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देवशयन-Devshyan Time

आषाढ़ शुक्ल 11 से कार्तिक शुक्ल 11 तक देवता शयन करते हैं। इन्हें देवशयन या चातुर्मास कहते हैं, इन दिनों में विवाह, उपनयन, गृहारम्भ, शान्ति, पौष्टिक कर्म, देव-स्थापना आदि का निषेध है।

होलाष्टक– Hola Asthak Time

होली से 8 दिन पूर्व (फाल्गुन शुक्ल अष्टमी) से होलाष्टक माना गया है। इसमें कुछ क्षेत्रों में (सतलज, रावी, व्यास नदियों के तथा पुष्कर सरोवर के तटवर्ती भाग में) विवाहादि मांगलिक कार्य वर्जित है। अन्य क्षेत्रों में वर्जित नहीं है।

गुरु एवं शुक्र के अस्त तथा खरमास में वर्जित– Kharmas Time

कार्य– विवाह, मुण्डन (चौल), उपनयन, कर्णछेदन, दीक्षा ग्रहण, गृह प्रवेश, द्विरागमन, वधू प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, कुँआ, जलाशय खोदना, चातुर्मास उत्सर्ग इत्यादि कृत्य वर्जित हैं।

भद्रा दोष-विवाह, गृहारम्भ, गृह प्रवेश तथा मांगलिक कार्य वर्जित हैं, पूर्वार्ध दिन की भद्रा रात में तथा उत्तरार्ध की भद्रा दिन में शुभ कार्य के लिए मान्य है।

किस माला से जाप करें- Kis Mala se jaap kare ?

रुद्राक्ष की माला-श्रीगायत्री, श्रीदुर्गा, श्रीशिव जी, श्रीगणेश जी, श्रीकार्तिकेय, पार्वती जी।

तुलसी की माला-श्रीराम, श्रीकृष्ण, सूर्यनारायण, वामन, श्रीनृसिंह जी।

स्फटिक की माला-श्रीदुर्गा जी, श्रीसर-स्वती, श्रीगणेश जी।

सफेद चन्दन की माला-सभी देवी का जाप कर सकते हैं।

लाल चन्दन-श्रीदुर्गा जी।

कमलगट्टे की माला-श्रीलक्ष्मी जी ।

हल्दी माला-श्रीबगलामुखी जी।

भगवान् को चढ़ने वाला पूजा अवशेष सामान-गंगा, आदि पवित्र नदियों में नहीं डालना चाहिए। ऐसा करने से वे देवी देवता रुष्ट होते हैं।

भगवती लक्ष्मी आदि देवताओं का वास वहीं होता है जहाँ स्वच्छता व श्रद्धा होती है, अतः अपनी उन्नति व सुख के लिये अपने आस- पास पेड़-पौधे लगाये व सफाई का ध्यान रखें।

व्यापारिक उन्नति के लिये अपने व्यवसाय में कुछ नयापन व गुणवत्ता पर ध्यान दें। किसी भी प्रकार के सट्टा-जूआ व्यापार वा बेइमानी से पूँजी, बुद्धि विवेक व व्यापार को नष्ट कर देता है।

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