जीवनोपयोगी कुछ आवश्यक बातें-Tips for Life

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जीवनोपयोगी कुछ आवश्यक बातें-Tips for Life

Tips for Life

  1. देवपूजा पूरब या उत्तर मुख होकर और पितृपूजा दक्षिण मुख होकर करनी चाहिये।
  2. ताँबा मंगलस्वरूप, पवित्र एवं भगवान् को बहुत प्रिय है। ताँबे के पात्र में रखकर जो वस्तु भगवान् को अर्पण की जाती है, उससे भगवान् को बड़ी प्रसन्नता होती है। इसलिये भगवान् को जल आदि वस्तुएँ ताँबे के पात्र में रखकर अर्पण करनी चाहिये।
  3. सदा पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिये। उत्तर या पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से आयु क्षीण होती है तथा शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
  4. पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या प्राप्त होती है। दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती है। पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता होती है। उत्तर की तरफ सिर करके सोने से हानि तथा मृत्यु होती है अर्थात् आयु क्षीण होती है।
  5. बाँस या पलाश की लकड़ी पर कभी नहीं सोना चाहिये।
  6. दिन में और सूर्योदय के बाद सोना आयु को क्षीण करने वाला है। प्रातःकाल और रात्रि के आरम्भ में भी नहीं सोना चाहिये।
  7. भोजनं सदा पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिये।
  8. परोसे हुए अन्न की निन्दा नहीं करनी चाहिये। वह स्वादिष्ट हो या. न हो, प्रेम से भोजन कर लेना चाहिये। जिस अन्न की निन्दा की जाती . है, उसे राक्षस खाते हैं।
  9. भोजन करते समय मौन रहना चाहिये।
  10. अधिक भोजन करना आरोग्य, आयु, स्वर्ग और पुण्य का नाश करने वाला तथा लोक में निन्दा कराने वाला है। इसलिये अति भोजन का परित्याग करना चाहिये।
  11. थोड़ा भोजन करने वाले को छः गुण प्राप्त होते हैं- आरोग्य, आयु, बल और सुख तो मिलते ही हैं, उसकी सन्तान सुन्दर होती है तथा ‘यह बहुत खाने वाला है’ ऐसा कहकर लोग उसपर आक्षेप नहीं करते।
  12. खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिये।
  13. जो एक हाथ से प्रणाम करता है, उसके जीवन भर का किया हुआ अ पुण्य निष्फल हो जाता है। पैर हमेशा दोनों हाँथों से छूना चाहिये।
  14. किसी भी प्राणी के ऊपर से लाँघकर नहीं जाना चाहिये।
  15. किसी भी शुभ या अशुभ वस्तु को न तो लाँघे और न उस पर पैर ही रखे।
  16. आचार्य, पिता, माता और बड़ा भाई-इनका दुःखी होकर भी कभी अपमान न करे। आचार्य परमात्मा की मूर्ति, पिता ब्रह्मा की मूर्ति, माता पृथ्वी की मूर्ति और भाई अपनी ही मूर्ति है।
  17. जो स्त्रियाँ घर के बर्तनों को सुव्यवस्थित रूप से न रखकर इधर-उधर बिखेरे रहती है, सोच-समझकर काम नहीं करतीं, सदा अपने पति के प्रतिकूल ही बोलती हैं, दूसरों के घरों में घूमने-फिरने में रुचि रखती हैं और लज्जा को सर्वथा छोड़ देती हैं, उन्हें. लक्ष्मी त्याग देती हैं।
  18. विवाह और विवाद सदा समान व्यक्तियों से ही होना चाहिये।
  19. स्त्री को चाहिये कि वह धोबिन, कुलटा, अधम और कलहप्रिय स्त्रियों को कभी अपनी सखी न बनाये।
  20. स्त्रियों का अपने भाई-बन्धुओं के यहाँ अधिक दिनों तक रहना उनकी कीर्ति, शील तथा पातिव्रत्य-धर्म का नाश करने वाला होता है।
  21. रात्रि में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिये।
  22. कोई अतिथि घर पर आ जाय तो उसको प्रेमभरी दृष्टि से देखे। मन से उसका हित-चिन्तन करे। मीठी वाणी बोलकर उसे सन्तुष्ट करे। जब वह जाने लगे, तब कुछ दूर तक उसके पीछे जाय और जब तक वह रहे, तब तक उसके स्वागत-सत्कार में लगा रहे-ये पाँच काम करना गृहस्थ के लिये ‘पञ्चदक्षिण-यज्ञ’ कहलाता है।
  23. अपनी ही वाणी से अपने गुणों का वर्णन करना अपने ही हाथों अपनी हत्या करने के समान है।
  24. स्वजनों के साथ विरोध, बलवान् के साथ स्पर्धा और स्त्री, बालक,वृद्ध या मूर्ख के साथ विवाद कभी नहीं करना चाहिये।
