मुक्ति मिल सके। इसके अलावा, इस दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है, उनके द्वारा नरकासुर के वध का स्मरण करते हुए।
नरक चतुर्दशी की पूजा विधि-The Worship Rituals of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करनी चाहिए। पूजा में दीपक जलाएं, फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।
यमराज की पूजा करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि वे आप पर प्रसन्न हों और आपको मृत्यु के भय से मुक्ति दें। आप इस दिन यमराज को दीपदान भी कर सकते हैं। इसके लिए 12 दीपक जलाकर घर के बाहर रखें।
नरक चतुर्दशी 2023 के दिन, कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 11 नवंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 12 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करने की परंपरा है।
स्नान मुहूर्त – Snan Muhurat
दिनांक: 12 नवंबर 2023
समय: प्रात: 05:28 से सुबह 06:41 तक
अवधि: 01 घंटा 13 मिनट
स्नान का महत्व- Importance of Snan
नरक चतुर्दशी के दिन स्नान करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन स्नान के बाद भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
स्नान विधि- Snan-Bath Procedure
सुबह जल्दी उठकर स्नान के लिए तैयार हो जाएं।
स्नान करने से पहले अपने शरीर पर तेल लगाएं।
पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करें।
स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करें।
नरक चतुर्दशी के दिन क्या करें और क्या न करें?
क्या करें-Dos
सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश और स्नान करें।
भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा करें।
यमराज को दीपदान करें।
घर को साफ-सुथरा रखें और दीया जलाएं।
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं।
क्या न करें-Don’t Dos
मांस-मदिरा का सेवन न करें।
क्रोध और झगड़े से बचें।
गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें।
नरक चतुर्दशी के दिन खास व्यंजन
विशेष व्यंजन-Special Food Items
नरकासुर का बली (एक तरह की मिठाई)
गुलगुले
जलेबी
इमरती
हलवा
पूड़ी-छोले
चावल-दाल
सब्जी
नरक चतुर्दशी का सामाजिक महत्व – Social Importance of Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी का सामाजिक महत्व निम्नलिखित है:
घर-परिवार में सुख-शांति का माहौल बनाता है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और दीया जलाते हैं। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इससे घर-परिवार में सुख-शांति का माहौल बनता है।
परस्पर संबंधों को मजबूत करता है। इस दिन लोग परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं और मिठाई खाते हैं। इससे आपसी रिश्तों में मधुरता बढ़ती है और खुशी का माहौल बनता है।
समाज में भाईचारे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देता है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। इससे समाज में भाईचारे और सौहार्द की भावना को बढ़ावा मिलता है।
उपसंहार-Conclusion
नरक चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसका सामाजिक महत्व भी बहुत है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
हमारे हिंदू धर्म में हर साल पांच दिवसीय दीप पर्व का उत्सव मनाया जाता है। यह धनतेरस का त्योहार हिन्दू धर्म के लोगों के लिए सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है।इस उत्सव को हिंदू पंचांग में काफी शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन dhanteras puja करने से घर में धन और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन लोग परिवार के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, दीये घर के बाहर जलाते हैं, और साथ ही Dhanteras 2023 पर सौभाग्य के प्रतीक माने जाने वाले सोने या चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं।
धनतेरस दीवाली महोत्सव के पांच दिनों के महोत्सव का पहला दिन है और इसे आयुर्वेद और चिकित्सा के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए समर्पित किया जाता है। “धनतेरस” शब्द दो संस्कृत शब्दों से निकला है: “धन,” जिसका मतलब होता है धन, और “तेरस,” जिसका मतलब होता है 13वें दिन का। इस दिन, लोग अपने घरों को साफ सफाई करते हैं, उन्हें दीपकों और रंगोलियों से सजाते हैं, और संपदा और समृद्धि के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
यह एक सामान्य परंपरा भी है कि सोने या चांदी के आइटम खरीदने और देने का समय है, क्योंकि माना जाता है कि धनतेरस पर प्रिय मेटल्स की प्राप्ति शुभ फल लाती है। बहुत से लोग शाम को तेल के दीपक जलाते हैं और अपने घरों में संपदा और समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए विशेष पूजा करते हैं।
धनतेरस व्यापारी और व्यापारियों के लिए शुभ दिन होता है, क्योंकि यह हिन्दू वित्त वर्ष की शुरुआत की गणना की जाती है। इसे नए उद्यमों की शुरुआत करने या महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लेने का अवसर माना जाता है।
The significance of Dhanteras- धनतेरस(धनत्रयोदशी) का महत्व
हमारे हिंदू धर्म में प्रति वर्ष पांच दिवसीय दीप पर्व का उत्सव मनाया जाता है, और इसमें से एक दिन है धनतेरस, जो हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस उत्सव को हिंदू पंचांग में काफी शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन धनतेरस का पूजन करने से घर में धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन लोग परिवार के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, दीपक घर के बाहर जलाते हैं, और साथ ही धनतेरस 2023 के मौके पर सोने और चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं।
The date of Dhanteras festiva- धनतेरस (धनत्रयोदशी) पर्व की तिथि
धनतेरस या धन तेरस को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल, 2023 में यह पावन त्योहार 10 नवंबर 2023 को शुक्रवार को मनाया जाएगा।
