षटतिला एकादशी

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षटतिला एकादशी

षटतिला एकादशी

षटतिला एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है, जिससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इसके अनुष्ठान से भक्तों को आनंद, शांति, और समृद्धि मिलती हैं। व्रत का उपाय करने वाले भक्त नींदा, अनाहार, और तामसिक भोजन से बचते हैं और पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं।

षटतिला एकादशी का महत्व (Importance of Shattila Ekadashi)

षटतिला एकादशी, हिन्दू पंचांग के अनुसार, फागुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार को ‘षटतिला एकादशी’ के नाम से जाना जाता है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है।

षटतिला एकादशी का आयोजन

षटतिला एकादशी का आयोजन भारतवर्ष में कई स्थानों पर होता है, खासकर गुजरात राज्य में जहां यह एक प्रमुख पर्व है। इस दिन तुलसी के पौधों की पूजा होती है और भक्तगण व्रत और पूजा के बाद भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।

षटतिला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व

षटतिला एकादशी भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मा के शुद्धिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

तिल का महत्व और पुण्य का अधिकारी बनाता है

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, षटतिला एकादशी के दिन तिल के प्रयोग को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस विशेष दिन पर तिल का प्रयोग करने से साधक को रोग, दोष और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसे ‘पापहारिणी’ एकादशी भी कहा जाता है, जिससे पापों का नाश होता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

दान-पुण्य का महत्व

षटतिला एकादशी के दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। इस दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, या धन का दान करने से श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है।

षटतिला एकादशी न केवल एक पर्व है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक सफलता और पुण्य का स्रोत भी है। इस महत्वपूर्ण दिन को ध्यान में रखकर भक्तों को आध्यात्मिक साधना की ओर प्रेरित करना चाहिए।

षटतिला एकादशी तिथि और मुहूर्त

षटतिला एकादशी की तिथि 6 फरवरी को है, जो दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी। ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 5.30 बजे से प्रातः 6.21 बजे तक। अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12.30 बजे से 1.15 बजे तक।

षटतिला एकादशी पर शुभ योग

षटतिला एकादशी के दिन सुबह 8.50 बजे तक व्याघात योग रहेगा। फिर हर्ष योग 7 फरवरी को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक है। ज्येष्ठ नक्षत्र सुबह 7.35 बजे तक है।

षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja Vidhi)

एकादशी का व्रत विधि विधान से करना चाहिए, ताकि व्रती को लाभ हो। षटतिला एकादशी का व्रत रखने वालों को यह निर्देश ध्यान में रखना चाहिए।

पूर्व रात का भोजन: व्रत के दिन से एक दिन पहले रात को भोजन नहीं करें।

सफाई का महत्व: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें।

स्नान और ध्यान: स्नान करके देवी-देवताओं का ध्यान करें।

व्रत का संकल्प: व्रत का संकल्प लें।

भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की विधिवत पूजा शुरू करें।

पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत: देवता को पुष्प, जल, धूप, दीप और अक्षत अर्पित करें।

फल का भोग और आरती: फल का भोग लगाकर आरती करें।

जरूरतमंद को भोजन: इस दिन जरूरतमंद को भोजन कराएं।

व्रत खोलना: अगले दिन व्रत को विधिवत खोलें।

विधि-विधान से उपासना: षटतिला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें। तिल मिलाकर स्नान करना न भूलें, क्योंकि शास्त्रों में इसका विशेष महत्व बताया गया है।

पूजा-स्थल की सफाई: स्नान के बाद पूजा-स्थल की साफ-सफाई करें और साफ-वस्त्र धारण करें।

व्रत का संकल्प: दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें और विधि-विधान से भगवान विष्णु की उपासना करें।

पूजा-अर्चना: भगवान विष्णु को जौ, तिल, गंध, पुष्प, धूप-दीप अर्पित करें।

सहस्रनाम स्तोत्र: भगवान विष्णु के सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।

आरती और समापन: आरती के साथ पूजा को संपन्न करें और व्रत अंत में सफलता से समापन हो।

इन सारी विधियों का पालन करके षटतिला एकादशी के व्रती भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उन्हें आनंद, शांति, और समृद्धि मिलती है। यह विशेष दिन आत्मा के शुद्धिकरण की ओर एक कदम बढ़ाता है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

