जया एकादशी- Jaya Ekadshi
जया एकादशी का महत्व: जया एकादशी को मुक्ति का द्वार कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है उसे मृत्यु के पश्चात पिशाच योनी से मुक्ति मिल जाती है और यहां तक कि उस पर आजीवन मां लक्ष्मी की कृपा बरसती रहती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी उस व्यक्ति को प्राप्त होता है।
जया एकादशी कब है(When is Jaya Ekadashi)
जया एकादशी 19 फरवरी को सुबह 08.50 मिनट से 20 फरवरी को सुबह 09.52 मिनट तक रहेगी।
जया एकादशी पूजा विधि: (Jaya Ekadashi Puja Procedure)
जया एकादशी के दिन व्रत करने वाले सुबह स्नान करें इस दिन पीले रंग के कपड़े पहने का चलन है. इस दिन केले के पेड़ में जल अर्पित करने के साथ चने की दाल भी चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें पीले रंग के फूल अथवा पीले रंग की मिठाई अर्पित करें, बाद में भगवान विष्णु का जाप करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस प्रकार जया एकादशी का पूजन करने से भक्तों को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
जया एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद मंदिर में गंगाजल छिड़कर शुद्ध करें और भगवान विष्णु का पूजर करें।
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें पीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए।
देशी घी में मिलाकर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए।
इसके बाद घी का दीपक जलाएं और मिठाई अर्पित करें।
एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के समक्ष भी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए।
इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और दिनभर केवल फलाहार ही लिया जाता है।
दिव्य कथा: (जया एकादशी व्रत कथा) – Divine Tale: (The Legend of Jaya Ekadashi Vrat):
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था। इस सभी में सभी देवगण और संत उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। रूप से भी वो बहुत सुंदर था। गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठें और अपनी लय-ताल से भटक गए। उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप स्वर्ग से वंचित रहने का श्राप दे दिया। इंद्र भगवान नें दोनों को मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगने का श्राप दिया।
श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था। रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए।
भूलकर भी न करें यह गलतियां:( Do not make these mistakes even by mistake.)
धार्मिक मान्यता के अनुसार जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दुख दूर होते हैं। इस दिन कुछ कार्य ऐसे हैं, जिनको करने से मना किया जाता है। इस दिन देर तक सोना नही चाहिए। इस दिन खान पान पर संयम रखना चाहिए मुख्य रूप से तामसिक भोजन का त्याग करें। इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए और लड़ाई- झगड़ों से दूर रहें।