The auspicious timing of Dhanteras festival- धनतेरस(धनत्रयोदशी) पर्व का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल धनतेरस का पर्व 10 नवंबर 2023 को शुक्रवार को मनाया जाएगा। धनतेरस पर्व के दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 25 मिनट से लेकर शाम 6 बजे तक होता है। इस दिन प्रदोष काल शाम के समय 5 बजकर 39 मिनट से लेकर शाम 8 बजकर 14 मिनट तक रहता है, जबकि वृषभ काल शाम 6 बजकर 51 मिनट से लेकर शाम 8 बजकर 47 मिनट तक रहता है।
धनतेरस (धनत्रयोदशी) पर्व की पूजा विधि- Worship Procedure of Dhanteras
पूजा के दौरान, देवी-देवताओं को फूल, अक्षत, धूप, दीप, भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की आरती की जाती है और प्रसाद सभी को बांटा जाता है। इसके अलावा, शाम के समय प्रदोष काल में घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया जाता है, और धनवंतरी देव, मां लक्ष्मी, और भगवान गणेश से सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
धनतेरस 2023 कुबेर पूजा के त्योहार का महत्व (The Significance of Dhanteras 2023 Kuber Puja)
धनतेरस एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो भारतीय समुदाय में खास महत्व रखता है। इसे दीपावली के पंच दिनों के उत्सव का पहला दिन माना जाता है, और यह त्योहार धन, समृद्धि, और खुशियों की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा का विशेष महत्व होता है।
कुबेर – धन के देवता (Kubera – The Deity of Wealth)
भगवान कुबेर – धन के देवता (Lord Kubera – The Deity of Wealth)
भगवान कुबेर को धन का देवता माना जाता है। उनके पास विशेष रूप से धन की खजाना है, और वे धन के प्रमुख संचयक के रूप में जाने जाते हैं। कुबेर का धन हमें आर्थिक सुख और संपत्ति की प्राप्ति में मदद करता है।
कुबेर पूजा से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद (Blessings of Goddess Lakshmi through Kubera Puja)
धनतेरस (धनत्रयोदशी) 2023 कुबेर पूजा से प्राप्त लाभ (Benefits of Dhanteras 2023 Kuber Puja)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने से माता लक्ष्मी बड़े प्रसन्न होती हैं, और वह अपने भक्तों पर अपने आशीर्वाद के साथ वर्षा करती हैं। यह पूजा धन, ऐश्वर्य, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भगवान कुबेर की पूजा विधि (Dhanteras 2023 Kuber Puja Vidhi)
धनतेरस 2023 कुबेर पूजा विधि (Dhanteras 2023 Kuber Puja Procedure)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
कुबेर यंत्र का स्थापना: सबसे पहले, कुबेर यंत्र को दक्षिण दिशा में स्थापित करें। यंत्र को ध्यान से रखें और उसका समर्पण करें।
गंगाजल के साथ विनियोग मंत्र का जाप: अगला कदम है कुबेर मंत्र का जाप करना। यंत्र के सामने बैठकर गंगाजल के साथ मंत्र का उच्चारण करें।
जल का अर्पण: जब मंत्र का जाप हो जाए, तो उस जल को भूमि पर अर्पित करें। इससे धन की प्राप्ति होती है।
कुबेर मंत्र का उच्चारण: फिर, कुबेर मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें और भगवान कुबेर की आराधना करें।
आरती: पूजा को पूरा करने के बाद, आरती करना न भूलें। आरती के बिना पूजा पूरी नहीं होती है।
आस्था – विश्वास की शक्ति (Faith – The Power of Belief)
आस्था की शक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारा विश्वास हमारे कार्यों को सफल बना सकता है। धनतेरस के दिन हम भगवान कुबेर की पूजा करके यह दिखाते हैं कि हम विश्वास और आस्था से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।
धनतेरस (धनत्रयोदशी) 2023 पर क्या खरीदें?
कई लोग इस अवसर को कीमती धातु खरीदने के लिए भी उपयोगी मानते हैं। इसलिए, आप इस दिन कुछ खास उपहार विचार भी कर सकते हैं, जैसे सोने और चांदी के सिक्के, गहने, और बर्तन, ताकि आपके प्रियजनों के घर में समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति हो।
धनतेरस, जो आने वाला है, धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण अवसर है, जो हम सभी को समृद्धि और खुशी लेकर आता है।
Dhanteras 2022
धनतेरस एक हिन्दू त्योहार है जो भारत और अन्य धार्मिक विश्वास वाले लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह आमतौर पर हिन्दू पंचांग के आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 13वें दिन को मनाया जाता है, जो सामान्य रूप से अक्टूबर या नवम्बर में होता है। 2022 में, धनतेरस को 24 अक्टूबर को मनाया गया था।
संक्षेप में, 2022 में धनतेरस 24 अक्टूबर को मनाया गया था, और यह समृद्धि और कल्याण की खोज के लिए समर्पित मनाने का एक दिन था।
समापन (Conclusion)
धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा करना हमारे धन, समृद्धि, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति में मदद करता है। यह एक धार्मिक परंपरागत त्योहार है जो हमें आस्था, भक्ति, और धन के महत्व को समझाता है। इस त्योहार के माध्यम से हम ध्यान और आस्था के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करने के महत्व को अनुसरण करते हैं, और भगवान कुबेर की कृपा से हमारा जीवन समृद्धि से भरा होता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: हिन्दू, जैन, और सिख त्योहार का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा 2023: तारीख और समय
कार्तिक पूर्णिमा, जिसे हिन्दू चांद्रमास के कार्तिक मास के पूर्ण चंद्रमा दिन के रूप में भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग में से एक सबसे पुण्यकारी और पवित्र दिनों में से एक है। भारत, नेपाल, और बांग्लादेश में मनाया जाने वाला, कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इस त्योहार को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है और इसका महत्व है क्योंकि यह दिन है जब वह कार्तिके के रूप में अवतरित हुए थे, भगवान शिव के पुत्र के रूप में। इस साल, कार्तिक पूर्णिमा को सोमवार, 27 नवम्बर, 2023 को मनाया जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा क्या है?
