स्कन्द षष्ठी( Skand Sasthi )
परिचय-Introduction
( Skand Sasthi )स्कन्द षष्ठी एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो संतान की प्राप्ति और संतान के स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। यह व्रत कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को कार्तिक मास में मनाया जाता है। यह व्रत भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा और आराधना के माध्यम से प्रमाणित होता है। इस लेख में हम स्कन्द षष्ठी के महत्त्व, व्रत करने का समय, आवश्यक सामग्री, पूजन विधि, और इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता के बारे में विस्तार से जानेंगे।
स्कन्द षष्ठी २०२४ तिथि : May 13, 2024
Begins – 02:03 AM, May 13 | Ends – 02:50 AM, May 14.
महत्त्व-Significance
स्कन्द षष्ठी व्रत का महत्त्व विभिन्न कथाओं और पुराणों में प्रकट होता है। इस व्रत का पालन करने से संतान प्राप्ति और संतान की सुरक्षा होती है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से बच्चों के स्वास्थ्य और तरक्की में सुधार होता है। स्कन्द षष्ठी महात्म्य में उल्लिखित है कि इस व्रत के पालन से ब्रह्महत्या जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत परिवार के सुख और समृद्धि को बढ़ाने का एक मार्ग है और संतान की खुशहाली और सद्भावना को प्राप्त करने का साधन है।
व्रत का समय- Time of Fasting
स्कन्द षष्ठी व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को आरंभ किया जा सकता है, लेकिन चैत्र और आश्विन मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है। व्रत की शुरुआत में षष्ठी तिथि का समय और तिथि आदि का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
आवश्यक सामग्री- Essential Material
स्कन्द षष्ठी व्रत के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- भगवान शालिग्राम जी का विग्रह
- कार्तिकेय का चित्र
- तुलसी का पौधा (गमले में लगा हुआ)
- तांबे का लोटा
- नारियल
- पूजा की सामग्री (कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि)
यह सामग्री व्रत की पूजा और अर्चना के लिए उपयोग की जाती है। इसके अलावा, यह सामग्री संतान की सुरक्षा और कल्याण के लिए भी उपयोगी होती है।
स्कंद षष्ठी 2024 भगवान कार्तिकेय मंत्र (Kartikey Mantra)
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात।।
ॐ शारवाना-भावाया
नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा,
देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नमोस्तुते।।
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते।।
पूजन विधि- Poojan Vidhi
स्कन्द षष्ठी के दौरान निम्नलिखित पूजन विधि का पालन किया जाता है:
- स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करें।
- अखण्ड दीपक जलाएं।
- भगवान को स्नान कराएं और नए वस्त्र पहनाएं।
- भगवान को भोग लगाएं।
- भगवान की पूजा करें और आरती करें।
- संतान की कल्याण की कामना करें और उनके लिए प्रार्थना करें।
- व्रत की कथा सुनें और व्रत कथा का पाठ करें।
- व्रत के अनुसार उपवास रखें और व्रत के बाद प्रसाद लें।
यह पूजन विधि स्कन्द षष्ठी के व्रत का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए अनुशासनपूर्वक पालन की जानी चाहिए।
कार्तिकेय की जन्म कथा: Birth Story of Lord Kartikeya
एक समय की बात है, जब दैत्य तारकासुर ने स्वर्ग के देवताओं पर बहुत अत्याचार किया और उन्हें विजयी बना दिया। देवताओं को इस परिस्थिति से निपटने के लिए वे भगवान ब्रह्मा के पास गए और अपनी रक्षा के लिए उनसे मदद मांगी। भगवान ब्रह्मा ने उनकी दुःखभरी कथा सुनकर कहा कि इस संकट का निवारण भगवान शिव के द्वारा ही हो सकता है, लेकिन वे वर्तमान में गहन साधना में लगे हुए हैं। इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान शिव के पास जाकर उनसे मदद की अपील की। उनकी आवाज़ सुनकर, भगवान शिव ने उन्हें आश्वासन दिया और अपनी पत्नी पार्वती से विवाह करने का निर्णय लिया।
शुभ मुहूर्त में, भगवान शिव और पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद, भगवान शिव और पार्वती के बीच वृद्धि आई और उन्हें एक सुंदर बालक पुत्र का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस बालक को उन्होंने कार्तिकेय नाम दिया।
कार्तिकेय अपने ब्रह्मचारी रूप में बड़े हुए और देवताओं की सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने तारकासुर का वध करके देवताओं को उनका स्थान वापस कराया और शांति और सुरक्षा की स्थापना की।
यहीं पर समाप्त होती है कार्तिकेय की जन्म कथा। यह कथा हमें बताती है कि भगवान कार्तिकेय कैसे देवताओं की सहायता करते हैं और अधर्म का नाश करने के लिए उनका वध करते हैं। इसके साथ ही यह कथा भक्तों को प्रेरित करती है कि वे भगवान कार्तिकेय की आराधना करें और उनकी कृपा प्राप्त करें।
प्राचीनता एवं प्रमाणिकता- Ancientness and Authenticity
स्कन्द षष्ठी व्रत की प्राचीनता और प्रमाणिकता प्रमाणित है। इस व्रत का पालन एक परंपरागत पर्व के रूप में धारण किया जाता है। यह व्रत पुराणों और ऐतिहासिक कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत होता है। कथानक के अनुसार, राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन के बारे में भी स्कन्द षष्ठी के संबंध में कहानी है। इस व्रत की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इसके अलावा, पुराणों में इस व्रत के महत्त्व का वर्णन मिलता है और इस व्रत का पालन संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
सारांश-Conclusion
स्कन्द षष्ठी व्रत हिन्दू संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और संतान की प्राप्ति और संतान के स्वास्थ्य को बढ़ाने का माध्यम है। इस व्रत के द्वारा भगवान कार्तिकेय की पूजा और आराधना की जाती है और संतान की कल्याण की कामना की जाती है। व्रत की पूजन विधि का ध्यानपूर्वक पालन करने से संतान के स्वास्थ्य और तरक्की में सुधार होता है। स्कन्द षष्ठी व्रत की प्राचीनता और प्रमाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है और इसलिए इस व्रत की आदिकालिकता को समझा जाना चाहिए।
इस व्रत के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए और संतान की सुरक्षा और कल्याण की कामना के साथ, इस व्रत का पालन करने से संतान के स्वास्थ्य और विकास में सुधार होता है। यह व्रत पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए और भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए समर्पित होना चाहिए।
Ravi Singh
August 22, 2023 at 8:30 am
महत्वपूर्ण जानकारी 🙏🙏 गुरुजी