Lajvart

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Lajvart

लाजवर्त: Lajvart

लाजवर्त, जिसे अंग्रेजी में लैपिस लाजुली (Lapis Lazuli) के नाम से भी जाना जाता है, एक अर्ध-कीमती रत्न है। शनि ग्रह के नीलम रत्न के विकल्प के रूप में इसे धारण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में लाजवर्त की व्याख्या आकाश के सितारों से की जाती है। लाजवर्त जिसका एक नाम इंग्लिश में लैपिस लाजुली (Lapis Lazuli )  है।  यह एक उपरत्न है जिसे शनि ग्रह  के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है।  ज्योतिष में लाजवर्त की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है।  इस उपरत्न का रंग गहरा नीला होता है और इस पर  पीले रंग के धब्बे भी पाए जाते हैं जिसे पाइराइट कहते है। 

लाजवर्त न केवल ग्रह की शांति हेतु उपयोग होता है अपितु इस रत्न का  उपयोग सोने और चाँदी के  सुंदर- सुन्दर  आभूषण बनाने में भी किया जाता रहा है।  लाजवर्त स्टोन  का उपयोग प्राचीन समय से हो रहा है जिसका प्रमाण पुराणी समय की अनेक सभ्यताओं में देखा जाता रहा है।  इसका उपयोग न केवल  भारतीय प्राचीन संस्कृति में ही था, अपितु इसका उपयोग सिंधु घाटी की सभ्यता में मिले अवशेषों में भी देखा गया है।  इसके  सुन्दर चमकदार रंग के कारण ही यह रत्न इतना बहुमूल्य रहा है।  भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है।

लाजवर्त स्टोन के गुण-The qualities of a Lajwart stone

इस उपरत्न में ग्रहो के अलौकिक गुणों को बढा़ने की अदभुत क्षमता है।  इस उपरत्न से जातक की  उदासी का अंत होता है और एक तरह से  बुखार की रोकथाम में भी इस उपरत्न का उपयोग किया जा सकता है।  यह रत्न जातक को  नकारात्मक भावनाओं को दूर रखता है, यह गले संबंधी विकारों को दूर करता है और  यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए भी अच्छा माना जाता है जो मधुमेह ( डायबिटिज ) की बीमारी से ग्रसित है।  यह स्टोन व्यक्ति की सहनशक्ति बढा़ने में भी सहायक होता है।

लाजवर्त के अलौकिक गुण-The mystical qualities of Lajwart

इस उपरत्न को धारण करने से जातक की मानसिक क्षमता का विकास होता है। उसके मस्तिष्क के  अंदर शांति बनी रहती है।  मस्तिष्क के अंदर किसी भी निर्णय को लेने में स्पष्टता रहती है जातक के पुरुषार्थ का विकास होता है। ये उपरत्न अध्यापन के कार्य से जुडे़ लोगो की  क्षमताओं में वृद्धि करता है जिससे  वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं। ये रत्न जातक की रचनात्मकता  और आत्म अभिव्यक्ति में वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के तनाव को दूर करता है और आध्यात्म में वृद्धि करता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो व्यक्ति जीवन के सभी सूक्ष्म मूल्यों को समझते हैं.

लाजवर्त की विशेषताएं:Qualities of Lajwart

रंग: इसका रंग गहरा नीला होता है, जिस पर पीले रंग के धब्बे भी पाए जाते हैं जिन्हें पाइराइट कहते हैं।

उपलब्धता: यह मुख्य रूप से अफगानिस्तान, साइबेरिया, म्यांमार और कैलिफोर्निया में पाया जाता है।

विशेष: प्राचीन काल से ही इसका उपयोग सुंदर आभूषण बनाने में किया जाता रहा है।

महत्व: भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है।

लाजवर्त क्या है: What is Lajvart

यह कई प्रकार की होती है। लाजावर्त नाम का एक पत्थर भी होता है। लाजावर्त या लाजवर्द मणि का रंग मयूर की गर्दन की भांति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है। यह मणि भी प्राय: कम ही पाई जाती है, लेकिन पत्‍थर मिलता है। इसके नाम से कई नकली पत्‍थर भी बाजार में मिलते हैं।

नीलम की तरह यह भी नीले रंग का होता है। गाढ़े नीले रंग का लैपिस (लाजावर्त) ज्‍यादा अच्‍छा माना जाता है बशर्ते इसमें हरे या भूरे रंग के व्‍यवस्‍थ‍ित पैटर्न हों।

लाजवर्त और राहु: Lajvart & Rahu

लाजवर्त पहनने से व्यक्ति की एकाग्रता बढ़ती है। -इस रत्न को पहनने से बुद्धि और विवेक बढ़ता है। इसलिए विद्यार्थियों के लिए यह रत्न शुभ माना गया है। -रत्न शास्त्र के अनुसार, लाजवर्त धारण करने से पितृ दोष और राहु दोष से मुक्ति मिलती है।

लाजवर्त के फायदे: Benifits of Lajvart

ग्रहों की शांति: यह रत्न शनि ग्रह को मजबूत करता है और कुंडली में ग्रहों की शांति लाता है।