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू, जैन, और सिख त्योहार है, जो कार्तिक मास के पूर्ण चंद्रमा दिन या पंद्रहवें चंद्रमा दिन को चिह्नित करता है। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपने अवतार त्रिविक्रम के रूप में राक्षस राजा बलि को हराया था। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है। यह त्योहार अच्छे के बुरे पर जीत का प्रतीक है।
जैन धर्म के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा भगवान महावीर, जैन तीर्थंकरों में आखिरी के द्वारा प्राप्त मोक्ष या सल्वेशन का संकेत करता है। सिख धर्म के अनुसार, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के जन्मदिन के रूप में इस दिन का जश्न मनाया जाता है। इसलिए, कार्तिक पूर्णिमा हिन्दुओं, जैनों, और सिखों के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: तारीख और समय
2023 में, कार्तिक पूर्णिमा को सोमवार, 27 नवम्बर को मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि शुरू: 26 नवम्बर, 2023 को 15:55 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 27 नवम्बर, 2023 को 14:17 बजे
इसलिए पूर्ण चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देगा वह दिन होगा सोमवार, 27 नवम्बर, जो 2023 में कार्तिक पूर्णिमा की मुख्य तारीख है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023: त्योहार का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार एक बार आता है और यह पूर्णिमा तिथि का महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। इस दिन व्रत, पूजा, और दान करने का महत्व है, और यह भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है। यह एक मानवीय त्योहार है जो हमें अच्छे के बुरे पर जीत की महत्वपूर्ण सिख देता है।
2023 में कार्तिक पूर्णिमा कब है: कार्तिक पूर्णिमा 2023 कब है
कार्तिक पूर्णिमा 2023, इस साल 27 नवंबर को आ रही है। यह कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार एक बार साल में आती है और यह पूर्णिमा तिथि का महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। इस दिन व्रत, पूजा, और दान करने का महत्व होता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा: कार्तिक पूर्णिमा व्रत की कहानी
कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन पर, व्यक्तियों ने उपवास किया और भगवान विष्णु को प्रार्थना की। कार्तिक पूर्णिमा व्रत की कथा निम्नलिखित रूप में है:
प्राचीन काल में, एक भयंकर राक्षस नामक तारकासुर ने महाशक्ति को प्रशन्न करके शक्तिओ को प्राप्त किया था, जिससे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। देवताओं ने उसे पराजित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो सके, और इस पर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने बताया कि केवल उनके द्वारा जन्मे एक बच्चा ही तारकासुर को पराजित कर सकता है। हालांकि, उस समय भगवान शिव ध्यान में रत थे और किसी बच्चे को जन्म देने की इच्छा नहीं थी।
उसके बाद देवताएं भगवान विष्णु की सहायता के लिए आगे आए। भगवान विष्णु ने एक सुंदर महिला के रूप में मोहिनी के नाम से प्रकट होकर भगवान शिव के पास गई। उनकी सुंदरता से मोहित होकर भगवान शिव ने उससे विवाह करने की सहमति दी। उनके मिलन से एक पुत्र जिनका नाम कार्तिकेय था, उसने आखिरकार तारकासुर को पराजित किया।
कार्तिक पूर्णिमा पर कार्तिकेय के तारकासुर पर विजय की स्मृति में, लोगों ने उपवास का परंपरा आरंभ की। जो भक्ति भाव से इस उपवास को मानते हैं, उन्हें खुशियाँ और समृद्धि का अहसास होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, व्यक्तिगण सुबह जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं और तेल की दीपक या दीयाओं को जलाकर भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूरे दिन वे अनाज और दालों से व्रत करते हैं।
शाम को, लोग चाँद की पूजा करते हैं और अपने उपवास को तोड़ते हैं। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ आहार और मिठाई साझा करते हैं। इस व्रत को मानकर, कोई भी मोक्ष प्राप्त करने और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होने की आकांक्षा कर सकता है।
इसलिए, कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा में भक्ति की महत्वपूर्णता और अदल-बदल के विश्वास की ताक़त को हावी किया जाता है।
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच का संबंध
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा दो महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार हैं जिनके बीच महत्वपूर्ण संबंध है, उनके जश्न गहरे रूप में जुड़े होते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की 14वीं तारीख को मनाई जाती है, जबकि कार्तिक पूर्णिमा उसी माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। वैकुंठ चतुर्दशी, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, वह दिन है जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को पराजित किया था। इस अवसर पर, भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिए वैकुंठ, अपने दिव्य आवास, के द्वार खोलते हैं।
