Vaikuntha Chaturdashi

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वैकुण्ठ चतुर्दशीVaikuntha Chaturdashi

वैकुण्ठ चतुर्दशी, जिसे हरिहर का मिलन भी कहा जाता है, भगवान शिव और विष्णु के आपसी मिलन को संकेत करती है। इस दिन विष्णु और शिव के पुजारी इस त्योहार को बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह त्योहार दिवाली के समान ही हरिहर के मिलन का जश्न मनाया जाता है। खासकर, इसे उज्जैन और वाराणसी में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, उज्जैन में एक विशेष आयोजन होता है, जिसमें भगवान की विशेष सवारी शहर के बीच से निकलकर महाकालेश्वर मंदिर तक पहुँचती है। उज्जैन में इस दिन उत्सव का आदान-प्रदान सड़कों पर होता है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी को कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन भक्त एक साथ भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं। यही वह दिन है जब भगवान विष्णु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष सम्मान प्राप्त होता है, और मंदिर को वैकुण्ठ धाम की भावना से सजाया जाता है। भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे को तुलसी पत्तियों और बेलपत्रों के साथ पूजा करते हैं।

वैकुण्ठ चतुर्दशी को महाराष्ट्र में मराठे समुदाय भी बड़े धूमधाम से मनाता है। महाराष्ट्र में वैकुण्ठ चतुर्दशी का आयोजन शिवाजी महाराज और उनकी माता जिजाबाई ने किया था।

वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा और मुहूर्त- Vaikuntha Chaturdashi Puja and Muhurat.

वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। अगर आप संपूर्ण विधिविधान और शुभ मुहूर्त में पूजा करते हैं, तो आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अपने समस्त कार्यों की सिद्धि के लिए आप भगवान विष्णु के सहस्रनाम की पूजा के साथ रुद्राभिषेक पूजा जरूर करवाएं।

वैकुण्ठ चतुर्दशी                                                                25 नवंबर 2023

वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिताकाल                     23:45 से 00:34, 26 नवंबर 2023

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ                                      25 नवंबर, 2023 को 17:22

चतुर्दशी तिथि समाप्त                                     26 नवंबर, 2023 को 15:53

वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व और मणिकर्णिका स्नान- The significance of Vaikuntha Chaturdashi and Manikarnika Snan

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाला यह त्योहार शैव (भगवान शिव के उपासक) और वैष्णवों दोनों के लिए समान रूप से पवित्र माना जाता है। इस दिन दोनों भगवानों की पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व ऋषिकेश, गया, वाराणसी सहित देश भर में बड़ी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मृत्यु के पश्चात वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी पर निशिता मुहूर्त के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, जो मध्यरात्रि का समय होता है। इस दिन भगवान विष्णु के हजार नाम, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए श्रीहरि विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। हालांकि, यह पूजा दिन के दो अलग-अलग समय पर की जाती है। भगवान विष्णु के भक्त निशिता मुहूर्त में पूजा करना पसंद करते हैं, जो मध्यरात्रि है। जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदय मुहूर्त में पूजा करना पसंद करते हैं, सूर्योदय से पहले का समय होता है। शिव भक्तों के लिए, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदय के दौरान सुबह का स्नान बहुत महत्वपूर्ण है और इस दिन की पवित्र डुबकी की को कार्तिक चतुर्दशी पर मणिकर्णिका स्नान के रूप में जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।

पौराणिक कथा- Mythological Story

वैकुण्ठ चतुर्दशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी आए थे। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्प से भगवान शंकर के पूजन का संकल्प लिया। भगवान विष्णु जब श्री विश्वनाथ जी के मंदिर में पूजन करने लगे, तो शिवजी ने भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।

भगवान विष्णु ने एक हजार पुष्प कमल भेंट करने का संकल्प लिया था, जब उन्होंने देखा कि एक कमल कम हो गया है, तो वे विचलित हो उठे। तभी उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल पुष्प के ही समान हैं। इसीलिए मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। इस विचार के बाद भगवान श्री हरि विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने के लिए प्रस्तुत हुए।

भगवान विष्णु की इस अगाध भक्ति से भगावन शिव प्रसन्न हो गए, वह तुरंत ही वहां पर प्रकट हुए और श्रीहरि विष्णु से बोले- ‘हे विष्णु! तुम्हारे समान इस पूरे संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। इसलिए आज मैं तुम्हें वचन देता हूं कि इस दिन जो भी तुम्हारी पूजा करेगा, वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करेगा।

आज का यह दिन ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाएगा। इसके अलावा भगवान शिव ने प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु को करोड़ों सूर्य की कांति (तेज) के समान वाला सुदर्शन चक्र प्रदान किया। इसी कारण से ऐसा माना जाता है कि इस दिन मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, तो वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित कर लेता है।

