Adhiyog(अधियोग)
परिभाषा: अधियोग ज्योतिष शास्त्र में एक महत्त्वपूर्ण योग है जो चन्द्रमा के शुभग्रह से संबंधित है। यदि किसी की कुंडली में चन्द्रमा ६, ७, और १२वें भाव में शुभग्रहों के साथ स्थित होता है, तो उसे अधियोग माना जाता है।
फल: अधियोग के प्रसार में, व्यक्ति नम्र और विश्वासी होता है। उसका जीवन खुशहाल होता है, और वह ऐश और आराम की वस्तुओं से घिरा रहता है। वह अपने शत्रुओं पर विजयी होता है, स्वस्थ रहता है, और उसकी आयु लम्बी होती है।
किसी भी प्रकार के योग की उपस्तिथि से ही केवल ये नहीं कहा जा सकता है की योग का पूरा फल आपको प्राप्त होगा , इसके लिए ग्रहो का बल और दूसरे ग्रहो की दृष्टि की गणना करना भी आवश्यक है |
विवरण: अधियोग को पापाधियोग और शुभाधियोग में बाँटा जाता है, हालांकि कुछ ज्योतिषी इस वर्गीकरण को मान्यता नहीं देते हैं। बराहमिहिर की पुस्तकों के विद्वान व्याख्याकार भट्टोत्पल कहते हैं कि पापाधियोग होता है। वराहमिहिर इसे सौम्य योग मानते हैं, जिसमें वे केवल सौम्य ग्रहों (बुध और बृहस्पति) को लेते हैं। इन ग्रहों को ६, ७, या १२वें भावों में होने की शर्त में देखा जाता है। यदि किसी एक भाव में ग्रह पूर्ण रूप से बली हो, तो व्यक्ति नेता बनता है। दो बली ग्रहों के साथ, वह मंत्री बन सकता है, और तीन बली ग्रहों के साथ, वह जीवन में महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकता है। अधियोग को राजयोग या इसके बराबर का योग माना जाता है।