द्वादश ज्योतिर्लिंग( Dwadash Jyotirling )
भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है, पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 12 स्थानों पर जो शिवलिंग मौजूद हैं उनमें ज्योति के रूप में स्वयं भगवान् शिव विराजमान हैं, यही कारण है कि इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं के सभी पाप दूर हो जाते हैं।
1.सोमनाथ ज्योतिर्लिंग- Somnath Jyotirling (गुजरात)
गुजरात के सौराष्ट्र में अरबसागर के तट पर स्थित है, देश का पहला ज्योतिर्लिंग जिसे सोमनाथ के नाम से जाना जाता है, शिव पुराण के अनुसार जब चंद्रमा को प्रजापति दक्ष ने क्षय रोग का श्राप दिया था, तब इसी स्थान पर शिवजी की पूजा और तप करके चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाई थी, ऐसी मान्यता है कि स्वयं चंद्रदेव ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित है और इसका इतिहास बहुत प्राचीन है।सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। अनुसंधान के अनुसार, यहां पर पहला सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महाभारत के समय में बनाया गया था। इस ज्योतिर्लिंग का नाम भगवान चंद्रमा के नाम से है, जिन्होंने इस जगह पर अपनी पूजा की थी।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का प्राचीन मंदिर भगवान शिव के ध्यान केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण था। इस मंदिर का निर्माण पहली बार राजा भीमदेव ने १२१७ में करवाया था। इसके बाद से, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का मंदिर कई बार नष्ट हो चुका है और फिर से पुनः निर्मित किया गया है।सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास अत्यंत विशिष्ट है। इसका अध्ययन करने वाले इतिहासकार इसे भारतीय संस्कृति और धर्म की महत्वपूर्ण धारा के रूप में मानते हैं।
इस मंदिर के पुनर्निर्माण की वास्तविक कहानी कुछ और है। सोमनाथ मंदिर की निर्माण का कार्य भारतीय इतिहास के विभाजन के समय में अधिक ध्यान का केंद्र बन गया था। 1026 ईसा पूर्व में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और मंदिर को नष्ट कर दिया था। फिर इसे 1169 में पुनः बनाया गया था।सोमनाथ मंदिर का इतिहास इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाता है। यहां शिव पूजा के लिए बहुत बड़ा महालय होता है और हजारों श्रद्धालु यहां पर पहुंचते हैं शिवरात्रि और महाशिवरात्रि जैसे धार्मिक उत्सवों में।यह स्थान हिंदू धर्म के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसकी यात्रा विशेषतः महाशिवरात्रि पर बड़ी धूमधाम से की जाती है।
स्थान: वेरावळ, गुजरात
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (सोमनाथ)
प्रसिद्ध:
चंद्रदेव द्वारा स्थापित
समुद्र किनारी स्थित
ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम
मंदिर:
6वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 2-3 घंटे लगते हैं
सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
चंद्रदेव ने क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की
भगवान शिव प्रसन्न हुए और ज्योतिर्लिंग स्थापित किया
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
रोगों से मुक्ति
अन्य जानकारी:
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है।
हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
सावन में कांवर यात्रा के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
2.मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग- Mallikarjun Jyotirling (आंध्र प्रदेश)
आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं और इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है जो भारत के दक्षिण भाग में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग अग्नि और पर्वत की देवता के रूप में विशेष रूप से पूजित होता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग अपनी पूर्व ध्वारिका नगरी में स्थित है, जिसे आज अजंता और एल्लोरा के पास में जाने वाली गोपुर ध्वारिका कहा जाता है।मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा बहुत ही प्राचीन है और महाभारत काल के दौरान इसका उल्लेख किया गया है। एक विशेष कथा के अनुसार, पंचपांडवों के अनुसार यहां एक राजा था जिसका नाम राजा कुंजरवाहन था। उन्होंने अपनी पत्नी पाल्लवी के साथ चार संतान को उत्पन्न किया, लेकिन सभी चारों संतानों को शिवभक्त बनाने में वे निष्फल रहे।
एक दिन, पाल्लवी ने पुत्र बनाने के लिए प्रार्थना की, जिसमें वे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के पास गईं और भगवान शिव को प्रार्थना की कि उन्हें एक संतान की दीजिए। शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें एक बेटी के रूप में वरदान दिया। उनकी बेटी का नाम ब्राह्मी था और उन्होंने एक शिव मंदिर की स्थापना की जो आज भी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है।मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने का माना जाता है कि भक्त शिव के आशीर्वाद से शक्ति, समृद्धि और धन की प्राप्ति करते हैं। यहां प्राचीन समय से ही परंपरागत रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है और ज्योतिर्लिंग की पूजा विशेष उत्सवों के साथ की जाती है।