इसके बाद देवर्षि नारद पूरे पृथ्वी लोक का भ्रमण कर वैकुण्ठ धाम पहुंचे, तो उनके चेहरे पर एक सवाल दिख रहा था। जिसे भांपते हुए श्रीहरि विष्णु ने पुछ लिया- ऋषिवर आपके चेहरे पर मुझे एक प्रश्न नजर आ रहा है, कृपया बताएं आप क्या पूछना चाहते हैं।

नारद जी ने तुरंत ही कहा कि भगवन आपके अनन्य भक्त हैं, जिनमें से कई दिन रात आपका नाम जपते हैं, जिन्हें आसानी से वैकुण्ठ प्राप्त हो जाता है। लेकिन, कुछ लोग है जो दिन रात आपका नाम जपने में असमर्थ है, क्या उन्हें वैंकुंठ प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है। इसके जबाव में श्री हरि विष्णु ने कहा कि जो भी व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी का उपवास करेगा, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होगी। ऐसा माना जाता है कि तभी से वैकुण्ठ चतुर्दशी के इस व्रत का पालन किया जाने लगा है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा- Vaikuntha Chaturdashi Story

धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वह गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी। कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था। इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया।

तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा। अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।

वैकुण्ठ चतुर्दशी को भारतीय परंपराओं में एक पवित्र दिन माना गया है, जो कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है, क्योंकि दोनों ही देवताओं का वैकुण्ठ चतुर्दर्शी से गहरा संबंध है। अन्यथा, ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है। वाराणसी के अधिकांश मंदिर वैकुण्ठ चतुर्दशी मनाते हैं। वाराणसी के अलावा, वैकुण्ठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में मनाई जाती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पवित्र त्योहार इस साल 25 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। वैकुण्ठ चतुर्दशी के महत्व को समझना बहुत जरूरी है|

वैकुण्ठ चतुर्दशी को कैसे करें पूजन- Pooja Procedure of Vaikunth Chaturdashi

वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा करने के लिए आपको वैदिक विधि का ध्यान रखना आवश्यक है। इस पवित्र दिन पर आपको ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद आप व्रत का संकल्प लें। दिनभर में आप थोड़ बहुत फलाहार कर सकते हैं, इसके अलावा किसी भी प्रकार के अन्न का सेवन न करें। इसके बाद रात के समय निशिता मुहूर्त में श्रीहरि विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करें।

भगवान शिव को भी कमल का फूल के साथ सपेद चंदन, भोग आदि लगाएं। घी का दीपक और धूप जलाने के बाद शिव जी और विष्णु जी के नामों का अच्छी तरह से उच्चारण करें। पूजा करने के लिए आप इस मंत्र का उच्चारण करें…

Vaikunth Chaturdashi Pooja Mantra

विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।

वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।

इस दिन अपने निकट के किसी विष्णु अथवा शिव मंदिर में जाकर वहां भगवान को फल, फूल, माला, धूप, दीपक आदि समर्पित करें। अपनी श्रद्धा के अनुसार उनके मंत्र का जप करें अथवा भगवान विष्णु के महामंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय तथा भगवान शिव के महामंत्र ॐ नम: शिवाय का जप अधिकाधिक जप करें। पूजा के बाद यथाशक्ति दान, पुण्य आदि दें और भगवान से मनोकामना पूर्ति का वरदान मांगे।

रात को श्रीहरि विष्णु की पूजा के पश्चात दूसरे दिन सुबह अरुणोदय मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद उपवास खोलें। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पवित्र व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता का प्रतीक माना गया है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी हमारे धर्म में पवित्र तिथि माना गया है है। धर्मिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा, श्रीहरि विष्णु, देवाधिदेव भगवान शंकर आदि ने इस तिथि को परम पुण्यदायी बताया है। इस पवित्र दिन पर गंगा स्नान और शाम के समय दीपदान करने को विशेष महत्वपूर्ण बताया गया है।

पूजा करने के लाभ-Benefits of Pooja

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इस दिन दान और जप करने से दस यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो, तो यह महाकार्तिकी होती है। वहीं अगर भरणी नक्षत्र हो तो वैकुण्ठ चतुर्दशी विशेष फलदायी होती है और रोहिणी नक्षत्र में आने पर इसका फल और भी अच्छा मिलता है।

 ऐसा माना जाता है कि एक बार देवऋषि नारद जी भगवान श्रीहरि विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पाने का मार्ग पूछा था। जिसके जवाब में श्री विष्णु जी कहते हैं कि जो भी वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन व्रत रखते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं। भगवान विष्णु बताते हैं कि इस पवित्र दिन के शुभ अवसर पर जो भी उनका पूजन करता है, वह वैकुण्ठ को प्राप्त करता है।

ऐसी भी मान्यता है कि वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन वैकुण्ठ लोक के द्वार खुले रहते हैं। इस व्रत की पूजा के बाद कथा सुनने को भी आवश्यक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर आप वैकुण्ठ चतुर्दशी को कथा का श्रवण करते हैं, तो आपके सारे पाप नष्ट हो जाता हैं।

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