नपुंसक योग ( Napunsak Yoga kya hota hai )
जब दो या दो से अधिक ग्रहों का परस्पर संबंध बनता है, उसे योग कहा जाता है और जैसा कि हम जानते हैं कि ज्योतिष में अनेकों योग बनते हैं। इसी श्रृंखला में आज हम जन्म कुंडली में बनने वाली एक विशेष योग की चर्चा करने जा रहे हैं, जिसका नाम है “नपुंसक योग”।
तो आइए जानते हैं कि नपुंसक योग क्या है? और यह कैसे बनता है? ( Kaise Banta hai Napunsak Yog) तथा इसके क्या दुष्परिणाम है और उन दुष्परिणामों को किस प्रकार से दूर किया जा सकता है?
१. नपुंसक योग एक ऐसा योग होता है, जिसके वश में किसी भी पुरुष या स्त्री के जीवन में संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती है। उसे या तो संतान उत्पन्न करने के योग्य नहीं होता है या फिर संतान सुख की प्राप्ति के लिए समर्थ नहीं होता।
२. यह स्थिति जन्मजात भी जातक के अंदर हो सकती है या जीवन के किसी भी उम्र में शारीरिक दुर्घटना या शारीरिक हारमोनस की कमी भी इसका कारण हो सकता है।
३. नपुंसक योग का प्रथम सूत्र यह है कि यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में शुक्र वृष या तुला राशि का होकर सप्तम भाव में विद्यमान हो,
उसी जातक की जन्मकुंडली में बुध और शनि युति कुंडली के प्रथम, पंचम अथवा दशम भाव में विद्यमान हो तथा शुक्र के अंश वृद्ध, मृत या बाल अवस्था के हो, ऐसे जातक के जीवन में नपुंसक योग बनता है और ऐसा जातक संतान उत्पत्ति के योग्य नहीं होता है।
४. इसी प्रकार नपुंसक योग का दूसरा सूत्र यह कि यदि जातक की जन्म कुंडली में लग्न विषम राशि का हो, चंद्रमा भी विषम राशि में विद्यमान हो और शुक्र भी विषम राशि में विद्यमान हो तथा जन्म नक्षत्र भी नपुंसक हो|
अर्थात बालक का जन्म नक्षत्र मूल, शतभिषा, मृगशिरा इनमें से एक हो, क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र होते हैं जिनमें से 12 नक्षत्र पुरुष और 12 नक्षत्र स्त्री होते हैं, बचें शेष तीन नक्षत्र नपुंसक होते हैं जिनका नाम मूल, शतभिषा और मृगशिरा है|
इस प्रकार जिस किसी भी जातक की जन्मकुंडली में लग्न, चंद्र, शुक्र विषम राशि में हो और जन्म नक्षत्र नपुंसक हो, उस स्थिति में जातक की कुंडली में नपुंसक योग बनता है और ऐसा जातक संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकता है।
५. नपुंसक योग का पंचम सूत्र है कि यदि जन्मकुंडली में शुक्र द्वादश भाव में से किसी भी भाव में विद्यमान हो, परंतु शुक्र पर शनि व राहु दोनों की दृष्टि हो, उस स्थिति में जातक नपुंसक होता है।