वैकुंठ चतुर्दशी के दौरान, लोग पारंपरिक रूप से सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं, अपने घरों के बाहर आटे से बने 14 दियों को प्रकाशित करते हैं, अपने माथे पर तिलक लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस तरीके से, यह माना जाता है कि ये मोक्ष को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करने में मदद करते हैं।
विपरीत, कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इसका संकेत इस दिन को है जब भगवान विष्णु का अवतार कार्तिकेय के रूप में हुआ, जो भगवान शिव के पुत्र थे, और उनके 14 वर्षों के पृथ्वी पर विचरण के बाद उनके दिव्य आवास, वैकुंठ, में वापसी का दिन।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन, व्यक्तिगण पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं, दीपक या दीयों को प्रकाशित करते हैं, फूल प्रस्तुत करते हैं, और जरूरतमंदों को खाद्य और वस्त्र दान करते हैं। इस तरीके से, कोई भगवान विष्णु और भगवान शिव की आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा के बीच का गहरा संबंध भगवान विष्णु और उनके आवास, वैकुंठ, के प्रति उनकी साझी भक्ति में है। दोनों त्योहार अच्छे का बुरे पर प्रशंसा करते हैं और हमारे जीवन में भक्ति और विश्वास की गहरी महत्वपूर्णता की प्रोत्साहक याद दिलाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व: कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व हिन्दू धर्म में कितना अद्भुत है, यह सबसे महत्वपूर्ण है। यह एक प्रमुख त्योहार है जो हिन्दू महीने कार्तिक की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, और इसका महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक होता है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व हिन्दू धर्म में
कार्तिक पूर्णिमा को हिन्दू धर्म में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के जन्म का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने 14 वर्षों के भूलों के लिए पृथ्वी पर बिताए दिनों के बाद अपने दिव्य आवास, वैकुंठ, में लौटने का था। इसलिए, इस दिन को गहरे शुभ और समृद्धि का संकेत माना जाता है, और उन लोगों के लिए भी है जो इसे मनाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के रूप में भी प्रसिद्ध है और यह कार्तिक मास की शुरुआत का संकेत देता है, जो हिन्दू पंचांग में सबसे पवित्र मासों में से एक है। इस अवधि के दौरान, भक्त विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक आचरणों में शामिल होते हैं, जैसे उपवास, पूजा, और दान देना।
यह त्योहार जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन भगवान महावीर, आखिरी तीर्थंकर, निर्वाण प्राप्त कर गए थे। इसलिए, जैन भक्त भगवान की पूजा करते हैं और दान के कार्यों में भाग लेते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कि यह चातुर्मास काल के अंत का प्रतीक होता है, जिसे हिन्दू साधुओं और मुनियों द्वारा अनुसरण किया जाता है, जिसमें चार महीनों तक अनुपवास और तप किया जाता है। भक्त इस अवधि के अंत को उत्साह और भक्ति से मनाते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनकी आशीर्वाद की मांग करते हैं।
इसके अलावा, यह त्योहार पूर्णिमा के साथ मिलता है, जो हिन्दू धर्म में एक शुभ घटना होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से माना जाता है कि व्यक्ति के पापों को शुद्ध करता है और मोक्ष/Moksha या जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के प्रमुख अनुष्ठान और रीति-रिवाज
पवित्र स्नान करना: सुबह के समय, गंगा, यमुना, गोदावरी, आदि जैसी पवित्र नदियों या अन्य जल स्रोतों में, या कुंडों और तालाबों में पवित्र स्नान करना बड़ी मान्यता प्राप्त है। तीर्थयात्री भोर के समय नदी किनारों पर इकट्ठा होते हैं और इस धार्मिक स्नान के लिए आगे बढ़ते हैं। इसे अपनी आत्मा को शुद्ध करने का माना जाता है।
चाँद देवता की पूजा: कार्तिक पूर्णिमा की पूर्णिमा रात, चाँद की पूजा आभार की एक संकेत के रूप में की जाती है। चावल-खीर, फूल, मिठाई, आदि चाँद को चढ़ाया जाता है। लोग चाँद देवता की पूजा करने के लिए उपवास भी करते हैं।
दीपक जलाना: मिट्टी के तेल के दीपक दिन में जलाए जाते हैं और रात भर जलाए रहते हैं, आमतौर पर तुलसी या पीपल के पेड़ों के पास या मंदिरों और नदी के घाटों पर। दीपकों का माना जाता है कि वे अंधकार और अज्ञान को दूर करते हैं।
