अक्षय तृतीया 2024: तिथि, मुहूर्त, महत्व और शुभ कार्य
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है। यह हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानी इस दिन बिना किसी मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया 2024: Akshay Tratiya 2024
- तिथि: 10 मई 2024
- शुभ मुहूर्त:
- पूजा का मुहूर्त: सुबह 5:33 बजे से दोपहर 12:18 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:52 बजे से दोपहर 12:40 बजे तक
- अक्षय तृतीया का महत्व: Importance of Akshay Tratiya
- इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कभी क्षय नहीं होता।
- इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।
- इस दिन सोना, चांदी, वस्त्र, आदि खरीदना शुभ माना जाता है।
- इस दिन शादी-विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय शुरू करना आदि शुभ कार्य किए जाते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले शुभ कार्य:
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- दान-पुण्य: इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। दान-पुण्य करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- सोना, चांदी, वस्त्र, आदि खरीदना: इस दिन सोना, चांदी, वस्त्र, आदि खरीदना शुभ माना जाता है।
- शादी-विवाह: इस दिन शादी-विवाह करना शुभ माना जाता है।
- गृह प्रवेश: इस दिन गृह प्रवेश करना शुभ माना जाता है।
- व्यवसाय शुरू करना: इस दिन व्यवसाय शुरू करना शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया 2024: कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- इस दिन गंगाजल स्नान करना भी शुभ माना जाता है।
- इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने से भी विशेष लाभ मिलता है।
- इस दिन दान-पुण्य करते समय अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही दान करना चाहिए।
यह भी ध्यान रखें:
- अक्षय तृतीया के दिन कोई भी शुभ कार्य करने से पहले किसी विद्वान पंडित से सलाह अवश्य लें।
- किसी भी शुभ कार्य को करते समय सभी आवश्यक विधि-विधानों का पालन करें।
अक्षय तृतीया: 25 बातों में महत्व और शुभ कार्य
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है। यह हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानी इस दिन बिना किसी मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया का महत्व:
- अक्षय का अर्थ है ‘जिसका कभी क्षय न हो’। इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कभी क्षय नहीं होता।
- दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।
- सोना, चांदी, वस्त्र, आदि खरीदना शुभ माना जाता है।
- शादी-विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय शुरू करना आदि शुभ कार्य किए जाते हैं।
20 बातों में अक्षय तृतीया का महत्व:
- नया वाहन लेना, गृह प्रवेश करना, आभूषण खरीदना आदि कार्यों के लिए लोग इस तिथि का विशेष उपयोग करते हैं।
- इस दिन किए गए काम में बरकत होती है।
- धरती पर देवताओं ने 24 रूपों में अवतार लिया था। इनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था। पुराणों में उनका जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था।
- इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई। सतयुग, द्वापर व त्रेतायुग के प्रारंभ की गणना इस दिन से होती है।
- वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।
- अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने का उत्तम समय।
- कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने का श्रेष्ठ मुहूर्त।
- दान के लिए सबसे अच्छा समय।
- वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आखातीज के रुप में मनाया जाता है।
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान,दान,जप,स्वाध्याय आदि करना शुभ फलदायी माना जाता है।
- यदि इसी दिन रविवार हो तो वह सर्वाधिक शुभ और पुण्यदायी होती है।
- भगवान विष्णु की आराधना करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- दीन दुखियों की सेवा करना, वस्त्रादि का दान करना, शुभ कर्म की ओर अग्रसर रहना ही अक्षय तृतीया पर्व की सार्थकता है।
- कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए।
- भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन किए गए दान पुण्य के प्रभाव से व्यक्ति अगले जन्म में समृद्धि, ऐश्वर्य व सुख प्राप्त करता है।
- पवित्र नदियों में स्नान कर सामर्थ्य अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पंखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है।
- दान को वैज्ञानिक तर्कों में ऊर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है।
- यदि अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है।
- इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं।
- सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और द्वापर युग समाप्त हुआ था।