Ahoi Astmmi Kab hai ?
अहोई अष्टमी 2023: तिथि और समय ( Ahoi Ashtmi 2023- Date & Time )
अष्टमी तिथि 05 नवंबर दोपहर 1:00 बजे से 06 नवंबर 3:18 बजे तक होगी |
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 5 नवम्बर, 2023 को सुबह 12:59 बजे।
अष्टमी तिथि समाप्त – 6नवम्बर, 2023 को सुबह 3:18 बजे
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त ( Ahoi Ashtmi Puja Muhurat)
05:27 शाम से 06:45 तक। तारों को देखने के लिए शाम का समय — 05:51
इस वर्ष अहोई अष्टमी 2023 का व्रत 5 नवम्बर 2023, रविवार को रखा जाएगा। यह व्रत करवा चौथ के तीन दिन बाद अष्टमी तिथि में रखा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। कई स्थानों पर महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही इस व्रत का परायण करती हैं।
अहोई को “अनहोनी” शब्द का अपभ्रंश कहा जाता है और मां पार्वती किसी भी प्रकार की अनहोनी को टालने वाली होती हैं। इस कारण ही अहोई अष्टमी के व्रत के दिन मां पार्वती की अराधना की जाती है। सभी माताएं इस दिन अपनी संतानों की लंबी आयु और किसी भी अनहोनी से रक्षा करने की कामना के साथ माता पार्वती व सेह माता की पूजा-अर्चना करती हैं।
अहोई अष्टमी( Ahoi Astmi Vrat Katha ): प्रथम कथा
एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी। दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल जाकर खदान में मिट्टी खोद रही थीं, वहीं स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहू माता बोली कि मैं तेरी कोख बांधूंगी।
तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममें से मेरे बदले कोई अपनी कोख बंधवा लो। सब भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इनकार कर दिया परंतु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नहीं बंधवाऊंगी तो सासूजी नाराज होंगी, ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवाली। इसके बाद जब उसे संतान होती है, वह सात दिन बाद ही मर जाती।
एक दिन उसकी सास ने पंडित को बुलवाकर पूछा मेरी बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित ने सारी बात बताई और बहु से कहा कि तुम सुरही गाय की पूजा करो सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा। इसके बाद से वह बहू प्रातःकाल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती।
गौ माता ने सोचा कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है, सो आज देखूंगी। गौ माता खूब तड़के उठीं और वह क्या देखती हैं कि साहूकार की बहू उसके नीचे सफाई आदि कार्य कर रही है। गौ माता उससे बोली — “तेरी सेवा से मैं प्रसन्न हूँ, बता तेरी क्या मनोकामना है।” तब साहूकार की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बांध रखी है, सो मेरी कोख खुलवा दो।
गौ माता समुद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी, सो वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) का बच्चा था, थोड़ी देर में एक सांप आया और उसको डसने लगा तब साहूकार की बहू ने सांप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू के चोंच मारने लगी।
बहू बोली कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने आया था, मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली कि मांग, तू क्या मांगती है? वह बोली सात समुद्र पार स्याऊ माता रहती हैं, हमें तू उसके पास पहुंचा दे। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर स्याऊ माता के पास पहुँचा दिया।
स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली कि आ बहन! बहुत दिनों में आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई हैं। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सलाई से उनकी जुएं निकाल दीं। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तूने मेरे सिर में बहुत सलाई गहरी हैं, इसलिए तेरे सात बेटे और बहुयें होंगी, वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं, सात बेटे कहां से होंगे।
स्याऊ माता बोलीं वचन दिया है, वचन से फिरूं तो धोबी के कुंड पर कंकरी हों, तब साहूकार की बहू बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी हैं। यह सुन स्याऊ माता बोली कि तूने तो मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परन्तु अब खोलनी पड़ेगी। जा, तेरे घर तुझे सात बेटे और बहुयें मिलेंगी, तू जाकर उजमन करियो, सात अहोई बनाकर सात कड़ाई करियो।
जब वह लौटकर घर आई तो वहां देखा सात बेटे सात बहुयें बैठे हैं, वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाईं, सात उजमन किए और सात कड़ाई कीं। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस में कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी धोक पूजा कर लो, कहीं छोटी (बहू) बच्चों को याद करके न रोने लगे।
थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा – “अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं।” बच्चों ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है, खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी-दौड़ी घर आयीं और जाकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे छुड़ाई? वह बोली तुमने तो कोख बांधाई नहीं, सो मैंने कोख बांध ली थी। अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली, उसी प्रकार हमारी भी कोख खोली। कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार की कोख खोली।
अहोई अष्टमी( Ahoi Ashtmi Vrat Katha ): द्वितीय कथा
दंतकथा के अनुसार एक बार एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गाँव में रहती थी। एक दिन कार्तिक महीने में वह मिटटी खोदने के लिए जंगल में गई। वहां पर उसने गलती से एक पशु के शावक की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी।