दान देना: आहार, वस्त्र, धन आदि को ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को देना एक उदार कृत्य माना जाता है। गायों को भी अपनी सामर्थ्यानुसार दिया जाता है। दिए जाने वाले दान से व्यक्ति को नकारात्मक कार्मिक कर्ज से मुक्ति मिलती है।
गंगा आरती करना: कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा और अन्य पवित्र नदियों के घाटों पर विशेष गंगा आरतियाँ की जाती हैं। इस आरती को देखने से आशीर्वाद प्राप्त होता है
सात्विक आहार खाना: पवित्र हिन्दू इस दिन उपवास और प्रार्थना के बाद दूध, फल, मेवे और मिठाई जैसे सादे शाकाहारी आहार खाते हैं। कुछ लोग उपवास का पालन करते हैं और चाँद को देखने के बाद ही खाते हैं।
कार्तिक स्नान का जश्न मनाना: वाराणसी और हरिद्वार जैसे स्थानों में, हजारों भक्तों के बीच नदी किनारों पर महान स्नान अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। घाटों पर भी विशाल मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर व्रत कैसे रखें How to Observe a Fast on Kartik Purnima 2023
कार्तिक पूर्णिमा 2023 को विशेष रूप से मनाने के लिए, आप उपर्युक्त अनुष्ठानों का पालन कर सकते हैं। इस दिन को आध्यात्मिकता और धर्मिकता के साथ मनाने से आपको आशीर्वाद मिलेगा और आपके जीवन में समृद्धि और खुशी आएगी। यह एक अद्वितीय तरीका है किसी भी हिन्दू श्रद्धालु के लिए इस महत्वपूर्ण दिन को मनाने का।
कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास को हिन्दू धर्म में एक अत्यंत मान्यता से किया जाता है, क्योंकि यह किसी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन में उनकी दिव्य हस्तक्षेप की मांग करने की अनुमति देता है। यहां 2023 में कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास कैसे मनाने के कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं:
शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए दिन की शुरुआत किसी नदी या किसी अन्य पवित्र जलस्रोत में शुद्ध स्नान से करें।
उपवास के दौरान, सात्विक आहार पर ध्यान केंद्रित करें, जो पवित्र, हल्का, और आसानी से पाचनीय होता है। अमांसी व्यंजन, लहसुन, और प्याज का इस्तेमाल न करें। फल, मेवे, और दूध उत्पादों को चुनें।
दिन भर भगवान विष्णु के समर्पित मंत्र और प्रार्थनाएँ पढ़ें। यह प्रथा आपको दिव्य से जुड़े रहने में मदद करेगी और उनकी आशीर्वाद की मांग करेगी।
मंदिर जाएं और भगवान विष्णु की पूजा करें। एक शांत वातावरण बनाने के लिए दीये और अगरबत्ती जलाएं और देवता को फूल चढ़ाएं, जिससे परमात्मा के साथ आपका संबंध बढ़ेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोगों को दान देकर दान के कार्यों में संलग्न होना अत्यधिक शुभ होता है। आप जरूरतमंद लोगों को कपड़े, भोजन या धन का योगदान दे सकते हैं।
प्रसाद के साथ व्रत का समापन करें: शाम को सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु को अर्पित प्रसाद से अपना व्रत खोलें। इस प्रसाद में फल, सूखे मेवे, दूध या अन्य सात्विक भोजन शामिल हो सकता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर क्या करें और क्या न करें
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर उपवास कैसे करें
कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास को हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह किसी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने और अपने जीवन में उनकी दिव्य हस्तक्षेप की मांग करने की अनुमति देता है। यहां हम 2023 में कार्तिक पूर्णिमा पर उपवास कैसे मना सकते हैं, इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश देंगे:
दिन की शुरुआत शुद्धता से
उपवास की शुरुआत कोई भी शुद्ध नदी या पवित्र जलस्रोत में स्नान करके करें, ताकि आपका शरीर और आत्मा शुद्ध हो सके।
सात्विक आहार का पालन
उपवास के दौरान, सात्विक आहार पर ध्यान केंद्रित करें, जो पवित्र, हल्का, और पाचनीय होता है। इसमें अमांसी व्यंजन, लहसुन, और प्याज शामिल नहीं करने चाहिए, जबकि फल, मेवे, और दूध उत्पादों को चुनना चाहिए।
मंत्र और पूजा का महत्व
दिन भर भगवान विष्णु के समर्पित मंत्र और प्रार्थनाएँ पढ़ें, जो आपको दिव्य से जुड़े रहने में मदद करेंगे और उनकी आशीर्वाद की मांग करेंगे।
मंदिर यात्रा
मंदिर जाएं और भगवान विष्णु की पूजा करें। शांत वातावरण बनाने के लिए दीये और अगरबत्ती जलाएं और देवता को फूल चढ़ाएं, जिससे परमात्मा के साथ आपका संबंध बढ़ेगा।
दान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोगों को दान देना अत्यधिक शुभ होता है। आप जरूरतमंद लोगों को कपड़े, भोजन, या धन का योगदान कर सकते हैं।
व्रत का समापन
प्रसाद के साथ व्रत का समापन करें: शाम को सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु को अर्पित प्रसाद से अपना व्रत खोलें। इस प्रसाद में फल, सूखे मेवे, दूध, या अन्य सात्विक भोजन शामिल हो सकता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 पर क्या करें और क्या न करें?
