सोमवार व्रतकथा (Somvar Vrat Katha )
कैसे करें सोमवार व्रत-पूजन (Vrat Vidhi)
सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।
गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें।
घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें –
‘मम क्षेमस्थैर्य विजयारोग्यै श्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये‘
इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें –
‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥’
ध्यान के पश्चात ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ॐ नमः शिवाय’ से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें।
पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें।
तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें।
इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
(सोमवार व्रतकथा) Somvar Vrat Katha
किसी नगर में एक धनी व्यापारी निवास करते थे। उनके व्यापार फैले हुए थे और सभी लोग नगर में उन्हें सम्मानित करते थे। अवसर पर भी, व्यापारी बहुत दुखी थे क्योंकि उनका कोई पुत्र नहीं था।
इस कारण उन्हें व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता सदैव सताती रहती थी। तभी व्यापारी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से हर सोमवार को भगवान शिव की व्रत-पूजा की और शाम को शिव मंदिर जाकर घी का दीपक जलाया। माँ पार्वती ने उनकी भक्ति देखकर प्रसन्न हो गई और उन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना करने के लिए भगवान शिव के पास निवेदन किया।
भगवान शिव बोले: “इस संसार में हर प्राणी को उनके कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है। जैसे कर्म, वैसा फल।”
शिवजी ने समझाने की कोशिश की, लेकिन माँ पार्वती ने उनकी बात नहीं मानी और व्यापारी की पुत्र प्राप्ति के लिए बार-बार निवेदन किया। आखिरकार माँ की विनती को देखकर भगवान भोलेनाथ को उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देना पड़ा।
वरदान देने के बाद भोलेनाथ ने माँ पार्वती से कहा: “तुम्हारे अनुरोध पर मैंने उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया है, लेकिन इस पुत्र की आयु 16 वर्षों से अधिक नहीं होगी।” उसी रात, भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र की 16 वर्षों तक जीवित रहने का रहस्य भी बताया।
भगवान के वरदान से व्यापारी खुश हुए, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उनकी खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी ने सोमवार के दिन भगवान शिव का व्रत जारी रखा। कुछ महीनों बाद, उनके घर एक बहुत सुंदर बालक का जन्म हुआ और उनके घर में आनंद की लहर छाई।
पुत्र जन्म का धूमधाम समारोह मनाया गया, लेकिन व्यापारी को पुत्र-जन्म से अधिक खुशी नहीं हुई, क्योंकि उन्हें पुत्र की अल्पायु का रहस्य पता था। जब पुत्र 12 वर्ष का हो गया, तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ाई के लिए वाराणसी भेज दिया। लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति के लिए यात्रा पर निकल गया। जहां भी उन्हें विश्राम करने का मौका मिलता, वहां वे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते।
लंबी यात्रा के बाद, मामा-भांजे एक नगर में पहुँचे। उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह हो रहा था, जिसके कारण पूरे नगर में धूमधाम था। बारात समय पर पहुँची, लेकिन वर के पिता को अपने बेटे के एक कान की कमी की वजह से बहुत चिंता हुई। उन्हें डर था कि इस बात का पता चलने पर राजा विवाह से मना न कर देंगे और उनकी बदनामी हो जाएगी। जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा, तो एक विचार उनके मन में उठा। उन्होंने सोचा कि वह लड़का दूल्हे के रूप में राजकुमारी से विवाह करवा दें, और फिर उसे धन देकर विदा कर देंगे, और राजकुमारी को अपने नगर ले जाएंगे।
वर के पिता ने लड़के के मामा से इस संबंध में बात की और मामा ने धन पाने की भावना में वर के पिता के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया।
राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। शादी के बाद, जब लड़का राजकुमारी के साथ घर लौट रहा था, तो उसने यह सत्य छुपाने में सफल नहीं हुआ और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया: “राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं वाराणसी में पढ़ाई के लिए जा रहा हूँ और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बननी होगी, वह काना है।”
राजकुमारी ने ओढ़नी पर लिखे शब्दों को पढ़कर, वह लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। जब राजा को ये सब पता चला, तो उन्होंने राजकुमारी को महल में रख लिया।
उसी बीच, लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी जा रहा था और वहां पढ़ाई शुरू कर दी। जब उसकी आयु 16 वर्ष पूरी हुई, तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ के समाप्त होने पर, उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब सामग्री और वस्त्र दान किए। रात को, जब उसने अपने शय्या पर सो जाया, उसकी प्राण-पखेड़ू छूट गई। सूर्योदय के साथ, उसके मामा ने देखा कि नाती जीवित होकर उठ बैठा है। मामा ने रोते हुए अपने नाती को देखा और आसपास के लोगों ने भी उसे दुःख प्रकट किया।
लड़के के मामा के रोने और विलाप करने की आवाज सुनकर, भगवान शिव और माता पार्वती ने उनकी सुनी। माता पार्वती ने भगवान से कहा: “प्राणनाथ, मुझे इसके रोने की ध्वनि सहन नहीं हो रही। कृपया आप इस व्यक्ति के दुःख को दूर करें।”
भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा, और फिर भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा: “यह तो वही व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु पूरी हो चुकी है।”
माता पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया कि वे उस लड़के को जीवित करने की कृपा करें। माता पार्वती के निवेदन पर, भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही समय में वह जीवित हो गया।
शिक्षा पूरी करने के बाद, लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चला गया। वहां पहुँचते ही, उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया गया। नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उन्होंने तुरंत ही लड़के और मामा को पहचान लिया। यज्ञ के समाप्त होने पर, राजा ने मामा और लड़के को महल में ले गया, और कुछ दिनों तक उन्हें महल में रखकर बहुत-सारा धन, वस्त्र आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।
इसी बीच, भूखे-प्यासे रहते हुए व्यापारी और उसकी पत्नी अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु की खबर मिलती है, तो वे दोनों अपनी जान देंगे, लेकिन जब उन्हें बेटे के जीवन की खबर मिली, तो उन्होंने बहुत खुशी महसूस की।
अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा: हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। शिव भक्त होने तथा सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सोमवार का विधिवत व्रत करते हैं और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।