स्थान: श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (मल्लिकार्जुन) और माता पार्वती (भ्रामरांबिका)
प्रसिद्ध:
दक्षिण का कैलाश
12 ज्योतिर्लिंगों में से 5वां ज्योतिर्लिंग
पवित्र कृष्णा नदी के तट पर स्थित
मंदिर:
9वीं शताब्दी में निर्मित
द्रविड़ शैली
मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 3-4 घंटे लगते हैं
सुबह 4:30 बजे से रात 10:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
भगवान शिव ने पार्वती से विवाह करने के बाद यहां निवास किया
मल्लिकार्जुन का अर्थ है ‘मल्लिका’ (पार्वती) और ‘अर्जुन’ (शिव)
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों से मुक्ति
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग- Mahakaleshwar Jyotirling (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग। ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जहाँ रोजाना होने वाली भस्म आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के मध्य भाग में स्थित है और महाकाल मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाकाल या भगवान शिव का एक प्रमुख स्थान है और यहां शिव की पूजा विशेष आदर्श और श्रद्धा के साथ की जाती है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को उज्जैन शहर में स्थित महाकाल मंदिर के अंदर पाया जाता है।महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा बहुत ही प्राचीन है और पुराणों के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक युद्ध हुआ था कि कौन उनमें सबसे महत्वपूर्ण है। युद्ध को देखते हुए भगवान शिव ने एक शिव लिंग की रचना की और उन्होंने कहा कि जो उस लिंग के पहले पहुंचेगा वहीं उन्हें पूजा का फल प्राप्त होगा। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा लिंग के खोज में निकले, लेकिन भगवान ब्रह्मा जल्दी ही घबराकर वापस आ गए क्योंकि वे लिंग के ऊपर कुछ भी नहीं पाए। वहीं भगवान विष्णु ने भी लिंग के नीचे तक जाकर फिर भी कुछ नहीं पाया।
इसके बाद भगवान शिव आकाश से अपने तीखे त्रिशूल की मदद से प्रकट हुए और लिंग को स्थानीय पहाड़ी के नीचे स्थापित किया। लिंग की यह स्थापना महाकाल नामक पहाड़ी के नीचे हुई, और इसी कारण से इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष, शांति, और शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहां प्रतिदिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर भक्तों की संख्या बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है।
स्थान: उज्जैन, मध्य प्रदेश
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (महाकाल)
प्रसिद्ध: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
ज्योतिर्लिंगों में सबसे दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव का निवास स्थान
मंदिर:
8वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
5 मंदिरों का समूह
दर्शन: दर्शन के लिए 3-4 घंटे लगते हैं
सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के बाद यहां विश्राम किया
महाकाल का अर्थ है ‘महा’ (बड़ा) और ‘काल’ (समय)
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
रोगों से मुक्ति
4.ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग- Omkareshwar Jyotirling (मध्य प्रदेश)
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है और नर्मदा नदी के किनारे पर्वत पर स्थित है, मान्यता है कि तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं तभी उनके सारे तीर्थ पूरे माने जाते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है जो महाराष्ट्र के काली जिले में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है और इसे विशेष आदर्श और भक्ति के साथ पूजा जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष, शांति, और आनंद की प्राप्ति होती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा बहुत ही प्राचीन है और पुराणों के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच एक युद्ध हुआ था कि कौन उनमें सबसे महत्वपूर्ण है। उस समय भगवान शिव ने एक लिंग का रूप धारण किया, जिसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। शिवलिंग के प्राप्त होने के बाद, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा शिव की पूजा करने में लग गए और यही कारण है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव का प्रमुख स्थान माना जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के साथ ही शिव का ध्यान और पूजन विशेष प्रकार से किया जाता है। यहां प्रतिदिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर भक्तों की संख्या बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा, आशीर्वाद, और महान शक्ति का अनुभव होता है।