  25. शत्रु के भी गुणों को ग्रहण करना चाहिये और गुरु के भी दुर्गुणों का त्याग करना चाहिये।
  26. स्त्री संग, भोजन और मल-मूत्र का त्याग सदा एकान्त में करना चाहिये।
  27. छोटी-छोटी बात के लिये शपथ नहीं लेनी चाहिये। व्यर्थ शपथ लेने वाला मनुष्य इहलोक और परलोक में भी नष्ट होता है।
  28. कुम्हड़ा काटने या फोड़ने वाली स्त्री और दीपक बुझाने वाला पुरुष कई जन्मों तक रोगी और दरिद्र होते हैं।
  29. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अथवा नीच जाति में उत्पन्न हुए. पुरुष से भी यदि ज्ञान मिलता हो तो उसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण करना चाहिये।
  30. कल किया जाने वाला काम आज और सायंकाल में किया जाने वाला काम प्रातःकाल में ही पूरा कर लेना चाहिये; क्योंकि मौत यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ है या नहीं?
  31. अनेक कार्य उपस्थित होने पर बुद्धिमान् मनुष्य को आवश्यक कार्य पहले तथा शीघ्रता से करना चाहिये और न करने योग्य कार्य पीछे तथा देरी से करना चाहिये।
  32. पत्र, पुष्प और फल को देवता पर उल्टा मुख करके नहीं चढ़ाना चाहिये। वे पत्र-पुष्पादि जिस रूप में उत्पन्न हों, उसी रूप में उन्हें देवता पर चढ़ाना चाहिये।
  33. स्नान के बाद पुष्पचयन न करे; क्योंकि वे पुष्प देवता पर चढ़ाने योग्य नहीं माने गये हैं।
  34. दूसरों से गाली सुनकर भी स्वयं उन्हें गाली नहीं देनी चाहिये। गाली को सहन करने वाले का रोका हुआ क्रोध ही गाली देने वाले को जला डालता है और उसके पुण्य को भी ले लेता है।
  35. ये नौ बातें गोपनीय हैं, इन्हें प्रकट नहीं करना चाहिये – अपनी आयु, धन, घर का कोई भेद, मन्त्र, मैथुन, औषधि, तप, दान तथा अपमान।
  36. अपनी स्त्री, भोजन और धन-इन तीनों में सन्तोष करना चाहिये; परन्तु अध्ययन (स्वाध्याय), तप (जप) और दान-इन तीनों में सन्तोष नहीं करना चाहिये।
  37. मनुष्य को पाँच वर्ष तक पुत्र का प्यार से पालन करना चाहिये, दस वर्ष तक उसे अनुशासित रखना चाहिये और सोलह वर्ष की अवस्था प्राप्त होने पर उसके साथ मित्र की तरह व्यवहार करना चाहिये।
  38. घर में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जल हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिये। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या अनिष्ट होता है।
  39. घर में प्रतिदिन पूजा के लिये वही प्रतिमा कल्याणदायिनी होती है, जो स्वर्ण आदि धातुओं की बनी हो तथा कम-से-कम अँगूठे के बराबर तथा अधिक-से-अधिक एक बित्ते की हो। जो टेढ़ी हो, जली हुई हो, खण्डित हो, जिसका मस्तक या आँख फूटी हुई हो अथवा जिसे चाण्डाल आदि अस्पृश्य मनुष्यों ने छू दिया हो, वैसी प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिये।
  40. घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्यप्रतिमा, तीन देवी- प्रतिमा, दो गोमती चक्र और दो शालग्राम का पूजन नहीं करना चाहिये। इनका पूजन करने से गृहस्वामी को दुःख, अशान्ति की प्राप्ति होती है।
  41. विष्णु के मन्दिर की चार बार, शंकर के मन्दिर की आधी बार, देवी के मन्दिर की एक बार, सूर्य के मन्दिर की सात बार और गणेश के मन्दिर की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये।
  42. घी का दीपक देवता के दायें भाग में और तेल का दीपक बायें भाग में रखना चाहिये।
  43. कलह करने से आयु, धन, मित्र, यश तथा सुख का नाश होता है। अतः कलह कभी न करें।
  44. विद्या चाहने वाले को क्षण का और धन चाहने वाले को कण का त्याग नहीं करना चाहिये, प्रत्युत क्षण-क्षण विद्या का अभ्यास और कण-कण धन का संग्रह करना चाहिये।
  45. कभी भी छिपकर किसी की बातें नहीं सुननी चाहिये। दूसरों की गुप्त बातों को जानने की चेष्टा नहीं करनी चाहिये और जानने पर उन्हें छिपाना चाहिये।
  46. अधिक साहस, अधिक शयन, अधिक जागरण, अधिक स्नान और अधिक भोजन न करे।
  47. भगवान की आरती पंचदीप से करनी चाहिए।

