वरुथिनी एकादशी 2024

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वरुथिनी एकादशी 2024

वरुथिनी एकादशी 2024: कब है, महत्व, मुहूर्त और कथा

वरुथिनी एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह सौभाग्य, पापनाश और मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी है।

2024 में वरुथिनी एकादशी 3 मई को है।

इस ब्लॉग पोस्ट में हम वरुथिनी एकादशी के बारे में निम्नलिखित जानकारी देंगे:

कब है वरुथिनी एकादशी 2024?

वरुथिनी एकादशी का महत्व

वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

वरुथिनी एकादशी व्रत के नियम

वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण

कब है वरुथिनी एकादशी 2024?

जैसा कि पहले बताया गया है, वरुथिनी एकादशी 2024 में 3 मई को है।

वरुथिनी एकादशी का महत्व

वरुथिनी एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को करने से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:

दस सहस्र वर्ष तपस्या करने के बराबर फल

सौभाग्य की प्राप्ति

पापों का नाश

पितृ, देवता और मनुष्यों की तृप्ति

जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति

वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 3 मई 2024, रात 11 बजकर 24 मिनट

एकादशी तिथि समाप्त: 4 मई 2024, रात 8 बजकर 38 मिनट

पारण का समय: 5 मई 2024, सुबह 9 बजकर 30 मिनट तक

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

इस व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन काल में राजा मान्धाता नामक एक राजा थे। एक दिन जंगल में तपस्या करते समय उन्हें एक भालू ने घसीटकर ले गया और उनका पैर चबा लिया। राजा ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु की कृपा से राजा का पैर ठीक हो गया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

वरुथिनी एकादशी व्रत के नियम

दसवीं तिथि (दशमी) के दिन सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें।

एकादशी के दिन निर्जला व्रत रखें।

भोजन में नमक, अनाज, दाल और तिल का सेवन न करें।

भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत कथा पढ़ें।

दूसरे दिन (द्वादशी) सूर्योदय के बाद पारण करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण

द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों को भोजन खिलाकर दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

निष्कर्ष

वरुथिनी एकादशी एक पवित्र व्रत है जो सौभाग्य, पापनाश और मोक्ष प्रदान करता है। यदि आप अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और सुखी जीवन चाहते हैं तो आपको इस व्रत को अवश्य रखना चाहिए।

वरुथिनी एकादशी 2024: पूछे जाने वाले सामान्य प्रश्न (FAQs)

आपने वरुथिनी एकादशी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली है।  चलिए अब कुछ सामान्य प्रश्नों के उत्तर देते हैं जो लोगों के मन में आते हैं:

1. वरुथिनी एकादशी पर क्या खाना चाहिए?

एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है, इसलिए अन्न, दाल, सब्जी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। आप फलाहार कर सकते हैं जिसमें दूध, फल, और मेवे शामिल हैं।

2. वरुथिनी एकादशी पूजा विधि क्या है?

स्नान आदि करके शुद्ध हो जाएं।

एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

भगवान विष्णु को तुलसी दाल, फल और मिठाई का भोग लगाएं।

धूप, दीप जलाएं और भगवान विष्णु का ध्यान करें।

वरुथिनी एकादशी की कथा पढ़ें और आरती करें।

3. वरुथिनी एकादशी का दान क्या करें?

वरुथिनी एकादशी पर अन्न दान का विशेष महत्व है। आप गरीबों को भोजन करा सकते हैं या किसी मंदिर में अन्न दान कर सकते हैं.

4. वरुथिनी एकादशी किसे रखना चाहिए?

कोई भी व्यक्ति जो अच्छे स्वास्थ्य, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति चाहता है, वह वरुथिनी एकादशी का व्रत रख सकता है।

5. गर्भवती महिलाएं वरुथिनी एकादशी का व्रत रख सकती हैं?

गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को कठोर व्रत रखने की सलाह नहीं दी जाती है। आप व्रत को आसान बना सकते हैं या किसी ब्राह्मण या गुरु से सलाह ले सकते हैं।

6. क्या वरुथिनी एकादशी के दिन बाल कटवाना चाहिए?

एकादशी के दिन बाल कटवाना और नाखून काटना वर्जित माना जाता है।

7. क्या मासिक धर्म के दौरान वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जा सकता है?

मासिक धर्म के दौरान व्रत रखने की सलाह नहीं दी जाती है। आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ 15 अप्रैल शाम 8 बजकर 46 मिनट

एकादशी तिथि समाप्त 16 अप्रैल शाम 6 बजकर 15 मिनट

पारण का समय 17 अप्रैल सुबह 9 बजकर 30 मिनट तक

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजेश्वर! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इसकी महात्म्य कथा आपसे कहता हूँ..

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा!

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे।

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

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