Mangla Gauri Vrat (मंगला गौरी व्रत):
मां मंगला गौरी अखंड सौभाग्य, सुखी और मंगल वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती हैं। मान्यता है कि संतान और सौभाग्य की प्राप्ति की कामना के लिए मां मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में एक बार भोजन कर माता पार्वती की अराधना की जाती है। ये व्रत सुहागिनों के लिए विशेष होता है।
मंगला गौरी पूजा विधि: इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठें। निवृत्त होकर साफ-सुधरे वस्त्र धारण करें। इस दिन एक ही बार अन्न ग्रहण करके पूरे दिन माता पार्वती की अराधना करनी चाहिए। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां मंगला यानी माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब विधि-विधान से माता पार्वती की पूजा करें।
विवाह में आ रही है परेशानियां? मंगला गौरी व्रत के दिन विशेष विधि से करें देवी पार्वती की आराधना
सावन के सबसे पवित्र दिनों में से एक, मंगला गौरी व्रत, विवाहिता महिलाओं द्वारा सावन के हर मंगलवार को किया जाता है। इस दिन, महिलाएं कठिन व्रत का पालन करती हैं, व्रत कथा पढ़ती हैं, और कुछ मंत्रों का जाप करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।
मंगला गौरी व्रत 2024 की तारीखें
सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हुआ था और 19 अगस्त तक चलेगा। इस वर्ष, मंगला गौरी व्रत की तारीखें इस प्रकार हैं:
- पहला मंगला गौरी व्रत: 23 जुलाई
- दूसरा मंगला गौरी व्रत: 30 जुलाई
- तीसरा मंगला गौरी व्रत: 6 अगस्त
मंगला गौरी व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत से पति-पत्नी के रिश्ते मजबूत होते हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है। यदि किसी विवाहित के विवाह में कोई परेशानी आ रही है या उसकी कुंडली में मांगलिक दोष है, तो यह व्रत लाभकारी हो सकता है।
मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि
- मंगला गौरी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान शिव के मंदिर जाएं और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। माता गौरी के सामने घी का दीपक जलाएं।
- विधि-विधान से भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करें। पूजा के दौरान देवी को लाल रंग के फूल और श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
- शिवजी को धतूरा, बेलपत्र, चंदन, और गंगाजल अर्पित करें। साथ ही फल, मिठाई, या खीर जैसी चीजों का भोग लगाएं।
- इसके बाद आरती करें, मंत्रों का उच्चारण करें, और भगवान शिव-माता पार्वती से सुखी जीवन की प्रार्थना करें।
मंगला गौरी व्रत कथा: (Mangla Gauri Vrat)
एक समय की बात है, एक शहर में धर्मपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। इस वजह से धर्मपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम इस पूजा तो करती ही हैं। इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है। व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है। अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें। इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है। अतः शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है।
विवाह हेतु मंत्र
ॐ ह्रीं योगिनी योगिनी योगेश्वरी योग भयंकरी सकल स्थावर जंगमस्य मुख हृदयं मम वशं आकर्षय आकर्षय नमः॥
ॐ नमः मनोभिलाषितं वरं देहि वरं ह्रीं ॐ गोरा पार्वती देव्यै नमः माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वर:
बान्धवा: शिवभक्ताश्च, स्वदेशो भुवनत्रयम ॥
प्रेम विवाह हेतु मंत्र
हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।
मंगला गौरी व्रत की कथा का महत्व:
मंगला गौरी व्रत की कथा के महत्व को समझने के लिए हमें धर्मग्रंथों में उसके महत्व की व्याख्या मिलती है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पतिदेव के दीर्घायु, समृद्धि और कल्याण के लिए करती हैं।
विशेष रूप से कथा में दिखाया गया है कि शुभावती ने अपने पतिदेव के लिए माँ गौरी की पूजा करते हुए व्रत अनुसारण किया और उनकी विशेष भक्ति से माँ गौरी ने उन्हें एक सुपुत्र की आशीर्वाद दिया। इसके माध्यम से उन्होंने अपनी इच्छाओं को पूरा किया और उनके जीवन में आनंद और समृद्धि की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार, मंगला गौरी व्रत की कथा विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा बनी है जो उनके पतिदेव के उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु और परिवारिक समृद्धि के लिए उनकी प्रार्थनाएं करती हैं।
व्रत के दौरान महिलाएं व्रत रखती हैं, माँ गौरी की पूजा करती हैं और उनसे अपने पतिदेव की दीर्घायु और कल्याण की कामना करती हैं।