करने योग्य (Dos)
शुद्धिकरण स्नान: उपवास की शुरुआत कोई भी शुद्ध नदी या पवित्र जलस्रोत में स्नान करके करें।
सफेद पारंपरिक कपड़े: साफ-सुथरे, सफेद पारंपरिक कपड़े पहनें।
हल्का शाकाहारी भोजन: स्नान और पूजा के बाद ही हल्का शाकाहारी भोजन करें।
पूजा और आरती: इस दिन पूजा और आरती करें। दीये जलाएं और भगवान को फूल और मिठाइयां चढ़ाएं।
आध्यात्मिक अभ्यास: इस आध्यात्मिक दिन पर मंत्रों का जाप करें और ध्यान करें।
मंदिर यात्रा: मंदिरों के दर्शन करें, पुजारियों और गुरुओं के प्रवचनों में भाग लें।
दान: अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करें।
पूर्णिमा के चंद्रमा के दर्शन: रात्रि के समय पूर्णिमा के चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही व्रत का समापन करें।
न करने योग्य (Don’ts)
मांस, शराब, और तंबाकू: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मांस, शराब या तंबाकू का सेवन नहीं करें।
क्रोध और कठोर वाणी: इस शांतिपूर्ण, पवित्र दिन पर क्रोध और कठोर वाणी से बचें।
झगड़े और उकसाना: उकसाए जाने पर भी झगड़े में पड़ने से बचें।
काले कपड़े: इस दिन चमड़े का सामान और काले कपड़े न पहनें।
इस दिन नाखून, बाल काटने या शेविंग करने से बचें।
चोरी, बेईमानी या अनैतिक कार्य न करें।
निष्कर्ष: नतीजा
हिन्दी कार्तिक पूर्णिमा, जिसे हिन्दू धर्म के साथ-साथ जैन और सिख धर्म में भी गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है, पर्व के दिन विभिन्न पवित्र अनुष्ठान, भगवान विष्णु की पूजा और दान का आयोजन किया जाता है, और यह क्रियाएं पुण्यकारी मानी जाती हैं। अगर आप कार्तिक पूर्णिमा व्रत मनाते हैं और जानना चाहते हैं कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, तो यह पुनः सरलता, विविधता और पूर्वता के साथ आपके लिए ध्यानादि, समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद लेकर आएगा। इस संदेश के माध्यम से हम सभी पाठकों को 2023 की कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं भेजते हैं! कार्तिक पूर्णिमा 2023 की शुभकामनाएं!
नवार्ण मंत्र (Navarna Mantra) का महत्व एव नवार्ण मंत्र जप का विधान
माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है ।
नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है।
यह भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों महाकाली,महालक्ष्मी एवं महासरस्वती की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है ।
नवार्ण मंत्र-Navarna Mantra
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है,जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है—
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है।
1-” ऐं “ -से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
2-” ह्रीं “-से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
3- ” क्लीं “-से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
4- ” चा“- से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
5- ” मुं “-से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
6-” डा “- से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
7- ” यै “-से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
8- ” वि – से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
9- ” चै “-से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
अत: प्रतिदिन 108 बार “ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” नवार्ण मंत्र का जप करें।
उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें।
इस प्रकार “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का 1,25000 बार जप करके,जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।
दशहरा(विजयादशमी) क्यों मनाया जाता है- “why dussera is celebarated?
दशहरा का त्योहार भारत में मनाया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है। यह पर्व विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा का महत्व भगवान राम के जीवन में बड़े महत्वपूर्ण घटना के साथ जुड़ा हुआ है।
इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य असत्य के प्रति सत्य की विजय का प्रतीकित करना है। इसे विजयादशमी के दिन मनाते हैं, जब भगवान राम ने लंका के रावण को वनवास से मुक्ति दिलाई थी।
इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया और असत्य के प्रति सत्य की जीत का प्रतीक दिखाया। इसके अलावा, दशहरा का त्योहार मां दुर्गा की नौ दिन की नवरात्रि के अंत में आयोजित नौवीं रात्रि के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा के दिन भगवान राम की विजय को याद करते हैं और रावण के पुतले को आग में दहन करते हैं, जिससे असत्य के प्रति सत्य की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार भारत में आने वाले परिवार और दोस्तों के साथ मनाया जाता है और विभिन्न प्रकार की परंपराओं और आचरणों के साथ मनाया जाता है।
2022 में विजयदशमी 6 अक्टूबर को था। विजयदशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, हिन्दू परंपराओं का एक त्योहार है जो आमतौर पर पंचांग के अनुसार सितंबर या अक्टूबर में होता है। इसकी तारीख हर साल बदल सकती है।
दशहरा-विजयादशमी कब है– When is Dussehra?
