2023 में करवा चौथ व्रत कब है?
हिन्दू धर्म ग्रंथ के अनुसार, करवा चौथ हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन किया जाता है। साल 2023 में करवा चौथ का व्रत 31 अक्टूबर 2023 को है, जो कि मंगलवार को पड़ रहा है। विवाहित स्त्रियों के साथ-साथ, अविवाहित स्त्रियां भी इस व्रत को अच्छे वर की कामना के लिए रखती हैं।
Karva chauth 2023 (करवा चौथ 2023) व्रत का समय, करवा चौथ 2023 पूजा मुहूर्त
आप सबको बता रहा हूँ कि करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्रोदय होने पर समाप्त होता है। तो हम सबसे पहले करवा चौथ के दिन के सूर्योदय और चंद्रोदय के समय के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
करवा चौथ सूर्योदय का समय: 01 नवंबर 2023, बुधवार, प्रातः 06:33 am
करवा चौथ चंद्रोदय का समय: 01 नवंबर 2023, बुधवार, सायं 8:15 pm
(Karva chauth 2023) करवा चौथ 2023 व्रत का समय
करवा चौथ 2023 व्रत प्रारंभ: 01 नवंबर 2023, बुधवार, 6:33 am (प्रातःकाल)
करवा चौथ 2023 व्रत समाप्त: 01 नवंबर 2023, बुधवार, 8:15 pm (सायंकाल)
करवा चौथ व्रत – 01 नवंबर 2023 (करवा चौथ व्रत)
करवा चौथ व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। करवा चौथ का पर्व विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए करती हैं, तथा माता की पूजा कर अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। इस व्रत में सारे दिन व्रत करने के बाद सायं काल में चांद देखने के बाद व्रत समाप्त किया जाता है। व्रत के दिन भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती है।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत
इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती का पूजन किया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला यह व्रत उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश में विशेष रूप से मनाया जाता है। यूं भी हमारे पुराणों के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का पूजन पारिवारिक सुख, शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है। पति-पत्नी के युगल रूप में शिव-पार्वती अपना धार्मिक और पौराणिक दोनों महत्व रखते हैं।
करवा चौथ: Karva chauth 2023
भारत का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार पत्नियों का अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। इस त्योहार में पत्नियां अपनी पति की दीर्घ आयु और कुशलता के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और सायंकाल में चंद्र को अर्घ देने के पश्चात ही अन्न जल ग्रहण करती हैं।
करवा चौथ को काफी कठिन व्रत माना गया है। करवा चौथ को मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं ही करती हैं। इसमें सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय होने के पश्चात चन्द्र दर्शन और चंद्र को अर्घ देने तक व्रत किया जाता है। इस व्रत में अन्न और जल दोनों का सेवन वर्जित होता है।
हिंदू धर्म की महिलाओं के लिए करवाचौथ के त्योहार का विशेष महत्व रखता है। यह व्रत पति की दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से किया जाता है। हिंदू धर्म में सभी व्रतों से करवाचौथ के व्रत को सबसे कठिन बताया गया है। व्रत निर्जल रखा जाता है और शाम को पूजा करके, चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण किया जाता है। जिसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और इसे ही करवा चौथ कहा जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, भारत के कुछ प्रांतों में करवाचौथ को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक का अर्थ घड़ा होता है, जिससे चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाने वाला व्रत है। उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा और विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, फैशन और जमाने के नए रंग में रंग गया है।
करवा चौथ कथा (Karva Chauth Story)
इस पर्व के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है। बहुत समय पहले की बात है, एक लड़की थी, उसके साथ एक भाई थे, उसकी शादी एक राजा से हो गई। शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वह अपने मायके आ गई। उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वह भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह बहुत बेसब्री से चांद निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी।
उसके सात भाई उसकी यह हालत देखकर परेशान हो गए। वे सभी अपनी बहन से बेहद स्नेह करते थे। उन्होंने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखाई दी। बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया। बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबीयत खराब होने लगी।