निरोग रहने के दोहे– Tips for Health

रक्तचाप बढ़ने लगे, तब मत सोचो भाय।

सौगंध राम की खाइ के, तुरंत छोड़ दो चाय।।सुबह खाइये कुंवर सा, दोपहर यथा नरेश।

भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश।
घूँट-घूँट पानी पियो, रह तनाव से दूर।
एसिडिटी या मोटापा, होवें चकनाचूर।।

लौकी का रस पीजिये, चोकर युक्त पिसान।
रोज मुलहठी चूसिये, कफ बाहर आ जाए।

बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाए।
भोजन करके खाइये, सौंफ, गुड़, अजवान।

इसका सेवन आप करें, नहीं होगा हार्ट फेल।।

तुलसी, गुड़, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान।।

पत्थर भी पच जाएगा, जानै सकल जहान।।

तुलसी का पत्ता करे, यदि हरदम उपयोग।

मिट जाते हैं हर उम्र में, शरीर के सारे रोग ।।

जो नहावें गर्म जल से, तन मन हो कमजोर।

आँख ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुँओर।।

ऊर्जा मिलती है बहुत, पियें गुनगुना नीर।

कब्ज खत्म हो पेट की, मिट जाए हर पीर।।

प्रातः काल पानी पियें, घूँट-घूँट कर आप।

बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप।।

चैत्र माह में नीम की पत्ती हर दिन खावे।

ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे।

सौ वर्षों तक वह जिए, जो लेते नाक से सांस।

अल्पकाल जीवे वह, जो मुँह से श्वासोच्छवास ।।

भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार।

डॉक्टर, ओझा, वैद्य का लुट जाए व्यापार।।

भोजन करें धरती पर, अल्थी-पलथी मार।

चबा-चबा कर खाइये, वैद्य न झाँके द्वार।।

भोजन करके जोहिये, केवल घण्टा-डेढ़।

पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड़।।

देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल।

अपच, आँख के रोग संग, तन भी रहे निढाल ॥

फल या मीठा खाइके, तुरंत न पीजै नीर।

ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर।।

एल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग।

आमंत्रित करता सदा, वह अड़तालीस रोग।।

अलसी, तिल, नारियल, घी, सरसों का तेल।

  • रोज पका केला खाने से शारीरिक दुर्बलतारूपी ल्यूकोरिया रोग व पुरुषों के प्रजनन शुक्राणु व कैल्शियम संबंधी रोगों को दूर करता है।
  • ज्यादा से ज्यादा मीठी नीम/करी पत्ती अपने सब्जियों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा।
  • ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएँ, आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।
  • रिफाइंड तेल के बजाय केवल तिल, मूंगफली, सरसों और नारियल तेल का प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं।
  • खाना खाने के बाद कुल्ला करके ही भोजन समाप्त करे, दाँत संबंधित रोग नहीं होंगे।
  • लौकी, धनिया, पुदीना, शिमला मिर्च को पानी के साथ पीसकर रोज एक कप इसका रस बासी मुँह पियें इससे किडनी, फैटीलिवर, कील-मुँहासे एवं अन्य चर्म रोग की बिमारी से छुटकारा मिलेगा

किस मास में क्या न खाएँ– Prohibited food items for month ( Astrological Impact)

चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।

सावन साग, भादो मही, कुवार करेला, कार्तिक दही।

अगहन जीरा, पूसै धनिया, माधै मिश्री, फाल्गुन चना।

जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै॥

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