स्थान: ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (ओंकारेश्वर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से पांचवा ज्योतिर्लिंग
नर्मदा नदी के बीच स्थित
ॐ के आकार का द्वीप
मंदिर:
9वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
2 मंदिरों का समूह: ओंकारेश्वर और अमरेश्वर
दर्शन:
दर्शन के लिए 2-3 घंटे लगते हैं
सुबह 6:30 बजे से रात 12:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
भगवान विष्णु ने ‘ॐ’ का उच्चारण किया, जिससे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ
ओंकारेश्वर का अर्थ है ‘ॐ’ और ‘ईश्वर’
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों से मुक्ति
5.केदारनाथ ज्योतिर्लिंग-Kedarnath Jyotirling (उत्तराखण्ड)
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में अलखनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर केदार नाम की चोटी पर स्थित है, यहाँ से पूर्वी दिशा में श्री बद्री विशाल का बद्रीनाथधाम मंदिर है, मान्यता है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी और निष्फल है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक स्थल है जो हिमाचल प्रदेश के गर्हवाल जिले में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और यहां भगवान शिव की पूजा और आराधना की जाती है। केदारनाथ मंदिर को उत्तराखंड के बाद की सबसे ऊँची स्थानीयता वाले मंदिरों में गिना जाता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा अत्यंत प्राचीन है और पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शिव के आज्ञानुसार एक प्रतिभासी राजा ने केदार क्षेत्र में तपस्या की थी। उन्होंने शिव का ध्यान किया और शिव ने उनके तपस्या को प्रसन्नता प्रदान की। इसके बाद भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगा कि वे ज्योतिर्लिंग का स्थापना करें और इस प्राचीन स्थल को भगवान शिव के प्रमुख तीर्थों में शामिल करें।केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष, शांति, और शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहां प्रतिदिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर भक्तों की संख्या बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा, आशीर्वाद, और महान शक्ति का अनुभव होता है।
स्थान: केदारनाथ, उत्तराखंड
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (केदारनाथ) प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से छठा ज्योतिर्लिंग
हिमालय में स्थित
चार धामों में से एक
मंदिर:
8वीं शताब्दी में निर्मित
कत्यूरी शैली
6 मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 4-5 घंटे लगते हैं
अप्रैल से नवंबर तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए यहां भगवान शिव की तपस्या की
केदारनाथ का अर्थ है ‘केदार’ (भस्म) और ‘नाथ’ (भगवान)
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों से मुक्ति
6.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग-Bheemashankar Jyotirling (महाराष्ट्र)
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र में पूणे से करीब 100 किलोमीटर दूर डाकिनी में स्थित है, यहाँ स्थित शिवलिंग काफी मोटा है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है और यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और यहां भगवान शिव की पूजा और आराधना की जाती है। यह ज्योतिर्लिंग सहज और आत्मनिर्भरता की भविष्यवाणी करता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को आत्मनिर्भरता, सहजता, और शक्ति की प्राप्ति होती है। यहां प्रतिदिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर भक्तों की संख्या बड़े पैमाने पर बढ़ जाती है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा, आशीर्वाद, और महान शक्ति का अनुभव होता है।
स्थान: सह्याद्री पर्वत, सह्याद्री पर्वत, पुणे, महाराष्ट्र
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (भीमाशंकर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से छठा ज्योतिर्लिंग
सह्याद्री पर्वत में स्थित
भीमा नदी का उगम स्थान
मंदिर:
18वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
5 मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 2-3 घंटे लगते हैं
सुबह 6 बजे से रात 12:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
भगवान शिव ने राक्षस भीमा का वध किया और यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए
भीमाशंकर का अर्थ है ‘भीमा’ (राक्षस) और ‘शंकर’ (भगवान शिव)
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
शत्रुओं पर विजय