अपने पति की तबीयत खराब होने की खबर सुनकर, वह अपने पति के पास ससुराल गई और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें। पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है, क्योंकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था।
यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों से क्षमा मांगी। माता पार्वती ने कहा, “तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा, लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत पूरी विधि-विधान से करना होगा।” इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई। माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया।
करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाने वाला व्रत है। उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा और विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, फैशन और जमाने के नए रंग में रंग गया है।
करवा चौथ का महत्व समय के साथ और भी बढ़ गया है। समय के साथ आधुनिक और शिक्षित महिलाओं के वर्ग में जहां एक ओर अन्य व्रतों का प्रचलन कम हुआ है, वहीं करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवन साथी के प्रति स्नेह व्यक्त करने का प्रर्याय बन गया है। आज यह केवल सुहागिनों का व्रत ही नहीं रहकर, पतियों के द्वारा अपनी पत्नियों के लिए रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है।
देखने में आया है कि इस व्रत को पति और पत्नी दोनों रखते हैं, एक-दूसरे के लिए पूरे दिन व्रत करने के बाद रात को किसी रेस्तरां में जाकर दोनों साथ में भोजन भी करते हैं। यानी इस व्रत का मूल आधार आज आपसी प्रेम और समर्पण रह गया है। कथा सुनने, निर्जल रहने, चांद को अर्ध्य देने और पति द्वारा पानी पिलाए जाने जैसी रस्में भी निभाने की पूरी कोशिश की जाती है। पर नौकरी पेशा होने पर सभी रीतियां विधि-विधान के अनुसार नहीं होती हैं।
करवा चौथ पर सजते बाजार (Decorated Markets on Karva Chauth)
करवा चौथ पर महिलाएं व्रत करने के साथ ही सजना और संवरना भी बहुत पसंद करती हैं। इस दिन महिलाएं सुंदर वस्त्र पहनती हैं। साड़ियों और फैशन के अनुसार वस्त्रों की दुकानों में महिलाओं की भीड़ होती है। ब्यूटी पार्लर और सौंदर्यवर्धक स्थानों पर भी महिलाओं की रुचि विशेष रूप से देखी जा सकती है। महिलाओं में न सिर्फ इस दिन श्रंगार कराने आती हैं, बल्कि हाथों और पैरों में मेहंदी का बाजार भी करवा चौथ पर लाखों रुपये की आय कमा लेता है। श्रंगार कराने के लिए लंबी-लंबी कतार में खड़ी होकर प्रतीक्षा करना भी इन्हें इस दिन मंजूर होता है।
आपसी सामंजस्य को बढ़ाता करवा चौथ (Karva Chauth, increases Co-ordination)
करवा चौथ के व्रत ने बाजारीकरण को कितना लाभ पहुंचाया है, यह तो स्पष्ट है, परंतु इस पर्व से एक और जो लाभ हुआ है, वह है, यह व्रत वैवाहिक जीवन को सफल और खुशहाल बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। क्योंकि करवा चौथ अब केवल लोक परंपरा नहीं रहकर, भावनाओं के आदान-प्रदान का पर्व बन गया है।
हमारे समाज की यही खासियत है कि हमारे यहां पौराणिकता में नवीनता का अंश लिया जाता है। एक समय था जब यह पर्व पत्नियों के द्वारा किया जाता था, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक होता था। लेकिन आज यह पति-पत्नी के सामंजस्य का प्रतीक बन गया है। समय ने इस व्रत पर्व को अधिक संवेदनशील और प्रेम की अभिव्यक्ति का पर्व बना दिया है। दोनों के एक-दूसरे के लिए व्रत करने से अहसास का बंधन मजबूत होता है।
समय के साथ बदलते महानगरीय जीवन में जहां पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए समय कम निकाल पाते हैं, इसका कारण दोनों का नौकरी पेशा होना है। समय की कमी के कारण ही दोनों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर भी कम ही मिल पाते हैं।
करवा चौथ पूजन विधि (Method of Karva Chauth Puja)
करवा चौथ का व्रत करने के लिए प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृत्त होकर, प्रात: भगवान शिव पार्वती की पूजा की जाती है। कोरे करवे में पानी भरकर, करवा चौथ का कैलेंडर लगा कर, पूजा की जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत करके सायं काल में फिर से पूजा कर व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। सायं काल में चांद की पूजा कर इस व्रत को समाप्त किया जाता है।
Year-Wise Karva Chauth Observances
YEAR DAY DATE Event/Festival
2015 Fri 30-Oct Karva Chauth
2016 wed 19-Oct Karva Chauth
2017 Sun 8-Oct Karva Chauth
2018 Sat 27-Oct Karva Chauth
2019 Thur 17-Oct Karva Chauth
2020 Wed 4-Nov Karva Chauth
2021 Sun 24-Oct Karva Chauth
2022 Thur 13-Oct Karva Chauth
2023 Wed 1-Nov Karva Chauth
2024 Sun 20-Oct Karva Chauth
2025 Fri 10-Oct Karva Chauth