षटतिला एकादशी व्रत कथा:

पदम पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में एक वृद्ध ब्राह्मणी थीं, जो भगवान के नित्यनेम कर्मों में लगी रहती थीं और अपना अधिक समय भगवान के नाम सिमरण में बिताती रहती थीं। धार्मिक क्रियाओं का पालन करती हुई उन्होंने अनेक व्रत आदि किए और कन्याओं को वस्त्र दान तथा ब्राह्मणों को भूमि दान भी किया। इसके परिणामस्वरूप, वह शुद्ध आत्मा बन गईं, लेकिन उसकी शक्ति निर्बल हो गई थी।

एक दिन, भगवान ने उसका कल्याण करने के लिए साधू बनकर उसके द्वार पर भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने साधू से पूछा कि वह कौन हैं और कहां से आए हैं। साधू के प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलने पर वह गुस्से में चढ़ गईं और मिट्टी का ठेला साधू बनकर खड़े भगवान के भिक्षा पात्र में डाल दिया। इसके अनुसार, वह स्वर्गलोक में जाने का अधिकार प्राप्त कर लिया, लेकिन उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला।

उसने दुःख से परिपूर्ण होकर भगवान से प्रार्थना की और भगवान ने उसे यह सिखाया कि जब देव स्त्रियाएं दरवाजा आएं, तो उनसे षटतिला एकादशी की कथा पूछें और फिर ही दरवाजा खोलें। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया, जिससे उसने षटतिला एकादशी का व्रत जाना। इसके परिणामस्वरूप, उसे रूप, यौवन, तेज, और कांति के साथ ही अन्न, धन, और अनेक प्रकार के भोजन सामग्री की प्राप्ति हुई।

यह व्रत दुर्भाग्य, गरीबी, और कलह-कलेश को दूर करने के लिए जाना जाता है और तिल दान के माध्यम से सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करने में सहायक होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति अधिक संख्या में तिलों का दान करता है, उसे उतने ही अधिक जन्मों तक सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं, प्रभु कृपा से।

षटतिला एकादशी की तिथि क्या है?

षटतिला एकादशी की तिथि 6 फरवरी को है, जो दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी।

षटतिला एकादशी कब मनाई जाएगी उदयातिथि के अनुसार?

उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी।

ब्रह्म मुहूर्त का समय क्या है?

ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 5.30 बजे से प्रातः 6.21 बजे तक है।

अभिजीत मुहूर्त कब है?

अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.30 बजे से 1.15 बजे तक है।

षटतिला एकादशी पर शुभ योग कब होगा?

षटतिला एकादशी के दिन सुबह 8.50 बजे तक व्याघात योग रहेगा।

षटतिला एकादशी पूजा की विधि क्या है?

षटतिला एकादशी पूजा करने के लिए निर्देशों की यहाँ ध्यान में रखें।

पूर्व रात का भोजन क्या होना चाहिए?

व्रत के दिन से एक दिन पहले रात को भोजन नहीं करें।

सफाई का महत्व क्या है?

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफाई करें।

व्रत का संकल्प कैसे लें?

व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा शुरू करें।

षटतिला एकादशी के दिन की उपासना कैसे करें?

सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें और तिल मिलाकर स्नान करें।

षटतिला एकादशी का क्या महत्व है?

षटतिला एकादशी व्रत दुर्भाग्य, गरीबी, और कलह-कलेश को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।

षटतिला एकादशी के व्रत से क्या लाभ होता है?

षटतिला एकादशी के व्रत से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और आध्यात्मिक उन्नति में मदद होती है।

षटतिला एकादशी के व्रत में तिल दान का क्या महत्व है?

जो व्यक्ति अधिक संख्या में तिलों का दान करता है, उसे अधिक जन्मों तक सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।

षटतिला एकादशी के व्रत से कैसे मिला अनुभव?

षटतिला एकादशी के व्रती भक्तों को रूप, यौवन, तेज, और कांति के साथ ही अन्न, धन, और अनेक प्रकार के भोजन सामग्री की प्राप्ति हुई है।

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