उस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस घटना से दुखी हो कर उस औरत ने अपनी कहानी गाँव की हर एक औरत को सुनाई। एक बड़ी औरत ने उस औरत को यह सुझाव दिया कि वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करे।
सोते हुए पशु के शावक की हत्या के पश्चाताप के लिए उस औरत ने शावक का चित्र बनाया तथा माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रखकर उनकी पूजा करने लगी। उस औरत ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत रखा, जिसके प्रताप से वह हत्या के दोष से मुक्त हो गई।
अहोई अष्टमी पूजा विधि( Ahoi Ashtmi Puja Vidhi)
उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य कई राज्यों में अहोई अष्टमी व्रत मनाया जाता है। यह व्रत वे स्त्रियाँ करती हैं जिनके सन्तानें होती हैं। बच्चों की माता दिन भर व्रत रखती हैं। सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएं। उस पुतली के पास सेवइयां और सेवइयों का चित्र भी बनाएं या छपी हुई अहोई अष्टमी का चित्र मंगवाकर दीवार पर लगाएं और उसका पूजन करें। सूर्यास्त के बाद, जब तारे निकलें, अहोई माता की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करें और चौक पूर करने के लिए एक लोटा जल भरकर एक पटल पर कलश की भांति रखें। उसके बाद, अहोई माता की कथा सुनें।
पूजा के लिए माताएं पहले से एक चांदी की अहोई बनाएं जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चांदी के दो दाने (मोती) डाल लें। जैसे ही गले में पहनने के लिए हार में पैंडल लगा होता है, उसी तरह चांदी की अहोई में ढलवाएं और डोर में चांदी के दाने डालें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध और भात से पूजा करें, जल से भरे लोटे पर सतिया बनाएं।
एक कटोरी में हलवा और रूपये निकालकर रखें और सात दाने गेहूं के लेकर कथा सुनें। कहानी सुनने के बाद, अहोई स्याऊ की माला गले में पहनें। जो रूपये निकालकर रखा था, उसे सासू जी के पांव चूमकर आदर पूर्वक उन्हें दें। इसके बाद, चंद्रमा को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन करें। दीपावली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसको गुड़ से भोग लगाएं और जल की छींटे देकर मस्तक झुकाकर रख दें।
जितने बेटे हैं, उतनी बार और जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार चांदी के दो-दो दाने अहोई में डालें। ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न होकर बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित्य नए मंगल करती रहती हैं। इस दिन पंडितों को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। शाम को तारे निकलते ही उसको जल और खाना अर्पण करके ही व्रत खोलें।
अहोई माता की आरती ( Ahoi Mata ki Aarti):
जय अहोई माता,
जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत,
हर विष्णु विधाता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला,
तू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
माता रूप निरंजन,
सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत,
नित मंगल पाता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
तू ही पाताल बसंती,
तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक,
जगनिधि से त्राता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
जिस घर थारो वासा,
वाही में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले,
मन नहीं घबराता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
तुम बिन सुख न होवे,
न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव,
तुम बिन नहीं आता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
शुभ गुण सुंदर युक्ता,
क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू,
कोई नहीं पाता॥
॥ ॐ जय अहोई माता॥
श्री अहोई माँ की आरती,
जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे,
पाप उतर जाता॥
ॐ जय अहोई माता,
मैया जय अहोई माता।
अहोई अष्टमी उजमन Ahoi Astmi Ujman ( Udyapan –उद्यापन):
जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ियां रखकर उन पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। इसके साथ ही एक तीयल साड़ी तथा उस पर सामर्थ्यानुसार रुपये रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सासूजी के पांव लगाकर वह सारा सामान सासूजी को दे देवें। तीयल तथा रुपये सासूजी अपने पास रख लें तथा हलवा पूरी का बायना बांट दें। बहिन बेटी के यहां भी बायना भेजना चाहिए।
अहोई अष्टमी व्रत 2022 पूजा:
17 अक्टूबर 2022 की आज है। महिलाएं इस दिन संतान के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इस दिन संध्याकाल में शंकर पार्वती और अहोई माता की पूजा का विधान है। स्त्रियां वंश वृद्धि और बच्चे की सुखी जीवन की कामना के लिए इस व्रत को सूर्योदय से सूर्यास्त तक करती हैं और फिर तारों को देखने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। कुछ जगहों में चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलते हैं। इस दिन राधा कुंड में स्नान का विशेष महत्व है। इस साल अहोई अष्टमी पर बेहद शुभ योग का संयोग भी बन रहा है जिसमें व्रती को पूजा का दोगुना फल मिलेगा। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी का मुहूर्त, पूजा विधि, शुभ योग।
अहोई अष्टमी 2022 मुहूर्त:
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि शुरू – 17 अक्टूबर 2022, सुबह 09.29
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त – 18 अक्टूबर 2022, सुबह 11.57