When Is Jayanti of Karpatri Maharaj करपात्री महाराज की जयंती :
18 अगस्त २०२३, महाराज जी का जन्म श्रावण शुक्ल पक्ष की द्वितिया को हुआ था जो इस बार १८ अगस्त २०२३ को है|
स्वामी करपात्री महाराज का जीवन परिचय और व्यक्तित्व: Biography of Karpatri Mmaharaj
स्वामी करपात्री महाराज, एक धर्मसम्राट, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान संघर्षक और राजनीतिक विचारधारा के प्रमुख व्यक्ति थे। उन्होंने समाज में गौरक्षा के प्रति आपूर्ण समर्पण दिखाया और अद्वैत दर्शन के विशेषज्ञ थे। उनका जन्म हुआ था 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के लालगंज में।
जीवन की मुख्य घटनाएँ: Main Events of Life
नाम: स्वामी करपात्री जी महाराज
मूल नाम: हरिनारायण ओझा
जन्म: 1907 ई.
स्थान: लालगंज जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
माता: शिवरानी देवी
पिता: रामनिधि ओझा
पत्नी: महादेवी
गुरु: स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज
निधन: 7 फरवरी 1982, काशी केदार घाट
शिक्षा और योग्यताएँ: Education & Skills
स्वामी करपात्री महाराज ने विभिन्न शास्त्रों में उन्नत शिक्षा प्राप्त की, जैसे कि व्याकरण, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, और वेदांत। उन्होंने भागवत सुधा, रस मीमांसा, गोपीगीत भक्ति सुधा जैसी महत्वपूर्ण रचनाएं भी की। उनकी ग्रन्थ-रचनाएँ वेदार्थ पारिजात और रामायण मीमांसा मुख्य हैं।
व्यक्ततित्व और योगदान:
स्वामी करपात्री महाराज का व्यक्तिगत जीवन उनके ध्येयों और समर्पण की दृढ़ता से भरपूर था। उन्होंने आत्मनिर्भर जीवन जीने के लिए उपयोगी और मानवता के उत्कृष्टतम आदर्शों की स्थापना की।
गौरक्षा के प्रति समर्पण:
स्वामी करपात्री महाराज गौरक्षा के प्रति अपने अद्वितीय समर्पण के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने आजादी के बाद भारत में गौहत्या के प्रति अपने संघर्ष को अभिव्यक्त किया और इसके लिए समाज को जागरूक किया।
समर्पण और तपस्या:
स्वामी करपात्री महाराज के जीवन में तपस्या और समर्पण की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने अपने जीवन को साधना में लगाया और उनकी अद्वैत धार्मिकता ने उन्हें एक महान आध्यात्मिक गुरु बनाया।
स्वामी करपात्री महाराज का निधन: Death of Karpatri Maharaj
स्वामी करपात्री महाराज का निधन 7 फरवरी 1982 को काशी केदार घाट पर हुआ। उनके निधन से उनके शिष्यों और भक्तों को गहरा दुख हुआ, लेकिन उनका योगदान धर्म और समाज के विकास में सदैव याद रखा जाएगा।
क्या श्राप दिया है करपात्री महाराज ने इंदिरा गांधी को: Curse of Karpatri Maharaj to Indira Gandhi
करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। हज़ारों साधु-संतों ने उनके साथ कहा कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा।इसी आशय के साथ 7 नवम्बर 1966 को प्रमुख संतों की अगुआई में हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हुई, जिस में हजारों संत थे और हजारों गौरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे।
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा कि यह सरकार बहरी है। यह गौहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ, तभी गौहत्याबंदी कानून बन सकेगा।
पुलिसकर्मी पहले से ही बाहर लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गौरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। माना जाता है कि उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गौरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।
इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। आधिकारिक तौर पर यह कहा जाता है की इंदिरा गांधी ने उनकी एक गृहमंत्री के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी में विफल रहने पर उनका इस्तीफ़ा माँगा।देश के इतने बड़े और अचानक घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका ‘आर्यावर्त’ और ‘केसरी’ में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ ने अपने गौ अंक विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।
करपात्री जी का श्राप: Curse of Karpatri Ji