7.विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग Vishwanath Jyotirling (उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर जिसे धर्म नगरी काशी के नाम से जाना जाता है, यहाँ पर गंगा नदी के तट पर स्थित है बाबा विश्वनाथ का मंदिर। जिसे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है, ऐसी मान्यता है कि कैलाश छोड़कर भगवान् शिव ने यहीं अपना स्थाई निवास बनाया था।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित है और इसका स्थान उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में स्थित है। विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव की प्रमुख आराध्या रूपों में से एक माना जाता है।विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व बहुत अधिक है और इसे भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यहाँ पर हजारों शिव भक्त वाराणसी आते हैं और विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की दर्शन करते हैं। इसका भव्य स्थान और धार्मिक महत्व के कारण यहाँ पर दर्शनार्थियों की भी भारी भीड़ आती है।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में भी उल्लेख किया गया है। इस स्थान को महत्वपूर्ण स्थानों में से एक माना जाता है और यहाँ पर आने वाले शिव भक्तों को शिव के आसन के समीप बैठकर पूजा करने का अवसर मिलता है।विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए वाराणसी जाने वाले शिव भक्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहाँ पर धार्मिक और परंपरागत वातावरण के साथ-साथ पर्यटकों को भी शांति और आनंद का अनुभव मिलता है।
स्थान: वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (विश्वनाथ)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग
गंगा नदी के तट पर स्थित
काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित
मंदिर:
18वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
3 मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 3-4 घंटे लगते हैं
सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के अहंकार को चूर करने के लिए विशाल ज्योतिर्लिंग का रूप धारण किया
विश्वनाथ का अर्थ है ‘विश्व’ (ब्रह्मांड) और ‘नाथ’ (भगवान)
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
8.त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग-Tramyakeshwar Jyotirling (महाराष्ट्र)
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है, गोदावरी नदी के किनारे यह मंदिर काले पत्थरों से बना है, शिवपुराण में वर्णन है कि गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना पर भगवान् शिव ने इस स्थान पर निवास करने का निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भारतीय धर्म में महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है, जो कि भगवान शिव के प्रमुख आराध्य रूपों में से एक माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबक नगर में स्थित है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास बहुत ही प्राचीन है और इसे महाभारत काल के काव्य महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। इस स्थान को शिवपुराण में भी महत्वपूर्ण स्थानों में से एक बताया गया है।त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास नासिक स्थित है और यहाँ पर भगवान शिव की विशेष पूजा और अर्चना होती है। इस स्थान को धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण शिव भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ पर विशेष धार्मिक आयोजन और पूजा-अर्चना की जाती है जो शिव भक्तों को आत्मिक शांति और संतोष का अनुभव कराती है।त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास आने वाले भक्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है और यहाँ पर भगवान शिव की आराधना और पूजा करने का अवसर मिलता है। इसके अलावा, यहाँ के प्राचीन और धार्मिक महत्व के कारण पर्यटकों की भी भारी भीड़ आती है जो शिव की कृपा और आशीर्वाद का लाभ लेने आते हैं।
स्थान: त्र्यंबकेश्वर, नाशिक, महाराष्ट्र
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (त्र्यंबकेश्वर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
गोदावरी नदी का उद्गम स्थल
ब्रह्मगिरि पर्वत पर स्थित
मंदिर:
3000 वर्ष पुराना
हेमाडपंथी स्थापत्यशैली
त्रिकाल पूजा
दर्शन:
दर्शन के लिए 2-3 घंटे लगते हैं
सुबह 5:30 बजे से रात 12:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
त्र्यंबक का अर्थ है ‘तीन नेत्रों वाला’
भगवान शिव ने गौतम ऋषि की प्रार्थना पर त्र्यंबकेश्वर नाम से यहां निवास किया
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों से मुक्ति
9.वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग Vaidyanath Jyotirling (झारखंड)
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है, यहाँ के मंदिर को वैद्यनाथधाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि एक बार रावण ने तप के बल से शिवजी को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में व्यवधान आ जाने से शर्त के अनुसार शिवजी यहीं स्थापित हो गए।
