कालाष्टमी का महत्व– Importance of Kalasthmi
कालाष्टमी: समर्पण और सावधानी का दिन
परिचय-Introduction
हिन्दू आध्यात्मिकता के क्षेत्र में, कालाष्टमी का गहरा महत्व है। यह भगवान शिव और काल भैरव के समर्पण का चिह्न है, जो समर्पण और सावधानी के मिश्रण को प्रदर्शित करता है। यह दिन अपनी शुभता के लिए प्रशंसित है, लेकिन काल भैरव को नाराज करने वाले कुछ कार्यों से बचाव किया जाता है, जिन्हें अप्रिय माना जाता है।
कालाष्टमी का अध्ययन–Kalashtmi kab hai ?
कालाष्टमी हर चंद्रमा मास के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन (अष्टमी) को मनाई जाती है। इसे भैरव अष्टमी भी कहा जाता है, यह भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव और काल भैरव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तगण विशेष प्रार्थनाएं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
आध्यात्मिक धारणाएँ -Kalashtmi ko kis bhagwan ki pooja karte hain ?
प्रसिद्ध धारणाओं के अनुसार, कालाष्टमी पर भगवान शिव और काल भैरव के लिए निर्धारित अनुष्ठान और प्रार्थनाएं भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं और जीवन की समस्याओं को हल करती हैं। हालांकि, कालाष्टमी पर कुछ कार्यों का भी माना जाता है जो काल भैरव को नाराज कर सकते हैं।
कालाष्टमी के दिन न करें ये काम, वरना नाराज हो जाते हैं काल भैरव!
- घर में आत्मीयता की वातावरण को बनाए रखें, झगड़ों और अनावश्यक विवादों से बचें।
- झूठे बोलने से बचें, क्योंकि झूठे बोलने से व्यक्ति को स्वयं को हानि पहुंचती है और भविष्य में मुश्किलें खड़ी करती हैं।
- केवल शाकाहारी भोजन का सेवन करें, कालाष्टमी पर किसी भी मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करें।
- शराब और अन्य मद्यपान सामग्रियों से बचें।
- सभी प्राणियों के प्रति करुणा दिखाएं, खासकर कालाष्टमी पर जरूरतमंदों की सहायता करें।
- बड़ों का सम्मान करें, किसी भी प्रकार की अनादर या अपमान से बचें।
- तेज वस्त्रों या किसी भी प्रकार की नुकीली वस्तुओं का उपयोग न करें।
Kalashtmi ki dharmik Manyta-कालाष्टमी मान्यता
मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के साथ साथ उनके स्वरूप काल भैरव की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में चल रहीं सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है. कालाष्टमी को लेकर ये भी मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन कुछ गलतियां करने से काल भैरव नाराज हो सकते हैं.
कालाष्टमी कथा- Kalasthmi Vrat Katha
शिवपुराण के अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव (kaal bhairava) का जन्म हुआ था। मान्यता है कि कालभैरव का व्रत रखने से उपासक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और साथ ही जादू-टोना और तंत्र-मंत्र का भय भी खत्म हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार, कालभैरव की पूजा करने से सभी नवग्रहों के दोष दूर हो जाते हैं और उनका अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है।
अपने आप को श्रेष्ठ बताने के लिये अक्सर दूसरे को कमतर आंका जाने लगता है। अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की यह लड़ाई आज से नहीं बल्कि युगों – युगों से चली आ रही है। मनुष्य तो क्या देवता तक इससे न बच सकें। बहुत समय पहले की बात है।
भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गये लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया, जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये। भगवान शंकर के इस भयंकर रूप से ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई।
सभा में उपस्थित समस्त देवी देवता शिव के इस रूप को देखकर थर्राने लगे। कालभैरव (kalashtami) जो कि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए थे, ने ब्रह्मा जी पर प्रहार कर उनके एक सिर को अलग कर दिया। ब्रह्मा जी के पास अब केवल चार शीश ही बचे उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से स्वयं को बचाया।
ब्रह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव पुन: अपने रूप में आ गये लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था जिससे मुक्ति के लिये वे कई वर्षों तक यत्र तत्र भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली।
निष्कर्ष-Conclusion
कालाष्टमी हिन्दू परंपरा में समर्पण और सावधानी को दर्शाता है। जबकि यह आध्यात्मिक विकास और आशीर्वाद का अवसर प्रदान करता है, वह सावधानी बरतने की याद दिलाता है और उन कार्यों से बचने की सलाह देता है जो ईश्वरीय शक्तियों को अप्रिय हो सकते हैं। परिपालित अनुष्ठानों और सजग आचरण के माध्यम से, भक्तगण आध्यात्मिक पूर्णता और संसारिक दुखों से मुक्ति की कामना करते हैं।