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर की शाम 5.44 पर हो रही है और 24 अक्टूबर को दोपहर 3.14 बजे तक दशमी तिथि रहेगी. उदया तिथि के अनुसार 24 को अक्टूबर दशहरा मनाया जाएगा | उदया तिथि के अनुसार 24 को अक्टूबर दशहरा मनाया जाएगा
दशहरा -विजयादशमीका महत्व– Sigificance of Dussera
विजयदशमी या दशहरा का त्यौहार हिन्दू धर्म में विशेष मान्यता रखता है जो असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। इस त्यौहार से जुड़ीं ऐसी अनेक धार्मिक मान्यताएं है जिसके बारे में हम आपको अवगत कराएंगे।
दशहरा से जुड़ीं ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। वहीँ, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का संहार किया था इसलिए इसे कई स्थानों पर विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा तिथि पर कई राज्यों में रावण की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन देश में कई जगह मेले आयोजित किये जाते है।
दशहरे से 14 दिन पहले तक पूरे भारत में रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें भगवान राम, श्री लक्ष्मण एवं सीता जी के जीवन की लीला दर्शायी जाती है। विभिन्न पात्रों के द्वारा मंच पर प्रदर्शित की जाती है। विजयदशमी तिथि पर भगवान राम द्वारा रावण का वध होता है, जिसके बाद रामलीला समाप्त हो जाती है।
दशहरा-विजयादशमी की पूजा विधि- The worship method of Dussehra.
दशहरा की पूजा सदैव अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
अपने घर के ईशान कोण में शुभ स्थान पर दशहरा पूजन करें।
पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके चंदन का लेप करें|
आठ कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र निर्मित करें।
पश्चात संकल्प मंत्र का जप करें तथा देवी अपराजिता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र द्वारा देवी की प्रतिमा स्थापित करके आह्वान करें।
इसके बाद मां जया को दाईं एवं विजया को बाईं तरफ स्थापित करें और उनके मंत्र “क्रियाशक्त्यै नमः” व “उमाये नमः” से देवी का आह्वान करें।
तीनों देवियों की शोडषोपचार पूजा विधिपूर्वक करें।
शोडषोपचार पूजन के उपरांत भगवान श्रीराम और हनुमान जी का भी पूजन करें।
सबसे अंत में माता की आरती करें और भोग का प्रसाद सब में वितरित करें।
दशहरा -विजयादशमीपर संपन्न होने वाली पूजा- The puja performed on Dussehra.
शस्त्र पूजा: दशहरा के दिन दुर्गा पूजा, श्रीराम पूजा के साथ और शस्त्र पूजा करने की परंपरा है। प्राचीनकाल में विजयदशमी पर शस्त्रों की पूजा की जाती थी। राजाओं के शासन में ऐसा होता था। अब रियासतें नहीं है, लेकिन शस्त्र पूजन को करने की परंपरा अभी भी जारी है।
शामी पूजा: इस दिन शामी पूजा करने का भी विधान है जिसके अंतर्गत मुख्य रूप से शामी वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पूजा को मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में किया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से योद्धाओं या क्षत्रिय द्वारा की जाती थी।
अपराजिता पूजा: दशहरा पर अपराजिता पूजा भी करने की परंपरा है और इस दिन देवी अपराजिता से प्रार्थना की जाती हैं। ऐसा मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए पहले विजय की देवी, देवी अपराजिता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह पूजा अपराहन मुहूर्त के समय की जाती है, साथ आप चौघड़िये पर अपराहन मुहूर्त भी देख सकते हैं।
वर्ष के शुभ मुहूर्तों में से एक दशहरा-विजयादशमी
दशहरा की गिनती शुभ एवं पवित्र तिथियों में होती है, यही कारण है कि अगर किसी को विवाह का मुहूर्त नहीं मिल रहा हो, तो वह इस दिन शादी कर सकता हैं। यह हिन्दू धर्म के साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो इस प्रकार है- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को आधा मुहूर्त माना गया है। यह अवधि किसी भी कार्यों को करने के लिए उत्तम मानी गई है।
दशहरा -विजयादशमीकथा– Dussera Story
अयोध्या नरेश राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्रीराम अपनी अर्धागिनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पर गए थे। वन में दुष्ट रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया।
अपनी पत्नी सीता को दुष्ट रावण से मुक्त कराने के लिए दस दिनों के भयंकर युद्ध के बाद भगवान राम ने रावण का वध किया था। उस समय से ही प्रतिवर्ष दस सिरों वाले रावण के पुतले को दशहरा के दिन जलाया जाता है|जो मनुष्य को अपने भीतर से क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का संदेश देता है।
महाभारत में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव दुर्योधन से जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। उस समय एक शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा था, ओर एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास पर भी रहना पड़ा था।
अज्ञातवास के समय उन्हें सबसे छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन झेलना पड़ता। इसी वजह से अर्जुन ने उस एक वर्ष के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक पेड़ पर छुपा दिया था|
राजा विराट के महल में एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण करके कार्य करने लग गए थे। एक बार जब विराट नरेश के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गायों की रक्षा के लिए सहायता मांगी तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को पराजित किया था।
दशहरा-विजयादशमी पर क्यों होता है शस्त्र पूजन-Why is weapon worship performed on Dussehra?
दशहरा (Dussehra) एक हिन्दू पर्व है जो अश्विन माह की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार, 23 अक्टूबर को यह पर्व पूरे देश में मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से शस्त्र पूजन (Shashtra Puja Dussehra) का विधान है ।
दशहरा को विजय दशमी भी कहा जाता है, और इस दिन मां दुर्गा और भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। इस दिन किए जाने वाले कामों का शुभ फल मिलता है, और यह भी मान्यता है कि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा करनी चाहिए।
जानें किस तरह शुरू हुई ये परंपरा-Know how this tradition began.