स्थान: देवघर, झारखंड
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (बैद्यनाथ)
प्रसिद्ध:
रावण द्वारा स्थापित
रोगों से मुक्ति
मनोकामना पूर्ति
सावन में कांवर यात्रा
मंदिर:
5वीं शताब्दी में निर्मित
नागर शैली
22 मंदिरों का समूह
दर्शन:
दर्शन के लिए 3-4 घंटे लगते हैं
सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न कर ज्योतिर्लिंग प्राप्त किया
रावण लंका ले जाते समय रावण को लघुशंका हुई
रावण ने ज्योतिर्लिंग एक ग्वाला को सौंप दिया
ग्वाला ज्योतिर्लिंग को रखने में असमर्थ था
ज्योतिर्लिंग भूमि में स्थापित हो गया
महत्व:
रोगों से मुक्ति
मनोकामना पूर्ति
मोक्ष प्राप्ति
अन्य जानकारी:
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है।
हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
सावन में कांवर यात्रा के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
10.नागेश्वर ज्योतिर्लिंग Nageshwar Jyotirling (गुजरात)
नागेश्वर मंदिर गुजरात मे बड़ौदा क्षेत्र में गोमती-द्वारका के करीब स्थित है, धार्मिक पुराणों में भगवान् शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। कहते हैं कि भगवान् शिव की इच्छा अनुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नामकरण किया गया है।
स्थान: द्वारका, गुजरात
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (नागेश्वर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
द्वारकाधीश मंदिर से 17 किमी दूर
स्वयंभू शिवलिंग
मंदिर:
5000 वर्ष पुराना
नागर शैली
गर्भगृह में 3 शिवलिंग
दर्शन:
दर्शन के लिए 1-2 घंटे लगते हैं
सुबह 6:30 बजे से रात 12:30 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
नागेश्वर का अर्थ है ‘नागों का ईश्वर’
दारुका नामक राक्षसी की रक्षा के लिए भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
11.रामेश्वर ज्योतिर्लिंग Rameshwar Jyotirling (तमिलनाडु)
भगवान् शिव का 11 वां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान में है। ऐसी मान्यता है कि रावण की लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान् राम ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वही रामेश्वर के नाम से विश्व विख्यात हुआ।
स्थान: रामेश्वरम, तमिलनाडु
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (रामेश्वर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
चार धामों में से एक
रामेश्वरम द्वीप पर स्थित
मंदिर:
17वीं शताब्दी में निर्मित
द्रविड़ शैली
22 स्तंभों वाला विशाल मंडप
दर्शन:
दर्शन के लिए 2-3 घंटे लगते हैं
सुबह 5 बजे से रात 12 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां शिवलिंग स्थापित किया
रामेश्वर का अर्थ है ‘राम का ईश्वर’
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों से मुक्ति
12.घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग Ghrdeshwar Jyotirling (महाराष्ट्र)
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
स्थान: वेरूळ, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
मान्यता: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग
मुख्य देवता: भगवान शिव (घृष्णेश्वर)
प्रसिद्ध:
12 ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग
दौलताबाद से 11 किमी दूर
एलोरा गुफाओं के पास स्थित
मंदिर:
18वीं शताब्दी में निर्मित
हेमाडपंथी शैली
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित
दर्शन:
दर्शन के लिए 1-2 घंटे लगते हैं
सुबह 6 बजे से रात 12 बजे तक खुला
आवास:
धर्मशालाएं और होटल उपलब्ध
यातायात:
हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा
कथा:
घृष्णेश्वर का अर्थ है ‘दयालु’
सुधर्मा नामक ब्राह्मण ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी
भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र रत्न प्रदान किया
महत्व:
मोक्ष प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं– Dwadash Jyotirling
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥1
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥2
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥3
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥4
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥5
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥6
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥7
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥8
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥9
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥10
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥11
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥12
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥13
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं संपूर्णम् ॥