मानसिक शांति: लाजवर्त धारण करने से मन शांत रहता है और नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलती है।

एकाग्रता: यह रत्न एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ाता है।

रोगों से बचाव: लाजवर्त बुखार, गले के रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से बचाता है।

आत्मविश्वास: यह रत्न आत्मविश्वास बढ़ाता है और पुरुषार्थ का विकास करता है।

रचनात्मकता: लाजवर्त रचनात्मकता और कल्पना शक्ति को बढ़ाता है।

आध्यात्मिकता: यह रत्न आध्यात्मिकता में वृद्धि करता है और तनाव को दूर करता है।

लाजवर्त धारण करने की विधि: Process to Wear Lajvart Stone

लाजवर्त को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर धारण करना चाहिए।

इसे दायें हाथ की मध्यमा उंगली में पहनना शुभ माना जाता है।

धारण करने से पहले इसे सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे के लिए भिगोकर रखें।

लाजवर्त किसे धारण करना चाहिए: Who Should wear Lajvart

जिनकी कुंडली में शनि ग्रह कमजोर है, वे लाजवर्त धारण कर सकते हैं।

विद्यार्थी, शिक्षक और लेखक के लिए भी यह रत्न लाभकारी माना जाता है।

जो लोग मानसिक शांति और एकाग्रता चाहते हैं, वे भी लाजवर्त धारण कर सकते हैं।

लाजवर्त पहनने की सावधानियां: Precaution while wearing Lajvart

जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह कमजोर है, उन्हें लाजवर्त धारण नहीं करना चाहिए।

गर्भवती महिलाओं को भी लाजवर्त धारण करने से बचना चाहिए।

रत्न धारण करने से पहले ज्योतिषी से सलाह जरूर लें।

असली लाजवर्त की पहचान कैसे करें: How to Indentify Real Lajvart

असली लाजवर्त का रंग गहरा नीला होता है।

इसमें पीले रंग के धब्बे समान रूप से फैले होते हैं।

रत्न चमकदार और स्पष्ट होता है।

लाजवर्त कहाँ – कहाँ  मिलता है ?

लाजवर्त  मुख्य रूप से अफ़गा़निस्तान, साइबेरिया, म्यांमार और  कैलिफ़ोर्निया  में पाया जाता है. इसके साथ ही यह चिली देश में भी यह पाया जाता है. लाजवर्त रत्न को फरवरी माह में पैदा होने वाले लोगों के लिए अनुकूल माना गया है।

कौन धारण करे ? Who Should wear Lajvart

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं।  इसे धारण करने से पहले  किसी अच्छे ज्योतिष से सलहा जरूर ले।  ताकि आपको किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। 

लाजवर्त पहनने की विधि: लाजवर्त को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर धारण करना चाहिए। इस रत्न को माला और ब्रेसलेट भी पहना जा सकता है। इसे दायें हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना शुभ होता है। इसे धारण करने से पहले सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे पहले डुबोकर रखें।

लाजवर्त किस दिन पहने: लाजवर्त को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी में पहनना शुभ माना गया है। नीलम रत्न : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए नीलम रत्न धारण करना बहुत लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इससे स्वास्थ्य में आ रही दिक्कतें दूर होती हैं। मन की एकाग्रता बढ़ती है।

लाजवर्त रत्न के नुकसान: कुंडली में शनि और राहु नीच के अशुभ स्थित हों तो लाजवर्त को धारण न करें। साथ ही मंगल ग्रह भी अगर कुंडली में नकारात्मक स्थित है तो भी लाजवर्त धारण करने से बचें। या फिर शनि के साथ मंगल भी स्थित हों तो भी लाजवर्त नहीं पहनना चाहिए।

असली लाजवर्त की पहचान कैसे करें?

यह नीलम का उपरत्न है इसलिए नीलम की ही तरह इसका रंग भी नीला होता है। नीले रंग की आभा वाला लाजवर्त रत्न सबसे असरकारक माना जाता है। यदि इस रत्न की आभा गहरी नीली न हो और इसमें बैंगनी, हरे रंग की चमक दिख रही हो तो इसे असरदायक नहीं माना जाता।

लाजवर्त का इतिहास काफी लंबा है। आइए जानते हैं इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य:

प्राचीन सभ्यताओं का रत्न: लाजवर्त का इस्तेमाल हजारों सालों से किया जा रहा है। इसका प्रमाण हमें सिंधु घाटी सभ्यता और प्राचीन मिस्र की खुदाई में मिले अवशेषों से मिलता है।

सजावट का सामान: रत्न होने के साथ-साथ लाजवर्त का उपयोग प्राचीन काल में मूर्तियों, ताबीज और अन्य सजावटी सामान बनाने में भी किया जाता था।

फिरौन का श्रृंगार: प्राचीन मिस्र में लाजवर्त को मृत्यु के बाद के जीवन से जोड़ा जाता था। यहां तक कि कई फिरौन की ममीज को लाजवर्त से बने गहनों से सजाया गया था।

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