दशहरा बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है. मान्यता है| इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी|दशहरे के इस पर्व को विजय दशमी के नाम से भी जानते हैं. साथ ही मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का इसी दिन वध किया था|
रावण के दस सिर किस बात का प्रतीक हैं-What is the symbol of Ravana’s ten heads?
अहंकार का प्रतीक रावण के 10 सिर को अहंकार का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि 10 सिर में 10 प्रकार की बुराइयां छुपी हुई है|
पहला सिर -काम,
दूसरा सिर -क्रोध,
तीसरा सिर -लोभ,
चौथा सिर- मोह,
पांचवा सिर -मद,
छठा सिर- मत्सर,
सातवां सिर -वासना,
आठवां सिर -भ्रष्टाचार,
नौवां सिर -सत्ता, एवं शक्ति का दुरुपयोग ईश्वर से विमुख होना,
दसवां सिर -अनैतिकता और दसवा अहंकार का प्रतीक माना जाता है।
दशहरे-विजयादशमी के बारे में रोचक बाते | Dussehra Facts In hindi
दशहरा का अर्थ: दशहरा एक संस्कृत के शब्द दश हारा से आता है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद ‘सूर्य की हार’ है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यदि भगवान राम ने रावण को नहीं हराया होता, तो सूर्य फिर कभी नहीं उगता।
महिषासुर कथा: महिषासुर राक्षसों और असुरों का एक राजा था, और बहुत शक्तिशाली था। वह निर्दोष लोगों पर अत्याचार करता। उस समय, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सामूहिक शक्तियों द्वारा शक्ति को महिषासुर के बुरे कार्यों को समाप्त करने के लिए बनाया गया था।
देवी दुर्गा की आवश्यकता: पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा को अद्भुत शक्ति की आवश्यकता थी, इसलिए अन्य सभी देवी-देवताओं ने उनकी शक्तियों को उनके पास स्थानांतरित कर दिया। परिणामस्वरूप, वे मूर्तियों के रूप में स्थिर रहे।
नवरात्रि की परंपरा: उत्तर भारत में, नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के बर्तनों में जौ के बीज बोने की परंपरा है। दशहरे के दिन, इन स्प्राउट्स का उपयोग भाग्य के प्रतीक के रूप में किया जाता है। पुरुष उन्हें अपनी टोपी में या कान के पीछे रखते हैं।
दुर्गा का पारिवारिक संयोग: कुछ किंवदंतियों में यह भी उल्लेख किया गया है कि देवी दुर्गा, अपने बच्चों, लक्ष्मी, गणेश, कार्तिक और सरस्वती के साथ कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने जन्मस्थान में आगमन हुवी थी। दशहरे के दिन, वह अपने पति भगवान शिव के पास लौट गयी थी।
दशहरा का पर्व: हिंदू कैलेंडर के 10 वें महीने अश्विन में दशहरा पर्व मनाया जाता है। यह अक्टूबर या नवंबर के आस पास कभी-कभी भी होता है और 2023 में दशहरा Monday, 23 October को मनाया जायेगा।
विजय दशमी: हिंदू धर्म की कुछ उप-संस्कृतियों में, दशहरा को विजय दशमी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है दसवें दिन जीत। इसे दानव राजा महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय के रूप में विजय दशमी के रूप में भी मनाया जाता है।
मैसूर में पूजा: मैसूर में, देवी चामुंडेश्वरी की पूजा दशहरे के दिन की जाती है।
रामलीला: रामलीला द्वारा पूरे देश में नवरात्रि के 10 दिनों को अंकित किया जाता है। दशहरे के अंतिम दिन, भगवान राम द्वारा रावण को पराजित करने का दृश्य सबसे खास होता है। रामलीला के अंत को चिह्नित करने के लिए, रावण का एक पुतला जलाया जाता है।
गोलू उत्सव: तमिलनाडु में, दशहरे के उत्सव को गोलू कहा जाता है। मूर्तियाँ विभिन्न दृश्यों को बनाने के लिए बनाई गई हैं जो उनकी संस्कृति और विरासत को दर्शाती हैं।
दशहरा का आयोजन: दशहरा का पहला भव्य उत्सव 17 वीं शताब्दी में तत्कालीन राजा, वोडेयार के आदेश पर मैसूर पैलेस में हुआ था। तब से, पूरे देश में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय महत्व: आपको जानकर हैरानी होगी की दशहरा केवल भारत में ही नहीं बल्कि बांग्लादेश, नेपाल और मलेशिया में भी मनाया जाता है। यह मलेशिया में एक राष्ट्रीय अवकाश भी होता है। यह इन देशों में समान उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि उनके पास एक बड़ी हिंदू आबादी है।
फसलों का महत्व: दशहरा खरीफ फसलों की कटाई और रबी फसलों की बुवाई का प्रतीक है। यह सभी विश्वासों के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
मौसम का संकेत: दशहरे के मौसम का अंत भी होता है क्योंकि गर्मियों के अंत का समय है और सर्दियों के मौसम का समय है।
दशहरा का संदेश: दशहरा भगवान राम और देवी दुर्गा दोनों की शक्ति को प्रकट करने का प्रतीक है। देवी दुर्गा ने भगवान राम को राक्षस राजा रावण को मारने का रहस्य उजागर किया था।