इस घटना के बाद स्वामी करपात्री जी के शिष्य बताते हैं कि करपात्री जी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था। बताया जाता है कि उन्होंने यह भी कहा कि मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि ‘गोपाष्टमी’ के दिन ही तेरा नाश होगा।
ज्ञात रहे कि हिन्दू धर्म में गाय को माँ समान माना जाता है। शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। गोपाष्टमी कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है।
इसे करपात्री जी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे।
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, गोहत्या बंद हो…। इन जयकारों के बिना धार्मिक अनुष्ठान पूरे नहीं होते। सनातन धर्म के गौरव और विराटता को प्रदर्शित करने वाले यह जयकारे प्रतापगढ़ के स्वामी करपात्री जी महाराज की देन हैं। वह धर्म के साथ देश, गाय, देववाणी संस्कृत के लिए भी लड़े। उनके अनुकरणीय व्यक्तित्व पर मोदी सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया।
छात्र जीवन में छोड़ दिया था घर, काशी में रहकर लिखे कई ग्रंथ: Books of Karpatri Maharaj
व्याकरण, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत के विद्वान करपात्री जी प्रतापगढ़ के लालगंज के भटनी गांव में 30 जुलाई 1907 को जन्मे थे। इनका वास्तविक नाम हरि नारायण ओझा था। छात्र जीवन में 15 वर्ष की आयु में ही घर-बार त्याग कर अध्यात्म जगत में प्रवेश कर गए थे। वह स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज के शिष्य रहे। संत समाज में प्रभाव रखने पर काशी में इनका नाम हरिहरानंद सरस्वती हो गया। उन्होंने भागवत सुधा, रस मीमांसा, गोपी गीत व भक्ति सुधा समेत कई ग्रंथ भी लिखे थे।
गोहत्या के विरुद्ध लड़े सरकार से भी:
वह भारतीय संस्कृति, देववाणी संस्कृत के प्रबल समर्थक व गायों के पालक रहे। गोहत्या के विरुद्ध तत्कालीन कांग्रेस सरकार से भी टकराए। इसको लेकर सात नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने संतों ने उनके नेतृत्व में धरना दिया था। भारी भीड़ देखकर पीएम इंदिरा गांधी के इशारे पर फायरिंग व लाठीचार्ज होने से कई संतों की मौत हो गई थी। स्वामी जी राजनीति में धर्म व नीति की स्थापना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद बनाकर उम्मीदवार उतारे। कई सीटें जीतीं और राजनीति में हलचल मचा दी।
स्वजन चाहते हैं, बने संग्रहालय:
उनके पैतृक गांव भटनी में स्मारक बना है। उनकी मूर्ति लगाई गई है। वहां पर हर वर्ष जन्म व पुण्यतिथि मनाई जाती है। उनके पौत्र शिवराम ओझा के साथ ही परिवार के गोकरन नाथ, आशुतोष ओझा, चंद्रमोलेश्वर व चंद्रशेखर को इस बात की प्रसन्नता है कि करपात्री जी पर सरकार ने डाक टिकट जारी किया। वह चाहते हैं कि भटनी गांव को पर्यटन व शोध के लिहाज से विकसित किया जाए। संग्रहालय बनवाया जाए।
भारत रत्न की मांग:
धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुजदास बताते हैं कि करपात्री जी समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी देश की सेवा करते रहे। उनकी स्मरण शक्ति गजब की थी। जो पढ़ लिया, वह भूलते नहीं थे। वह अधिकांश समय काशी में रहे। उनको मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाना चाहिए। यह मांग सांसद संगम लाल गुप्ता के माध्यम से संसद तक भी पहुंची है।
जीवन की कहानी: बचपन से लेकर सफलता की ओर
स्वामी का का मूल नाम हर नारायण ओझा था, उनका जन्म वर्ष 1907 में उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में बताया जाता हैं. हिन्दू परम्परा के अनुसार इन्होने छोटी उम्र में ही सन्यास ग्रहण कर लिया था. संत परम्परा के अनुसार सन्यासी बनने के पश्तात इन्हे अपने गुरु के नाम पर हरिहरानन्द सरस्वती का नया नाम मिला था.
हालाँकि लोग इन्हे करपात्री महाराज के रूप में ही जानते थे. धर्मसंघ के संस्थापक ने 1923 में 17 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर वाराणसी की एक मठ को ही अपनी कर्मस्थली चुनी. सन्यास लेने से पूर्व करपात्री महाराज का विवाह को चूका था. इनके एक पुत्री भी थी.
Ravi Singh
August 16, 2023 at 7:36 am
महत्त्वपूर्ण जानकारी ..🙏🙏